सुन मेरे हमसफर 279

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     अव्यांश तेज कदमों से उसे कमरे की तरफ बढ़ा जहां शिवि मौजूद थी। उसने दरवाजे पर खड़े होकर देखा तो कमरे में शिवि चुपचाप बैठी थी और चित्रा उसे अपने तरीके से समझने की पूरी कोशिश कर रही थी। लेकिन शिवि समझ रही थी या नहीं ये उसके चेहरे पर नजर नहीं आ रहा था।


     चित्रा को शिवि पर अपने समझाने बुझाने का कोई असर होते ना देख उसने परेशान होकर कहा "शिवि तो समझ क्यों नहीं रही है, तेरा एक फैसला दो परिवारों को टूटने से बचा सकता है! पता है इस सब के बाद कार्तिक और काव्या पर क्या गुजरेगी? हम चाहे लाख तरक्की कर गए हो लेकिन हमारी सोच आज भी वही है। हमें इसी समाज में रहना है और यहां के लोगों के ताने सुनने हैं। भले ही कोई सामने से कुछ ना किया लेकिन पीठ पीछे हर इंसान की बुराई की जाती है। और किसी का नहीं तो कम से कम कार्तिक और काव्या के बारे में ही सोच ले। अगर वह दुखी रहे तो क्या बाकी सब खुश रह पाएंगे?"


    शिवि चुपचाप बैठी रही। उसे देख चित्रा को लगा जैसे वह किसी पत्थर से बात कर रही है। अव्यांश ने अपने पीछे देखा, कुछ लोग थे जो शिवि से उम्मीद लगाए बैठे थे। उसने अंदर कदम रखा और चित्रा से बोल "बुआ आप बाहर जाइए।"


     चित्रा ने बेबस होकर अव्यांश की तरफ देखा और कहा "ये लड़की तो मेरी कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं है।"


     अव्यांश ने चित्रा के कंधे पर हाथ रखा और कहा "बुआ मैंने कहा ना, आप बाहर चलिए।" चित्रा चुपचाप बाहर निकल गई।


     चित्रा के बाहर जाते ही अव्यांश ने दरवाजा अंदर से बंद किया और शिवि की तरफ पलट कर चला आया। शिवि ने जब अव्यांश को अपने पास साथ देखा तो उसने अव्यांश को ताना मारा "अब तु मुझे समझाने आया है?"


     अव्यांश मुस्कुरा दिया। वह जाकर शिवि के सामने एक कुर्सी लगाकर बैठ गया और शिवि का हाथ अपने हाथ में लेकर बोला "मैं आपको कुछ समझने नहीं आया हूं। आप बड़ी है मुझसे, मैं आपको समझा भी नहीं सकता, कुछ पूछ जरुर सकता हूं। वह क्या है ना, छोटा हूं सवाल होते हैं मन में तो अगर मन में सवाल हो तो बड़ो से पूछना चाहिए इसलिए मैं आपके पास चला आया।"


     शिवि वैसे ही परेशान थी। उसने झुंझला कर कहा "पूछ तुझे क्या पूछना है!"


     अव्यांश ने मुस्कुरा कर पूछा "मैं जो कुछ भी सवाल करूंगा आप सच्ची-सच्ची उसका जवाब दोगे?"


     शिवि ने इस बार परेशान होकर कहा "मैंने कब किसी से कोई बात छुपाई है? खास कर तेरे किस सवाल का जवाब नहीं दिया है? अब जल्दी पूछ, अभी तेरे बाद और भी कई लोगों का नंबर है। वह भी आकर मुझे समझाएंगे।"


    अव्यांश को हंसी आ गई। उसे हंसते देख शिवि को और ज्यादा गुस्सा आ गया। उसने अव्यांश को मारने के लिए अपनी सैंडल उतारनी चाही तो अव्यांश ने शिवि का हाथ पकड़ कर रोक लिया और सैंडल वापस से उसको पहना कर बोला "इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी यह सारे स्टंट सोनू को ज्यादा अच्छे लगते हैं आप पर नहीं। आप तो मेरी प्यारी सी बहन हो।"


     शिवि को हंसी आ गई। आज अंशु के मुख से बड़े प्यारे बोल फूट रहे थे वरना अब तक तो अव्यांश को उसकी सारी बहनें मुसीबत ही लगती थी और घर वालों से एक प्यारी सी बहन की डिमांड करता था। उसने कहा "तू पूछेगा या फिर मैं जाऊं यहां से?"


    अव्यांश ने शिवि की आंखों में आंखें डाल कर देखा और पूछा "क्या आप कुणाल को पसंद नहीं करती?"


    शिवि की आंखें हैरानी से फैल गई लेकिन अव्यांश के होठों पर हल्की सी मुस्कान थी। उसने एक बार फिर से सवाल किया "बताओ ना दी! क्या आपको कुणाल अच्छा नहीं लगता या फिर कुछ ऐसी बुराइयां है उसमें कि आप उसके बारे में सोचना ही नहीं चाहती?"


