सुन मेरे हमसफर 280

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   कुणाल शादी के मंडप में बैठा अपनी दुल्हन का इंतजार कर रहा था। श्यामा और और काव्या दोनों ही दुल्हन को लेने गए थे। कुणाल की तो हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह नजर उठाकर अपनी होने वाली दुल्हन को आते हुए देख सके। एक अजीब सा डर उसके मन में बैठा हुआ था। वो नहीं चाहता था यह शादी हो। 


    मंडप के आसपास खड़े लोगों में जब थोड़ी हलचल हुई तो कुणाल समझ गया कि वह आ चुकी है। पूरी हिम्मत बटोर कर कुणाल मंडप से उठ खड़ा हुआ और बाहर निकल गया। वहां खड़े सभी लोगों ने कुणाल को ऐसे मंडप छोड़कर जाते हुए देखा परेशान हो गए। अव्यांश ने उसे रोक कर पूछा "क्या हो गया, तुम ऐसे उठ कर कहां जा रहे हो?"


    कुणाल ने नजर झुकाए ही कहा "मुझे उससे कुछ बात करनी है।"


    अव्यांश समझ गया कि उसे क्या बात करनी है। उसने समझाते हुए कहा "जो हो रहा है उसे हो जाने दो, मत रोको। वरना सबके लिए मुश्किल होगी।"


     कुणाल ने फिर भी जिद्द की। "मुझे एक बार उससे बात करनी है। अब तक मैं अपनी हिम्मत जुटा रहा था लेकिन अगर अब देर की तो शायद बहुत देर हो जाएगी।" अव्यांश ने इस बार कुणाल को रोका नहीं और उसे जाने दिया।


    कुणाल आगे बढ़ा और एकदम से अपनी दुल्हन के सामने होकर कहा "तुम्हारे पास अभी भी मौका है, तुम इस रिश्ते से इनकार कर सकती हो। मैं नहीं चाहता कोई तुम्हारे साथ किसी भी तरह की जबरदस्ती करें। अपने ऊपर किसी का भी प्रेशर लेने की जरूरत नहीं है तुम्हें।"


   श्यामा और काव्या, दोनों की नजर एक दूसरे से टकराई और दोनों ने ही अपने बगल में देखा। शिवि नजर झुकाए दुल्हन के जोड़े में खड़ी थी। उसने धीरे से कहा "मैं यह सब अपनी मर्जी से कर रही हूं। इसके लिए मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा।"


    चित्रा आगे आई और उन्होंने शिवि का हाथ कुणाल के हाथ में देकर कहा "जब तुम यहां तक आ ही गए हो तो अपनी दुल्हन को लेकर जाओ। और किसी का नहीं तो अपनी दुल्हन का तो यकीन करो। इस पर किसी ने कोई दबाव नहीं डाला है। और हमारी शिवि भी उनमें से नहीं है जो किसी के कुछ भी कहने पर मान जाए।" कुणाल को थोड़ा हौसला मिला। शिवि का हाथ उसके हाथ में था।


    एक तरफ से कार्तिक सिंघानिया ने कुणाल के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। मुहूर्त निकाला जा रहा है, तुम लोग चलकर मंडप में बैठो, सब लोग इंतजार कर रहे हैं।"


   कुणाल शिवि का हाथ थामें उसे मंडप में लेकर चला आया। कुणाल के मन में खुशी तो थी लेकिन उसके मन का डर पूरी तरह से नहीं गया था। शायद शिवि को उसे अपनाने में थोड़ा टाइम लगे। 'लेकिन वो तो मुझे पसंद नहीं करती फिर क्यों?' कुछ सवाल ऐसे थे जिनका जवाब सिर्फ और सिर्फ शिवि दे सकती थी और वह सवाल कुणाल अभी पूछ नहीं सकता था। पंडित जी ने भी मुहूर्त का ख्याल करते हुए शादी की विधियां शुरू कर दिए। सभी के चेहरे पर मुस्कान थी लेकिन काव्य परेशान थी। उसकी बेटी ना जाने इस वक्त कहां होगी किस हाल में होगी और कब तक वापस आएगी।



*****




     दूसरी तरफ नेत्रा कमरे में बंद, दरवाजा पीटने में लगी हुई थी। "कोई है! अरे कोई तो दरवाजा खोलो! सब लोग मर गए क्या कहीं जाकर! सारांश अंकल!!!" लेकिन उसकी आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था। गुस्से में नेत्रा का सिर फटा जा रहा था। आखिर वह ऐसी सिचुएशन में फंसी तो फसी कैसे, और यहां पर उसे बंद किसने किया? सारांश जिनको पता था कि वह कहां है, वह भी अभी तक वापस नहीं आए थे।


    कुहू को धीरे-धीरे होश आने लगा था। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी आंखें खोली तो खुद को एक कार्डबोर्ड बॉक्स के अंदर पाया। अपने इस हालत को देखकर वो पूरी तरह चौक गई और उसकी चीख निकल गई। "मैं कहां हूं? मैं कहां हूं? कौन लेकर आया मुझे यहां पर?"


