सुन मेरे हमसफर 114

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    सुहानी तन्वी का हाथ छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी जिस कारण समर्थ परेशान हो रहा था। तन्वी खुद भी सुहानी के पीछे पीछे भाग कर अब तक परेशान हो चुकी थी। लेकिन सुहानी ने मन बना लिया था कि आज वो समर्थ को अच्छे से परेशान करेगी। 


   सुहानी फोन पर किसी से बात कर रही थी। समर्थ को यह अच्छा मौका लगा। उसने चुपके से तन्वी का हाथ पकड़ा और खींच कर अपने साथ ले जाने लगा। सुहानी एकदम से चिल्लाई "ओ हेलो! भाई!! क्या कर रहे हैं आप? आप इस तरह मेरी दोस्त को मुझसे छीनकर नहीं ले जा सकते।"


     समर्थ नाराज होकर बोला "तो एक साथ कितने काम करेगी तू? इधर तन्वी का हाथ पकड़ रखा है, उधर फोन पर किसी से बात कर रही है, आते जाते लोगों से भी बातें कर रही है, हर किसी को रंग लगाने का मौका नहीं छोड़ रही। एक अकेली इंसान है तू, कोई कमल हसन नहीं जो अपने 10 किरदार अकेले खुद निभाएगी!"


     तन्वी को दोनों भाई बहन की यह नोकझोंक देख हंसी आ गई। सुहानी ने तन्वी का हाथ पकड़ा और उसे अपनी तरफ खींच कर बोली "मैं जो चाहे कर सकती हूं। आप क्यों परेशान हो रहे हैं? क्या काम है आपको तन्वी से?"


    समर्थ ने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला लेकिन कुछ बोल नहीं पाया। आखिर अपनी बहन से कैसे करें कि वह अपनी होने वाली बीवी के साथ थोड़ा सा इंजॉय करना चाहता था, वह भी आज के दिन। ये इन दोनों की पहली होली थी, साथ में। इस दिन को वो मिस नहीं करना चाहता था।


    समर्थ कुछ बोल नहीं पाया तो सुहानी उसके कंधे पर कोहनी टिका कर बोली "हां हां भैया, बोलिए मैं सुन रही हूं। अगर कुछ सूझ नही रहा तो मैं कुछ आईडिया दूं?" तन्वी ने शर्म से अपनी नजरें नीची कर ली।


   समर्थ से कुछ कहते नहीं बन रहा था तो सुहानी ने उसकी मुश्किल थोड़ी और आसान करनी चाही। अब एक बहन अपने भाई की मुश्किल आसान कर सकती है क्या, आप खुद सोचो? सुहानी ने मौके पर चौका मारा। उसने कहा "ठीक है, आप को नहीं बताना तो मत बताइए। आपकी होने वाली बीवी है, आप दोनों की शादी होने वाली है, तो मैं कौन होती हूं बीच में आने वाली? लेकिन पहले यह तो बताइए कि आपने तन्वी को कहां तरह प्रपोज किया था? आई मीन कॉलेज में किया था या किसी रेस्टोरेंट में किया था या किसी गार्डन में किया था? या फिर घर पर किया था? कहां किया था? कहीं ऑफिस में तो नहीं?"


     समर्थ बोला "इनमें से कहीं नहीं।"


     सुहानी ने अपनी ठुड्ढी पर उंगली रखा और बोली "इनमें से कहीं नहीं तो क्या लाइब्रेरी में किया था?" आपने इस मजाक पर सुहानी खुद हंस पड़ी। फिर आगे बोली "ठीक है नहीं बताना तो मत बताइए, लेकिन यह तो बताइए कि आपने मेरी तन्वी को किस तरह प्रपोज किया था? आई मीन, रिंग देकर या गुलाब देकर?"


    सुहानी अच्छे से जानती थी कि दोनों के बीच कोई सीन नहीं था। दोनों एक दूसरे से बातें कर ले या एक दूसरे के सामने आ जाए, वही बहुत बड़ी बात थी। समर्थ ने झुंझला कर कहा "इनमें से कुछ नहीं। अब जाने देगी हमें?"


    सुहानी ने हैरान होने का नाटक किया और बोली "इनमें से कुछ नहीं? मतलब खाली हाथ प्रपोज कर दिया आपने मेरी दोस्त को? वेरी बैड भाई!"


