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सुन मेरे हमसफर 299

 299 निशी को बेंगलुरु आए 3 दिन गुजर चुके थे लेकिन एक बार भी अव्यांश से उसकी बात नहीं हो पाई थी। उसने कई बार कॉल करने की कोशिश की लेकिन अव्यांश ने फोन उठाया ही नहीं या तो कभी फोन लगा ही नहीं। अभी भी वह अव्यांश को ही फोन लगा रही थी।  रेनू जी ने जब निशी को ऐसे परेशान देखा तो उन्होंने पूछा "क्या हो गया बेटा, इतनी परेशान क्यों हो?" निशी ने अपना फोन बेड पर रखा और कहा "कुछ नहीं मम्मी! वह मैं अव्यांश को फोन कर रही थी लेकिन मेरी उससे बात ही नहीं हो पा रही है।"  रेनू जी ने हैरानी से पूछा "बिजी होगा। कल तो तुम दोनों की बात हुई थी ना शायद?" निशी ने इनकार करते हुए कहा "नहीं मम्मी! यहां के बाद मैं अव्यांश को फोन किया था लेकिन तब भी उससे बात नहीं हो पाई थी। मॉम को फोन किया था लेकिन उनसे भी नहीं हो पाई। बस दादी को फोन करके मैंने बता दिया था कि मैं पहुंच गई हूं। उसके बाद से मेरा किसी से भी कॉन्टैक्ट नहीं हो पाया है। किसी का फोन नहीं लग रहा तो कोई फोन नहीं उठा रहा। पता नहीं बात क्या है। आई होप सब ठीक होगा वहां पर।"  रेणु जी भी परेशान हो गई। बात परेशानी की थी भी। ऐ

सुन मेरे हमसफर 298

 298  निशि जा चुकी थी और अंशु एक बार उसे रोक भी नहीं पाया। वह चाह कर भी नहीं रोक पाया और उसके जाने के बाद अपने ही दर्द पर मुस्कुरा दिया। निर्वाण का मन नहीं लग रहा था। सुहानी काया और प्रेरणा ने उसे ऐसे जगह फसाया था कि वह वहां से निकल नहीं सकता था। लेकिन उनकी शॉपिंग में वह लड़कियों का साथ देना भी नहीं चाहता था इसलिए उसने अपना दिमाग लगाया और उन तीनों लड़कियों को बुलाकर कान में कुछ कहा। तीनों ही लड़कियां खुश हो गई और अपना शॉपिंग छोड़कर अपने अपने घर को निकल गई।  सारांश ऑफिस का काम निपटाना में लगे हुए थे लेकिन उनका ध्यान रहकर अपने बेटे की तरफ जा रहा था। अवनी ने उन्हें ऐसे परेशान देखा तो पूछा "क्या हो गया कौन सी चिंता में घुल रहे हैं आप?" सारांश ने बिना दोबारा सोच कहा "अंशु को लेकर परेशान हूं।"  अवनी ने पूछा "उसे लेकर क्यों परेशान है आप?"  जिस पर सारांश ने कहा "कुछ नहीं। वह इतने दिनों से मेहनत कर रहा है और ढंग से सोया भी नहीं। उसकी सेहत खराब हो जाएगी।"  अवनी ने सारांश के कंधे पर झुक कर कहा "आप परेशान मत होइए। निशी के जाने से वह थोड़ा परेशान है लेकि