    नेत्रा वैसे ही चिढ़ी हुई थी। उसने जब कुहू की आवाज सुनी तो उसने झल्ला कर कहा "अच्छा हुआ जो तुमने पूछा कि तुम कहां हो। काश कि तुम यह पूछती कि तुम कौन हो और तब मैं बताती कि तुम अफ्रीका के जंगल से भाग कर आई हो और वापस वही चली जाओ। वहां किसी पेड़ पर तुम्हारे रिश्तेदार लटके मिलेंगे, जाकर तुम भी उन्हीं के साथ चिपक जाना।"


     नेत्रा की आवाज कुहू को थोड़ी दूर से आई हुई सुनाई दे रही थी लेकिन कुछ ही देर में उसने अपना होश संभाला और उठकर बैठते हुए नेत्रा पर चिल्लाई "ओह रियली! बहुत अच्छे से पता है तुम्हें उनके बारे में! लगता है उनके बीच ही रह कर आई हो।"


      नेत्रा ने कुहू को उंगली दिखाई और कहा "मेरे बारे में खबरदार जो तुमने कुछ भी उलटी सीधी बातें की तो! तुम्हारी वजह से मैं यहां फंसी हूं और तुम उल्टा मुझे ही सुना रही हो?"


    कुहू ने अपने चारों तरफ देखा, वह कमरा...... पता नहीं वह कौन सा कमरा था और किस कोने में था। नेत्रा ने एक बार फिर दरवाजे पर हाथ मारते हुए आवाज लगाई "मेरी आवाज सुन रहा है कोई? खोलो दरवाजा! हेलो! सारांश अंकल!!!" नेत्रा की हालत देखकर कुहू परेशान होने की बजाय हंसने लगी और उसे हंसते देख नेत्रा गुस्से में फट पड़ी और कहा, "तुम्हारा दिमाग खराब है? हम लोग इस वक्त इस सिचुएशन में फंसे हुए हैं, पता नहीं यहां कब तक हमें रहना पड़े और तुम्हें हंसी आ रही है?"


    कुहू ने हंसते हुए कहा "हंसू नहीं तो क्या करूं? बहुत खुद को स्मार्ट समझ रही थी। मुझे बेहोश करके मुझे ट्रैप करना चाहता तुमने तो लो, किसने तुम्हें भी ट्रैप कर दिया। जहां मैं वहां तुम। तुम्हें तो कुणाल से शादी करनी थी ना? जोओ बाहर और कर लो कुणाल से शादी। जिसने भी तुम्हें यहां बंद किया है वह सच में बहुत दिमाग वाला इंसान होगा। क्या खूब चालाकी है उसने। वैसे तुम्हें क्या लगता है, यह सब किया किसने होगा?"


     कुहू की बातें सुनकर नेत्रा चिढ़ रही थी। लेकिन उसकी बातें भी ध्यान देने वाली थी। नेत्रा ने इस बारे में सोचा ही नहीं था काफी देर तक सोने के बाद उसने कहा "ये निर्वाण मुझे ढूंढते पर क्यों नहीं आया? उसे मुझे ढूंढना चाहिए था लेकिन जहां तक मुझे याद है वह तो कमरे से बाहर निकल गया था, फिर कौन हो सकता है? और हमें ऐसे एक साथ बंद करने के पीछे उसका क्या मोटिव हो सकता है?"


   कुहू ने अपना शक जाहिर किया "कहीं ऐसा तो नहीं कि जिसने हमें किडनैप किया है, वह हमें वेन्यू से कहीं दूर लेकर आया हो!"


    अब नेत्रा ने परेशान होकर कहा "इतनी भी पागल नहीं हूं मैं! सारांश अंकल यहीं पर है, उन्होंने कहा कि इस कमरे की चाबी अंशु के पास है और वो चाबी लेकर आ रहे हैं। फिर इधर कमरे को देखो, इसमें सब शादी में आए बारातियों को देने का सामान रखा हुआ है। 1 मिनट! मैंने तो इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि ये वही कमरा है जहां पर विदाई के समय सारे मेहमानों को गिफ्ट देने का सामान रखा गया था। यानी जिस कमरे में तुम्हें रखा गया था उसके बगल वाला कमरा।"


     कुहू ने अजीब तरह से नेत्रा को देखा। नेत्रा की बात सही थी लेकिन सारांश अंकल! उसने पूछा "सारांश अंकल को गए कितना टाइम हुआ?"


