सुन मेरे हमसफर 293

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निशी का मन भारी हो रहा था। अवनी ने उसके चेहरे को दोनों हाथों से थामा और माथा चूम कर कहा, "जा रही हो तो जल्दी से आ जाना वरना हमारा मन नहीं लगेगा तुम्हारे बिना।" फिर धीरे से कान में कहा "किसी और का तो बिल्कुल भी नहीं लगेगा।" निशी समझ गई कि अवनी अव्यांश की बात कर रही है। 


मिश्रा जी ने कहा, "जल्दी करो बेटा, हमे देर हो जाएगी।"


रेणु जी ने कहा "हां लेकिन अव्यांश कहां है? वह तो कहीं नजर नहीं आ रहे। मुझे लगा था वह निशी को छोड़ने तो जाएंगे ही।"


 सारांश ने बताया "अंशु इस वक्त एयरपोर्ट पर है और आप सब का इंतजार कर रहा है। आप लोग चलिए, वहीं पर आप लोग मिल लेना। और वैसे भी उसकी बीवी जा रही है तो वह कैसे ना होगा वहां पर!" सभी हंस पड़े। निशि ने अपना बैग लिया तो निर्वाण ने उसके हाथ से बैग छीन लिया और कहा "भाभी! यह काम ना मुझे करने दो। वरना भाई मेरी जान ले लेगा।"


 सुहानी ने ताना देते हुए कहा "गर्लफ्रेंड के बैग उठाने की आदत पड़ी हुई है, कुछ नया नहीं कर रहा है।"


 निर्वाण ने नाराज होकर कहा, "निशी भाभी है मेरी।"


सुहानी ने कहा, "हां गर्लफ्रेंड के लिए करता रहा है, अब भाभी के लिए कर। जा और इनको एयरपोर्ट छोड़ दे वरना मैं अंशु को कॉल करू?" नीरू ने मुंह बनाकर बैग लिया और बाहर चला गया।


 निशी भी बाहर की तरफ जाने को हुई लेकिन एक बार पलट कर उसने पूरे घर की तरफ देखा। उसका परिवार था जिसने उसको बड़े प्यार से अपनाया था और इस परिवार को छोड़कर जाते हुए कितनी तकलीफ हो रही थी, यह वह ही जानती थी। निशि को ऐसे इमोशनल देख अवनी ने बड़े प्यार से उसका चेहरा छुए और कहा, "इससे पहले तो तुम कभी इतनी इमोशनल नहीं हुई जितना आज हो रही हो। कहीं इसलिए तो नहीं क्योंकि इस बार अंशु तुम्हारे साथ नहीं जा रहा? बस कुछ दिनों की बात है, फिर तो लौट आओगी। अगर नहीं तो फिर मैं अंशु को तुम्हारे साथ भेज दूं?"


 शुभ कब से खड़ा से सब कुछ देख रहा था। उसने पहले भी सिया को समझने बनाने की कोशिश की थी ताकि निशि यहां से न जाए लेकिन सिया और जानकी दोनों ने ही इस बात से साफ इंकार कर दिया था। उसने एक बार फिर कोशिश की "मैं तो अभी भी कह रहा हूं, जब निशि का मन नहीं हो रहा जाने का तो फिर वह क्यों जा रही है? अंशु अगर नहीं जा रहा तो जाहिर सी बात है कोई कारण है। आई मीन अभी-अभी घर की बेटी की विदाई हुई है, पूरा घर सूना हो जाएगा। अंशु और निशि को बीते कुछ दिनों में बिल्कुल भी टाइम नहीं मिला एक दूसरे के लिए। अब जब के सारे जिम्मेदारी पूरी हो गई है तो इन दोनों को भी तो थोड़ा एक दूसरे के साथ टाइम मिले।" फिर उसने निशी से कहा "सोच लो निशि! प्रेरणा यहीं पर है कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारा अंशु प्रेरणा के चक्कर में तुम्हें भूल जाए।"


 जानकी ने शुभ से नाराज होकर कहा "क्या बात कर रहा है तू? हमारा अंशु ऐसा है क्या?"


 शुभ को एहसास हुआ कि उसे यह बात नहीं करनी चाहिए थी। उसने अपनी बात बदलते हुए कहा "अरे वह क्या है ना मां, प्रेरणा अंशु के बीच के रिलेशन को आप लोग अच्छे से जानते हो। दूसरे में, अगर बीवी पास ना हो तो इंसान का मन इधर-उधर उड़ता ही है। मैं तो बस पॉसिबिलिटी समझा रहा था।"


