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मार्च, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुन मेरे हमसफर 286

  286      शिवि की विदाई होने के बाद सभी अपने घर लौट आए। सब लोग इस वक्त मित्तल हाउस के हाल में बैठ आराम कर रहे थे। कार्तिक परेशान थे तो काव्य तो अभी भी सिसक रही थी। और श्यामा! उन बेचारी को तो अभी तक विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि अभी-अभी उन्होंने अपनी बेटी की विदाई की है। यह सब कैसे हो गया और क्या हो गया, इस पर अभी भी उनको यकीन करना मुश्किल था। इसलिए सबके बीच बैठने की बजाय श्यामा अपने कमरे में चली गई।      बेटी के विदा होने से श्यामा दुखी तो थी लेकिन परेशान भी थी, यह बात सिद्धार्थ अच्छे से समझ रहे थे। उन्होंने जाकर श्यामा को समझाना चाहा लेकिन अव्यांश ने उन्हें रोक दिया और कहा "बड़े पापा! मुझे उनसे थोड़ी बात करनी है। आप रुकिए, मैं उन्हें लेकर आता हूं।"    सिद्धार्थ ने कहा "नहीं वह थोड़ा आराम करेगी तो बेहतर महसूस करेगी। तुझे बात करनी है तो जाकर कर ले। रात भर सोए नहीं है तो उसे सोने जाने को कहना, हम लोग भी सो लेंगे। तु जा।" सिद्धार्थ ने बुझे हुए स्वर में यह बात कही।  अव्यांश को उनके लिए बहुत बुरा लगा लेकिन सबसे पहले उसने अपनी बड़ी मां से बात करना ज्यादा जरूरी समझा क्य

सुन मेरे हमसफर 285

 285  एक तरफ सभी शिवि की विदाई के लिए इकट्ठा थे तो वहीं दूसरी तरफ देवेश अपना काम कर चुका था। लावण्या ने पूछा "काम हो गया सब सही से?"  अंश ने खुश होकर सारी तस्वीरें देखते हुए कहा "हां मॉम! मैंने ऐसी परफेक्ट फोटोज निकाली है कि कोई भी इस पर यकीन किए बिना नहीं रह पाएगा। निशी चाहे कुछ भी कर ले, वह अपने उस हस्बैंड को कभी मना नहीं पाएगी।"  देवेश ने पूछा "मेरी समझ में नहीं आ रही एक बात, हमे इतना सब कुछ करने की क्या जरूरत थी? मेरा मतलब, आजकल ए आई टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो चुकी है ,हम बड़ी आसानी से ये सारी तस्वीर बना सकते थे, वो भी घर बैठे। फिर इतनी दूर आने की क्या जरूरत थी, वह भी रात के इस टाइम?"  लावण्या ने देवेश को ताना मारते हुए कहा "क्योंकि जहां से मैं देख रही हूं वहां से देखने के लिए तुम्हें जन्मों लग जाएंगे। तुम्हें क्या लगता है, सारांश मित्तल इतना बेवकूफ है कि हम एआई टेक्नोलॉजी से तस्वीर बनाएंगे और एक फेक फोटो दिखाएंगे तो पूरा परिवार उस तस्वीर पर यकीन कर लेगा? तुम नहीं जानते मित्तल परिवार की नींव कितनी मजबूत है। वह सब एक दूसरे पर इतना ज्यादा भरोसा करते

