सुन मेरे हमसफर 297

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रेनू जी जब मिश्रा जी को लेकर वहां से दूर हटी तो मिश्रा जी ने पूछा "आपको कब से मैगजीन पढ़ने का शौक चढ़ गया? घर पर मैं जब ला कर देता हूं तो आप पूरे से पढ़ते भी नहीं हो। एक मैगजीन पढ़ने में पूरा एक महीना लगता है, और यहां प्लेन में आपको बाहर के नजारे देखने से फुर्सत नहीं मिलती। क्या पढ़ोगे आप?"


रेणु जी ने अपने सर पर हाथ मारा और कहा "आपको समझाने का कोई फायदा नहीं है। अरे बेटी दामाद को थोड़ा सा तो अकेले में टाइम दीजिए। उन दोनों के बीच हम क्यों कबाब में हड्डी बने! देखा नहीं सुहानी को, कैसे वो निर्वाण को लेकर तुरंत वहां से निकल गई। इतनी सी बात आपको समझ में नहीं आई? जब मैं मायके जाती थी तो कैसे मुझे स्टेशन तक छोड़ने आते थे और पूरा टाइम मेरा हाथ पकड़े रहते थे। अब उनकी बारी है।"


 मिश्रा जी ने एक बार फिर अपनी श्रीमती जी का हाथ पकड़ने की कोशिश तो रेनू जी ने अपना हाथ खींच लिया और कहा "अब बच्चों की उम्र है यह सब करने की। अब तो जहां आप वहां मैं। पूरी लाइफ के लिए भूतनी की तरह चिमटी हूं आपसे।" इतना कहकर रेनू जी आगे बढ़ी तो मिश्रा जी ने पीछे से आवाज लगाते हुए कहा "अरे वह भूतनी नहीं, चुड़ैल होती है।"



 अव्यांश और निशि एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे लेकिन एक दूसरे की तरफ देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। निशि अपने बिहेवियर को लेकर थोड़ी शर्मिंदा थी तो अव्यांश नहीं चाहता था कि निशी उससे ऐसा कुछ कह दे जिसे वह बर्दाश्त ना कर पाए। बहुत हिम्मत करके निशि ने अव्यांश से माफी मांगने की सोची और कहा "अव्यांश! मैं......."


लेकिन अव्यांश ने एकदम से कहा "कॉफी पियोगी? आई मीन, तुमने शाम की चाय नहीं ली होगी, राइट? तुम बैठो यहां पर मैं तुम्हारे लिए कॉफी लेकर आता हूं।"


 निशी समझ गई कि अव्यांश से अवॉयड करने का बहाना ढूंढ रहा है। उसने कहा "अव्यांश! मैं तो बस तुमसे सॉरी.....!"


 लेकिन अव्यांश ने उसकी बात को अनसुना किया और कहा "दो रातों से सोया नही हूं। इस टाइम मुझे कॉफी की बहुत ज्यादा जरूरत है और तुम्हें भी तो अपनी दवाई लेनी होगी। मैं लेकर आता हूं।" इतना कहकर वो तेजी में वहां से निकला निशी बस पीछे से उसे जाते हुए देखते रह गई। 


जब अव्यांश आंखों से ओझल हो गया तो निशि वही कुर्सी पर बैठ गई। उसके हाथ में एक तो सामान था और अव्यांश का इंतजार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। खाली बैठे वह करें क्या, इसलिए उसने घर पर फोन किया और सिया को बता दिया कि वह सब एयरपोर्ट पर पहुंच चुके हैं। सिया ने उसे आराम से जाने और यहां की चिंता न करने को कहा। साथ में यह भी कहा कि वह जल्दी ही अव्यांश को भी उसके पास भेज देगी और वह शादी संपन्न होते ही वापस चली आए।


 निशि का सिया से कुछ ज्यादा ही लगाव हो गया था। इसलिए उसने भी कहा "जी दादी! मैं जल्द से जल्द आपके पास लौट आऊंगी।"


 इतने में अव्यांश अपने दोनों हाथ में काफी लेकर चला आया। उसे आते देख निशी ने फोन रख दिया और कहा "दादी थी।" अव्यांश ने कुछ कहा नहीं बस काफी का हाथ में पकड़ा दिया। दोनों चुपचाप अगल बगल बैठे थे।


 अव्यांश ने काफी का एक घूंट लिया और कहा "तुम्हें दादी से झूठ नहीं बोलना चाहिए था।"


 निशी ने चौक कर पूछा "मैंने क्या झूठ कहा?"


