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सुन मेरे हमसफर 196

196      सुहानी भागते हुए कई और निशी के हाथ से हल्दी का कटोरा लेते हुए बोली "ये तुम मुझे दो। मेरे पास तुम्हारे लिए दूसरा काम है।"     निशि को डर लगा कि कहीं हल्दी का कटोरा गिरकर छूट न जाए। लेकिन फिर शांत होकर बोली "हां बताओ क्या काम है।"     सुहानी को तो पता ही नहीं था की बोलना क्या है बहाना क्या बनाना है। उसने अपनी आंखें बंद की और अपने सर पर दो मुक्का मार कर बोली "तुम.....! हां तुम! तुम  ना एक काम करो....... एक काम करो वहां... वहां पीछे तरफ एक टोकरी रखा हुआ है, उसमें कुछ गुलाब के फूल है वो ले आओ। यह देखो, हल्दी में तो गुलाब की पंखुड़ियां रखी जाएगी ना?"     काया उसे गुलाब की पंखुड़ियां दिखा कर बोली "यही पर है, कहीं जाने की जरूरत नहीं है।"      सुहानी ने अपने सर पर हाथ मारा। उसका तो दिल कर रहा था कि वो काया का सर फोड़ दे लेकिन वो जबरदस्ती मुस्कुरा कर बोली "हां मैं जानती हूं, यहां पर है लेकिन वह क्या है ना, हल्दी में थोड़ा फ्रेश पंखुड़ी होगी ना तो ज्यादा अच्छा रहेगा।"     काया गुलाब की पंखुड़ियां हाथ में लेकर बोली "ये देख कितनी फ्रेश

सुन मेरे हमसफर 195

195      अंशु अपने कमरे में तैयार हो रहा था जब उसका फोन बजा। देखा तो समर्थ उसे कॉल कर रहा था। उसके फोन उठाते ही समर्थ थोड़ा गुस्से में बोला "कहां है तू? यहां घर में कब से तेरा इंतजार हो रहा है और तू है कि जब तेरी जरूरत थी तभी तू यहां से निकल गया। है कहां तू? वेन्यू पर फोन किया लेकिन तू वहां नहीं था। वहां से तो पहले ही निकल गया था। कहां है अभी?"       समर्थ के इतने सारे सवाल पर अंशु कुछ बोली नहीं पा रहा था और ना ही समर्थ चुप होने का नाम ले रहा था। बड़ी मुश्किल से अंशु ने कहा "भाई! भाई रिलैक्स!! इतना हाईपर क्यों हो रहे हो आप? घर पर हूं, तैयार होने आया हूं बस निकल रहा हूं।"       समर्थ के पास इतना पेशेंस नहीं था। उसने कहा "तुझे बस अपने तैयार होने की पड़ी है। अभी तक मैं तैयार नहीं हुआ उसका क्या? जल्दी कर। यहां हल्दी का टाइम हो गया है। कुणाल के पेरेंट्स की तरफ से हल्दी आती ही होगी।"      अंशु अजीब सी शक्ल बनाकर बोल "क्यों? उनके घर से हल्दी क्यों आएगी? अपने घर में इतनी सारी हल्दी रखी हुई थी, उसका क्या?"      समर्थ अपने सर पर हाथ मार कर बोला "तू बे

सुन मेरे हमसफर 194

  194      कुहू अपने कमरे में तैयार हो रही थी। नीचे से आई आवाजे उसके कान में भी पड़ रही थी और वह जल्दी-जल्दी अपने कपड़े को ठीक करने में लगी हुई थी। उसकी चित्रा मॉम नीचे आई थी और उसे जल्दी से जल्दी उनके पास जाना था, और इसी हड़बड़ी में वह बार-बार साड़ी पहनने में गलती कर रही थी। उसकी प्लेट ठीक से बैठी नहीं रही थी।      इतने में नेत्रा बिना नॉक किए उसके कमरे में घुसी और बोली "मैं हेल्प कर दू?"     उसकी आवाज सुनकर ही कुहू का मूड खराब हो गया, लेकिन इस वक्त वो उससे कोई बहस नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने नेत्रा को देखकर भी अनदेखा कर दिया। नेत्रा उसके पास आई और साड़ी के प्लेट को ठीक करते हुए बोली "हर काम हम अकेले नहीं कर सकते और हर काम वैसे ही हो जैसे हम चाहते हैं, यह जरूरी तो नहीं। कभी-कभी हमें लगता है हम जीत जायेंगे लेकिन फेल हो जाते हैं।"     कुहू ने नेत्रा को घूर कर देखा। नेत्रा बिना देखे ही ये महसूस कर सकती थी। वह मुस्कुरा कर बोली "ऐसे मत देखो वरना तुम्हें मुझसे प्यार हो जाएगा। तो फिर बेचारे कुणाल का क्या होगा?" फिर अपने ही दांतों तले जीभ दबा कर बोली "मैं

