सुन मेरे हमसफर 291

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 शिवि ने कपड़े नहीं बदले थे। पहले उसे गहने उतारने थे और यह गहने पर कुछ इस तरह उसके बॉडी से लिपटे हुए थे कि वह चाह कर भी खुद से नहीं उतार सकती थी। जिस लड़की ने गले में एक लॉकेट के सिवा कभी कुछ ना पहना हो, वह एकदम से इतने बोझ के नीचे दबी हुई थी कि उसके लिए खुद को संभालना मुश्किल था। कुणाल ने उसकी हेल्प की और कहा "तुमसे अकेले नहीं हो पाएगा।"


 शिवि पहले तो थोड़ा हिचकिचाई लेकिन अपने सिचुएशन देखकर उसके पास कोई दूसरा ऑप्शन नजर भी नहीं आया।। कुणाल ने एक-एक कर शिवि की ज्वेलरी उतारने शुरू की। शुरुआत की मांग टीके से, फिर नथ फिर कान के झुमके, गले का हार फिर एकदम से कुणाल अपने घुटने के बल बैठ गया। शिवि घबरा कर दो कदम पीछे हट गई तो कुणाल ने इस बार बिना डरे उसकी कमर पकड़ ली।


 "यह तुम क्या कर रहे हो?" शिवि ने घबरा कर पूछा।


 कुणाल ने अपने मन में उठे भावनाओं को अपने अंदर समेट कर कहा "तुम्हारी हेल्प कर रहा हूं। अब इसमें भी प्रॉब्लम है!"


 शिवि ने घबराते हुए पूछा "यह कौन सा तरीका है हेल्प करने का? तुम सीधे खड़े होकर भी कर सकते हो, और छोड़ो मुझे।"


 कुणाल ने शिवि की कमर में अपनी बांहे लपेट ली और कहा "तुम्हें कपड़े बदलने हैं या नहीं?" उसी टाइम पार्थ दरवाजा खोलकर अंदर आया "ओ महारानी जी! आपकी कॉफी और सैंडविच!"


लेकिन पार्थ ने जो सामने देखा उसे देखकर वह एकदम से वापस दरवाजे की तरफ पलट गया। उसे यहां आना ही नहीं चाहिए था। बड़ी मुश्किल से उसने अपने फिलिंग्स को कंट्रोल किया और कहा "सॉरी! मुझे दरवाजा नॉक करके आना चाहिए था।"


 शिवि ने पार्थ की तरफ देखा और फिर उसने गुस्से में कुणाल को आंखें दिखाई तो कुणाल ने अपने हाथ में पकड़ा उसका कमरबंद दिखा दिया। इसका साफ मतलब था कि वह शिवि का फायदा नहीं उठा रहा था। एक्चुअल में उठा रहा था।


 शिवि ने कुणाल की तरफ से आंखें फेरी और पार्थ से कहा "तुम वहां क्या कर रहे हो? मुझे मेरी कॉफी दे दो।"


 पार्थ उस तरफ पलट कर देखना नहीं चाहता था इसलिए उसने नज़रें झुकाए ही कॉफी और सैंडविच ले जाकर शिवि के टेबल पर रख दिया और बिना कुछ कहे वहां से वापस लौट गया। शिवि उसे आवाज देना चाहती थी लेकिन कुणाल ने उसे रोक दिया और कहा "तुम्हें कपड़े नहीं बदलने? पहले कपड़े चेंज करके आओ फिर बाकी का मैं कर दूंगा।" शिवि ने घबराकर कपड़े उठाए और अंदर बाथरूम में भाग गई।


 कुणाल मुस्कुराया और अपने बालों में उंगलियां फेर कर उन्हें सहलाते हुए कहा "भाई! आज तो कुछ ज्यादा हिम्मत दिखा दी। कहां से आई इतनी हिम्मत? और इसको क्या हुआ है? जो हमेशा शेरनी बनी रहती थी आज भीगी बिल्ली बनी है! धीरे-धीरे सब नॉर्मल हो जाएगा। अभी तक गुस्सा तो नहीं किया उसने लेकिन क्या करूं, अपने प्यार का इजहार कर दूं? क्या उसे मुझसे प्यार हो जाए? इसके कुछ कहने का इंतजार करू? कुछ भी कहो यार! लेकिन उसकी स्किन है बड़ी सॉफ्ट!"



