सुन मेरे हमसफर 195



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     अंशु अपने कमरे में तैयार हो रहा था जब उसका फोन बजा। देखा तो समर्थ उसे कॉल कर रहा था। उसके फोन उठाते ही समर्थ थोड़ा गुस्से में बोला "कहां है तू? यहां घर में कब से तेरा इंतजार हो रहा है और तू है कि जब तेरी जरूरत थी तभी तू यहां से निकल गया। है कहां तू? वेन्यू पर फोन किया लेकिन तू वहां नहीं था। वहां से तो पहले ही निकल गया था। कहां है अभी?"


      समर्थ के इतने सारे सवाल पर अंशु कुछ बोली नहीं पा रहा था और ना ही समर्थ चुप होने का नाम ले रहा था। बड़ी मुश्किल से अंशु ने कहा "भाई! भाई रिलैक्स!! इतना हाईपर क्यों हो रहे हो आप? घर पर हूं, तैयार होने आया हूं बस निकल रहा हूं।"


      समर्थ के पास इतना पेशेंस नहीं था। उसने कहा "तुझे बस अपने तैयार होने की पड़ी है। अभी तक मैं तैयार नहीं हुआ उसका क्या? जल्दी कर। यहां हल्दी का टाइम हो गया है। कुणाल के पेरेंट्स की तरफ से हल्दी आती ही होगी।"


     अंशु अजीब सी शक्ल बनाकर बोल "क्यों? उनके घर से हल्दी क्यों आएगी? अपने घर में इतनी सारी हल्दी रखी हुई थी, उसका क्या?"


     समर्थ अपने सर पर हाथ मार कर बोला "तू बेवकूफ है, तू एक नंबर का बेवकूफ है। इतना भी नहीं पता, दुल्हन के लिए दूल्हे के घर से जल्दी आती है! अब सारी डिटेल तुझे फोन पर ही चाहिए क्या?"


     समर्थ की डांट सुन जल्दी से अंशु ने फोन साइड रखा और अपने बालों को सेट करने लगा। उसे निशी की याद आ गई। कितने अच्छे तरीके से उसने अंशु के बालों को सेट किया था। कमरे में उसकी मौजूदगी का एहसास इस कमरे को खूबसूरत बना देता था, लेकिन इस वक्त वह खुद उससे भाग रहा था। सब कुछ कैसे ठीक होगा? निशि क्या फैसला लेगी? आखिर क्या फ्यूचर है हमारा? सोचते हुए अंशु का दिल भर आया। लेकिन फिलहाल उसके पास इतना कुछ सोचने का वक्त नहीं था इसलिए उसने अपना फोन उठाया और गाड़ी की चाबी लेकर फौरन घर से निकल गया।



     निशी जब से आई थी तब से उसकी नजर अंशु को ही ढूंढ रही थी। हल्दी की रस्म में हाथ बटाते हुए उसकी नज़रें बार-बार इधर से उधर हो रही थी। सुहानी ने देखा तो उसके कंधे पर कोहनी रखकर सबसे पूछा "यह अपना अंशु कहां है?"


     उसके बोलने के स्टाइल से ही सभी लोग मुस्कुरा उठे और ऋषि ने अपनी नजर झुका ली। अवनी मुस्कुरा कर बोली "तुझे क्या करना है उससे? लगा है बेचारा काम में। तेरी तरह तैयार होकर बैठा नहीं है।"


    सुहानी नाराज होकर बोली "आप भी शुरू हो गई ना मॉम! पहले डैड कम थे जो आप भी अब अपने बेटे की साइड लेने लगे।"


   धानी उसे समझाते हुए बोली "ऐसा नहीं है बेटा! मां बाप कभी एक बच्चे की साइड नहीं लेते। बात सिर्फ इतनी है कि जब शादी ब्याह या ऐसा कोई फंक्शन होता है तो उसमें सबसे ज्यादा मेहनत लड़कों पर पड़ती है, खासकर करके बेटों पर। समर्थ को देख, सुबह से लगा हुआ है बेचारा। अभी तक वो तैयार भी नहीं हुआ। अंशु भी बोल रहा था कि वेन्यू पर कुछ काम है, बुलाया गया है इसलिए वहां गया, आता ही होगा। तुम सबसे ज्यादा उन्हें फ़िक्र है। लेकिन तुम्हें क्या काम था?"


