सुन मेरे हमसफर 118

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     रात के खाने के टाइम सिया डाइनिंग टेबल पर सब का इंतजार कर रही थी। एक-एक कर सारे चले आए। निर्वाण भी तब तक बाहर से वापस आ चुका था और नेत्रा को कुणाल से बातें करते देख उसे खींचकर अपने साथ लेकर गया साथ ही उसने ये ख्याल भी रखा कि कुणाल नेत्रा के आस पास भी ना जाने पाए।


     कार्तिक अपने पूरे परिवार के साथ रात के खाने पर वही रुका था। साथ में कुणाल को भी वहां रुकना पड़ा था। सभी डाइनिंग टेबल पर आ चुके थे। नेत्रा ने भी अपनी कुर्सी पकड़ ली थी। वो कुणाल के दूसरी तरफ बैठी थी और एक तरफ कुहू। बेचारा कुणाल! दोनों के बीच फंसा था, जबकि शिवि उसके ठीक सामने बैठी थी। भगवान ऐसी कंडीशन मैं किसी को ना फसाए।


     निर्वाण को पता था कि कुणाल इस वक्त घर पर है जो कि उसे बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था। इसीलिए वह किसी भी तरह नेत्रा को कुणाल से अलग रखे हुए था। लेकिन जैसे ही वह डाइनिंग टेबल के पास आया, नेत्रा को कुणाल के साथ बैठा देख उसके तन बदन में आग लग गई। अब वह सबके सामने कह भी नहीं सकता था। आखिर वो कैसे इस पर रिएक्ट करता! कोई सवाल करता तो उसका जवाब देना निर्वाण के लिए मुश्किल हो जाता, इसलिए उसने नेत्रा से झगड़ा किया "तू जाकर दूसरी कुर्सी पर बैठ, मुझे यहां बैठना है।"


    नेत्रा समझ गई कि निर्वाण को उसका कुणाल के साथ बैठना अच्छा नहीं लगा। फिर भी उसे कुणाल के साथ बैठना था और साथ में कुहू को एहसास दिलाना था कि वह कुणाल को उससे ज्यादा जानती है। नेत्रा बोली "इस कुर्सी पर तेरा नाम नहीं लिखा है। और मेरे यहां बैठने से तुझे क्या प्रॉब्लम है? इतनी सारी कुर्सियां खाली पड़ी तो है, जाकर बैठ जाओ कहीं भी किसी भी कोने में।"


     निर्वाण नाराज हो गया। उसने नेत्रा को डांटना चाहा लेकिन कार्तिक ने निर्वाण को समझाया "नीरू बेटा! तू मेरे पास बैठ जा।"


     शिवि ने भी निर्वाण को चुपके से इशारा किया और बोली "हां निर्वाण! बैठ जाओ। अब ऐसा तो है नहीं कि उस कुर्सी पर बैठने से तुझे स्पेशल डिश खाने को मिलेगी जो यहां नहीं मिलेगी। बैठ जा भाई, अपना ही घर है।"


     निर्वाण के पास अब कुछ कहने का बचा नहीं था। वह जाकर कार्तिक के साथ वाली कुर्सी पर बैठ गया लेकिन नजरें कुणाल पर ही अटकी थी। उसने आंखों ही आंखों में नेत्रा को हिदायत दी लेकिन नेत्रा तो कुछ और ही सोच कर बैठी थी।


    अव्यांश अपने कमरे से निकल कर आया और सीधे आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। अवनी ने सवाल किया, "निशी कहां है?"


    अव्यांश कुछ कहता उससे पहले ही उसके पीछे निशी धीमे कदमों से चलती हुई आई और वहां कर खड़ी हो गई। सिया ने उसे ऐसे खड़े देखा तो बोली "तुम वहां क्यों खड़ी हो? आकर बैठो हमारे साथ।"


     निशी इन दिनों में सबके साथ बैठकर खाने में थोड़ी अनकंफरटेबल हो रही थी। उसने कहा "कोई बात नहीं दादी! मै उधर हॉल में ही बैठ कर खा लूंगी।"


     सिया नाराज होकर बोली "तुम वहां अकेले क्यों खाओगी? यहां आकर अंशु के बगल में बैठ जाओ चुपचाप और सबके साथ खाना खाओ। यहां किसी का खाना अलग से नहीं जाता है।"


    सिया को नाराज होते देख निशी ने कुछ नहीं कहा और अव्यांश के बगल में बाई तरफ बैठ गई। इन दिनों में उसके कमर में काफी दर्द रहता था जिस कारण उसे काफी ज्यादा परेशानी हो रही थी।



      आज शिवि ने सबका खाना परोसा, जिसमें नेत्रा ने उसका साथ दिया। सुहानी भी पीछे नहीं रहने वाली थी। खाना लगने के बाद अव्यांश ने जैसे ही एक निवाला अपने मुंह में डाला, उसकी नजर निशी पर गई जिसने निवाला तो मुंह में डाला था लेकिन उसके होंठ जिस तरह आपस में चिपके हुए थे उससे वह साफ समझ पा रहा था कि निशी बहुत ज्यादा दर्द में है। उसने धीरे से अपना बाया हाथ आगे बढ़ाकर निशी के कमर को हल्के हाथों से दबाना शुरू किया। पहले तो निशी चौक गई। लेकिन अव्यांश की इस हरकत से उसे काफी आराम मिल रहा था।


     सारांश से रहा नहीं गया तो उन्होंने पूछ लिया "निशी बेटा! अब तबीयत कैसी है तुम्हारी? दर्द तो नहीं हो रहा?"


