सुन मेरे हमसफर 294

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पूरे रास्ते निशि खिड़की से बाहर देखती रही। निर्वाण, को गाड़ी ड्राइव कर रहा था, उसने मजाक में कहा भी "लगता है भाभी को यहां से जाने का मन नहीं कर रहा। घबराओ मत भाभी, भाई को हम भेज देंगे आपके पास।"


 सुहानी आगे की सीट पर बैठी हुई थी। उसने कुछ सोचते हुए पूछा "वह सब ठीक है। मजाक एक तरफ, लेकिन अंशु क्यों नहीं जा रहा? उसे तो जाना चाहिए था।"


 मिश्रा जी ने ही सुहानी को समझाते हुए कहा "बेटा अभी-अभी घर में एक शादी संपन्न हुई है। इतने दिनों से वह बेचारा शादी की तैयारी में लगा हुआ था, अब तो उसे आराम करने की जरूरत है। अभी अगर आराम नहीं करेगा तो अगले 1 से 2 दिन में वह बीमार पड़ जाएगा। देखी है मैंने उसकी भाग दौड़।"


 सुहानी ने मुंह बनाकर कहा "आप न अंकल, अपने दामाद की साइड कुछ ज्यादा नहीं लेते हो! इतना भी नाजुक छुईमुई नहीं है वह जो इतना हैंडल ना कर सके।"


 मिश्रा जी ने मुस्कुरा कर कहा "जानता हूं वह कितना टफ है। लेकिन जब आया था ना, तो मुझे याद है पहले दिन उसे जितना काम करना पड़ा था उसके बाद वो घर जाकर बेहोश हो गया था। ना खाने की सुध थी और ना ही वह किस तरह सोया है इस बात की। अगले दिन ऑफिस आने में उसे देर हो गई तो मैनेजर साहब ने उसे अच्छे से डांट लगाई थी, जबकि काम कुछ खास था भी नहीं। उसकी वह मासूम सी शक्ल देखकर मेरा दिल पिघल गया था। मेरा मन ही नहीं हुआ कि मैं उस पर गुस्सा करूं। तब उसने मुझे बताया था कि उसके साथ क्या हुआ। जब काम करने की आदत नहीं थी और एकदम से किसी के ऊपर जिम्मेदारी आ जाए तो इंसान का शरीर हैंडल नहीं कर सकता है। और जिस तरह से मैंने उसे काम करते देखा है, मुझे तो यकीन नहीं हुआ कि यह वही अव्यांश है जिसे मैंने बेंगलुरु में देखा था। पहले से काफी मैच्योर हो गया है वह।"


 सुहानी भी मुस्कुरा उठी। उसने कहा "मेरा भाई है ही लाखों में एक। आपको पता नहीं अंकल, बचपन में वो इतना शैतान था, इतना शैतान था! लेकिन पापा ने कभी उसे डाटा ही नहीं, और यही रीजन था कि उसकी शैतानियां बढ़ती गई। और मॉम! वो तो सर पकड़ लेती थी। अंशु और डैड, दोनों की हरकतें ऐसी थी कि घर में हर कोई परेशान हो जाता था, लेकिन कभी किसी ने कुछ नहीं कहा। उन दोनों का रिश्ता बहुत अलग है, बहुत अलग। कहते हैं बेटियां पापा की लाडली होती है और बेटे मां के। लेकिन यहां पूरी कहानी उल्टी है। नॉर्मली कहते हैं कि बाप बेटे के बीच तालमेल बैठाना बहुत मुश्किल होता है लेकिन यहां दोनों एक दूसरे को कुछ ऐसे सपोर्ट करते हैं कि पूछो मत। हां थोड़ा बिगड़ गया था और कुछ ऐसा बिगड़ा था कि मॉम ने एकदम से पूरी कमान अपने हाथ में ले ली थी, तब जाकर सीधा हुआ है वह। वरना आपको लगता है कि डैड के होते हुए हमारा अंशु ऐसा होता जैसा आज है?"


निर्वाण ने भी अपनी बात सामने रखी और कहा "पेरेंट्स में से किसी एक को तो स्ट्रीक्ट होना ही पड़ता है। वरना बच्चे बिगड़ जाते हैं।"


 सुहानी ने निर्वाण की तरफ घूर कर देखा और कहा "तेरे तो मोम डैड दोनों ही स्ट्रिक्ट है, तू क्यों बिगड़ा हुआ है?"


 दोनों भाई-बहन गाड़ी में ही उलझ पड़े। निशि के होठों पर मुस्कान आ गई लेकिन ड्राइव तो निर्वाण कर रहा था। निशी ने समझाते हुए कहा "एक काम करो, गाड़ी साइड में रोक लो और तुम दोनों आपस में अच्छे से लड़ लो, उसके बाद चलेंगे।" निर्वाण और सुहानी दोनों ही शांत हो गए और निर्वाण ने वापस ड्राइविंग पर फोकस किया।



*****



कुणाल शिवि को लेकर घर पहुंचा तो मिस्टर रायचंद और मिसेज रायचंद दोनों ही हॉल में मिल गए। कुणाल और शिवि को देखते ही मिसेज रायचंद गुस्से में बोली "यह क्या तरीका है? इस तरह घर से जाता है कोई? अभी अभी शादी हुई तुम्हारी, अभी भी कई सारी रस्में बाकी है और तुम दुल्हन को लेकर घर से बाहर निकल गए? जानते हो कितना बड़ा अपशगुन हो सकता है! गए तो गए, एक बार किसी को बताना भी जरूरी नहीं समझा? और यह क्या हुलिया बना रखा है? शिवि इन कपड़ो में क्यों है? गई तो थी वह दुल्हन के जोड़े में तो फिर क्या हुआ?"