      सुहानी मुंह बना कर बोली "काम मुझे नहीं था। वह क्या है ना........" सुहानी ने एक नजर निशी की तरफ देखा और सबसे बोली "वह क्या है ना, कल से उसे देखा नहीं है तो थोड़ा अजीब सा लग रहा है। आपको तो पता ही है दादी, जब तक हमारी लड़ाई ना हो हमारा खाना नहीं पचता।"


    कंचन बोली "हां हां समझ गई! अब जाओ और जाकर समर्थ से बोलो कि वह भी तैयार हो जाए। कुहू को दोनों भाई लेकर आएंगे ना!"


     सुहानी जल्दी से गई और समर्थ को तैयार होने के लिए कहा तो समर्थ बोला "अभी इतना टाइम नहीं है मेरे पास। अंशु आता ही होगा। एक काम कर, मेरे लिए कुछ अरेंज कर दे। देख यहां पर चाचू के पास कुछ होगा तो। या फिर चाची के बुटीक में कुछ। मैं वही पहन लूंगा।"


     सुहानी नाराज होकर बोली "क्या भाई! एक बार कह देते तो मैं आपके कपड़े नहीं ले आती? कितने पसंद से वह सूट मैंने आपके लिए सिलेक्ट की थी।"


   तभी अंशु की आवाज सुनाई पड़ी "इसलिए तो मैं ले आया।"


   समर्थ ने पलट कर अंशु की तरफ देखा जो पीला कुर्ता और लाल चूड़ीदार में बड़ा प्यारा लग रहा था और जिसके हाथ में कपड़े का बैग था। अंशु ने वह पर समर्थ के हाथ में दिया और कहा "आप जाकर तैयार हो जाओ, तब तक मैं जाकर कुहू दी को देख आता हूं।"


     सुहानी जल्दी से बोली "कुहू दी तैयार हो चुकी है और अपने कमरे में है। फिलहाल तो तू किसी और को देख।"


     अंशु ने घबरा कर पूछा "मैं किसको देखूं? कोई आई है क्या?"


    अंशु को लगा शायद उसकी कोई पुरानी गर्लफ्रेंड यहां आई होगी इसलिए वह थोड़ा घबरा गया था। निशी के सामने वैसे ही उसकी इमेज की वाट लगी हुई थी। दोनों के बीच की लड़ाई कहीं और ना बढ़ जाए, अंशु इसी से डर रहा था।


    सुहानी ने अंशु को कंधे से पकड़ा और उसे निशी की तरफ दिखा कर बोली "तेरी निशी तुझे मिलने के लिए बेचैन है। एक बार भी तूने उसे बताया नहीं कि तू रात भर कहां था। पता है, बैठे बैठे सो गई थी। तू लापरवाह है तू बेवकूफ है तुझ में सौ बुराइयां है, लेकिन कम से कम अपनी बीवी के सामने तो अपनी कमियों को सामने मत आने दे। बेचारी! कल रात को ठीक से खाना भी नहीं खाया उसने। रात भर तेरे लिए परेशान रही। तू आराम से सोया होगा ना?"


    अंशु चुपचाप रहा। उसने एक बार निशी को देखा जो इस सबके बीच हल्दी की कटोरी लेकर खड़ी थी और काया नीचे बैठी थाली सजा रही थी। सुहानी ने अंशु की आंखों के सामने चुटकी बजाई और कहा "इस तरह घूरकर मत देख यार! तेरी ही बीवी है। तू एक काम कर, पीछे जा मैं उसे भेजती हूं।" अंशु सुहानी को रोकता, उससे पहले ही सुहानी वहां से जा चुकी थी।



     निशी से मिलने का मतलब कहीं फिर से कोई बवाल ना हो। लेकिन शायद निशी को अपनी गलती का एहसास हो गया हो, यह सोचकर अव्यांश सुहानी के बताए जगह पर निकल गया और निशि का इंतजार करने लगा।



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