सुन मेरे हमसफर 284

 284      निशि देवेश शसे मिलने बाहर की तरफ गई। देवेश उसे देखकर खुश हो गया और आगे बढ़ाकर उसे गले लगाने की कोशिश की लेकिन निशि ने एकदम से हाथ बढ़ाकर उसे वहीं रुक जाने का इशारा किया और कहा "मैं बस यहां तुमसे मिलने आई थी, सिर्फ तुम्हारे कहने पर। इससे ज्यादा मुझसे कोई उम्मीद मत रखना। अब मैं वह निशि नहीं हूं देवेश!"    देवेश ने निराश होने का नाटक किया और कहा "ठीक है। मैं समझ सकता हूं। मैंने काम ही ऐसा किया कि........! तुम यहां तक आई यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है लेकिन ऐसे बाहर सड़क पर खड़े होकर बात करना थोड़ा अनकंफरटेबल नहीं लग रहा!"      निशि ने बिना किसी एक्सप्रेशन के पूछा "क्या चाहते हो तुम?"      देवेश ने थोड़ा हकलाते हुए कहा "तुम..... तुम अगर चाहो तो हम...... मेरा मतलब तुम और मैं, मेरी मेरी गाड़ी में चलकर बैठ सकते हैं। हम वहां आराम से बात कर लेंगे। ऐसे सड़क पर अगर किसी ने तुम्हें एक अनजान इंसान के साथ बात करते देख लिया तो लोग मित्तल परिवार की बहू के बारे में कुछ गलत ही सोचेंगे। मेरी गाड़ी यही पास में ही खड़ी है।"      निशि ने उस तरफ देखा जहां देवे

सुन मेरे हमसफर 283

  283     पार्थ गार्डन में एक तरफ खड़ा दूर से ही शिवि को कुणाल के साथ फेरे लेते हुए देख रहा था। जहां वह देख रहा था वहां तो लोगों की अच्छी खासी भीड़ थी और उजाला ही उजाला था लेकिन जहां वह खड़ा था वहां वह अकेला अंधेरे में। उसकी आंखों में नमी थी। वो नमी जो वह चाह कर भी किसी को नहीं दिखा सकता था।     पार्थ को अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ तो वह चौंक गया। इस अंधेरे में उसे किसने ढूंढा? इससे पहले कि वह पलट कर देख पाता, प्रेरणा ने उसके कंधे से सर लगाकर कहा "हमारी किस्मत में जो लिखा होता है वो ही होता है। लेकिन सब कुछ किस्मत के भरोसे छोड़ना अच्छा नहीं होता। जो गलती मैंने की वही गलती तुमने भी कर दी। तुम्हें उसे बता देना चाहिए था पार्थ!"     पार्थ अब चाह कर भी अपने आंसुओं को रोक नहीं पाया और दो बूंद आंसू उसकी आंखों से बह गए। कैसे कहता वो अपने दिल की बात! उसने कहा "अगर उसके दिल में मेरे लिए थोड़ा सा भी एहसास होता तो वह इस तरह मंडप में किसी और के साथ कभी खड़ी नहीं होती। फिर भी मैंने सोचा था कुहू की शादी के बाद मैं उसे अपने दिल की बात कह दूंगा लेकिन देर हो गई, बहुत देर हो गई।&quo

सुन मेरे हमसफर 282

  282     नेत्रा अभी भी चिढ़ चिढ़ करने में लगी हुई थी और कुहू आराम से अपने बॉक्स में लेटी हुई थी। उसे नेत्रा से कोई बात ही नहीं करना था और वैसे भी, बात करने को और कुछ रह ही नहीं गया था। भले ही वह बेहोश होकर एक तरफ कमरे में बंद थी लेकिन उसे इतना पता था कि जो उसने प्लान बनाया था वह उसकी चित्रा मॉम कैसे ना कैसे करके एग्जीक्यूट करवा ही देगी। इसलिए वह निश्चिन्त थी।      तीन से चार घंटे के बाद कमरे का ताला खुला और चित्रा और अव्यांश कमरे में दाखिल हुए। अव्यांश थोड़ा घबराया हुआ था कि ना जाने चित्रा कैसे रिएक्ट करेगी लेकिन कहीं ना कहीं उसे उम्मीद थी कि वह समझेगी। चित्रा को देखते ही कुहू जल्दी से जाकर उसके गले लग गई और कहा "चित्रा मॉम! सब ठीक है न?"     चित्रा ने भी थम्स अप का इशारा करके कहा "सब ठीक है। हमारा प्लान सक्सेसफुल रहा और अब शिवि की विदाई होनी है।"      दोनों मां बेटे की बातें सुनकर अव्यांश शॉक्ड रह गया। उसने कहा "मतलब वह आप थी जिसने हमारे प्लान में सेंधमारी की थी?"     चित्रा ने हंसते हुए कहा "हमने तेरे प्लान में कोई सेंधमारी नहीं की थी बल्कि हमारा अ

