सुन मेरे हमसफर 187

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     शिवि कुहू को लेकर दूसरे कमरे में पहुंची तो कुहू अपना हाथ छुड़ाकर बोली "सब ठीक है शिवि, तू परेशान क्यों हो रही है?"


    शिवि कहना तो बहुत कुछ चाह रही थी लेकिन कुछ कह नहीं पा रही थी। कुहू ने जाकर दरवाजा बंद किया और शिवि की तरफ पलट कर बोली "शादी का माहौल है। मैं जो चाह रही हूं वह हो रहा है। कुणाल को इस रिश्ते से कोई प्रॉब्लम नहीं है इसलिए तू भी इसके बारे में ज्यादा मत सोच। जो हो रहा है होने दे।"


   शिवि ने कुहू को दोनों कंधे से पकड़ कर कहा "कैसे हो जाने दूं दी! यहां बात मेरी बहन की खुशियों की है। मैं जानती हूं आप कभी खुश नहीं रह सकती।"


      कुहू उसका हाथ अपने कंधे से हटाकर बोली "देख शिवि! अगर तु मेरी खुशी चाहती है तो इस शादी को हो जाने दे। इस वक्त अगर यह रिश्ता टूटा तो दोनों परिवारों की बदनामी होगी और मैं ऐसा कुछ नहीं चाहती।"


     शिवि ने पूछा "अपने कुणाल से बात की?"


    कुहू के चेहरे पर अचानक ही रौनक आ गई। वह किसी बच्चों की तरह खुश होकर बोली "कुणाल! कुणाल से मेरी बात हुई तो! तू इसी टेंशन में थी ना कि मैं कुणाल से बात नहीं कर रही थी। मैं बेवकूफ थी जो बिना कारण उससे दूर भाग रही थी। मुझे तो बहुत पहले उससे बात कर लेनी चाहिए थी। घबराने वाली तो बात ही नहीं थी। तू भी ना बेवजह परेशान हो रही थी।"


     शिवि ने दोबारा पूछ "दी! आपने कुणाल से बात की? कुछ कहा उसने आपसे? क्या कहा, क्या बात हुई आपकी कुणाल से?"


    कुहू चहकते हुए बोली "बात की मैंने उससे! उसने मुझे बताया कि वह किसी और से प्यार करता है, लेकिन वह मेरे साथ शादी करने के लिए तैयार है। देख शिवि! माना वह किसी और से प्यार करता है और उसे भूल नहीं सकता, लेकिन अब तक वह अकेले कोशिश कर रहा था। शादी के बाद हम दोनों साथ में कोशिश करेंगे। देखना, साथ रहते हुए उसे मुझसे प्यार हो ही जाएगा। बस कुछ टाइम की जी तो बात है।"


     शिवि को लगा, कुहू को समझाना अब पत्थर पर सर फोड़ने के बराबर है। कुहू बोली "अगर तुझे कुछ और नहीं कहना है तो मैं चलती हूं। तैयार होना है मुझे।"


     कुहू दरवाजा खोल कर बाहर निकलने लगी, फिर पलट कर बोली "तू भी जा कर तैयार हो जा। मेरी शादी में तुझे सबसे खूबसूरत लगना है। ऐसे ही बेढंग कपड़े पहनकर मत आ जाना।"


    कुहू कहां से चली गई। शिवि अपना सर पकड़कर वहीं बैठ गई। एक पागल और दूसरा महा पागल! दोनों ही अपनी लाइफ स्पॉइल करने को तैयार है तो फिर मैं क्या कर सकती हूं! अगर आप खुश हो तो फिर मैं भी खुश हूं। पर क्या मुझे खुश होना चाहिए? और क्या मैं वाकई खुश हूं? पता नहीं! भगवान! बचा लो मुझे।' 


    शिवि कुछ देर रुकने के बाद वहां से जाने लगी तो काव्या ने उसे रोका "शिवि बेटा! इस वक्त कहां जा रही हो? और अभी तक तैयार क्यों नहीं हुई?"