    नेत्रा ने झूंझलाकर कहा "मेरे पास घड़ी नहीं है और मेरा फोन भी मेरे पास नहीं है, मैं टाइम नहीं बता सकती। कितना टाइम हुआ ये मुझे नहीं पता लेकिन इतना मुझे पता है कि उनको गए काफी देर हो गई है।"


    कुहू वापस से उस कार्डबोर्ड बॉक्स में लेट गई और कहा "फिर तो आराम करो। मुझे नहीं लगता वह इतनी जल्दी आएंगे।"


    नेत्रा पैर पटकते हुए कुहू के पास आई और पूछा "तुम इतनी कॉन्फिडेंट क्यों हो?"


    कुहू आंखें बंद करके लेटी रही। उसने कहा "यह वेन्यू बहुत बड़ा है। इस कोने से उसे कोने पर जाने के लिए थोड़ा टाइम तो लगता है। इन फैक्ट अच्छा खासा टाइम लगता है। नीचे बारात खड़ी है, बैंड बाजे की आवाज में और इतने सारे लोगों बीच में सारांश अंकल अंशु को कहां ढूंढेंगे? और यह सोचने वाली बात है, किडनैपर ने हमें किडनैप किया और ताला लगाकर चाबी अंशु के हाथ में दे दिया। कहीं ऐसा तो नहीं कि अंशु और नीरू आपस में मिले हुए हो और यह उन दोनों का ही काम हो!"


    नेत्रा को कुहू की बातों पर यकीन नहीं था। उसने कहा "व्हाट रब्बीश! अंशु क्यों यह सब करेगा? उसे क्या मतलब इस सबसे? सारा प्लान तो नीरू का था, वह कुणाल को पसंद नहीं करता है इसलिए वह........... 1 मिनट!" नेत्रा की सोच को झटका लगा। अब जाकर उसे समझ में आया। उसने कहा "नीरू कुणाल को पसंद नहीं करता। वह हमेशा मुझे समझाता रहा कि मैं कुणाल से दूर रहूं और बाद में वह खुद मेरे पास इस प्लान के साथ आया था कि मैं तुम्हें किडनैप करके तुम्हारी जगह मंडप में बैठ जाऊं कुणाल से शादी के लिए। मैं कितनी बड़ी बेवकूफ हूं!"


    कुहू को एक बार फिर हंसी आ गई। उसने कहा, "चलो! फाइनली तुम्हें पता तो चला कि तुम कितनी बड़ी बेवकूफ हो।"


    नेत्रा ने परेशान होकर कहा "तुम ऐसे लेटी हो, कुछ करती क्यों नहीं? अगर हम दोनों मिलकर आवाज लगाए तो शायद किसी को सुनाई दे जाए।"


    कुहू ने अपनी आंखें खोली और मजाकिया लहजे में कहा "जो इंसान तुम्हारी आवाज सुनकर गया है, क्या वह वापस आया? नहीं ना! तो फिर तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि कोई यहां हमारी आवाज सुनकर आएगा? अभी तुमने ही बताया ना कि इसमें बारातियों के लिए गिफ्ट रखा हुआ है! तो जब इस कमरे को खोलने की जरूरत होगी तो यह कमरा खुलेगा और हम बाहर जाएंगे। तो चिल्लाने से बेहतर है आराम से अपने बॉक्स में लेट जाओ। मेरी तरह तुम भी तो उस सामने पड़े बॉक्स में ही लेटी हुई थी ना?"


     नेत्रा ने पूछा "तुम्हें कैसे पता?"


    कुहू ने बॉक्स में पड़े उसके दुपट्टे को दि

खाकर कहा "तुम्हारा दुपट्टा उसी में है, जिससे तुमने मुझे बांधा था।"





नई कहानी


"सूची मुझसे झूठ मत बोलना! यह मोमेंट हमारा सबसे स्पेशल होना चाहिए था। ऐसे पॉइंट में तुमने उस इंसान का नाम लेकर यह साबित कर दिया कि मैं कोई तीसरा हूं, राइट? अगर वो रक्षित तुम्हारे ज्यादा करीब है तो फिर उसी से सगाई करो ना यार! मुझे नहीं पता था कि तुम और वह...! मुझे तो कहते हुए भी अजीब सा लग रहा है।"

आखिर रौनक के तिलमिलाहट का कारण क्या है? क्या वह वैसा ही है जैसा वो बाकी सबको दिखता है? यहां हर चेहरे पर कोई ना कोई मुखौटा लगा है तो क्या रौनक भी अपने साथ दो चेहरे लेकर घूम रहा है? कब कैसे और किस-किस के चेहरे पर से नकाब उतरेंगे, ये देखना दिलचस्प होगा।


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