 अव्यांश ने बिना निशी की तरफ देखे कहा, "वापस लौट कर आने की बात तुम्हें नहीं करनी चाहिए थी। जब उन्हें पता चलेगा कि तुम अब कभी वापस नहीं आओगी तो उनका दिल टूट जाएगा। कुछ और कह कर बात को टाल देती और इसका जवाब ना देती तो बेहतर होता। या फिर उनको सच ही बता देती।"


निशी ने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा, "सच बता देती? कौन सा सच, कैसा सच? अव्यांश आई थिंक हमें बात करने की जरूरत है।" उसे फाइनली यह मौका मिला था कि अब वह अव्यांश से कुछ बात कर सके लेकिन ये उसकी बुरी किस्मत, फ्लाइट की अनाउंसमेंट हो रही थी।


 अव्यांश ने अनाउंसमेंट बोर्ड की तरफ देखा और कहा "तुम्हारे फ्लाइट का टाइम हो गया है, अब तुम्हें चलना चाहिए।"


 अव्यांश उठकर खड़ा हो गया लेकिन निशी ने उसका हाथ पकड़ लिया और जिद करते हुए कहा "मुझे लगता है हमें पहले बात करनी चाहिए।"


 अव्यांश की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह निशी की तरफ देखे या उसकी बात सुने। उसने कहा "अब यह सब का टाइम नहीं रह गया है। बहुत देर हो गई है। तुम्हारे जाने का समय हो गया है।"


 अव्यांश ने जिस तरह से यह बात कही थी निशि को उसके बातों में दो मतलब नजर आ रहे थे और वाकई अव्यांश के कहने के दो मतलब ही थे। तो क्या वाकई अब बहुत देर हो गई थी?


 मिश्रा जी और रेनू जी अभी तक आए नहीं थे। अव्यांश ने चारों तरफ देखा और कहा "मां पापा अभी तक आए नहीं। मैं देखता हूं उनको।"


अव्यांश वहां से जाने लगा तो निशी ने एक बार फिर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा "अव्यांश! मुझे लगता है अभी भी इतनी देर नहीं हुई है।"


 अव्यांश ने पलट कर निशी की तरफ देखा और कहा "क्या मैं एक बार तुम्हें गले लगा सकता हूं?"


 अव्यांश की आंखों में बेबसी थी, एक लाचारी अपने प्यार को होने की। निशि तो उसी वक्त अव्यांश के गले लग जाना चाहती थी लेकिन अव्यांश का चेहरा देखकर वह वही जड़ हो गई। निशी से कोई जवाब न पाकर अव्यांश आगे बढ़ा और उसे गले लगाने को हुआ लेकिन एकदम से उसे वह वक्त याद आ गया जब देवेश ने भी निशि को इसी तरह गले लगाया था। नहीं! निशी के साथ उसका रिश्ता और दिवेश का रिश्ता बिल्कुल अलग था। वह चाहकर भी देवेश की बराबरी नहीं कर सकता था। दर्द में अव्यांश ने अपनी आंखें बंद की और एक गहरी सांस छोड़ी। 


दूर से देखने पर रेनू जी और मिश्रा जी को यही लगा कि अव्यांश ने निशी को गले लगा रखा है। वह दोनों इसी एंगल में खड़े थे लेकिन अव्यांश ने निशी को जरा सा भी छुआ नहीं था। निशि तो बस इंतजार करती रह गई लेकिन अव्यांश निशि से दूर हुआ और कहा "सॉरी! मैं अपनी हद भूल गया था।"


 फ्लाइट की अनाउंसमेंट फिर से हुई तो इस बार मिश्रा जी ने कहा "अब हमें चलना चाहिए।". रेनू जी और मिश्रा जी उसे चले आए। उन्हें आते देख अव्यांश ने बड़े प्यार से निशि के माथे को चूम लिया और कहा, "अपना ख्याल रखना। और कोई भी प्रॉब्लम हो तो एक बार मुझे याद कर लेना।"


 रेनू जी की नजर अव्यांश के आंखों पर गई तो उन्होंने चौक कर पूछा "बेटा! तुम्हारी आंखें इतनी लाल क्यों है?"


 अव्यांश ने नजर चुराकर कहा "कुछ नहीं मां! सोया नहीं हूं इसलिए बस। निशी जा रही है तो उसके बाद चैन से सोने को मिलेगा। अब मुझे डिस्टर्ब करने वाली कोई नहीं होगी।" अव्यांश ने ये बात मजाक में कही थी लेकिन यह मजाक करते हुए उसे कितनी तकलीफ हो रही थी यह सिर्फ वो भी जानता था।


 अव्यांश ने निशि का बैग उसके हाथ में दिया और रेनू जी और मिश्रा जी के पैर छू लिया। मिश्रा जी ने भी अव्यांश को अपना ख्याल रखना को कहा और निशी को लेकर आगे बढ़ गए। अव्यांश वहीं खड़ा निशि को जाते हुए देखा रहा।


 निशि भी अपने माथे पर अव्यांश के प्यार के एहसास के लिए चले जा रही थी लेकिन दिल में खालीपन बढ़ता जा रहा था। उसने पलट कर पीछे देखा तो अव्यांश अभी भी वहीं खड़ा था और उसे देखकर मुस्कुरा रहा था।

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