सुन मेरे हमसफर 283

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    पार्थ गार्डन में एक तरफ खड़ा दूर से ही शिवि को कुणाल के साथ फेरे लेते हुए देख रहा था। जहां वह देख रहा था वहां तो लोगों की अच्छी खासी भीड़ थी और उजाला ही उजाला था लेकिन जहां वह खड़ा था वहां वह अकेला अंधेरे में। उसकी आंखों में नमी थी। वो नमी जो वह चाह कर भी किसी को नहीं दिखा सकता था।


    पार्थ को अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ तो वह चौंक गया। इस अंधेरे में उसे किसने ढूंढा? इससे पहले कि वह पलट कर देख पाता, प्रेरणा ने उसके कंधे से सर लगाकर कहा "हमारी किस्मत में जो लिखा होता है वो ही होता है। लेकिन सब कुछ किस्मत के भरोसे छोड़ना अच्छा नहीं होता। जो गलती मैंने की वही गलती तुमने भी कर दी। तुम्हें उसे बता देना चाहिए था पार्थ!"


    पार्थ अब चाह कर भी अपने आंसुओं को रोक नहीं पाया और दो बूंद आंसू उसकी आंखों से बह गए। कैसे कहता वो अपने दिल की बात! उसने कहा "अगर उसके दिल में मेरे लिए थोड़ा सा भी एहसास होता तो वह इस तरह मंडप में किसी और के साथ कभी खड़ी नहीं होती। फिर भी मैंने सोचा था कुहू की शादी के बाद मैं उसे अपने दिल की बात कह दूंगा लेकिन देर हो गई, बहुत देर हो गई।"


     प्रेरणा ने कुछ नहीं कहा बस अपना सर हिला दिया। दोनों की आंखों में आंसू थे क्योंकि दोनों का दर्द एक सा था। पार्थ ने पूछा "तुम्हारे पास भी तो मौका था। तुमने अव्यांश से कभी क्यों नहीं कहा? अगर तुम कहती तो शायद वो आज तुम्हारा होता।"


     प्रेरणा ने फीकी मुस्कान के साथ कहा "तुम्हारा सवाल भी बिल्कुल सही है, लेकिन उसका जवाब भी वही है जो तुम्हारा जवाब था। अगर उसके दिल में निशि के लिए कोई एहसास ना होता तो वह कभी उससे शादी ना करता। प्यार करता है वह अपनी पत्नी से। उसकी आंखों में देखा मैंने। हमारी किस्मत ही बहुत अजीब निकली।"


     पार्थ को प्रेरणा के लिए बुरा लगा। उसने कहा "यह सब मेरी गलती है, सब मेरी गलती। मैं तो उस दिन शिवि को प्रपोज करने जा रहा था लेकिन तुम सामने आ गई और मैंने मजाक करने के इरादे से तुम पर ट्राई कर लिया। किस्मत का खेल देखो, शिवि भी उसी वक्त पहुंच गई और हमे गलत समझ लिया। मुझे पूरी हिम्मत जुटा कर उसी वक्त सारी बातें क्लियर कर देनी चाहिए थी तो ऐसा कभी नहीं होता। हम दोनों ने हीं बहुत देर कर दी। सारी गलती मेरी है।"


      प्रेरणा ने पार्थ को दिलासा देते हुए कहा "गलती मेरी भी तो है। मुझे शिवि के सामने सब कुछ कन्फेस करना चाहिए था। अंशु से कहना चाहिए था।"


    पार्थ ने निराश होकर कहा "मैं अब यहां नहीं रुक पाऊंगा। मैं चलता हूं। कोई पूछे तो कह देना कि मैं घर चला गया।"


     प्रेरणा ने कहा "अगर घर का कहूंगी तो फिर तुमसे ही सवाल किए जाएंगे। मैं कह दूंगी कि अस्पताल में इमरजेंसी थी। तुम कहो तो मैं चलूं तुम्हारे साथ?"


     पार्थ ने पीछे पलट कर प्रेरणा को देखा और उसके बालों में उंगलियां फिरा कर कहा "नहीं तुम रहो यही पर। अगर तुम्हें भी घर जाना है तो तुम चली जाओ लेकिन मैं अभी अकेले रहना चाहता हूं।" पार्थ तुरंत वहां से निकल गया। प्रेरणा उसे जाते हुए देखती रही फिर उसने दूसरी तरफ मंडप की ओर देखा। यह दर्द कुछ ऐसा था जिसे शब्दों में बयान करना नामुमकिन था। इस सबसे निकालने में उसे और पार्थ, दोनों को ही वक्त लगेगा। ये सोच कर प्रेरणा ने खुद को तसल्ली दी और वो भी वहां से चली गई।




*****





कुछ घंटे में सुबह होने वाली थी। निशी भी शिवि के विदाई के लिए सबके काम में हाथ बटा रही थी। उसका फोन बज तो देखा, एक अनजान नंबर से उसे कॉल आ रहा था। यह अनजान नंबर से कॉल देखकर निशि थोड़ा सा सहम गई। कहीं देवेश फिर से तो किसी और नंबर से मुझे कॉल नहीं कर रहा? यही सोच कर निशी ने फोन नहीं उठाया और कॉल को साइलेंट पर करके छोड़ दिया। कुछ देर बाद फिर से फोन बजा। इस बार भी निशि ने कॉल साइलेंट पर रख दिया और अपने काम में लग गई।


    तीसरी बार जब फोन बजा तब अवनी ने ही उसे टोकते हुए कहा "निशी बेटा किसका फोन है?"


