सुन मेरे हमसफर 191

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    अव्यांश मायूस होकर बेंच पर बैठा हुआ था। वक्त कैसे गुजरा उसे कुछ पता ही नहीं चला। दोपहर से शाम, शाम से रात हो चुकी थी लेकिन अव्यांश को तो जैसे कुछ होश ही नहीं था। अपने और निशि के रिश्ते को लेकर वह इतना ज्यादा उलझा हुआ था, निशी की बातें बार-बार उसके कानों को चुभ रही थी। कितना कुछ कह गई थी वह और उसकी आंखें! उन आंखों ने तो बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह दिया था। वह बातें जो वह खुलकर ना बोल पाई थी।


    अव्यांश की आंखों से आंसू उसके गालों पर लुढ़क आए और धीरे-धीरे नीचे। लेकिन उन आंसुओं को किसी ने अपनी हथेली में थाम लिया। तब जाकर अव्यांश को होश आया और उसने चौक कर देखा तो उसके डैड उसके सामने खड़े थे।


    सारांश ने अव्यांश के कंधे पर हाथ रखा और वही बगल में बैठ गए। अव्यांश अपनी परेशानी उन पर जाहिर नहीं करना चाहता था इसलिए उसने नज़रें चुराकर पूछा "आप यहां इस वक्त? सारे लोग सो गए क्या?"


     अव्यांश ने अपना फोन इधर-उधर पॉकेट में ढूंढा लेकिन उसका फोन उसे नहीं मिला। सारांश ने उसका फोन आगे बढ़ा दिया।


    आसमान इतना काला पड़ चुका था कि अव्यांश को वक्त का अंदाजा हो चुका था। सारांश बोले "तेरा फोन घर पर था।क्या मैं पूछ सकता हूं कि अपना फोन इस तरह बंद करके घर पर छोड़कर आने का क्या मतलब है?"


    अंशु बात बनाते हुए बोला "कुछ नहीं डैड! वह शायद फोन का बैटरी डाउन हो गया होगा। मैं बस......"


    "फोन फुल्ली चार्ज्ड है।"


     अव्यांश के पास झूठ बोलने का मौका नहीं था। वो बोला, "सब थोड़ा मन बेचैन था तो यहां चला आया। लेकिन आप यहां कैसे?।"


    सारांश सामने बिल्डिंग को देखते हुए बोले "तेरा बाप हूं। तुझे मुझसे ज्यादा कोई नहीं समझ सकता, तू नही तेरी मां भी नहीं। मुझसे झूठ बोलेगा? यह तेरा स्कूल है और तुझे अपने स्कूल से न जाने कैसा लगाव रहा कि जब भी तू हद से ज्यादा परेशान होता है तो यही चला आता है। घर वाले तुझे ढूंढ रहे थे लेकिन तू कहीं नहीं था। मैं समझ गया अगर तू कहीं नहीं है तो फिर यही अपने स्कूल के गार्डन में मिलेगा। वैसे यहां की बाउंड्री पहले से थोड़ी ऊंची हो गई है या मैं बूढ़ा हो गया?"


     अव्यांश मुस्कुरा दिया। वो नहीं चाहता था कि उसके डैड उसकी वजह से परेशान हो। वह बोला "डैड! मैं बस........."


     सारांश ने उसकी बात पूरी नहीं होने दी और बोले "मैंने कहा ना, तेरा बाप हूं तुझे मुझसे ज्यादा अच्छे से कोई नहीं समझ सकता, तू खुद भी नहीं। तेरा झगड़ा हुआ न निशि से?"


     अव्यांश ने अपनी नज़रें नीचे कर ली। सारांश उसका सर अपने कंधे पर रखकर प्यार से सहलाते हुए बोले "पति-पत्नी के बीच कोई भी लड़ाई इतनी बड़ी नहीं होती जिसे सुलझाया ना जा सके। तब तक नहीं जब तक की कोई तीसरा इसमें इंवॉल्व ना हो।"