    निशी चौक गई। उसे समझ नहीं आया कि अपने पीरियड्स के बारे में वह अपने ससुर जी से कैसे बात करें? अव्यांश ने ही जवाब दिया "डैड! निशी के पेट में दर्द था तो आपने जो कहा था वह दवाई मैंने दे दी थी। अभी फिलहाल कमर में दर्द है।"


    सारांश ने खाना खाते हुए कहा "होता है ऐसा। सोते समय गर्म पानी का सेक लगा देना, ठीक हो जाएगा। और हां !प्रॉपर नींद और न्यूट्रिशन जरूरी है तुम्हारे लिए।" कहते हुए सारांश ने चुकंदर की सब्जी निशी की तरफ बढ़ा दिया। 


   निशी को चुकंदर की सब्जी बिल्कुल नहीं पसंद थी। घर में जब भी उसकी मां की सब्जी बनाती थी तो वह अजीब सा मुंह बनाकर उस सब्जी को एक साइड कर देती थी। इसके लिए कई बार उसकी मां से उसे डांट भी पड़ी थी लेकिन आज खुद उसके ससुर जी ने उसे यह सब्जी सर्व की थी तो खाना तो उसकी मजबूरी हो गई थी। निशी के चेहरे के एक्सप्रेशन देखकर अव्यांश मुस्कुरा दिया। वो निशी के पसंद अच्छे से जानता था।


     चुकंदर की सब्जी देख नेत्रा एकदम से चहकते हुए बोली "चुकंदर की सब्जी!!! कुणाल! तुम्हें तो यह सब्जी बहुत पसंद थी ना! आई होप, तुम्हारा टेस्ट चेंज नहीं हुआ होगा।"


     नेत्रा ने कुछ इस तरह बात सबके सामने रखी थी जिससे ऐसा लगे कि उसकी जुबान फिसल गई हो। कुणाल जो अब तक रिलीफ फील कर रहा था कि नेत्रा उसके और अपने बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगी, उसने भी मन ही मन अपना सिर पीट लिया। कुहू हैरान रह गई कि आखिर कुणाल की पसंद नापसंद नेत्रा को कैसे पता?


     श्यामा ने हैरानी से नेत्रा की तरफ देखा और बोली "तुम्हें कैसे पता कि कुणाल को चुकंदर की सब्जी पसंद है?"


    नेत्रा ने ऐसे रिएक्ट किया जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो। उसने सब की तरफ देखा और नजरे चुरा कर बोली "मैं जानती हूं कुणाल को, काफी टाइम से। आई मीन हम अच्छे दोस्त रहे हैं, है ना कुणाल?"


     कुणाल ने थोड़ी राहत की सांस ली और बोला "हां! हां हम जानते हैं दूसरे को।"


     लेकिन श्यामा को इतने से जवाब से संतुष्टि नहीं मिली। उसने पूछा "अगर तुम दोनों एक दूसरे को जानते हो तो फिर इतनी देर से ना पहचानने का नाटक क्यों कर रहे थे?"


     कुणाल कुछ कहता उससे पहले ही नेत्रा बोली "नहीं मामी, ऐसा कुछ नहीं है। वो क्या है ना, एक तो हम काफी टाइम बाद मिले। उस पर से भी कुणाल के चेहरे पर रंग लगा हुआ था तो मैं उसे ठीक से पहचान नहीं पाई। वैसे भी, कुणाल को मैं कैरी के नाम से जानती थी। इसलिए जब कुहू ने, आई मीन कुहू दी ने कुणाल का पूरा नाम लिया तो भी मैं इसे नहीं पहचान पाई। और इतनी देर में मौका ही नहीं मिला किसी से कुछ कहने का।"


    कुहू ने नाराजगी से कुणाल और नेत्रा की तरफ देखा। अब तो खाना बेस्वाद सा लग रहा था उसे। नेत्रा को जितना पता था, उस हिसाब से उसने कुणाल के प्लेट में खाना सर्व करना शुरू कर दिया, जिसे देख कुहू मन ही मन आग बबूला हो रही थी। 


   श्यामा को यह सब कुछ सही नहीं लगा। कुछ तो खटक रहा था, कुछ तो ऐसा था जो गलत था। उन्होंने धीरे से कहा "काफी अच्छे से जानती हो तुम कुणाल को। यह सिर्फ दोस्ती ही थी ना?"


   कुणाल हड़बड़ा कर बोला "जी! जी आंटी, हम सिर्फ दोस्त हैं। हम आज भी दोस्त ही है।"


      नेत्रा छूटते ही बोली "हां मामी! अभी तक हमारा ब्रेकअप नहीं है।"


     कुणाल के गले से खाना अटकते अटकते बचा। श्यामा की आंखें छोटी हो गई तो नेत्रा जल्दी से अपनी बात क्लियर करते हुए बोली "मेरे कहने का मतलब कि अभी तक हमारी दोस्ती टूटी नहीं है। कुणाल अपने काम में लग गया और मैं अपने काम में इतनी बिजी हो गई कि हम टच में ही नहीं रहे। बस इतनी सी बात है।"


    कुहू को अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसने थोड़ा सा खाया और प्लेट सरका कर उठ गई। "मेरा हो गया। दिन में इतना ज्यादा खा लिया कि और कुछ खाया नहीं जा रहा मुझसे। सॉरी!" कुहू ने जाकर अपने हाथ धोए और अपना पर्स उठा कर बोली "पापा! मैं घर जा रही हूं, मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही।"


     नेत्रा यही तो चाहती थी। उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई, लेकिन जल्दी ही उसने इसे छुपा भी लिया। लेकिन उसके इस मुस्कान को शिवि ने भी नोटिस किया और श्यामा ने भी।

टिप्पणियाँ

  1. बेहद अच्छी, सारांश के निशी के प्रति केयर करना बहुत अच्छा लगा मेम

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