   निशी ने अपना फोन एक साइड करते हुए कहा "किसी अनजान नंबर से फोन है। पता नहीं किसका है।"


     अवनी ने उसे समझाते हुए कहा "फोन उठा लो बच्चे! हो सकता है कुछ अर्जेंट हो। रात के इस वक्त, जब सुबह होने में कुछ ही देर बाकी है, इस टाइम ऐसे ही कोई फोन नहीं करता। देख लो अगर कुछ जरूरी हो तो। हम लोग भी हेल्प कर देंगे।"


 ।। निशि के पास कोई और ऑप्शन नहीं था। उसने कॉल रिसीव किया और एक तरफ जाते हुए कहा "हेलो कौन बोल रहा है?"


    दूसरी तरफ वाकई में देवेश ही था। उसने कहा "हेलो निशि! देखो फोन मत काटना, मुझे तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है।"


     निशी ने सब लोगों की तरफ देखा और धीरे से कहा "देखो देवेश! मैं तुम्हें समझा चुकी हूं, अगर तुमने मेरी बात नहीं सुनी और अपनी हरकतें नहीं छोड़ी तो सीरियसली मैं......."


     इससे पहले की निशी अपनी बात पूरी कर पाती, देवेश ने कहा "निशी मैं जानता हूं तुम क्या कहने की कोशिश कर रही हो लेकिन एक बार मेरी बात सुन लो मैं तुमसे ऐसा कोई डिमांड नहीं कर रहा, बस मैं तो तुमसे एक बार मिलना चाह रहा हूं, मेरी फ्लाइट है बेंगलुरु की, मैं वापस घर जा रहा हूं इसलिए तुमसे मिलने चला आया था।" देवेश एक सांस में सारी बातें बोल गया जो कुछ भी उसने रट्टा मारा था।


   ।देवेश के वापस जाने के बाद सुनकर निशी ने राहत की सांस ली। उसने कहा "देखो देवेश! मैं इस वक्त तुमसे नहीं मिल सकती। तुम्हें जाना है तो तुम बेशक जाओ लेकिन इस सबमें मुझे इंवॉल्व मत करो।"


      देवेश ने निशि को इमोशनल ब्लैकमेल करते हुए कहा "ठीक है जैसा तुम कहो। मैं तो बस इस एक उम्मीद में आया था कि मेरी हर गलती को तुमने माफ कर दिया होगा। एक कपल होने से पहले हम कभी दोस्त हुआ करते थे। उस दोस्ती के नाते और मेरी लाइफ को एक और मौका देने के बदले में तुम्हें सामने से मिलकर तुम्हें थैंक यू करना चाहता था। ठीक है अगर तुम मुझे देखना तक नहीं चाहती मेरी शक्ल भी तुमसे बर्दाश्त नहीं होती तो फिर मेरा यहां से चले जाना ही बेहतर होगा। तुमसे फिर कभी मुलाकात होगी, अगर किस्मत में लिखा होगा तो। क्योंकि एक बार मैं बेंगलुरु चला जाऊं उसके बाद मॉम डैड मुझे वहां से कहीं और भेजने की तैयारी में है। कहां, यह बात तो उन्होंने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा। मैं बस एक आखरी बार तुमसे मिलने आया था। कोई बात नहीं, तुम मित्तल परिवार की बहू हो तुम्हारा वहां होना ज्यादा जरूरी है। तुम अपनी रिस्पांसिबिलिटी निभाओ, मेरा क्या है। वैसे भी हमारा रिश्ता ही क्या है जो तुम को मैं मिलने के लिए कह सकूं। ठीक है मैं चलता हूं।"


    देवेश का तीर निशाने पर लगा। उसकी बातों से निशि को थोड़ा बुरा फील होने लगा था। एक दोस्त के तौर पर उन दोनों ने काफी अच्छा वक्त गुजारा था और देवेश ने काफी हद तक उसकी हेल्प की थी। ऐसे ही दोनो करीब आए थे। ऐसे में सब कुछ भूल कर उसे इग्नोर कर देना सही नहीं होता, इसलिए निशि ने कहा ठीक है मैं...... मैं तुमसे मिलने के लिए तैयार हूं। बताओ कहां आना है?"


      देवेश को इसी बात का इंतजार था। उसने बिना देर किए कहा "मैं अभी वहीं हूं, जहां तुम हो। उस वेन्यू के बाहर ही खड़ा हूं। यहां अंदर आ नहीं सकता, बाहर सिक्योरिटी गार्ड खड़ा है तो तुम यही आ जाओ। मैं यहीं से मिलकर चला जाऊंगा।"


     निशी ने फोन रखा और बिना किसी से कुछ कहें बाहर की तरफ निकल पड़ी। अवनी ने उसे जाते हुए देखा तो पूछना भी चाहा कि कहीं उसे या उसके दोस्त को किसी हेल्प की जरूरत तो नहीं, लेकिन कुछ पूछ नहीं पाई।

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