सुन मेरे हमसफर 120

 120




   अव्यांश जब फ्रेश होने अपने कमरे में आया तो निशी से जा टकराया। अव्यांश ने उसे संभाला और धीरे से खड़ा करके बोला "क्या है ये? इस तरह चला जाता है क्या! अभी चोट लग जाती तो? और इतनी स्पीड में कहां भाग जा रही थी?"


    निशी नाराज होकर वापस से बिस्तर पर बैठ गई और बोली "तुमसे नाराज हूं मैं और तुम ही से जवाब लेने जा रही थी। अच्छा हुआ तुम यहीं आ गए।"

 

     अव्यांश को समझ नहीं आया कि सुबह सुबह निशी को कौन सा दौरा पड़ा है। उसने निशी के माथे को चेक किया और बोला "बुखार तो नहीं है, फिर तुम इस तरह से क्यों कर रही हो? अच्छा हां याद आया! ऐसी कंडीशन में मूड स्विंग्स होना नॉर्मल है। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। अब जल्दी बताओ, क्या बात करनी है।"


     निशी नाराजगी से बोली "पहले तो तुम मुझे यह बताओ, कि कल जब मम्मी पापा ने तुम्हें फोन किया था तो तुमने मुझे उनसे बात क्यों नहीं करने दिया? मैं तो दिन में नहीं सो रही थी! कमरे में आराम कर रही थी। तो फिर तुमने यह क्यों कहा कि मैं सो रही हूं?"


     अव्यांश को निशी की यह बातें थोड़ी अटपटी लग रही थी। उसने सवालिया नज़रों से निशी को देखा और पूछा "ये तुम कैसी बात कर रही हो? मैं ऐसा क्यों करूंगा? मुझे लगा पापा ने फोन किया होगा, तुम्हारी उनसे बात हो गई होगी। इसलिए मैंने तुम्हें डिस्टर्ब नहीं किया। और वैसे भी, उस टाइम मैं सबके साथ बाहर खड़ा था। मुझे पता था तुम जाग रही हो और मुझे लगा कि शायद तुमने ही उनको फोन किया था और हम से बात करने को कहा था। लेकिन तुम ऐसे क्यों बोल रही हो? कल तुम्हारी उनसे बात नहीं हुई क्या?"

 

     निशी मुंह फुला कर बोली "नहीं हुई थी मेरी उनसे बात! यह पहली होली थी जो मैं उन सब से दूर मनाया है। और मैंने अपने यहां की होली मिस कर दी। तुम्हें पता है, मैंने सोच रखा था, वीडियो कॉल करूंगी और वहां हो रहे हुड़दंग का मजा लूंगी। वैसे तो बेंगलुरु से होली कुछ खास होता नहीं है। लेकिन हमारे मोहल्ले में ज्यादा नॉर्थ इंडियन है तो वहां बहुत अच्छा माहौल बनता है। बाहर के लोग भी आते हैं होली खेलने। इसलिए सोचा था, अपने सारे पुराने दोस्तों से मिलना हो जाएगा, जिनसे मैं शादी के बाद नही मिल पाई थी। लेकिन ना उन्होंने मुझे फोन किया और ना ही तुमने मुझे याद दिलाया।"


    अव्यांश ने हंसकर इस बात को टाल दिया और टॉवेल लेकर बाथरूम में चला गया। लेकिन एक बात उसके दिमाग में खटक रही थी। उसे अचानक से ध्यान आया कि कल तो उसने खुद सामने से मिश्रा जी को कॉल किया था। उनकी तरफ से कोई कॉल नहीं आया था।


   अव्यांश का फोन उसके पॉकेट में रखा हुआ था। उसने बाथरूम में पानी ऑन किया और किसी का नंबर डायल कर दिया। दूसरी तरफ से कॉल रिसीव होते ही अव्यांश ने पूछा "बात बनी?"


    दूसरी तरफ से आवाज आई "नहीं सर! हमने उनको जितना टाइम दिया था, उससे पहले ही उन लोगों ने मिश्रा जी और उनकी वाइफ को घर खाली करने का नोटिस पकड़ा दिया है। लगता है, आपको यहां आना ही पड़ेगा।"


  अव्यांश के माथे पर गहरी नसें उभर आई। गुस्से में उसने कहा, "लगता है उसको उसकी औकात दिखानी पड़ेगी। तुम एक काम करो, एक बार फिर उसे समझाओ। वह समझता है तो ठीक वरना आज ही मैं आ रहा हूं।" अव्यांश ने फोन काटा और मोबाइल अपनी ठुड्ढी से लगाकर सोचने लगा।


     सारी बातों को जोड़ते हुए उसने खुद पर ही झल्लाकर कहा "तेरा ध्यान कहां रहता है? तूने खुद से वादा किया था, डैड से वादा किया था कि तू इस प्रॉब्लम को सॉल्व करेगा। इतने दिन गुजर गए लेकिन अब तक तेरा काम नहीं हुआ? किसी लायक नहीं है तू। बस बहुत हुआ, लेकिन अब नहीं।"


     दरवाजे पर निशी ने दस्तक दी "अव्यांश! हो गया क्या तुम्हारा? मुझे भी फ्रेश होना है।"


   अव्यांश की तंद्रा टूटी। उसने जल्दी से पानी का नल बंद किया और बोला "हां बस 10 मिनट रुक जाओ, मैं आ रहा हूं।"




*****





   डाइनिंग टेबल पर सभी आ चुके थे। बस अव्यांश निशी और नेत्रा का आना बाकी था। नेत्रा तो पूरी तरह से तैयार होकर ब्लैक शॉर्ट ड्रेस में बाहर निकली तो उसे देख सिया ने पूछा "तुम इतनी सुबह इन कपड़ों में? कहीं जा रही हो क्या?"