सुन मेरे हमसफर 193

  193       सुबह-सुबह सुहानी ने निशी को जगाया। वह अव्यांश को इंतजार करते हुए वही बिस्तर के सिरहाने टेक लगाकर सो गई थी। उसे ऐसे सोते देख सुहानी को बहुत हैरानी हुई। उसने पूछा "क्या हुआ? तुम ऐसे क्यों सो रही हो?"      निशि कुछ कह नहीं पाई। उसने कमरे में चारों तरफ देखा लेकिन अव्यांश के वहां होने का कोई कोई निशान नहीं था। 'मतलब वह कल रात घर नहीं आया? या फिर आया लेकिन किसी और कमरे में है?' वह कुछ पूछ पाती उससे पहले ही सुहानी अपने सर पर हाथ मार कर बोली "हे भगवान! लगता है किसी ने तुम्हें बताया नहीं। डैड भी ना! उम्र हो गई है उनकी, भुलक्कड़ हो गए हैं।"    निशी ने सवालिया नजरों से सुहानी को देखा तो सुहानी बोली "वह क्या है ना, डैड ने बताया आज सुबह ही कि अंशु कल रात को कुहू दी के घर पर रुक गया था। अर्ली मॉर्निंग से ही सारे अरेंजमेंट देखने थे। वेडिंग प्लानर वाले ने जो भी किया है, जब तक खुद से ना देखे तो अजीब लगता है। कब कहां यह लोग गड़बड़ कर दे कह नहीं सकते। इसलिए अंशु वहीं रुक गया ताकि सुबह-सुबह उसे यहां से उठकर जाना ना पड़े। तुम उठो और जल्दी से तैयार हो जाओ। हमें भ

सुन मेरे हमसफर 192

  192      कुहू अपने कमरे में चुपचाप बैठी हुई थी। कुछ वक्त पहले तक जिस चेहरे पर रौनक थी इस वक्त सिर्फ और सिर्फ उदासी नजर आ रही थी। काव्या ने दरवाजे पर दस्तक दी तो कुहू ने उठकर दरवाजा खोला।     काव्या अंदर आते हुए बोली "यह कल हल्दी में पहनने के लिए तेरे कपड़े हैं इनको संभाल के रख और सुबह-सुबह उठकर तैयार हो जाना। देर तक सोने की आदत अब छोड़ दे। ससुराल जा रही है, वहां तो सुबह उठना पड़ेगा।" काव्या ने कुहू के चेहरे को छूकर चूम लिया और उसकी नजर उतार कर बोली "कितनी जल्दी बड़ी हो गई है तू! यकीन ही नहीं होता कि अब तू चली जायेगी।"    कुहू जाकर अपनी मां के गले लग गई और बोली "दिन बदलते वक्त नहीं लगता मम्मी! इंसान की जिंदगी पल में कब करवट ले ले कुछ पता नहीं चलता।"      काव्या को उसकी बातें थोड़ी अजीब सी लगी। उन्होंने कुहू के सर पर हाथ फेरा और बोली "वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता और परिवर्तन तो संसार का नियम है। कभी मैं मां पापा के घर से विदा होकर आई थी और अब तेरी बारी है। मां पापा को हमारी शादी में कैसा लगा होगा ये अब हम महसूस कर रहे हैं।"    कुहू उनसे अलग हुई त

