सुन मेरे हमसफर 292

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    काया की जब आंख खुली तो उसने खिड़की से बाहर देखा। आधा उजाला आध अंधेरा हो रखा था। उसने अपनी आंखें मलते हुए पूछा "क्या सुबह हो रही है या शाम है?"


 ऋषभ जो उसके बगल में सोया हुआ था। उसने काया को अपनी बाहों में खींचा और कहा "क्या फर्क पड़ता है, सुबह हो या शाम।"


काया इस टाइम रोमांस के मूड में बिल्कुल नहीं थी। उसने ऋषभ के हाथ पर मारा और कहा, "भले तुम्हें फर्क नहीं पड़ता लेकिन मुझे फर्क पड़ता है और बहुत फर्क पड़ता है। दी की शादी हो गई, मुझे घर जाना था और तुम मुझे उठकर यहां ले आए। घर वालों को पता भी नहीं है कि मैं इस वक्त कहां हूं। मुझे खुद नहीं पता मैं इस वक्त कहां हूं।" काया की आवाज बहुत ज्यादा आलसाई हुई लग रही थी और उसे बोलने में काफी ज्यादा मेहनत भी लग रही थी। आंखें थी कि खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी।


 ऋषभ ने मुस्कुरा कर कहा "सुहानी को बता दिया था मैंने कि तुम मेरे साथ हो। उसने घर पर कोई ना कोई बहाना बना दिया होगा। चिंता मत करो और सो जाओ।"


 काया साइड टेबल से अपना फोन उठाया और टाइम देखकर कहा "मैं नहीं सोने वाली, मुझे घर जाना होगा। तुम्हे सोना है तो सो जाओ।" काया ने अपनी कमर से ऋषभ का हाथ हटाया और बेड से उठ गई।


 ऋषभ ने अपने साइड से काया का दुपट्टा लेकर उसकी तरफ उछाल दिया और कहा "ठीक है तो तुम फ्रेश हो जाओ मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं।" काया अपना दुपट्टा लेकर बाथरूम में चली गई यार ऋषभ एक बार फिर सोने की कोशिश करने लगा। इतने में उसका फोन बजा।


 इस टाइम ऋषभ का फोन रिसीव करने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था लेकिन रिंगटोन से वह समझ गया था कि यह फोन किसका हो सकता था। उसने बिना देखे कॉल रिसीव किया और कहा "गुड मॉर्निंग डैड!"


" शाम के वक्त मॉर्निंग कौन बोलता है गधे!" रूद्र ने ऋषभ को ताना मारते हुए कहा "और तू है कहां पर? कब से तुझे ढूंढ रहा हूं, कब से हम सब तेरा इंतजार कर रहे हैं और तू है कि गायब है! कहां है तू अभी?"


ऋषभ ने अनमने ढंग से कहा "डैड! पूरे रात शादी में जागने के बाद इंसान क्या करेगा? सोएगा ही! आप और क्या एक्सपेक्ट कर सकते हो! सब आप की तरह एनर्जेटिक नहीं हो सकते।"


 रूद्र ने ऋषभ को ताना दिया "इसीलिए कहता हूं थोड़ा एक्सरसाइज किया कर थोड़ा सुबह जल्दी उठ जाया कर, बॉडी में एक्टिवनेस बनी रहेगी लेकिन तू है कि...! छोड़ ये सब, तू जहां कहीं भी है जल्दी से घर आ जा, तेरे और काया के रिश्ते के बारे में....."


 इससे पहले कि रूद्र अपनी बात पूरी कर पाते, काया का फोन बज उठा। यह रिंगटोन जब रुद्र के कान में पड़ी तो उसका माथा ठनका। उन्होंने पूछा "यह लड़कियों वाला रिंगटोन कब से लगाना शुरू कर दिया तूने?"


 ऋषभ ने काया का फोन उठा कर देखा तो सुहानी उसे कॉल कर रही थी। उसने जल्दी से फोन को साइलेंट पर किया और रुद्र से कहा "क्या डैड! मैं क्यों ऐसा रिंगटोन लगाऊंगा! मैं आपसे बात कर रहा हूं तो मेरा रिंगटोन आपको कैसे सुनाई दे सकता है?"


