सुन मेरे हमसफर 188

 188




      कुणाल अपनी ही बेबसी पर मुस्कुरा दिया था और यही मुस्कान देखकर शिवि वहां से वापस चली आई थी। कुछ देर केबिन में इधर से उधर टहलने के बाद जब उसका मन नहीं लगा तो वह पीछे गार्डन एरिया में चली आई।


    लेकिन पार्थ ने उसे वहां चैन से नहीं रहने दिया। उसने शिवि के माथे पर टपरी मारी और आकर उसके बगल में बैठ गया। शिवि को कोई रिएक्शन ना देते देख उसने सामने से शिवि की आंखों पर अपना हाथ रख दिया और बोला "पहचानो कौन?"


      शिवि ने पार्थ का हाथ पकड़ कर नीचे किया और बोली "सॉरी! मुझे तो पता ही नहीं कि आप कौन हैं। कृपया आप अपना परिचय देंगे?"


    पार्थ हंसते हुए बोला "जिस तरह तुम किसी और दुनिया में खोई हो, मुझे तुमसे इसी प्रश्न की आशा थी।"


     शिवि मुंह बनाकर बोली "अच्छा! तो अब तुम किसी आशा के पीछे पड़े हो? आने दो प्रेरणा को, फिर बताती हूं मैं। एक्चुअली, उसके आने का क्यों इंतजार करूं? मैं अभी उसे फोन करके बताती हूं।"


    शिवि ने अपना फोन निकाला और नंबर डायल करने को हुई। लेकिन पार्थ ने उसका फोन छीन लिया और ऑफ करके बोला "क्या यार! आजकल क्या कोई शुद्ध हिंदी में बात नहीं कर सकता, यह खिचड़ी लैंग्वेज जरूरी है क्या? छोड़ इसे और यह बता, तुझे क्या हुआ है? आखिर इस मर्ज की दवा क्या है?"


     शिवि कुछ सोचते हुए बोली "मेरी मॉम के लिए दामाद चाहिए। मिलेगा क्या?"


    पार्थ अपने बालों में हाथ घुमाते हुए बोला "अरे मिलेगा, जरूर मिलेगा! अपने अगल-बगल देख ले, शायद तेरे बगल में ही हो।"


    शिवि ने अपने बगल में देखा तो वहां एक नन्हा सा खरगोश खेल रहा था। उसने उसे खरगोश को उठाया और बोली "आईडिया बुरा नहीं है। ये मेरे कंट्रोल में भी रहेगा और मुझे अपना घर छोड़कर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मम्मी पापा के साथ में पूरी लाइफ रहूंगी कोई कुछ नही कह पाएगा, है ना?"


    पार्थ ने अपना सर पीट लिया "तुझ जैसे पागल के लिए क्यों उसे बेचारे की बलि चढ़ाना? छोड़ उसे वरना बेवजह मारा जाएगा।"


    शिवि ने उसे खरगोश को नीचे रख दिया तो वह खरगोश वहां से उछलते हुए दूर चला गया। पार्थ शिवि का मजाक बनाते हुए बोला "देखा! तूने शादी की बात की और वह बेचारा कैसे दुम दबाकर भाग गया!"


  शिवि नाराज नहीं हुई, बल्कि पार्थ के मजाक पर वह मुस्कुरा दी। पार्थ ने गंभीर होकर पूछा "अंदर कुहू दी के शगुन की कसम चल रही है। तू यहां अकेली क्या कर रही है?"


     शिवि बोली "मेरा मन नहीं लग रहा था, इसलिए चली आई। वैसे भी अंदर जो तमाशा चल रहा है वह देखने का मुझे कोई शौक नहीं है। सब कुछ जानते हुए भी आंख बंद करके बैठी हूं मैं। ना कुछ कह सकती हूं ना देख सकती हूं। मुझे अपनी बहन पर गुस्सा आ रहा है और उससे भी ज्यादा गुस्सा आ रहा है उस आदमी पर जो सब कुछ होते हुए देख रहा है। बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था वह मेरे सामने। मैं जिससे प्यार करता हूं जिंदगी भर उसी से प्यार करूंगा, वगैरा वगैरा! ऐसी बात कर रहा था जैसे कुहू दी के लिए बस एक वो ही अच्छा सोचता है और..........! खैर छोड़ो! किसी अनजान इंसान से हम क्या एक्सपेक्ट कर सकते हैं, जिसे हम जानते नहीं पहचानते नहीं!"