सुन मेरे हमसफर 281

  281    नेत्रा परेशान होकर इधर-उधर टहलने के बाद वापस जाकर इस बॉक्स में बैठ गई जहां निर्वाण ने उसे बंद करके रखा था। उसे इस तरह बैठे देख कुहू को हंसी आ गई और वह ठहाके मार कर हंस पड़ी। नेत्रा ने थोड़ा झेंपते हुए कहा "नीचे फर्श गंदा है मेरे कपड़े खराब हो जाएंगे और यहां बैठने के लिए भी कुछ नहीं है। तुम क्यों इतना हंस रही हो? तुम खुद भी तो डब्बे के अंदर ही हो।"      कुहू ने हंसते हुए कहा "फर्श गंदा है, सीरियसली? पूरे फर्श पर कारपेट बिछा हुआ है। मैं तो यहां आराम से सो सकती हूं।"     नेत्रा ने भी चिढ़ कर जवाब दिया "हां तो सो जाओ ना किसने रोका है तुम्हें? मेरी तो किस्मत ही खराब है जो मैं मुझे तुम्हे झेलना पड़ रहा है। अगर मुझे बंद ही करना था तो किसी और कमरे में रखते लेकिन तुमसे अलग। अपने भाई पर मुझे भरोसा ही नहीं करना चाहिए था। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर इसका प्लान क्या है? तुम यहां हो मैं यहां हूं नीचे बारात खड़ी है, आखिर उसने ऐसा किया क्यों? तुम्हें एहसास भी है इस वक्त घर वालों की कितनी इंसल्ट हो रही होगी! बारात खाली हाथ वापस चली जाएगी, उसके बाद जो तुम्हारे परिवा

सुन मेरे हमसफर 280

  280     कुणाल शादी के मंडप में बैठा अपनी दुल्हन का इंतजार कर रहा था। श्यामा और और काव्या दोनों ही दुल्हन को लेने गए थे। कुणाल की तो हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह नजर उठाकर अपनी होने वाली दुल्हन को आते हुए देख सके। एक अजीब सा डर उसके मन में बैठा हुआ था। वो नहीं चाहता था यह शादी हो।      मंडप के आसपास खड़े लोगों में जब थोड़ी हलचल हुई तो कुणाल समझ गया कि वह आ चुकी है। पूरी हिम्मत बटोर कर कुणाल मंडप से उठ खड़ा हुआ और बाहर निकल गया। वहां खड़े सभी लोगों ने कुणाल को ऐसे मंडप छोड़कर जाते हुए देखा परेशान हो गए। अव्यांश ने उसे रोक कर पूछा "क्या हो गया, तुम ऐसे उठ कर कहां जा रहे हो?"     कुणाल ने नजर झुकाए ही कहा "मुझे उससे कुछ बात करनी है।"     अव्यांश समझ गया कि उसे क्या बात करनी है। उसने समझाते हुए कहा "जो हो रहा है उसे हो जाने दो, मत रोको। वरना सबके लिए मुश्किल होगी।"      कुणाल ने फिर भी जिद्द की। "मुझे एक बार उससे बात करनी है। अब तक मैं अपनी हिम्मत जुटा रहा था लेकिन अगर अब देर की तो शायद बहुत देर हो जाएगी।" अव्यांश ने इस बार कुणाल को रोका नहीं और उ