सुन मेरे हमसफर 297

 297 रेनू जी जब मिश्रा जी को लेकर वहां से दूर हटी तो मिश्रा जी ने पूछा "आपको कब से मैगजीन पढ़ने का शौक चढ़ गया? घर पर मैं जब ला कर देता हूं तो आप पूरे से पढ़ते भी नहीं हो। एक मैगजीन पढ़ने में पूरा एक महीना लगता है, और यहां प्लेन में आपको बाहर के नजारे देखने से फुर्सत नहीं मिलती। क्या पढ़ोगे आप?" रेणु जी ने अपने सर पर हाथ मारा और कहा "आपको समझाने का कोई फायदा नहीं है। अरे बेटी दामाद को थोड़ा सा तो अकेले में टाइम दीजिए। उन दोनों के बीच हम क्यों कबाब में हड्डी बने! देखा नहीं सुहानी को, कैसे वो निर्वाण को लेकर तुरंत वहां से निकल गई। इतनी सी बात आपको समझ में नहीं आई? जब मैं मायके जाती थी तो कैसे मुझे स्टेशन तक छोड़ने आते थे और पूरा टाइम मेरा हाथ पकड़े रहते थे। अब उनकी बारी है।"  मिश्रा जी ने एक बार फिर अपनी श्रीमती जी का हाथ पकड़ने की कोशिश तो रेनू जी ने अपना हाथ खींच लिया और कहा "अब बच्चों की उम्र है यह सब करने की। अब तो जहां आप वहां मैं। पूरी लाइफ के लिए भूतनी की तरह चिमटी हूं आपसे।" इतना कहकर रेनू जी आगे बढ़ी तो मिश्रा जी ने पीछे से आवाज लगाते हुए कहा "

सुन मेरे हमसफर 296

 296 कुहू अपनी मां के गोद में कर रख कर लेटी हुई थी। उसकी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे और काव्या भी इमोशनल हुई जा रही थी। "इतना कुछ हो गया लेकिन एक बार भी तूने मुझे इस बारे में बताने की जरूरत नहीं समझी? तुझे अपनी चित्रा मॉम पर भरोसा है लेकिन अपनी मॉम पर नहीं। क्या लगा तुझे, हम सब तेरा साथ नहीं देंगे? तू ऐसा कैसे कर सकती है हमारे साथ? हम तेरे अपने हैं। तुझे हमसे ज्यादा किसी और पर भरोसा है?" कुहू रोती हुई एकदम से चुप हो गई। उसे एहसास हुआ कि उसकी अपनी मां की मन में उसके चित्रा मॉम को लेकर थोड़ी कड़वाहट आ गई है। उसने अपने आंसू पोंछे और कहा "ऐसी कोई बात नहीं है मां, आप गलत समझ रही है। अगर मैंने चित्रा मॉम को इस बारे में बताया था तो काफी सोच समझ कर बताया था। उनका इस सबमें शामिल होना जरूरी था ताकि मैं वह कर सकूं जो मैंने सोचा था। आप सबको ना बताने के पीछे भी बहुत बड़ा कारण था।"  कार्तिक ने नाराजगी से पूछा "और क्या मैं जान सकता हूं कि ऐसी कौन सी वजह थी जिसने तुम्हें हमसे बात करने से रोका?"  काव्या ने कहा "शक तो मुझे पहले से ही हो गया था और मैंने कु

सुन मेरे हमसफर 295

  295    अव्यांश एयरपोर्ट के वेटिंग एरिया में निशी का इंतजार कर रहा था लेकिन मन ही मन को भगवान से यही प्रार्थना कर रहा था कि निशी की गाड़ी एयरपोर्ट पहुंचे ही नहीं। बीच रास्ते में कहीं खराब हो जाए या वह आना भूल जाए या कुछ ऐसा हो की निशि का जाना कैंसिल हो जाए। एक बार निर्वाण को फोन करके पूछने की कोशिश की लेकिन उसकी हिम्मत ही नहीं हुई। उसने अपनी घड़ी की तरफ देखा, फ्लाइट को सिर्फ आधा घंटा रह गया था। ऐसे में क्या निशि टाइम पर पहुंच पाएगी? बस यही सोच रहा था।     बड़ी मुश्किल से अव्यांश ने एक आखरी बार अपनी तरफ से कोशिश करने की सोची और अपना फोन जेब से निकाल लिया। फोन ऑन करते ही वह हैरान रह गया। निशि के इतने सारे मिस्ड कॉल थे, लेकिन उसे पता कैसे नहीं चला? ये फोन भी ना, कब साइलेंट हो जाता है पता ही नहीं चलता। शादी के चक्कर में फोन को चेंज करना ही भूल गया। सोनू की बच्ची! पागल लड़की, फोन गिराने से पहले एक बार सोचा तक नहीं। क्या करूं? कॉल करूं या रहने दूं? लेकिन निशि मुझे इतने कॉल क्यों कर रही थी? क्या अब उसे मुझसे कुछ जरूरी बात करनी थी? लेकिन वह कहेगी क्या? शायद उसका भी मन ना हो यहां से जाने का? म