रूद्र अपने बेटे को बहुत अच्छे से जानता था। उसने पूछा "तो फिर ये फोन की घंटी किसकी है?"


 अपने फोन की रिंगटोन सुनकर काया बाथरूम से निकली और उसने ऋषभ से पूछा "किसका फोन था?"


 ऋषभ ने अपना सर पीट लिया। उसे ऐसे परेशान देख काया ने पूछा "क्या हुआ तुम इतने अपसेट क्यों हो?"


रूद्र ने भी यही सवाल किया "हां तो बता, तू इतना अपसेट क्यों है? जवाब दे! काया है तेरे साथ?"


 ऋषभ क्या ही जवाब देता। उसने अपने एक हाथ से अपने बाल नोचे और कहा "हां वह बहुत ज्यादा थकी हुई थी तो मैं उसे अपने फ्लैट पर ले आया था। हम बस सो रहे थे।"


 रुद्र इस सबसे अनजान तो नहीं थे। उसने पूछा "बेटा तू जानता है ना इसका मतलब क्या है?"


ऋषभ ने भी झुंझला कर कहा "हां डैड मैं जानता हूं इसका मतलब क्या है लेकिन मेरे कहने का वह मतलब बिल्कुल नहीं है। अच्छे से जानता हूं मैं आपके दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही है, तो बस जल्दी से गैस को बंद कर दीजिए और उसमें मसाले डालने की जरूरत नहीं है और सादी खिचड़ी वैसे ही आपको पसंद नहीं आती तो उसे चूल्हे से उतर ही दीजिए।"


 रूद्र ने मुस्कुरा कर कहा "चाहे कितना भी बदमाश हो जा लेकिन अपनी हद मत भूलना। वह तेरी होने वाली पत्नी है, हुई नहीं है।"


 ऋषभ ने भी सर हिला कर कहा "जानता हूं। काया को उसके घर छोड़ने जा रहा हूं। बस यह थोड़ी फ्रेश हो जाए तो उसको घर ड्रॉप करके मैं आपसे मिलता हूं।" ऋषभ की आवाज अभी भी थोड़ी उलझी हुई थी। उसने फोन रखा और काया से कहा "एटलीस्ट देख तो लेती कि मैं किसी से फोन पर बात कर रहा हूं! डैड का फोन था, तुम्हारी आवाज सुनकर पूछ रहे थे तुम्हारे बारे में।"


काया ने अपनी उंगलिया दातों तले दबा ली और कहा "मैं फ्रेश होकर आती हूं।" और जल्दी से बाथरूम में भाग गई।





शिवि कई घंटे के बाद ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकली। इतनी देर में वह पूरी तरह थक गई थी। भले ही पार्थ ने सर्जरी से पहले एक स्ट्रांग कॉफ़ी लाकर दिया था लेकिन थकान के कारण अभी भी उसे बहुत ज्यादा नींद आ रही थी। वो जब ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकली तो उसने कुणाल को बाहर बेंच पर ही आंखें बंद करके बैठा हुआ पाया। वह भी जाकर उसी के बगल में बैठकर लेकिन कुणाल ने कोई हरकत नहीं की। तब जाकर शिवि को एहसास हुआ की कुणाल वहीं बैठे-बैठे सो रहा है। वह भी आंखें बंद करके वहीं पर बैठ गई।


 एक नर्स ने गर्म पानी का कप लाकर शिवि की तरफ बढ़ाया और कहा "डॉक्टर! इसको पीकर थोड़ा सा रिलैक्स हो जाइए, मैं आपके लिए कॉफी मंगवाती हूं।" नर्स की आवाज सुनकर कुणाल की नींद खुली उसने हर बड़ा कर देखा तो शिवि को अपने बगल में पाया।


 शिवि के चेहरे पर थकान साफ नजर आ रही थी। कुणाल ने शिवि के सिर को छूकर पूछा "तुम ठीक हो? चलो चलकर थोड़ा सा आराम कर लो।"


 शिवि ने पूछा "तुम यहां क्या कर रहे थे? मेरे कैबिन में जाकर आराम कर सकते थे ना? तो फिर यहां क्यों बैठे हो?"


