सुन मेरे हमसफर 295

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   अव्यांश एयरपोर्ट के वेटिंग एरिया में निशी का इंतजार कर रहा था लेकिन मन ही मन को भगवान से यही प्रार्थना कर रहा था कि निशी की गाड़ी एयरपोर्ट पहुंचे ही नहीं। बीच रास्ते में कहीं खराब हो जाए या वह आना भूल जाए या कुछ ऐसा हो की निशि का जाना कैंसिल हो जाए। एक बार निर्वाण को फोन करके पूछने की कोशिश की लेकिन उसकी हिम्मत ही नहीं हुई। उसने अपनी घड़ी की तरफ देखा, फ्लाइट को सिर्फ आधा घंटा रह गया था। ऐसे में क्या निशि टाइम पर पहुंच पाएगी? बस यही सोच रहा था।


    बड़ी मुश्किल से अव्यांश ने एक आखरी बार अपनी तरफ से कोशिश करने की सोची और अपना फोन जेब से निकाल लिया। फोन ऑन करते ही वह हैरान रह गया। निशि के इतने सारे मिस्ड कॉल थे, लेकिन उसे पता कैसे नहीं चला? ये फोन भी ना, कब साइलेंट हो जाता है पता ही नहीं चलता। शादी के चक्कर में फोन को चेंज करना ही भूल गया। सोनू की बच्ची! पागल लड़की, फोन गिराने से पहले एक बार सोचा तक नहीं। क्या करूं? कॉल करूं या रहने दूं? लेकिन निशि मुझे इतने कॉल क्यों कर रही थी? क्या अब उसे मुझसे कुछ जरूरी बात करनी थी? लेकिन वह कहेगी क्या? शायद उसका भी मन ना हो यहां से जाने का? मैं भी ना, खुद को तसल्ली देना देने की कोशिश कर रहा हूं। मैं जानता हूं ऐसा कुछ नहीं होगा। मत सोच ऐसा, फिर तुझे खुद को ही तकलीफ होगी जब तेरे सारे सपने फिर एक बार टूट जाएंगे। वो आज भी देवेश से ही प्यार करती है। उसके दिल में तेरी कोई जगह नहीं तो जाने दे उसे। जबरदस्ती उसे अपने पास रोक कर मत रख। उसकी भी जिंदगी है जिसे वह अपनी मर्जी से जीना चाहती है। वह खुश तो तू खुश, इससे ज्यादा और क्या चाहिए।' 


"कहां खोया है मिस्टर?" एक जानी पहचानी सी आवाज सुनकर अव्यांश चौक गया। उसने नजरे घूमा कर देखा तो उसके कॉलेज के दो फ्रेंड्स खड़े थे, आरुष और नेहा। उन दोनों को सामने देख अव्यांश चौक गया और कहा "तुम लोग यहां क्या कर रहे हो? और तुम दोनों ऐसे? तुम दोनों ने शादी कर ली, सीरियसली? नेहा तुझे कोई और नहीं मिला था क्या? तेरे पास कई सारे ऑप्शन थे यार, तूने देखा भी नहीं। एक बार देख लेती तो तेरा क्या जाता?"


 आरुष हंस पड़ा और नेहा ने अव्यांश के कंधे पर पंच मार कर कहा "तुम्हारी आदत नहीं जाएगी। मैंने सुना तुम्हारी शादी हो गई, और शादी के बाद भी तुम ऐसे फ्लर्ट कर रहे हो, वह भी मेरे साथ मेरे पति के सामने? तुम्हारी खटिया तुम्हारी बीवी खड़ी करेगी.।"


 आरुष ने भी अव्यांश को डराते हुए कहा "हां! सुना है तेरी बीवी बहुत खतरनाक है।"


 डरने की बजाए अव्यांश मुस्कुरा दिया और कहा "बीवियां खतरनाक ही होती है। देखा नहीं है, शेर भी बेचारा बिल्ली बन के रहता है अपनी वाली के सामने। खैर! मैं तो पूरा शेर बन के रहने वाला हूं अब।"


 आयुष और नेहा ने हैरानी से एक दूसरे की तरफ देखा और पूछा "वह कैसे?"