सुन मेरे हमसफर 191

 191      अव्यांश मायूस होकर बेंच पर बैठा हुआ था। वक्त कैसे गुजरा उसे कुछ पता ही नहीं चला। दोपहर से शाम, शाम से रात हो चुकी थी लेकिन अव्यांश को तो जैसे कुछ होश ही नहीं था। अपने और निशि के रिश्ते को लेकर वह इतना ज्यादा उलझा हुआ था, निशी की बातें बार-बार उसके कानों को चुभ रही थी। कितना कुछ कह गई थी वह और उसकी आंखें! उन आंखों ने तो बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह दिया था। वह बातें जो वह खुलकर ना बोल पाई थी।     अव्यांश की आंखों से आंसू उसके गालों पर लुढ़क आए और धीरे-धीरे नीचे। लेकिन उन आंसुओं को किसी ने अपनी हथेली में थाम लिया। तब जाकर अव्यांश को होश आया और उसने चौक कर देखा तो उसके डैड उसके सामने खड़े थे।     सारांश ने अव्यांश के कंधे पर हाथ रखा और वही बगल में बैठ गए। अव्यांश अपनी परेशानी उन पर जाहिर नहीं करना चाहता था इसलिए उसने नज़रें चुराकर पूछा "आप यहां इस वक्त? सारे लोग सो गए क्या?"      अव्यांश ने अपना फोन इधर-उधर पॉकेट में ढूंढा लेकिन उसका फोन उसे नहीं मिला। सारांश ने उसका फोन आगे बढ़ा दिया।     आसमान इतना काला पड़ चुका था कि अव्यांश को वक्त का अंदाजा हो चुका था। सारांश बोले &qu

सुन मेरे हमसफर 190

  190     हालात बहुत अजीब हो गए थे। कौन खुश था कौन दुखी, ये समझना मुश्किल हो रहा था। कुहू खुश थी, ये जानते हुए भी कि आगे उसे सिर्फ तकलीफ होगी फिर भी एक उम्मीद से उसने कुणाल से अपनी जिद मनवा ही ली। लेकिन इस सब में कुणाल का क्या? क्या वह कभी शिवि से अपने प्यार का इजहार कर पाएगा? शायद नहीं। क्योंकि इसके बाद उसका और शिवि का रिश्ता कुछ और होगा। और कुहू से जुड़ने के बाद शिवि की तरफ देखना क्या, उसके बारे में सोचना भी गलत होगा। कुणाल ये बात बहुत अच्छे से जानता था लेकिन कुहू को कौन समझाएं!     घर में सभी खाना खाकर सोने की तैयारी में थे। उससे पहले हॉल में बैठकर कल हल्दी के रस्म के बारे में बात कर रहे थे। यूं तो सारी तैयारियां हो चुकी थी लेकिन कुणाल के एक्सीडेंट के कारण थोड़े बहुत बदलाव करने रह गए थे। सिया ने से पूछा "शिवि से बात हुई तुम्हारी, हॉस्पिटल वाले कुणाल को कब डिस्चार्ज कर रहे हैं?"       सारांश बोले "इस बारे में तो अभी कुछ कह नहीं सकते। कुणाल की कंडीशन देखकर ही वह लोग कुणाल को डिस्चार्ज करेंगे। अगर जल्दी रिकवर कर जाता है तो फिर शादी तक वह हमारे बीच ही होगा। वरना शादी का म