सुन मेरे हमसफर 294

 294 पूरे रास्ते निशि खिड़की से बाहर देखती रही। निर्वाण, को गाड़ी ड्राइव कर रहा था, उसने मजाक में कहा भी "लगता है भाभी को यहां से जाने का मन नहीं कर रहा। घबराओ मत भाभी, भाई को हम भेज देंगे आपके पास।"  सुहानी आगे की सीट पर बैठी हुई थी। उसने कुछ सोचते हुए पूछा "वह सब ठीक है। मजाक एक तरफ, लेकिन अंशु क्यों नहीं जा रहा? उसे तो जाना चाहिए था।"  मिश्रा जी ने ही सुहानी को समझाते हुए कहा "बेटा अभी-अभी घर में एक शादी संपन्न हुई है। इतने दिनों से वह बेचारा शादी की तैयारी में लगा हुआ था, अब तो उसे आराम करने की जरूरत है। अभी अगर आराम नहीं करेगा तो अगले 1 से 2 दिन में वह बीमार पड़ जाएगा। देखी है मैंने उसकी भाग दौड़।"  सुहानी ने मुंह बनाकर कहा "आप न अंकल, अपने दामाद की साइड कुछ ज्यादा नहीं लेते हो! इतना भी नाजुक छुईमुई नहीं है वह जो इतना हैंडल ना कर सके।"  मिश्रा जी ने मुस्कुरा कर कहा "जानता हूं वह कितना टफ है। लेकिन जब आया था ना, तो मुझे याद है पहले दिन उसे जितना काम करना पड़ा था उसके बाद वो घर जाकर बेहोश हो गया था। ना खाने की सुध थी और ना ही वह किस तरह स

सुन मेरे हमसफर 293

293  निशी का मन भारी हो रहा था। अवनी ने उसके चेहरे को दोनों हाथों से थामा और माथा चूम कर कहा, "जा रही हो तो जल्दी से आ जाना वरना हमारा मन नहीं लगेगा तुम्हारे बिना।" फिर धीरे से कान में कहा "किसी और का तो बिल्कुल भी नहीं लगेगा।" निशी समझ गई कि अवनी अव्यांश की बात कर रही है।  मिश्रा जी ने कहा, "जल्दी करो बेटा, हमे देर हो जाएगी।" रेणु जी ने कहा "हां लेकिन अव्यांश कहां है? वह तो कहीं नजर नहीं आ रहे। मुझे लगा था वह निशी को छोड़ने तो जाएंगे ही।"  सारांश ने बताया "अंशु इस वक्त एयरपोर्ट पर है और आप सब का इंतजार कर रहा है। आप लोग चलिए, वहीं पर आप लोग मिल लेना। और वैसे भी उसकी बीवी जा रही है तो वह कैसे ना होगा वहां पर!" सभी हंस पड़े। निशि ने अपना बैग लिया तो निर्वाण ने उसके हाथ से बैग छीन लिया और कहा "भाभी! यह काम ना मुझे करने दो। वरना भाई मेरी जान ले लेगा।"  सुहानी ने ताना देते हुए कहा "गर्लफ्रेंड के बैग उठाने की आदत पड़ी हुई है, कुछ नया नहीं कर रहा है।"  निर्वाण ने नाराज होकर कहा, "निशी भाभी है मेरी।" सुहानी ने कहा

सुन मेरे हमसफर 292

292     काया की जब आंख खुली तो उसने खिड़की से बाहर देखा। आधा उजाला आध अंधेरा हो रखा था। उसने अपनी आंखें मलते हुए पूछा "क्या सुबह हो रही है या शाम है?"  ऋषभ जो उसके बगल में सोया हुआ था। उसने काया को अपनी बाहों में खींचा और कहा "क्या फर्क पड़ता है, सुबह हो या शाम।" काया इस टाइम रोमांस के मूड में बिल्कुल नहीं थी। उसने ऋषभ के हाथ पर मारा और कहा, "भले तुम्हें फर्क नहीं पड़ता लेकिन मुझे फर्क पड़ता है और बहुत फर्क पड़ता है। दी की शादी हो गई, मुझे घर जाना था और तुम मुझे उठकर यहां ले आए। घर वालों को पता भी नहीं है कि मैं इस वक्त कहां हूं। मुझे खुद नहीं पता मैं इस वक्त कहां हूं।" काया की आवाज बहुत ज्यादा आलसाई हुई लग रही थी और उसे बोलने में काफी ज्यादा मेहनत भी लग रही थी। आंखें थी कि खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी।  ऋषभ ने मुस्कुरा कर कहा "सुहानी को बता दिया था मैंने कि तुम मेरे साथ हो। उसने घर पर कोई ना कोई बहाना बना दिया होगा। चिंता मत करो और सो जाओ।"  काया साइड टेबल से अपना फोन उठाया और टाइम देखकर कहा "मैं नहीं सोने वाली, मुझे घर जाना होगा। तुम्हे

