सुन मेरे हमसफर 298

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 निशि जा चुकी थी और अंशु एक बार उसे रोक भी नहीं पाया। वह चाह कर भी नहीं रोक पाया और उसके जाने के बाद अपने ही दर्द पर मुस्कुरा दिया। निर्वाण का मन नहीं लग रहा था। सुहानी काया और प्रेरणा ने उसे ऐसे जगह फसाया था कि वह वहां से निकल नहीं सकता था। लेकिन उनकी शॉपिंग में वह लड़कियों का साथ देना भी नहीं चाहता था इसलिए उसने अपना दिमाग लगाया और उन तीनों लड़कियों को बुलाकर कान में कुछ कहा। तीनों ही लड़कियां खुश हो गई और अपना शॉपिंग छोड़कर अपने अपने घर को निकल गई।


 सारांश ऑफिस का काम निपटाना में लगे हुए थे लेकिन उनका ध्यान रहकर अपने बेटे की तरफ जा रहा था। अवनी ने उन्हें ऐसे परेशान देखा तो पूछा "क्या हो गया कौन सी चिंता में घुल रहे हैं आप?"


सारांश ने बिना दोबारा सोच कहा "अंशु को लेकर परेशान हूं।"


 अवनी ने पूछा "उसे लेकर क्यों परेशान है आप?"


 जिस पर सारांश ने कहा "कुछ नहीं। वह इतने दिनों से मेहनत कर रहा है और ढंग से सोया भी नहीं। उसकी सेहत खराब हो जाएगी।"


 अवनी ने सारांश के कंधे पर झुक कर कहा "आप परेशान मत होइए। निशी के जाने से वह थोड़ा परेशान है लेकिन यह बात तो हम दोनों ही समझ सकते हैं। फिलहाल मैंने उसे सोने के लिए भेजा है। अभी वह सो रहा होगा। मैं खुद देख कर आई थी, कमरे में पूरा अंधेरा कर रखा है।"


 सारांश को यकीन नहीं हुआ। वो उठकर वहां से जाने लगे तो अवनी ने फिर समझाया "वो सो रहा है तो उसको डिस्टर्ब मत करिए।" लेकिन सारांश नहीं माने।


" मैं बस बाहर से उसे देखकर आ जाऊंगा।" इतना कहकर सारांश चले गए।


 अव्यांश के कमरे में पूरा अंधेरा हो रखा था। सारांश ने जब देखा तो उन्हें भी लगा कि अव्यांश सो रहा है इसलिए वह कमरे के अंदर नहीं गए और वहीं से वापस लौटने को हुए। लेकिन कुछ एहसास उसके दिल को कचोट गया। उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे कमरे की लाइट ऑन कर दी। एक पिता का डर बेकार नहीं था। अव्यांश सो नहीं रहा था, वो बिस्तर के एक साइड जमीन पर बैठा था।


 अव्यांश आंख बंद किया ना जाने किस सोच में गुम था। कमरे की लाइट ऑन होते ही अव्यांश ने कहा "लाइट ऑफ कर दो डैड! ये अंधेरा सुकून दे रहा है मुझे।"


 अव्यांश की आवाज में जो दर्द था, उसे महसूस करके ही सारांश अंदर तक कांप उठे। उन्होंने दरवाजा हल्के से बंद किया और अव्यांश के पास जाकर बैठ गए। अव्यांश अभी भी चुपचाप बैठा हुआ था। उसने एक बार भी अपनी आंखें नहीं खोली। सारांश ने ध्यान से अव्यांश के चेहरे को दे। आंसू की दो लकीरें उसके चेहरे पर साफ नजर आ रहे थे। सारांश का दिल बैठ गया। उन्होंने अव्यांश का चेहरा अपने हाथों में भरकर कहा "क्या हो गया तुझे? तू ऐसा नहीं था। अगर तुझे निशि का जाना इतना ही तकलीफ दे रहा है तो चला जा उसके पास।"


 इस बार अव्यांश ने अपनी आंखें खोली और अपनी सूनी आंखों से छत की तरफ देखते हुए कहा "काश ऐसा हो सकता! काश मैं उसके पास जा सकता! काश उसे मेरी जरूरत होती! इन कुछ दिनों में उसके साथ कई सपने देख लिए थे मैने, वो सब सिर्फ सपना ही रह गया। उसके साथ बिताए वो सारे पल सब सिर्फ यादों में सीमट कर रह गए।"


अव्यांश से और बर्दाश्त नहीं हुआ और वह एकदम से अपने पिता के गले लग कर रो पड़ा। इतने दिनों से उसने अपने अंदर जो छुपा कर रखा था आज वह सब कुछ बाहर निकाल देना चाहता था। उसने रोते हुए कहा "वह चली गई डैड! वह चली गई मुझे छोड़कर, हमेशा के लिए, कभी वापस न आने के लिए। एक बार भी नहीं सोचा कि मैं उसके बिना कैसे रहूंगा। छोड़ दिया मुझे अकेला। मैं चाहकर भी उससे कुछ कह ना पाया और ना उसे रोक पाया। प्लीज डैड! उसे ले आओ वापस, प्लीज! मैं नहीं रह पाऊंगा उसके बिना।"


सारांश का दिल टुकड़ों में बिखर गया। उनको समझ ही नहीं आया कि वह अपने बेटे को कैसे दिलासा दे। इतने टाइम से उनका बेटा इस दर्द से गुजर रहा था और खुद को भूलकर सब की खुशियों में खुश था। इस बात को समझ क्यों नहीं पाए? 