 अवनी को गुस्सा आ गया। उन्होंने बिना शुभ की तरफ देखे कहा "हमारा अंशु उनमें से नहीं है जो शादीशुदा होकर भी किसी और पर नजर डालें। अंशु और प्रेरणा के बीच जो रिश्ता है इस बारे में हम सब जानते हैं लेकिन यह भी जानते हैं कि ऐसी हरकत ना प्रेरणा करेगी और ना अंशु। दोस्ती की एक मर्यादा होती है और वह दोनों इस मर्यादा को कभी नहीं भूलेंगे। निशी बेटा! तुम जाओ, किसी की भी बातें सुनकर अपनी गृहस्थी में आग मत लगाना। लोग कहने को बहुत कुछ कहेंगे लेकिन अपने दिल की सुनना और दिमाग से काम लेना।"


 निशि अवनी के गले लग गई और कहा "मैं आप सबको बहुत मिस करूंगी।"


 निशी की आवाज भारी हो गई थी जिसे सब ने महसूस किया। अवनी ने निशी के पीठ पर हाथ फेरा तो सारांश ने कहा "बेटी जब अपनी सास के लिए इतनी इमोशनल हो जाए तो मां के लिए खतरे की घंटी होती है।"


रेणु जी ने मुस्कुरा कर इस बात का जवाब दिया "बेटी अगर अपनी सास के लिए इतनी इमोशनल हो तो यह मां के लिए खुशी की बात होती है कि उसे अपने ससुराल में इतना ज्यादा प्यार मिल रहा है। वरना हर मां इसी बात से डरी हुई रहती है की न जाने कब उसकी सास उसके सांस लेने पर पहरा बिठा दे।




शिवि भागते हुए मीटिंग रूम की तरफ दौड़ी तो उसकी नजर मीटिंग रूम से बाहर निकलते हुए समर्थ पर पड़ी। समर्थ ने भी जैसे ही शिवि को आते देखा तो उसने परेशान होकर कहा "जाकर संभल उनको। मेरे तो कंट्रोल से बाहर है वो।"


 शिवि ने नाराज होकर कहा "आप नही संभाल सकते थे उनको? ऐसे तो हमेशा मुझे डांट पड़ती है और वह हमेशा आपकी सुनती है। आज क्या हो गया?"


 समर्थ को हंसी आ गई। इतनी परेशानी में भी उसने मुस्कुरा कर कहा "आज उनके अंदर की वह मदर इंडिया जाग गई है, इसलिए वह किसी की नहीं सुनेंगी।"


शिवि अंदर गई। कुणाल पर उसके पीछे-पीछे था लेकिन समर्थ ने उसे बाहर ही रोक लिया और कहा "अंदर मत जाना वरना शादी के अगले दिन ही अपनी सास से अच्छी खासी डांट पड़ जाएंगी तुम्हें। वह तो जितना हॉस्पिटल वालों से गुस्सा है, उससे कहीं ज्यादा तुमसे नाराज है। शिवि को लेकर यहां लेकर आना ही नहीं चाहिए था।"


कुणाल ने कुछ कहने के लिए मुंह खोल तो समर्थ ने उसे रोकते हुए कहा "मैं जानता हूं तुम्हारी मंशा बिल्कुल सही थी और तुम्हारा डिसीजन भी बिल्कुल सही था लेकिन वह मां है और एक मां के आगे कोई लॉजिक काम नहीं करता।"


 कुणाल ने कहा "लेकिन ऐसे में सारी डांट शिवि को पड़ेगी। ऐसे कैसे उसे छोड़ दूं?"


 जब बंदा खुद ही ओखली में सर देने को तैयार हो तो कोई क्या ही कर सकता है। समर्थ ने कहा "ठीक है जाओ फिर।"


 कुणाल आगे बढ़ता उससे पहले मीटिंग रूम का दरवाजा खुला और अंदर से एक-एक कर सभी बाहर निकलने लगे। सबके चेहरे पर राहत की मुस्कान थी। मतलब शिवि ने उन सब को बचा लिया था लेकिन अब उसको कौन बचाएगा?


 कुणाल अंदर दाखिल हुआ और श्यामा से बोल मां शिव को मत डांटना। वो नहीं आना चाहती थी लेकिन मैं ही उसे लेकर आया। उसकी लाइफ का यह सबसे बड़ा अपॉर्चुनिटी वह कैसे मिस कर सकती थी! मैं तो कभी नहीं छोड़ता। प्लीज आप उसको डांटेना मत।"


श्यामा आने कुछ देर गौर से कुणाल को देखा और शिवि से कहा "तुम दोनो घर जाओ और आराम करो। तुम लोगों को इसकी बहुत ज्यादा जरूरत है।"


श्यामा वहां से जाने को हुई लेकिन श्यामा के साथ तो शिवि की कोई बात ही नहीं हुई थी और ऐसे ही श्यामा जाने को तैयार थी। इससे पहले की शिवि उनको रोक पाती, श्यामा ने ही कहा "आइंदा ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी, ना तुम्हारे साथ और ना ही किसी और स्टाफ के साथ। मैंने कह दिया है सबको।" 

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