सुन मेरे हमसफर 279

279      अव्यांश तेज कदमों से उसे कमरे की तरफ बढ़ा जहां शिवि मौजूद थी। उसने दरवाजे पर खड़े होकर देखा तो कमरे में शिवि चुपचाप बैठी थी और चित्रा उसे अपने तरीके से समझने की पूरी कोशिश कर रही थी। लेकिन शिवि समझ रही थी या नहीं ये उसके चेहरे पर नजर नहीं आ रहा था।      चित्रा को शिवि पर अपने समझाने बुझाने का कोई असर होते ना देख उसने परेशान होकर कहा "शिवि तो समझ क्यों नहीं रही है, तेरा एक फैसला दो परिवारों को टूटने से बचा सकता है! पता है इस सब के बाद कार्तिक और काव्या पर क्या गुजरेगी? हम चाहे लाख तरक्की कर गए हो लेकिन हमारी सोच आज भी वही है। हमें इसी समाज में रहना है और यहां के लोगों के ताने सुनने हैं। भले ही कोई सामने से कुछ ना किया लेकिन पीठ पीछे हर इंसान की बुराई की जाती है। और किसी का नहीं तो कम से कम कार्तिक और काव्या के बारे में ही सोच ले। अगर वह दुखी रहे तो क्या बाकी सब खुश रह पाएंगे?"     शिवि चुपचाप बैठी रही। उसे देख चित्रा को लगा जैसे वह किसी पत्थर से बात कर रही है। अव्यांश ने अपने पीछे देखा, कुछ लोग थे जो शिवि से उम्मीद लगाए बैठे थे। उसने अंदर कदम रखा और चित्रा से बोल &quo

सुन मेरे हमसफर 278

 278      अव्यांश और प्रेरणा भागते हुए उस और बढ़ने लगे जहां सारे घर वाले इकट्ठा थे। प्रेरणा को एक बात खटकी। उसने अव्यांश की बांह पकड़ कर रोक लिया और पूछा, "अंशु! तुम्हारे इस पूरे प्लान में निर्वाण के अलावा और भी कोई शामिल था क्या?"      अव्यांश ने अच्छी तरह सोच समझ कर जवाब दिया "नहीं! ये प्लान तो उसे मेरे और नीरू के बीच में था और इस बारे में ना मैंने किसी और से कुछ कहा ना हीं नीरू ने। तुम वह तीसरी हो। यहां तक की नेत्रा को धोखे में रखा गया। लेकिन तुम क्यों पूछ रही हो?"      प्रेरणा ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा "तुम्हें कुछ गड़बड़ नहीं लग रहा? मतलब, कुहू गायब होना समझ में आता है लेकिन सिर्फ हम तीनों को। उसे गायब करने वाले नीरू और नेत्रा थे लेकिन कुहू की चिट्ठी का मिलना और चित्रा आंटी का इसको कंफर्म करना, तुम्हें कुछ अजीब नहीं लग रहा? उस पर से भी शादी के लिए शिवि को चुनना। इतने सबसे अलग हटकर अगर सोचा जाए तो चित्रा आंटी को काव्या आंटी की जैसे कुहू के गायब होने से कोई परेशानी नहीं है। वह कहां है किस हाल में है इस बात से उन्हें कोई टेंशन नहीं है। ऊपर से नेत्रा भी म

सुन मेरे हमसफर 277

  277      प्रेरणा का सीधा सवाल सुनकर अव्यांश कुछ देर सोच में पड़ गया कि इस बारे में वह प्रेरणा को सारी सच्चाई बताएं या नहीं। प्रेरणा ने फिर से सवाल किया "अव्यांश तुम मुझे सच-सच बताओगे, कि ये सब हो क्या रहा है? क्योंकि जिस तरह तुमने निर्वाण को समझाया है इससे तो साफ पता चला मुझे की तुम्हारे दिमाग में कुछ और था और तुम उसे बता कुछ और रहे थे। अब सच सच बताओ, क्या प्लान है तुम्हारा?"      अव्यांश ने प्रेरणा की तरफ देखा और कहा "मेरा प्लान वही है जो मैंने नीरू को समझाया था। इसके अलावा मुझे और कुछ नहीं चाहिए।"     प्रेरणा ने सवालिया नजरों से अव्यांश को देखा और अपने दोनों हाथ बांधकर ऐसे खड़ी हो गई कि बिना जवाब जाने वह जायेगी नहीं। अव्यांश ने अंगूठे और उंगली से अपना सर सहलाया फिर बोला "मैं जो कुछ भी तुझे बताऊंगा तू वह अपनी तक रखेगी? किसी के साथ शेयर नहीं करेगी? देख प्रेरणा! इस बारे में मैं किसी से भी कुछ नहीं कहा है, यहां तक की डैड को भी इस बारे में कुछ नहीं पता। फिर भी मैं तुझे बता रहा हूं। आई होप कि तू मेरा कहा मानेगी। पहले मुझसे वादा कर।" अव्यांश ने अपना हाथ आगे क