    अव्यांश को एक बार फिर निशी की कही बातें याद आ गई। उसने हर मुमकिन कोशिश की अपने आंसुओं को रोकने की लेकिन नहीं कर पाया। अपने बेटे की ऐसी हालत देख सारांश का दिल टूट जा रहा था। फिर भी खुद को संभालते हुए उन्होंने अव्यांश के आंसुओं को पोंछा। अव्यांश बोला "मैं समझता हूं आप क्या कह रहे हैं लेकिन जब लड़ाई ही किसी तीसरे की वजह से हो तो क्या कर सकते हैं! मैं उसे मना लेता उसे। चाहे कितनी भी बड़ी बात होती मैं उसे समझा लेता। नाराज होती, चली भी जाती तब भी उसे वापस ले आता। कुछ भी करके मैं हमारे बीच की सारी लड़ाइयो को, सारी गलतफहमियों को कभी हमारे बीच दूरियों की वजह कभी नहीं बनने देता, अगर उसे मुझ पर भरोसा होता तो। आप ही रहते हो ना डैड! किसी भी रिश्ते में सबसे बड़ा फैक्टर होता है विश्वास! प्यार तो उसके बाद में आता है।"


      सारांश बोले "प्यार हो जाता है, धीरे-धीरे हो जाता है। पहले विश्वास तो हो जाने दे! और तुम दोनों का रिश्ता पहले से काफी अच्छा हो गया था। मुझे लगा था तुम दोनों.......... खैर यह बताओ, बात क्या है? क्या पिछले दिनों जो कुछ हुआ उसकी वजह से.....?"


     अव्यांश ने अपना सर सारांश के कंधे से हटाया और नजर नीचे कर बोला "कोई भी बात हो, अटलीस्ट वह मुझसे पूछ सकती थी। शायद मेरी ही गलती है। मुझे उसे सब कुछ सच बता देना चाहिए था। मैं बस नहीं चाहता था कि वह परेशान हो। लेकिन मुझे नहीं पता था कि मेरी छोटी सी गलती इतनी बड़ी हो जाएगी। लेकिन डैड! इतने वक्त में क्या उसने मुझे बिल्कुल नहीं समझा है? क्या मॉम को आप पर विश्वास करने के लिए इससे भी ज्यादा टाइम लगा था?"


     सारांश कुछ ना बोल पाए। अव्यांश बोला "हर रिश्ता आपके और मॉम के जैसा नहीं होता। हर निशि अवनी नहीं होती और हर अंशु सारांश नहीं हो सकता। मैं उसको दोष नहीं दे सकता। गलती मेरी है, मुझे उससे सब कुछ शेयर करना चाहिए था। लेकिन कोई बात नहीं। कभी-कभी हम अनजान पर भी भरोसा कर लेते हैं लेकिन कभी साथ रहकर भी भरोसा नहीं जीत पाते। 


    सारांश ने अव्यांश को गले से लगा लिया। अव्यांश का कलेजा फट पड़ा। उसने बहुत कोशिश की अपनी रुलाई रोकने की लेकिन अपने डैड के सामने वो चाह कर भी खुद को मजबूत नहीं दिखा सकता था।


   कुछ देर रो लेने के बाद सारांश ने अव्यांश की पीठ सहलाई और बोले "चल, अब घर चल। अभी घर में किसी को नहीं पता इस बारे में। मैंने सबको बोल दिया है कि तू अपने फ्रेंड के साथ है। निशी काफी परेशान है तेरे लिए। उसे बिना बताए चला आया है।"


     अव्यांश ने सारांश से एक सवाल किया "अगर मैं आगे कोई डिसीजन लेता हूं, जो घर में किसी ने न लिया हो, तो क्या आप मेरा साथ देंगे?"


     सारांश समझ गए कि अव्यांश किस बारे में बात कर रहा है। उन्होंने अव्यांश को दोनों कंधे से पकड़ा और बोले "कोई भी फैसला इतनी जल्दी नहीं लिए जाते। कुछ भी करने से पहले सौ तरह की बातें सोचनी पड़ती है। जल्दबाजी में किए गए फैसले हमेशा हमें तकलीफ देती है और पछतावा के अलावा हमारे पास और कुछ नहीं बचता।"


    लेकिन अव्यांश बोला "मैं नहीं डैड! जो भी फैसला लेना है वह निशि लेगी। मैं उसपर कोई दबाव नहीं डालने वाला। क्या आप मेरे साथ हो?"


    

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