सुन मेरे हमसफर 121
121 निशि को देख कर अव्यांश की भौंहे तन गई। इस सबसे बेखबर निशी मुस्कुराते हुए चल कर आई तो सिया ने उसे अपने पास बुलाया। निशी जब उनके पास गई तो उन्होंने निशी के सर पर हाथ फेरा और बोली "बहुत प्यारी लग रही हो। मुझे हमेशा से मेरी दोनों बहूओ की तरह बाकी की दोनों बहुएं भी चाहिए थी। दोनों बिल्कुल वैसी ही है, जैसे मुझे चाहिए।" निशी ने दादी के पैर छू लिए। सिया ने उसे अपने पास बैठने का इशारा किया तो निशी उनके बगल वाली कुर्सी पर गई। सिया ने कहा "आज आप घर जा रहे हो ना बेटा! वहां के लिए कुछ चीजें ले लेना।" निशी कुछ बोल पाती, उससे पहले ही अंशु बीच में बोल पड़ा "उसकी कोई जरूरत नहीं है दादी। हम लोग जरूरी काम से जा रहे हैं। जब फैमिली फंक्शन में जाना होगा या किसी पर्सनल काम से तो आप जो कहेंगे वह ले जाएंगे। फिलहाल मैं निकलता हूं, मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है।" अंशु ने टेबल पर रखा अपना फोन उठाया और वहां से जाने लगा तो श्यामा ने आवाज लगाई "अंशु! क्या है यह? सुबह का वक्त है, नाश्ता यहां सामने रखा हुआ है और तुम इस तरह नाश्ता छोड़कर बाहर जा रहे हो?"