 शिवि का अपनी सास से यह पहला इंटरेक्शन था, इसलिए वह कुछ बोल ही नहीं पाई। कुणाल ने ही शिवि का बचाव करते हुए कहा "मॉम! हम लोग अस्पताल गए थे। अब अस्पताल में वह दुल्हन के जोड़े में तो नहीं रह सकती।"


 कुणाल की मां कुणाल पर ही बरसते हुए बोली "हॉस्पिटल, वह भी आज के दिन! उन लोगों को समझ नहीं है क्या? और ऐसा क्या अर्जेंट हो गया था कि शिवि के बिना वहां पर कोई काम नहीं हो सकता था?"


 कुणाल की मॉम इतनी हाइपर क्यों हो रही थी, यह कुणाल के समझ से बाहर था। क्योंकि उसने अब तक तो अपनी मां को हमेशा शांत ही देखा था। यानी कुणाल के पापा ने उन्हें बेवजह अच्छी खासी डांट लगा दी थी और जिसकी झुंझलाहट इस वक्त वह कुणाल पर उतार रही थी। कुणाल समझ गया और उसने अपने पापा की तरफ देखकर कहा "जो भी किया है मैंने किया है, इसके लिए किसी से भी कुछ कहने से पहले एक बार सच जान लेते तो अच्छा होता। बहुत आसान होता है किसी को इजी टारगेट बनाना। जो इंसान पलट के जवाब ना दे उसे आते जाते कोई भी कुछ भी कह देता है।"


 मिस्टर रायचंद को अपनी गलती का एहसास था इसलिए अपने बेटे के साथ उन्होंने कोई बहस करना सही नहीं समझा। और वैसे भी, उनके बेटे ने शादी कर ली थी यह बहुत बड़ी बात थी वरना जैसे उसके तेवर थे उन्हें पूरा यकीन था कि कुणाल इस शादी से भाग जाएगा। अब यह उनके हाथ में था कि बाप बेटे के बीच के रिश्ते को कैसे सही करें। उन्होंने अपनी पत्नी को शांत करते हुए कहा "आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप जाकर आराम करिए। बच्चे भी थके हुए हैं उन्हें भी आराम की सख्त जरूरत है। थके होने के बाद भी वो लोग हॉस्पिटल गए थे, इसका मतलब यही है कि कोई बहुत जरूरी रहा होगा। आपकी बहू एक डॉक्टर है तो अब ऐसा होना नॉर्मल है। एक डॉक्टर की लाइफ अपनी नहीं होती है, वह दूसरों की होती है। यह बात हमें अच्छे से समझनी होगी। हम इस बारे में आगे कोई बहस नहीं करना चाहते" मिस्टर रायचंद आगे कुछ और कह पाते, उससे पहले ही कुणाल ने शिवि का हाथ पकड़ा और वहां से लेकर अपने कमरे में चला आया।



*****




 एयरपोर्ट पहुंचकर निर्वाण ने गाड़ी साइड में लगाई और बाहर निकला। निशि की नजरे अव्यांश को ढूंढ रही थी। उसकी नजर देख निर्वाण समझ गया और कहा "अरे भाभी! भाई आपको अंदर मिलेगा, आप अंदर चलो।"


 निशी ने पूछा "हां लेकिन बिना टिकट के कैसे जाएंगे? अंदर तो एयरपोर्ट पर घुसने भी नहीं देगा।"


 प्रेरणा पीछे से आई और टिकट निशी के सामने रखकर कहा "यह रही तुम्हारी टिकट। अब चलो अंदर।"


 प्रेरणा को अपनी आंखों के सामने देखकर निशि का पूरा मूड खराब हो गया। वह वैसे ही परेशान थी और ऐसे समय में प्रेरणा को अपने सामने पाकर वो उसका खून कर देना चाहती थी, खासकर प्रेरणा की वह स्माइल। निशी ने टिकट लेने की बजाए प्रेरणा का हाथ पकड़ा और उसे कसकर मरोड़ दिया।


 प्रेरणा जोर से चिल्लाई "निशी क्या कर रही हो तुम? टिकट लो! निशी टिकट लो!!"


 निशि को थोड़ा अजीब लगा। अभी तो वह चिल्लाई थी लेकिन उसे दर्द क्यों नहीं हो रहा? सुहाने ने निशी के कंधे पर हाथ रखा और कहा "निशी, टिकट ले लो।"


 निशि होश में आई और अपने सामने फिर से प्रेरणा को मुस्कुराते हुए देखा। 2 सेकंड का सपना उसके दिमाग में अभी भी चल रहा था। निशी ने मन में कहा 'ऐसे खुश हो रही है जैसे कोई खजाना हाथ लग रहा हो। हां खजाना न सही, अव्यांश तो हाथ आएगा ही। मैं नहीं रहूंगी तो दोनों को रोकने वाला भी कोई नहीं होगा और दोनों को किसी का डर भी नहीं होगा। खैर! इन दोनों से मुझे क्या! वैसे भी मैं कौन सा मायने रखती हूं उसके लिए।' निशी ने बेमन से प्रेरणा के हाथ से वह टिकट छीना और अंदर चली गई।


 निशि का यह व्यवहार प्रेरणा को समझ में नहीं आया और इस बात को निर्वाण ने भी नोटिस किया और सुहानी ने भी। निर्वाण ने जाते हुए निशि को पीछे से देखा और कहा "ये भाभी को क्या हो गया अचानक? इतनी ऑफ तो वो घर से निकलते टाइम भी नहीं थी।" लेकिन शायद सुहानी समझ गई थी।


 प्रेरणा और अव्यांश के बीच का रिश्ता किसी के लिए भी परेशानी खड़ा कर सकता था और यह बात अव्यांश क्यों नहीं समझ रहा?

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