"पति पत्नी के बीच तो लड़ाई होती है। तुझे उसे मनाना चाहिए था। तुझे उसे अपना सच बताना चाहिए था। क्यों जाने दिया तूने उसे? तू रोक सकता था उसे, तेरी पत्नी है वह, तेरा हक है उस पर। तू ऐसे कैसे उसे जाने दे सकता है? तू अभी के अभी जा और उसे सारा सच बात कर घर वापस ले आ।"


 अव्यांश सारांश से अलग हुआ और कहा "अपनी सफाई देकर उसकी नजरों में और गिर जाऊंगा। अगर उसके दिल में मेरे लिए कोई भी एहसास होता, अगर उसे मुझ पर थोड़ा सा भी भरोसा होता तो कम से कम वह मुझसे पूछती कि आखिर सच क्या है। एक बार भी उसने मुझसे पूछा होता तो सारा सच खुलकर कह देता मैं उससे, लेकिन उसने मुझसे पूछा ही नहीं। और मैं जानता हूं वो आज भी उसे नहीं भूली है। फिर मैं कैसे ले आऊं उसे? उसका जाना ही सही था इसलिए मैं उसे रोक नहीं पाया, नहीं रोक पाया उसे।"


 सारांश अभी भी यह सब कुछ एक्सेप्ट करने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने पूछा "तूने इस बारे में खुलकर निशी से बात की या नहीं? तूने पूछा उससे कि वह किसे चाहती है किसे नहीं? हो सकता है तुझे कोई गलतफहमी हुई हो।"


 अव्यांश ने अपने आंसू पोंछे और कहा "कोई गलतफहमी नहीं हुई है मुझे डैड! वो देवेश से तलाक की बात कर रही थी। मैं और क्या करता। इतना सुनने के बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं उसे इस रिश्ते में बांध कर रख सकूं।"


 सारांश का दिल बैठ गया। उन्होंने पूछा "मतलब तू निशि को तलाक दे रहा है?"


 "तलाक?"


 सुहानी की आवाज सुनकर अव्यांश और सारांश दोनों ने ही दरवाजे की तरफ देखा। सुहानी दरवाजे पर खड़ी थी और अवनी भी। सुहानी जल्द से अंदर आई और अव्यांश के पास बैठकर कहा "यह तू क्या बात कर रहा है? तू ऐसा कैसे सोच सकता है? तुम दोनों एक साथ परफेक्ट लगते हो, तुम दोनों को एक साथ देखकर हमें हमेशा जलन होती थी कि हमारा पार्टनर ऐसा ही हो तो फिर अचानक से ऐसा क्या हो गया जो इतना बड़ा डिसीजन ले लिया तुम लोगों ने?"


 अवनी अभी भी दरवाजे पर खड़ी थी। उनकी हिम्मत ही नहीं थी कि वह आगे बढ़कर कुछ कहे। बड़ी मुश्किल से अपनी पूरी हिम्मत बटोर कर अवनी ने पूछा "किसने लिया है यह डिसीजन, क्या मैं पूछ सकती हूं?"


 अव्यांश अवनी के सामने निशि का नाम नहीं ले सकता था और ना ही वह झूठ बोल सकता था इसलिए वह चुप रहा। अवनी ने उसे डांटते हुए कहा "तुम्हारा दिमाग खराब है जो ये सब.......! शादी का रिश्ता कोई खेल नहीं होता जब मन किया छोड़ दिया जब मन किया तोड़ दिया। उसके बस यहां से जाने भर से तेरी यह हालत हो गई, तो जब वो हमेशा के लिए चली जाएगी तो तेरी क्या हालत होगी! मुझे निशी से बात करनी है। मैं पूछती हूं उससे कि आखिर ये सब चल क्या रहा है? ऐसा कैसे कर सकती है वो!"


 अवनी का फोन उनके पास नहीं था। वह फोन लेने के लिए जाने को हुई लेकिन अव्यांश ने एकदम से उनका हाथ पकड़ लिया और कहा, "नहीं मॉम! आप उससे कुछ मत कहोगे। आपको मेरी कसम है, आप में से कोई भी निशी को कुछ नहीं कहेगा, कुछ नहीं। ये फैसला मेरा था और उसकी पूरी रिस्पांसिबिलिटी भी मेरी है।"


 सुहानी भी अव्यांश को ही देखे जा रही थी। वो जाकर अव्यांश के गले लग गई। निर्वाण भी उसके पीछे पीछे चला आया था लेकिन यह सब कुछ देखकर उसका दिमाग काम करना बंद कर दिया था। कहां तो उसने कुछ और ही प्लान बनाया था और कहां यह सब कुछ।


 सुहानी ने निर्वाण की तरफ देखकर कुछ इशारा किया तो निर्वाण ने अव्यांश से कहा "भाई! बहुत हो गई बकवास। तू चल हमारे साथ।"


 अव्यांश ने इनकार करते हुए कहा "मुझे कहीं नहीं जाना, मुझे बस अकेला छोड़ दो तुम लोग।"


 सुहानी ने उसे डांटते हुए कहा "हम तुझे अकेला क्यों छोड़ दे? बहुत शौक चढ़ रहा है तुझे अकेले रहने का? तेरा खून कर दूंगी मैं, चुपचाप कपड़े बदल और चल हमारे साथ।"


 सारांश ने पूछा "कहां लेकर जा रहे तुम लोग इसको?"


 सुहानी और निर्वाण में एक साथ कहा "जहां इसका मन लगता है। और जहां ये निशी को भूल जायेगा।"

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