सुन मेरे हमसफर 189

  189       निशि खुद ही परेशान होती और फिर खुद को ही समझाती। उसे अव्यांश की कही आखिरी बात याद आई "कुहू दी की शादी तक मैं इस घर में कोई तमाशा नहीं चाहता। बस तब तक खुद को एडजस्ट कर लो, उसके बाद तुम्हें जो करना है तुम वह कर सकती हो। और एक और सबसे जरूरी बात! इस बारे में घर वालों को कुछ पता नहीं चलना चाहिए। मैं नहीं चाहता सबकी खुशियों में कोई अड़चन आए।"      निशि ने कुछ सोच कर एक बार फिर अव्यांश का नंबर डायल किया लेकिन इस बार भी उसका नंबर बंद ही आ रहा था। उसने अपने सर पर हाथ मारा और बोली "जाने दे उसे। अगर वह तेरे सामने रहेगा तो तुझे ही तकलीफ होगी। उसका घर है उसकी फैमिली है, कहां जाएगा! वह वैसे भी, कुहू दी की शादी है, घर छोड़कर कहीं जा भी नहीं सकता।" इतना सोच कर निशी थोड़ा निश्चित हो गई।     शगुन के समय कार्तिक सिंघानिया भी अपने दोस्त के साथ मौजूद था। शगुन के बाद जब सब लोग जाने लगे तो सारांश ने कार्तिक सिंघानिया से पूछा "तुम्हारे मॉम डैड कब तक इंडिया वापस आ रहे हैं?"      कार्तिक सिंघानिया ने बिना सोचे जवाब दिया "अगले कुछ दिनों में। हो सकता है शादी वाले दिन

सुन मेरे हमसफर 188

 188       कुणाल अपनी ही बेबसी पर मुस्कुरा दिया था और यही मुस्कान देखकर शिवि वहां से वापस चली आई थी। कुछ देर केबिन में इधर से उधर टहलने के बाद जब उसका मन नहीं लगा तो वह पीछे गार्डन एरिया में चली आई।     लेकिन पार्थ ने उसे वहां चैन से नहीं रहने दिया। उसने शिवि के माथे पर टपरी मारी और आकर उसके बगल में बैठ गया। शिवि को कोई रिएक्शन ना देते देख उसने सामने से शिवि की आंखों पर अपना हाथ रख दिया और बोला "पहचानो कौन?"       शिवि ने पार्थ का हाथ पकड़ कर नीचे किया और बोली "सॉरी! मुझे तो पता ही नहीं कि आप कौन हैं। कृपया आप अपना परिचय देंगे?"     पार्थ हंसते हुए बोला "जिस तरह तुम किसी और दुनिया में खोई हो, मुझे तुमसे इसी प्रश्न की आशा थी।"      शिवि मुंह बनाकर बोली "अच्छा! तो अब तुम किसी आशा के पीछे पड़े हो? आने दो प्रेरणा को, फिर बताती हूं मैं। एक्चुअली, उसके आने का क्यों इंतजार करूं? मैं अभी उसे फोन करके बताती हूं।"     शिवि ने अपना फोन निकाला और नंबर डायल करने को हुई। लेकिन पार्थ ने उसका फोन छीन लिया और ऑफ करके बोला "क्या यार! आजकल क्या कोई शुद्ध हिंदी

सुन मेरे हमसफर 187

  187      शिवि कुहू को लेकर दूसरे कमरे में पहुंची तो कुहू अपना हाथ छुड़ाकर बोली "सब ठीक है शिवि, तू परेशान क्यों हो रही है?"     शिवि कहना तो बहुत कुछ चाह रही थी लेकिन कुछ कह नहीं पा रही थी। कुहू ने जाकर दरवाजा बंद किया और शिवि की तरफ पलट कर बोली "शादी का माहौल है। मैं जो चाह रही हूं वह हो रहा है। कुणाल को इस रिश्ते से कोई प्रॉब्लम नहीं है इसलिए तू भी इसके बारे में ज्यादा मत सोच। जो हो रहा है होने दे।"    शिवि ने कुहू को दोनों कंधे से पकड़ कर कहा "कैसे हो जाने दूं दी! यहां बात मेरी बहन की खुशियों की है। मैं जानती हूं आप कभी खुश नहीं रह सकती।"       कुहू उसका हाथ अपने कंधे से हटाकर बोली "देख शिवि! अगर तु मेरी खुशी चाहती है तो इस शादी को हो जाने दे। इस वक्त अगर यह रिश्ता टूटा तो दोनों परिवारों की बदनामी होगी और मैं ऐसा कुछ नहीं चाहती।"      शिवि ने पूछा "अपने कुणाल से बात की?"     कुहू के चेहरे पर अचानक ही रौनक आ गई। वह किसी बच्चों की तरह खुश होकर बोली "कुणाल! कुणाल से मेरी बात हुई तो! तू इसी टेंशन में थी ना कि मैं कुणाल से बात नहीं