      नेत्रा बोली "हां दादी! कल ही प्रोग्राम बना था, बस उसी के लिए जा रही थी।"


    श्यामा ने कहा "आकर पहले नाश्ता कर लो, उसके बाद जहां जाना है जाती रहना।"


    नेत्रा गई और श्यामा को पीछे से पकड़ कर बोली "मामी! आप मेरी चिंता मत कीजिए। वैसे भी, काव्या आंटी के हाथ का खाने जा रही हूं। वहां से 4 दिन का नाश्ता करके आऊंगी।" नेत्रा अपने ही मजाक पर हंस पड़ी। श्यामा धीरे से मुस्कुराई लेकिन कल की कुछ बातें याद कर उसकी मुस्कान गायब हो गई। नेत्रा ने सबको बाय कहा और काव्या के घर चली गई।


    अव्यांश ने उसे जाते हुए देखा तो बोला "यह चूहे बिल्ली के बीच दोस्ती हो गई क्या?"


    निर्वाण ही जानता था कि जिस चूहे बिल्ली की बात अव्यांश कर रहा है, उन दोनों में दुश्मनी और ज्यादा आग लगने वाली थी। इस सब से बेखबर सुहानी बोली "तुझे लगता है कि इन दोनों में कभी दोस्ती हो सकती है? पता नहीं क्या प्रॉब्लम है इन दोनों के बीच? बेवजह एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती है। और आज देखो, उसी के घर गई है। भगवान जाने मासी कैसे झेलेगी उन दोनों को।"


    शिवि धीरे से बोली "जब लाख कोशिश करके भी हम हार जाए तो अपनी कोशिश बंद कर देना चाहिए। नेत्रा और कुहू दी के बीच में कोई प्रॉब्लम है ही नहीं, जिसे सॉल्व किया जा सके। वह दोनों बेवजह एक दूसरे के लिए मन में कड़वाहट लिए बैठे हैं। नेत्रा बस कुहू दी से हिसाब बराबर करना चाहती है। जिस तरह कुहू दी का चित्रा बुआ से रिश्ता है, नेत्रा भी काव्या मासी से कुछ ऐसा ही रिश्ता बिल्डअप कर रही है।"


     सुहानी ने पूछा "क्या मतलब?"


     शिवि बोली "हिसाब बराबर हो रहा है।"


    इस सब डिस्कशन को एक तरफ रख अवनी ने पूछा "अंशु! बेटा निशी कहां है?"


     अव्यांश ने पीछे सीढ़ियों की तरफ देखा और कहा "मॉम! वह बस तैयार होकर आ रही है। वैसे मुझे आप लोगों से एक बात कहनी थी।"


     सबकी नजर अव्यांश पर टिक गई कि ना जाने वो क्या कहना चाह रहा है। अंशु बोला "डैड! मुझे आज बेंगलुरु के लिए निकलना है।"


    सिद्धार्थ ने चाय का कप हाथ में लिया और पूछा "वहां पर तो कोई प्रॉब्लम नहीं है फिर क्यों जाना चाहता है?"


     सारांश ने भी सवालिया नजरों से अव्यांश को देखा। अब अव्यांश खुलकर इस बात को कहे तो कैसे? वह नहीं चाहता था कि इस बारे में गलती से भी निशी को पता चले। लेकिन इस बारे में उसने सारांश से बात की थी। उसने कहा "डैड आपको याद है, एक बार मैंने आपसे प्रोजेक्ट के बारे में बात किया था। बस उसी सिलसिले में मेरा वहां जाना जरूरी है।"


     समर्थ ने पूछा "यह किस प्रोजेक्ट की बात कर रहा है तू जो हमें नहीं पता? साफ साफ बोल ना कि तुझे निशी को लेकर अपने ससुराल जाना है। इतना क्यों बहाने बना रहा है?"


    सारांश को एकदम से याद आया और उन्होंने कहा "ऐसा कुछ नहीं है। एक वह पुराना प्रोजेक्ट था उसमें थोड़ी सी गड़बड़ी थी, इसलिए अव्यांश उसे देख रहा था। अब उसका जाना जरूरी है तो फिर कोई बात नहीं, चले जाओ। निशी को भी तैयार होने बोल दिया है?"


    अव्यांश ने अपनी गर्दन हिलाई और श्यामा से कहा "बड़ी मां! मेरी चाय।" श्यामा ने उसकी चाय उसकी तरह बढ़ा दी।


   अव्यांश चाय की चुस्की ले कर बोला "बस आज का काम है, कल लौट आऊंगा। यहां का काम भाई संभाल लेंगे, है ना भाई?"


     समर्थ ने भी उसे आश्वस्त किया और बोला "तू चिंता मत कर। अगर तेरा जाना जरूरी है तो तेरा काम मैं संभाल लूंगा।"


     सुहानी इस मौके पर चुटकी लेते हुए बोली "हां और साथ में असिस्टेंट भी।"


     समर्थ एक पल को सोच में पड़ गया। फिर जब उसे समझ आया तो उसने अपने होंठ आपस में दबा लिए और चुपचाप अपने चाय का कप उठा लिया। उसके इस हरकत पर सभी हंस पड़े।


     तब तक निशी नहा कर तैयार होकर नीचे डाइनिंग हॉल में चली आई थी। सिया ने देखा तो बोली "मेरा बच्चा कितना प्यारा लग रहा है। जाने से पहले काला टीका जरुर लगा लेना।"


     अव्यांश ने पलटकर निशी की तरफ देखा। लाल और क्रीम कलर की साड़ी में वाकई बहुत खूबसूरत लग रही थी। लेकिन जैसे ही उसकी नजर निशी के गीले बालों पर गई, उसके चेहरे पर गुस्से के भाव उभर आए।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274