     पार्थ को इस सब के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था। उसने सवालिया नजरों से शिवि की तरफ देखा तो शिवि ने उसे सारी बातें डिटेल में बता दी। पार्थ बोला "कुहू दी अगर यह सब कुछ कर रही है तो जाहिर है सोच समझ कर कर रही होगी। इतनी बेवकूफ नहीं है वह। और कुणाल! उस पर किस चीज का दबाव है जो किसी और से प्यार करने के बावजूद वो कुहू दी से शादी कर रहा है। और कुछ नहीं बस यह एक तरफा प्यार है। और ये एक तरफा प्यार का दर्द ही है जो दोनों को बांध कर रखा है। अब तू इतनी टेंशन क्यों ले रही है? साथ रहते रहते प्यार हो जाता है। जब पत्थर दिल पिघल जाते हैं यह तो फिर भी कुणाल है, उनका दोस्त। देखना, एक दिन सब ठीक हो जाएगा। और वैसे भी हमारे यहां अरेंज मैरिज का रिवाज है, लव मैरिज शायद ही कुछ लोग करते हैं।"


   पार्थ ने शिवि का हाथ पकड़ा उसे लेकर अंदर जाने लगा। शिवि बोली "वो लड़की नेत्रा नहीं है। क्या तुझे इस बारे में कुछ पता चला?"


      चलते हुए पार्थ के कदम धीमे हो गए। उसने बिना शिवि की तरफ देखें पूछा "अभी तक तो कुछ पता नहीं चला, लेकिन एक सवाल पूछना था।"


  " पूछ ना! तुझे मना किया है कभी?"


   "अगर वो लड़की तू हुई तो क्या करेगी?"


   पार्थ के सवाल पर शिवि के कदम वहीं रुक गए। पार्थ भी रुक गया और उसकी तरफ देखने लगा। शिवि हैरानी से पार्थ को देखे जा रही थी।



*****





    निशि की नजरे बार-बार अव्यांश को ढूंढ रही थी। उसके वहां न होने से निशी को बहुत बेचैनी सी महसूस हो रही थी। अव्यांश की वह आंखें जिनमें सिर्फ दर्द और उदासी भरी थी, निशी को बार-बार परेशान कर रही थी। उसने दिल से सवाल किया, 'क्या मैंने कुछ ज्यादा कर दिया? क्या मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था?' 


    लेकिन निशि का दिमाग बोला 'बिल्कुल सही किया तूने। समझता क्या है वह खुद को! जो मन में आयेगा, वह करेगा, कोई उसे रोकने वाला नहीं? और तू क्यों इतना परेशान हो रही है? नहीं आया तो नही आया! अच्छा है। नहीं देखना उसका चेहरा, बिल्कुल नहीं।' 


    निशी के दिमाग में उसे समझा तो दिया लेकिन एक बार फिर वो अव्यांश के लिए परेशान हो उठी। सारांश ने निशी के कंधे पर हाथ रखा और पूछा "निशी बेटा! अंशु कहां है?"


    निशी हड़बड़ाकर बोली "वो तो............! पता नहीं डैड! वह मुझे नहीं पता।"


     सारांश को थोड़ा शक हुआ। उन्होंने पूछा "तुम दोनों की लड़ाई हुई है क्या?"


    अब निशि क्या बताती! उसने बस अपना सर झुका लिया। लेकिन सारांश समझ रहे थे कि जरूर कुछ हुआ है। क्या हुआ है, यह तो बस अव्यांश बता सकता था। सारांश ने आगे कुछ नहीं पूछा और वहां से चले गए।


  निशी से जब रहा नहीं गया तो उसने अपना फोन लिया और अव्यांश का नंबर डायल करने लगी, लेकिन फिर रुक गई और अस्पताल के रिसेप्शन की तरफ गई। वहां रखे लैंडलाइन से उसका नंबर डायल किया लेकिन उसका फोन बंद आ रहा था।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274