     समर्थ बोला "अब अगर तेरा इंटेरोगेशन हो गया हो तो क्या मैं तन्वी को लेकर जा सकता हूं?"


     सुहानी बड़े बेफिक्र अंदाज में बोली "बिल्कुल! मैंने कब रोका आपको? और मैं क्यों रोकूंगी आप दोनों को? मुझे तो अच्छा लगेगा ना, अगर आप दोनों एक साथ टाइम स्पेंड करते हैं तो!"


    समर्थ ने चिढ़कर सुहानी की तरफ देखा और ताना मारा "सच में? तुझे देखकर तो ऐसा कहीं से नहीं लग रहा।"


      सुहानी हंसते हुए बोली "देखकर तो आपको भी नहीं लगता कि आप ऐसा कुछ कर सकते हैं। मतलब, नहीं करना नहीं करना कहते कहते अपनी ही स्टूडेंट से प्यार? खैर छोड़ो! यह तो बताओ, कि आप दोनों में से पहले प्रपोज किसने किया था? मैं भी ना, क्या सवाल कर रही हूं! आपने ही किया होगा। मेरी तनु तो कितनी सीधी साधी है। आपने मेरी दोस्त को फंसा कर अच्छा नहीं किया। बहुत तेज निकले आप।"


     फिर वह तन्वी की तरफ मुड़ कर बोली "तनु! मैं तो अभी भी कह रही हूं, मेरे इतने शातिर भाई से तू दूर रहना।"


    सुहानी की ये बकवास अब समर्थ के बर्दाश्त से बाहर था। उसने तन्वी का हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा और कहा "तेरी जैसी बहन भगवान किसी को ना दे। शादी से पहले हमारा तलाक करवाना चाहती है तू?" सुहानी ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन समर्थ उसकी बात सुने बिना ही तन्वी को खींचते हुए अपने साथ ले गया।


    उनके जाते हैं सारांश ने सुहानी के कंधे पर हाथ रखा और कहा "अपने भाई को परेशान करते हुए तुझे शर्म नहीं आती?"


    सुहाने ने भी मासूमियत से ना गर्दन हिला दिया तो सारांश ने मुस्कुरा कर कहा "आनी भी नहीं चाहिए।" दोनों बाप बेटी खिलखिला कर हंस पड़े।"


     सारांश ने देखा सुहानी पूरी तरह भीगी हुई थी। उन्होंने कहा "जाकर कपड़े बदल लो, वरना सर्दी लग जाएगी।"


      सुहानी अपने पापा से ज़िद करते हुए बोली "थोड़ी देर और। फिर तो कपड़े भींग ही जायेंगे। क्या फायदा होगा उसका?"


   सारांश ने उसके सर पर हाथ रखा और कहा "जितना मन है उतना खेल लेना, लेकिन अभी कपड़े बदल लो। आकर फिर लग जाना, कोई नहीं रोकेगा।" सुहानी जल्दी से सर हिलाकर वहां से अपने कमरे की तरफ भागी।


     अंदर आते हुए वह काया से जा टकराई और दोनों वहीं फर्श पर धड़ाम से गिर गए। सुहानी अपनी कोहनी सहलाते हुए बोली "क्या कर रही है तू? कहां भागे जा रही है?"


    काया बोली "मैं तो आराम से चल रही थी, तू इतनी तेजी में आई। तुझे भी तो देख कर चलना था ना!"


     सुहानी ने ध्यान दिया, काया जिसे किसी ने ठीक से रंग नहीं लगाया था, इस वक्त पूरी तरह रंगों में नहाई हुई थी। उसने हैरानी से कहा "यह क्या हुआ तुझे? और इतना सारा रंग किसने लगा दिया? हमें तो हाथ साफ करने का मौका ही नहीं मिला तुझ पर, फिर यह कौन करके गया है? और तू यहां क्या कर रही है? बाहर सब तुझे ढूंढ रहे हैं, पता है?"


     काया हकलाते हुए बोली "मैं..... मैं........ मैं यहां ....... हां! पानी पीने आई थी।"


    सुहानी ने काया को देखा और बोली "पानी पीने आई थी? तेरा दिमाग तो सही है? पानी से लेकर खाने पीने के सारे चीजों का इंतजाम बाहर ही किया गया है, कम से कम बहाना तो सही दिया कर।"


    काया थोड़ी ऊंची आवाज में बोली "मैं कोई बहाने नहीं बना रही, मुझे बस थोड़ी जरूरत थी तो मैं चली आई यहां पर। और तू इतने सवाल जवाब क्यों कर रही है? तू भी तो घर के अंदर है, मैंने तो तुझसे नहीं पूछा कि तू यहां क्या कर रही है जब सारे लोग बाहर है तो?"


