सुन मेरे हमसफर 282

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    नेत्रा अभी भी चिढ़ चिढ़ करने में लगी हुई थी और कुहू आराम से अपने बॉक्स में लेटी हुई थी। उसे नेत्रा से कोई बात ही नहीं करना था और वैसे भी, बात करने को और कुछ रह ही नहीं गया था। भले ही वह बेहोश होकर एक तरफ कमरे में बंद थी लेकिन उसे इतना पता था कि जो उसने प्लान बनाया था वह उसकी चित्रा मॉम कैसे ना कैसे करके एग्जीक्यूट करवा ही देगी। इसलिए वह निश्चिन्त थी।


     तीन से चार घंटे के बाद कमरे का ताला खुला और चित्रा और अव्यांश कमरे में दाखिल हुए। अव्यांश थोड़ा घबराया हुआ था कि ना जाने चित्रा कैसे रिएक्ट करेगी लेकिन कहीं ना कहीं उसे उम्मीद थी कि वह समझेगी। चित्रा को देखते ही कुहू जल्दी से जाकर उसके गले लग गई और कहा "चित्रा मॉम! सब ठीक है न?"


    चित्रा ने भी थम्स अप का इशारा करके कहा "सब ठीक है। हमारा प्लान सक्सेसफुल रहा और अब शिवि की विदाई होनी है।"


     दोनों मां बेटे की बातें सुनकर अव्यांश शॉक्ड रह गया। उसने कहा "मतलब वह आप थी जिसने हमारे प्लान में सेंधमारी की थी?"


    चित्रा ने हंसते हुए कहा "हमने तेरे प्लान में कोई सेंधमारी नहीं की थी बल्कि हमारा अपना यह प्लान था जिसमे तुम लोगों ने हमारा साथ दिया है।"


   अव्यांश ने अपने सर पर हाथ मारा और कहा "यह बात आप लोग पहले नहीं बता सकते थे? मैं बेवजह में परेशान हो रहा था। मैं और नीरू बस यही सोच रहे थे कि कौन है जिसे हमारे प्लान के बारे में पता है। लेकिन कुहू दी! आपको कैसे पता इस बारे में और आपको पता था तो फिर आपने पहले क्यों नहीं किया ये सब? हम तो बस यह सोच कर डर रहे थे कि आपको बुरा ना लगे।"


     कुहू ने मुस्कुरा कर कहा "बुरा तो मुझे लगा था, बहुत ज्यादा बुरा लगा था। लेकिन जब एहसास हुआ तब जाकर समझ में आया कि मैं तो खुद अपने ही जिद्द पर अड़ी थी। कोई मुझे प्यार करें ना करें, ये उसकी मर्जी। मैं जबरदस्ती किसी को मजबूर नहीं कर सकती कि वह मुझे प्यार करें और यह पॉसिबल भी तो नहीं है। शिवि के दिल में कुणाल के लिए फिलिंग्स थी और वह इस बारे में सबसे छुपा रही थी। यह तो गलत था।"


     नेत्रा जो अब तक चुप थी, उसने चिल्लाते हुए पूछा "लेकिन मुझे क्यों बेहोश किया? क्या मुझे यह सब में शामिल नहीं कर सकते थे तुम लोग? मुझे तो पहले दिन यही लगा था कि कुणाल की शादी शिवि दी से होने वाली है। मैं तो खुश थी उनके लिए। एट लिस्ट मुझे इस बारे में बता देते तो मैं भी तुम लोगों का साथ देती। मुझे बेहोश क्यों किया?"


     कुहू को हंसी आ गई। यह सवाल तो चित्रा को भी करना था। उसने कहा "तुम बताओ! कुहू का बेहोश करके उसे यहां से गायब करने का प्लान था तुम लोगों का तो नेत्रा को कैसे बेहोश किया?"


    अव्यांश को हंसी आ गई। उसने हंसते हुए कहा "बुआ! आपको लगता है, इसको बेहोश करके कहीं छुपा कर रखना इतना आसान है! इसलिए मेरी तरफ मत देखिए। हम में से किसी ने भी इसको बेहोश करने की हिम्मत नहीं दिखाई है।"


    कुहू पूछा "तो फिर कैसे लुढ़की ये? इसने पी रखी थी क्या?" कुहू ने अजीब सी नजरों से नेत्रा की तरफ देखा तो नेत्रा ने भी गुस्से में कुहू को वापस घूर कर देखा।


    अव्यांश ने नेत्रा से कहा "याद कर, तूने ऐसा क्या किया था जो तू बेहोश हो गई?"


    कुहू भी याद करने की कोशिश करने लगी। अचानक से उसे जो कुछ भी याद आया, उसे याद कर आ गई कुहू हंसने लगी और कहा "इसे कहते हैं दूसरों के लिए गड्ढा खोदने वाला खुद उसमें गिरता है। जब मैं बेहोश नहीं हुई तो उसने क्लोरोफॉर्म अपने नाक पर रख लिया था। अब क्लोरोफॉर्म का असर होने में थोड़ा टाइम तो लगता है जो बात इसे पता नहीं थी। मेरे बेहोश होने की कुछ देर बाद यह भी बेहोश हो गई होगी।" नेत्रा को शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने अपना सिर झुका लिया।


    कुहू ने हंसते हुए कहा "जो होता है अच्छे के लिए होता है और जो कुछ हुआ बिल्कुल सही हुआ।"


    अव्यांश ने कहा "शिवि दी की विदाई होनी है। कुहू के चेहरे की सारी रौनक हवा हो गई। उसने गंभीर होकर कहा "मैं उन दोनों को एक साथ देखना चाहती हूं।"