 अव्यांश ने मुस्कुराकर कहा "वह मेरी शेरनी मायके जा रही है उसी को छोड़ने आया हूं।"


 नेहा और आरुष ने अपने चारों तरफ देखना शुरू किया तो अव्यांश ने कहा "रिलैक्स! वह अभी आई नहीं है, आने वाली है। वैसे तुम दोनों क्या हनीमून पर जा रहे हो?"


 नेहा ने खुश होकर कहा "हां! फाइनली शादी के 1 महीने बाद हम हनीमून पर जा रहे हैं। लगभग तुम्हारी तरह ही हमारी शादी भी जल्दबाजी में हुई थी तो हम किसी को इनवाइट कर भी नहीं पाए। अब सोच रहे हैं कि एक बार हनीमून से हो आए तो फिर सारे फ्रेंड्स का गेट टुगेदर रखते है। हम भी तो जाने की तुम अपनी वाइफ के साथ हनीमून पर कहां गए थे। फिलहाल हमारे फ्लाइट का टाइम हो रहा है हमें निकलना होगा।"


 आरुष ने उन दोनों को ही बीच में रोक कर कहा, "वैसे अगर तेरी वाइफ में नजर आ जाती तो हम भी तेरे खिलाफ उसे थोड़ा बहुत भड़का कर जाते।" नेहा खिलखिलाकर हंस पड़ी और अव्यांश बस मुस्कुरा कर रह गया।


 अव्यांश के पास उन दोनों को रोकने की कोई वजह नहीं थी। वह नहीं चाहता था कि उसके दोस्त निशी से मिले और आगे जाकर कोई भी ऐसी वैसी बात हो इसलिए उसने कहा "ठीक है। एक बार तुम दोनों अपने ट्रिप से वापस आ जाओ उसके बाद मिलते हैं कहीं पर। वैसे भी काफी टाइम हो गया सबसे मिले हुए। और हैप्पी जर्नी! फाइनली तुम दोनों का प्यार परवान चढ़ा।"


 नेहा जाकर अव्यांश के गले लग गई और कहा "तुम्हें भी तुम्हारी शादी की बहुत सारी बधाई। कॉलेज में तो तुम किसी को भाव नहीं देते थे। आई मीन, सबको इक्वल भाव देते थे। अब सारी अटेंशन अपनी बीवी को देना कहीं इधर-उधर नहीं। वरना तुम्हारी बीवी से पहले तुम्हारे घर वाले तुम्हारी खटिया खड़ी कर देंगे। नेहा और आयुष दोनों अव्यांश को बाय करते हुए वहां से निकल गए। अव्यांश भी बस मुस्कुराता रह गया।


 इतने में निशि आई और गुस्से में बोली "तुम क्या हर लड़की से चिपकते हो? मतलब, हर कहीं तुम्हारी कोई न कोई गर्लफ्रेंड मिल जाती है, जैसे हर मोहल्ले में तुम्हारे चर्चे हो।"


निशी के इस कमेंट से अव्यांश चौक गया। उसे लगा नहीं था कि निशि उसे और नेहा को एक साथ देख लेगी। देखेगी भी और गलत भी समझेगी। लेकिन अब उसे एक्सप्लेनेशन देने का क्या फायदा। फिर भी अव्यांश ने कहा "दोस्त है मेरी, अपने हस्बैंड के साथ आई थी।"


 निशी ने और भी ज्यादा भौंहे सिकोड़ कर कहा "मतलब शादीशुदा लड़कियों के साथ भी? सीरियसली! किस टाइप के इंसान हो तुम?"