      शिवि क्या ही कहती! उसने बहाना बनाते हुए कहा "वह मैं घर जा रही थी। तैयार होकर सीधे यहीं आऊंगी। शगुन की रस्म तो यहीं पर होगी ना?"


     सिया हंसते हुए बोली "बिल्कुल नहीं! शगुन की रस्म हॉस्पिटल में होगी। कुणाल वहीं है ना! और उसके बिना कैसे हो कि यह रस्म!"


    शिवि वैसे ही परेशान थी। उसने कहा "हां! फिर तो शादी का मंडप भी अस्पताल में लगवा देते हैं। सारे मुफ्त के बाराती भी मिल जाएंगे।" अवनी हंस पड़ी।


   शिवि वहां से निकल गई। काव्या को उसकी हरकत थोड़ी अटपटी लगी और श्यामा को भी। काव्या ने पूछा "ये इतना परेशान क्यों लग रही है? अस्पताल में कुछ हुआ है क्या?"


    श्यामा खुद नहीं जानती थी कि शिवि के दिमाग में क्या चल रहा है। लेकिन उन्हें अच्छे से पता था कि कुहू के साथ क्या हो रहा है। वह बोली "पता नहीं। आजकल के बच्चों का कुछ पता नहीं होता, कब किस बात को लेकर क्या सोचने लगे। कभी छोटी-छोटी बातों को दिल से लगा लेते हैं और कभी बड़ी-बड़ी बातों को ऐसे ही जाने देते हैं।"




     शाम तक सभी तैयार हो चुके थे। मिस्टर एंड मिसेज रायचंद कुहू के घर पहुंचे और सभी एक साथ अस्पताल के लिए निकल पड़े। शिवि घर से ही तैयार होकर निशी के साथ अस्पताल पहुंची थी। ना तो शिवि का और ना ही निशि का मन हो रहा था इस सब में शामिल होने का। लेकिन मजबूरी थी।


     अव्यांश के साथ निशि की जो लड़ाई हुई उसके बाद अव्यांश वह एक सेकंड के लिए नहीं रुका और चला गया। घर में एक बार फिर निशी अकेले रह गई थी। शिवि खुद इतना परेशान थी कि उसे कुछ भी पूछने का ख्याल ही नहीं रहा। निशी का भी मन नहीं लग रहा था। कहने को तो उसने बहुत कुछ कह दिया था, ऐसी कड़वी बातें जो उसे नहीं करनी चाहिए थी।


     एक तरफ उसे बुरा भी लग रहा था लेकिन अव्यांश ने उसे इतना ज्यादा हर्ट किया था कि वह इस बारे में कुछ सोचना ही नहीं चाह रही थी। अपना मन बहलाने के लिए वह शिवि के साथ हॉस्पिटल तो आ गई लेकिन उसकी नजर अव्यांश को ही ढूंढ रही थी।


    कुहू बहुत ज्यादा खुश थी। बड़े चाव से वह तैयार हुई थी और कुणाल के लिए कपड़े भी उसने खुद सेलेक्ट किए थे। लेकिन कुणाल तो फिलहाल अस्पताल के कपड़ों में था। इसलिए मिसेज रायचंद ने सिल्क की चादर उसपर डाल दी। कुहू जितनी ज्यादा खुश थी, कुणाल के चेहरे पर उतनी ही उदासी थी। उसने मुस्कुराने की हर मुमकिन कोशिश की लेकिन कर नहीं पा रहा था। उसकी नजर शिवि पर गई जो वहां सिर्फ तमाशा देखने के लिए ही खड़ी थी और वह भी उसे नहीं हो पा रहा था।


    कुणाल की नजर अपने ऊपर पाकर शिवि ने नजर घुमा ली और वहां से अपने केबिन में चली गई। कुहू सब की तरफ देखकर बोली "सब लोग यहां है, बस एक चित्रा मॉम और नेत्रा नही है। चित्रा मॉम तो कल आ जाएंगी। लेकिन काश यहां नेत्रा भी होती तो और ज्यादा अच्छा लगता।"


     सबको लगा शायद कुहू अपने और नेत्रा के बीच की दूरी खत्म करना चाहती है। लेकिन सच तो सिर्फ वो ही जानती थी।

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