 कुणाल ने अपनी पोजीशन ठीक करते हुए कहा "कुछ नहीं मैं बस...... यहां बस....... आई मीन पता नहीं क्यों, मैं तुम्हें छोड़कर जा नही पाया इसीलिए मैं बस यही पर बैठ गया और कब मेरी आंख लग गई मुझे पता ही नहीं चला। तुम बताओ, कैसा रहा सब?"


 शिवि ने गर्म पानी खत्म किया और खाली कप नर्स को देकर कहा "सब अच्छा रहा, पर्फेक्ट, जैसा हम चाहते थे। हां थोड़ी कॉम्प्लिकेशन थी लेकिन सब ठीक हो गया। डॉक्टर जोसेफ काफी खुश थे और हम सब भी उनके साथ काम करके काफी कुछ सीखने को मिला। तुम चल करके केबिन में बैठो, मैं भी थोड़ा सा फ्रेश होने जाऊंगी। लेकिन यह पार्थ कहां है? मैं उसे देख कर आती हूं।"


पार्थ का नाम सुनकर कुणाल की भौंहे टेढ़ी हो गई लेकिन शिवि ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। वह उठी और पार्थ के केबिन की तरफ जाने को हुई लेकिन उसे अस्पताल का माहौल काफी अजीब सा लगा। इतना सन्नाटा तो नहीं होता था अस्पताल में। उसने सामने से आ रही एक नर्स से सवाल किया "डॉक्टर पार्थ कहां है? और यहां कुछ हुआ है क्या? कहीं यह डॉक्टर जोसेफ के आने की खुशी में तो इतना सन्नाटा नहीं लग रहा?"


 नर्स ने जबरदस्ती मुस्कुरा कर कहा "डॉक्टर शिवि! वह मैम आई हुई है, आपकी मम्मी, मीटिंग रूम में!"


 नर्स के चेहरे पर जो घबराहट थी उसे देखकर शिवि समझ गई कि यहां क्या चल रहा था। उसने अपना सर पकड़ लिया और मीटिंग रूम की तरफ दौड़ी। कुणाल भी उसके पीछे-पीछे आ रहा था उसे भी लगा कुछ गड़बड़ है इसलिए वह भी शिवि के पीछे दौड़ पड़ा।



 मित्तल निवास में,


 निशि ने बड़े भारी मन से अपना बैग उठाया और कमरे से बाहर निकली। जाने से पहले उसने एक बार अव्यांश को कॉल लगाया लेकिन अव्यांश ने फोन नहीं उठाया। पिछले 1 घंटे में उसने कितनी ही बार अव्यांश को कॉल लगा दिया था। वह नाराज भी थी और अव्यांश से बात भी करना चाह रही थी। अपने ईगो को साइड रखकर उसने अपनी तरफ से पहल की थी लेकिन अव्यांश था कि अपनी तरफ आने का हर रास्ता उसने बंद कर रखा था।


 निशी बुझे मन से नीचे चली आई जहां सभी उसका इंतजार कर रहे थे। रेनू जी और मिश्रा जी पहले से ही तैयार खड़े थे। सिया ने कुछ गिफ्ट बॉक्स निशी की तरफ बढ़ते हुए कहा "यह तुम्हारे कजन के लिए, और उसकी फैमिली के लिए। बाकी तुम कुछ भी उसे अपनी तरफ से देना चाहो तो सोचना मत।" सिया ने अपने पास से एक ब्लैक कार्ड निकाला और निशि की तरफ बढ़ा दिया जिसका साफ मतलब था कि निशी कुछ भी खरीद सकती थी।


 दादी का दिल रखने के लिए निशि ने उनसे वह कार्ड तो ले लिया लेकिन वह जानती थी कि जब अव्यांश से ही उसका रिश्ता नहीं होगा तो फिर इस पर उसका क्या हक। उसने नजर उठा कर उस कमरे की तरफ देखा जहां वह अव्यांश के साथ आई थी। जब इस घर में पहली बार उसने कदम रखा था, वो डर, वो घबराहट आज बेचैनी बनकर उसके साथ जा रही थी। उसे नहीं जाना था यहां से।

    



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