 मिश्रा जी ने पीछे से आते हुए कहा "आते ही लड़ना शुरू कर दिया तुमने? अब किस बात की लड़ाई है भाई?"


 अव्यांश ने मुस्कुराकर कहा "देखो ना पापा! आपकी बेटी बस कंप्लेंट करने के अलावा और कुछ नहीं जानती। मुझे काम था इसलिए मैं घर से पहले निकल गया था और टाइम निकाल कर मैं यहां चला आया। पर इसे नाराजगी इस बात की है कि मैं इसे लेने घर नहीं गया। बस इसी बात से लड़ रही है।"


 मिश्रा जी ने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा "कोई बात नहीं बेटा, तुम जानती हो उसे कितने काम होते हैं। इस तरह लड़ना भी जरूरी होता है लेकिन थोड़ी समझदारी भी जरूरी होती है। कोई बात नहीं, तुम्हें लेने आ जाएगा।"


 सुहानी ने भी मिश्रा जी की हां में हां मिला कर कहा "अरे बिल्कुल! इस बार जाएगा तो घर जमाई बना कर रख लेना और अपने मम्मी पापा की अच्छे से सेवा करवाना जैसे तुम करती हो। ये रिश्ता तो दोनों का जुड़ा है ना, सास ससुर दोनों के हैं। और तुम्हें तो पता ही है इसको खाना बनाना कितना अच्छा लगता है। रेनू आंटी को थोड़ी सी राहत मिल जाएगी। जब रिश्ता दोनों का जुड़ा है सास ससुर दोनों के हैं तो दोनों इक्वली सेवा करें, तभी तो रिश्ता बराबरी का होगा।"


 अव्यांश बस मुस्कुरा दिया और अपनी घड़ी की तरफ देखा। सुहानी समझ गई उसका इशारा। निर्वाण ने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोल तो सुहानी ने उसे चुप कराते हुए कहा "मुझे घर जाना है।"


 निर्वाण को शायद कुछ जरूरी काम था जो अव्यांश से करना था लेकिन सुहानी ने उसे कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया और घर जाने की जिद करने लगी। निर्वाण ने कहा "अगर तुझे वॉशरूम जाना है तो यही चल जा।"


 सुहानी ने निर्वाण को किक मारी और कहा "तेरा दिमाग खराब है? तुझे किसने कहा? मुझे काम है यार मेरा फोन छूट गया है। अपने लिए जॉब देखी है मैंने, उसी के बारे में जानना है।"


जॉब! वह भी सुहानी की!! ये यकीन करने वाली बात ही नहीं थी। जब उसे लगा कि कोई भी उसकी बात पर यकीन नहीं कर रहा तो सुहानी ने कहा "यार! प्रेरणा बाहर इंतजार कर रही है, उसे कुछ काम था। अब यह मत पूछना कौन सा काम। वह मैं तुम्हें नहीं बता सकती। यह सिर्फ उसने मुझे बताई है इसलिए तू चल।" सुहानी ने निर्वाण का हाथ पकड़ा और उसे खींचकर अपने साथ ले गई। निर्वाण उसे रुकने का कहता रह गया लेकिन सुहानी अपनी ही जिद्द पर उतर आई थी।


 फिर रेनू जी को सुहानी की यह हरकत बहुत अजीब लगी लेकिन वह भी सब समझ गई। उन्होंने मिश्रा जी की बांह पकड़ी और कहा "मुझे मैगजीन लेना है। एक बार चलते ना। फ्लाइट में मैं बोर हो जाती हूं और मुझे अपने पसंद का कुछ मिलता भी नहीं है। चलिए!"


रेनू जी ने आंखों ही आंखों में इशारा किया। मिश्रा जी ने बिना किसी इनकार के रेनू जी के साथ चल दिए। अब वहां रह गए तो सिर्फ अव्यांश और निशि, अकेले।


 क्या यह दोनों अपने बीच के सारे गलतफहमियां दूर कर पाएंगे?

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