सुन मेरे हमसफर 291

291  शिवि ने कपड़े नहीं बदले थे। पहले उसे गहने उतारने थे और यह गहने पर कुछ इस तरह उसके बॉडी से लिपटे हुए थे कि वह चाह कर भी खुद से नहीं उतार सकती थी। जिस लड़की ने गले में एक लॉकेट के सिवा कभी कुछ ना पहना हो, वह एकदम से इतने बोझ के नीचे दबी हुई थी कि उसके लिए खुद को संभालना मुश्किल था। कुणाल ने उसकी हेल्प की और कहा "तुमसे अकेले नहीं हो पाएगा।"  शिवि पहले तो थोड़ा हिचकिचाई लेकिन अपने सिचुएशन देखकर उसके पास कोई दूसरा ऑप्शन नजर भी नहीं आया।। कुणाल ने एक-एक कर शिवि की ज्वेलरी उतारने शुरू की। शुरुआत की मांग टीके से, फिर नथ फिर कान के झुमके, गले का हार फिर एकदम से कुणाल अपने घुटने के बल बैठ गया। शिवि घबरा कर दो कदम पीछे हट गई तो कुणाल ने इस बार बिना डरे उसकी कमर पकड़ ली।  "यह तुम क्या कर रहे हो?" शिवि ने घबरा कर पूछा।  कुणाल ने अपने मन में उठे भावनाओं को अपने अंदर समेट कर कहा "तुम्हारी हेल्प कर रहा हूं। अब इसमें भी प्रॉब्लम है!"  शिवि ने घबराते हुए पूछा "यह कौन सा तरीका है हेल्प करने का? तुम सीधे खड़े होकर भी कर सकते हो, और छोड़ो मुझे।"  कुणाल ने शिवि क

सुन मेरे हमसफर 290

  290      श्यामा को मिस्टर रायचंद की तरफ से एक फोन आया। उस कॉल को अटेंड करने के बाद वह घबराते हुए कमरे से बाहर निकली और समर्थ को आवाज लगाने लगी। समर्थ अभी-अभी शादी की वेन्यू से सारे काम निपटाकर घर वापस आया था। अपनी मां को ऐसे घबराए देख उसने पूछा "क्या हुआ मॉम, सब ठीक तो है?" श्यामा ने समर्थ के दोनों बांह पकड़ी और कहा "कुणाल शिवि को लेकर कही गया है, पता नहीं कहां। दोनों जिस तेजी में घर से निकले हैं..... पता नहीं क्या हो रहा है मेरी बच्ची के साथ। तुम जाकर देखो उसे ढूंढो! न जाने वह कहां गई है।"  पहले तो समर्थ को भी थोड़ी हैरानी हुई लेकिन फिर उसने अपनी मां को समझाते हुए कहा "मॉम आप चिंता मत करिए, हमारी शिवि बहुत समझदार है और वह अकेले सारे सिचुएशन को हैंडल कर सकती है। फिर भी मैं जाकर देखता हूं वह दोनों कहां है।सी समर्थ ने अपना फोन निकाला और अव्यांश को कॉल किया। शायद इस बारे में अव्यांश को कुछ पता हो। बात उनकी बहन की थी।  अव्यांश ने फोन नहीं उठाया तो समर्थ ने अपने फोन से सर पर दो-तीन बार मारा और कुछ याद आने पर उसने सीधे अस्पताल में फोन लगाया।  कुणाल शिवि को लेकर सीध