    अव्यांश ने आगे बढ़कर कुहू को दोनों कंधे से पकड़ा और उसे गले लगा कर कहा "मैं समझ रहा हूं आप क्या चाह रही हैं। लेकिन अभी नहीं। अभी आपका सबके सामने आना सही नहीं होगा। हम कहीं से कुछ भी जुगाड़ लगाकर आपको सबके बीच ले आएंगे। कुछ ऐसे कि शिवि दी को पता भी ना चले। आप तब तक यही रुको, मैं बाहर जाकर देखा हूं। यहां रखे सामान को भी निकलवाना है।"


     कुहू ने पलट कर नेत्रा की तरफ देखा और कहा "हां तू मुझे किसी और कमरे में शिफ्ट करवा दे। यहां मुझे बहुत अजीब सा फील हो रहा है।"


    नेत्रा समझ गई कुहू का ताना। उसने भी चिढ़ कर कहा "अंशु प्लीज! मुझे भी यहां से शिफ्ट करवाओ। अजीब सी घुटन हो रही है मुझे यहां पर।"


     अव्यांश ने अपना सर पकड़ लिया। क्या सोचकर उसने इस पूरे कांड को अंजाम दिया था लेकिन यह दोनों तो जैसे एक दूसरे की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने को तैयार ही नहीं थी। उसने कहा "ठीक है! जब आप दोनों को ही यहां पर घुटन महसूस हो रही है तो फिर मैं दोनों को ही बगल वाले कमरे में एक साथ रख देता हूं। आई थिंक वहां पर फ्रेश हवा बहुत अच्छे से आती है।"


    एक साथ रहना दोनों के लिए बहुत मुश्किल था। जिससे बचने के लिए दोनों ने एक ही पैंतरा अजमाया था और अव्यांश ने भी उसके नहले पर दहला मार दिया। दोनों का चेहरा उतर गया। कुहू ने अव्यांश का हाथ पकड़ कर कहा "तुझे जिसको जहा फेंकना है फेंक, मैं जा रही हूं दूसरे कमरे में मुझे अकेले रहना है। अपने आसपास में कोई नेगेटिविटी नहीं चाहती।"


     नेत्रा का दिल किया कि वह कुहू का खून पी जाए। चित्रा ने अव्यांश से कहा "अंशु! तुम कुहू को ले जाकर दूसरे कमरे में बैठाओ, काफी देर से भूखी है वो। उसके लिए किसी को बोलकर कुछ अरेंज करवाओ, मैं यहां.........! मुझे नेत्रा से कुछ बात करनी है।"


     चित्रा अपनी बेटी से नाराज थी। भले ही उसने जो कुछ भी किया वह सबसे उनकी प्लानिंग पर एक अच्छा इंपैक्ट हुआ लेकिन नफरत में अंधी नेत्रा इस हद तक चली जाएगी यह उसने सोचा नहीं था। अपनी बेटी का यह एटीट्यूड उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। नेत्रा ने भी अपना सर झुका लिया। हां आज उसने जो कुछ भी किया था, वह हर लिहाज से गलत था।


     अव्यांश कुहू को लेकर बगल वाले कमरे में चला गया जहां कुहू को पहले रखा गया था। वहां पहुंचकर उसने सोचा कि किस को हेल्प के लिए बुलाया जाए? यह बात भी सच थी कि कुहू ने सुबह से ही कुछ नहीं खाया था और अब उसे भूख भी लग रही थी जिसकी चुगली कुहू के पेट से आती गुड गुड ने कर दी थी। काफी सोचने पर अव्यांश को दो नाम ध्यान में आया, वो था पार्थ और प्रेरणा।


     अव्यांश ने सबसे पहले प्रेरणा का नंबर डायल किया। पूरी रिंग जाने के बाद भी प्रेरणा ने फोन नहीं उठाया तो उसने पार्थ का नंबर डायल किया। पार्थ का नंबर तो बंद ही आ रहा था। अव्यांश ने एक बार फिर प्रेरणा का नंबर डायल किया लेकिन इस बार भी प्रेरणा ने फोन नहीं उठाया।


     अव्यांश को ऐसे परेशान देखा तो कुहू ने पूछा "क्या हुआ, तू इतना परेशान क्यों है? किसे फोन कर रहा है?"


     अव्यांश ने कहा "पता नहीं यह पार्थ और प्रेरणा दोनों ही काफी देर से गायब है। आई मीन काफी देर से मैंने इन दोनों को नहीं देखा।"


   कुहू ने समझाया "कपल है दोनों, हो सकता है कहीं साथ में हो।"


     लेकिन अव्यांश को यकीन नहीं हुआ। उसने कहा "प्रेरणा तो मेरे साथ ही थी। शिवि दी जब मंडप में आई थी उस वक्त भी प्रेरणा मेरे साथ खड़ी थी। फिर अचानक से ही कहीं चली गई या मैंने उसे नहीं देखा। लेकिन पार्थ तो उससे भी पहले से मुझे नजर नहीं आया। पता नहीं, आई होप सब ठीक हो। मैं जाकर एक बार देखता हूं।"


     कुहू ने कहा "सोच लो एक बार। तुम्हारा उन दोनों को ढूंढने जाना सही होगा? उससे बेहतर है कि तुम निशि को ढूंढो।"


      अव्यांश ने कहा "नहीं मैं उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं डालना चाहता। वो इस सबसे आजाद रहे, वही अच्छा है।" अव्यांश की आवाज में कुछ था जिसे कुहू पकड़ नहीं पाई। उसे तो बस ऐसा ही लगा कि वह अपनी पत्नी से ज्यादा मेहनत वाला काम नहीं करवाना चाहता था। इससे पहले कि वह अव्यांश का मजाक उड़ा पाती, अव्यांश दरवाजा बंद कर वहां से निकल गया।




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