निशी ना चाहते हुए भी अपनी पैकिंग कर चुकी थी। अवनी उसके कमरे में आई और एक छोटा सा बैग देखकर कहा "यह क्या, बस इतने से? शादी में जा रही हो कुछ तो लेकर जाओ तुम। रुको मैं अभी आई।" अवनी वापस चली गई। कुछ देर बाद अपने हाथ में चार ज्वेलरी के बॉक्स लेकर वापस कमरे में दाखिल हुई और निशि के सामने रखकर कहा "यह लेती जाओ। शादी के हर रस्म में अलग अलग पहन लेना।"


 निशी थोड़ा हिचकिचाई और कहा, "मॉम यह! ये गहने तो आपके है है, मैं कैसे...!"


 निशी को इस तरह रिएक्ट करते देखा अवनी ने नाराजगी से कहा "निशि! तुम इस घर की बहू हो, यहां की हर एक चीज पर तुम्हारा हक है, इन पर भी। जब तन्वी आ जाएगी तब तुम दोनों का बराबर हक होगा लेकिन फिलहाल तो यह हक सिर्फ तुम्हारे पास है इसलिए जितना मिल रहा है, रख लो। बाद में अंशु से कहकर नया डिज़ाइन का बनवा लेना।"


निशी मुस्कुराई लेकिन उसे यह सब कुछ बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। निशी ने मन ही मन कहा 'यह सब रख के मैं क्या करूंगी जब आपका बेटा ही मुझसे दूर जाने के लिए तैयार है।'


अवनी ने निशी की अलमारी में से कुछ कपड़े और निकाले और उन्हें देते हुए कहा "इसको भी रख लेना, तुम पर ज्यादा अच्छे लगते हैं। और वहां जाकर एक डिजाइनर से बात कर लेना, वह तुम्हें अपने कलेक्शन से हर फंक्शन के लिए कपड़े दिखा देगा, ठीक है?" निशी ने मुस्कुरा कर अपना सर हिला दिया।


 अवनी वहां से जाने लगी तो एकदम से उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने पलट कर कहा "अरे निशी! एक बात तो तुम्हें बताना ही भूल गई, अंशु का फोन आया था उसने कहा कि वह तुम सबको एयरपोर्ट पर ही मिलेगा इसलिए तुम सब टाइम पर पहुंच जाना, ठीक है?" अवनी जाने को हुई फिर एकदम से एक और बात उनके ध्यान में आया और उन्होंने फिर से पलट कर कहा "वह मॉम ने कुछ गिफ्ट रखे है। शादी में जा रही हो तो अपनी तरफ से दे देना और हम सब की तरफ से भी। अवनी मुस्कुरा कर वहां से चली गई।


निशी ने जबरदस्ती मुस्कुरा दिया था लेकिन अवनी के जाते ही वो मायूस हो गई। उसे अव्यांश से आमने-सामने बैठकर सारी बातें क्लियर करनी थी। एक गलतफहमी और अव्यांश ने क्या कुछ सोच लिया था। लेकिन एयरपोर्ट पर यह सारी बातें कैसे होगी, यह निशी को समझ नहीं आ रहा था। उसने अव्यांश का नंबर डायल किया और अपने आप में बड़बड़ाई "अपनी मां को फोन कर सकता है लेकिन मुझे एक कॉल नहीं कर सकता है। अपनी मां के हाथ से मैसेज भिजवाने का टाइम है लेकिन एक मैसेज मुझे नहीं कर सकता है। इतनी पराई हो गई हूं मैं या फिर वो प्रेरणा ज्यादा जरूरी हो गई है। इतने बिजी हो क्या उसके साथ जो मेरा फोन नहीं उठा रहे?"


 निशी ने फिर से नंबर डायल किया लेकिन इस बार अव्यांश का फोन बिजी बता रहा था। निशि ने गुस्से में फोन बिस्तर पर फेंका और जाकर वहीं जमीन पर बैठ गई।

 

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