    शिवि अव्यांश के इन दोनों सवालों के जवाब देना तो चाहती थी लेकिन दे नहीं पाई। उसने नज़रे नीचे की और दूसरी तरफ देखने लगी। अव्यांश आकर शिवि के बगल में बैठ गया और उसे दोनों कंधे से पकड़ कर बोला "आपका भाई हूं, आपके दिल की बात समझता हूं। भले मैं अपने प्रॉब्लम में उलझा हूं इसका मतलब यह नहीं कि मुझे कुछ नजर नहीं आता। जिस तरह आप कुणाल के नाम से भागती हैं, इसलिए नहीं कि वह आपको पसंद नहीं, बल्कि पहले दिन से देख रहा हूं। आप हमेशा कुणाल से दूर भगाने की कोशिश करती रही है।"


     शिवि ने एकदम से कहा "वह किसी और को पसंद करता है। तुम लोग ले आओ उसे ढूंढ कर और करवा दो उसकी शादी। तुम लोग मेरे पीछे क्यों पड़े हो?"


    अव्यांश शिवि की इस नादानी पर मुस्कुरा दिया और कहा "क्या आप जानती हैं कुणाल किसको पसंद करता है?"


      शिवि ने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला लेकिन एक बार फिर वह कुछ नहीं कहा पाई। अव्यांश उसे ऐसे सवाल कर रहा था जो दिखने में तो मामूली से थे लेकिन उनका जवाब मुश्किल था। शिवि के मन में कहीं कुछ तो बात खटक रही थी इसलिए वह चाह कर भी इंकार न कर पाई।


     अव्यांश ने कहा "1 साल पहले जब कुणाल का एक्सीडेंट हुआ था उस वक्त वह किसी से मिला था। कोई ऐसा जिसने उसका ख्याल रखा था। अब बेचारे कुणाल को यह तक नहीं पता था कि उसका नाम क्या है फिर भी चंद दिनों में कुणाल को उसे इतना लगाव हो गया कि वह उसके लिए पागल सा हो गया था। आपको पता है, कुहू दी से सगाई करने से पहले कुणाल किस बेचैनी से उसे ढूंढ रहा था? मुझे इस बारे नहीं पता था। एक बात जो मुझे पता चली वो ये कि कुणाल ने कभी कुहू से प्यार नहीं किया इन फैक्ट जब से उन दोनों की शादी तय हुई थी कुणाल परेशान हो गया था। वो इस रिश्ते को तोड़ना चाहता था। यह बात तो आप भी जानते हो ना! आ तो कुहू दी को कुणाल से बात करने के लिए कहा था। लेकिन हम तो यहां उसे लड़की की बात कर रहे हैं ना जिसे कुणाल प्यार करता है? आप जानते हो, आप यहां नहीं थे लेकिन सगाई के बाद भी कुणाल ने उस लड़की को ढूंढना नहीं छोड़ा। जिसे जहां कहा कुणाल बस उस ओर दौड़ पड़ा। सब उसे कहते थे कि वह कोई लड़की नहीं छलावा है लेकिन कुणाल को उस छलावे के पीछे भागना भी मंजूर था। बस एक बार फिर से देखना चाहता था अपने दिल की बात कहना चाहता था। लेकिन फाइनली उसने हार मान ली। उसकी किस्मत का मजाक देखो, जब उसने हार मान ली तब उसके सामने आई वह लड़की जिसे वह........."


     शिवि एकदम से उठ खड़ी हुई और कहा "मुझे इस बारे में कुछ नहीं सुनना। मुझे इस सब फालतू कहानी में कोई इंटरेस्ट नहीं है।"



*****



   दूसरी तरफ, 


सारांश सिद्धार्थ अपने तरीके से नेत्रा का पता लगाने में जुटे हुए थे। दोनों भाई अलग-अलग होकर फोन पर हर उस ऐसे इंसान से बात करने की कोशिश कर रहे थे जो नेत्रा और कुहू को ढूंढ सकता था। सारांश कुछ देर छत पर खड़े रहे फिर वापस आकर एक बार फिर वह कुहू के उस कमरे में गए जहां से दोनों बहने गायब हुई थी। वहां चारों तरफ नजर दौड़ने के बाद सारांश ने गहरी सांस छोड़ी और कहा "एक भी कोई सबूत नहीं छोड़ा है। चल क्या रहा है इनके दिमाग में? कैसे पता लगाऊं?"


    सारांश वहां से निकलने को हुए तो उनके कानों में किसी के खटखटाने की आवाज आई, साथ में कोई चिल्ला भी रहा था। "कोई है? दरवाजा खोलो!"


     सारांश ने ध्यान दिया तो चौंक गए। "ये तो नेत्रा की आवाज है?"


    तो क्या वाकई सारांश ने नेत्रा को ढूंढ लिया? क्या कुणाल के साथ मंडप में शिवि की जगह नेत्रा बैठेगी? क्या लगता है आपको?




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सूची ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि उसका काम इतनी आसानी से कैसे हो रहा है। सूची को यह सब सोचकर करना भी क्या था। वह बिना आवाज किए बेड की तरफ बढ़ी। हल्की रोशनी में उसने रक्षित का चेहरा देखने की पूरी कोशिश की। अंधेरे में उसकी आंखें इतनी तो एडजस्ट हो गई थी। रक्षित की तरफ देखते हुए सूची ने धीरे से हाथ बढ़ाकर कोटेशन कि उस फाइल को उठाया और जाने के लिए जैसे ही मुड़ी, एक हाथ ने उसे कमर से पकड़ कर बिस्तर पर खींच लिया। सूची की चीख निकल गई लेकिन दूसरे हाथ ने उसके मुंह को बंद कर दिया।


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