   सुहानी जवाब देती उससे पहले ही काया उठी और वहां से चली गई। सुहानी हैरानी से बस उसे जाते हुए देखती रही। फिर कुछ देर बाद खुद भी खड़े होकर अपने कमरे में चले गए।


    काया बेचारी क्या ही बताती! ऋषभ आया था और उसे अपने प्यार के रंग में रंग कर चला गया, कुछ इस तरह कि वह किसी से कह भी नहीं सकती थी। इस एहसास ने काया के तन मन को रोमांचित कर दिया था। ना चाहते हुए भी वह ऋषभ की तरफ खींची चली गई।



*****




    बाथरूम में अंशु को अपने पीछे खड़ा देखना निशी हैरान रह गई। उसने चिल्लाते हुए पूछा "तुम यहां क्या कर रहे हो?"


     अंशु ने बड़े आराम से कहा "बाथरूम में कोई क्या करने आता है? मैं अभी यहां कपड़े बदलने आया हूं। देखो,मेरे कपड़े भी खराब हो गए है।"


     अंशु ने अपनी शर्ट उतारना शुरू किया। निशी ने अपनी आंखों पर हाथ रख लिया और कहा "लेकिन इस वक्त यहां क्या कर रहे हो, जब मैं यहां हूं?"


     अंशु बोला "यह कहां लिखा है कि अगर तुम इस बाथरूम में हो तो मैं यहां नहीं आ सकता? एक कमरा हम दोनों का है, यह बाथरूम भी हम दोनों का है तो फिर क्या प्रॉब्लम है?"


    निशी बोली, "मुझे प्रॉब्लम है!!!"


    अंशु ने उसे आईडिया दिया "एक काम करो, आधे शावर में तुम, आधे शावर में मैं। आधा-आधा बांट लेते हैं। तब तो कोई प्रॉब्लम नहीं होगी?"


     अंशु को इतना ढीठ बनते देख निशी ने नाराज होकर कहा "ठीक है। कमरा भी तुम्हारा है और बाथरूम भी। करो तुम्हें जो करना है। तुम्हारा जो हो जाए तो मुझे आवाज दे देना।"


  निशी वहां से जाने लगी तो अव्यांश ने एकदम से उसकी कलाई पकड़ी और खींच कर बाथरूम की दीवार से सटा दिया। उसके ठीक बगल में शावर का नॉब था। अव्यांश ने शॉवर ऑन कर दिया।


   शॉवर का पानी उन दोनों पर पड़ने लगा। खासकर अव्यांश के चेहरे से रंग घुलकर निशी के ऊपर गिरने लगे। निशी के कपड़े और ज्यादा रंगों से सराबोर होने लगे। अव्यांश ने अपनी शर्ट उतार दी और उसने निशी के कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया।




   मौका मिलते ही कुणाल ने शिवि को होली विश करना चाहा। लेकिन शिवि नही चाहती थी कि कुणाल उसकी तरफ देखे भी। उसने बहाने तलाशने शुरू किए लेकिन उसे कुछ सूझा नही। कुणाल उसके करीब आया और बोला, "हैप्पी होली शिवि!"


    शिवि मुस्कुरा कर बोली, "आप मुझे शिविका कहिए तो ज्यादा अच्छा होगा मिस्टर कुणाल रायचंद!"


    कुणाल बोला, "शायद हम अजनबी नही है। तो तुम मुझे मेरे नाम से बुला सकती हो।" कुणाल के हाथ में गुलाल था लेकिन वो शिवि को लगाने में हिचक रहा था। शिवि ने कुणाल से बचने के लिए इधर उधर नजर दौड़ाई। उसको डीजे के गाने पसंद नहीं आ रहे थे तो उसने डीजे की छुट्टी कर दी और खुद ही डीजे की पोस्ट संभाल ली।


    कुणाल सामने खड़ा उसे देख रहा था। तभी किसी ने पीछे से आकर उसको गुलाल लगाकर कहा, "सरप्राइज़!!!" ये आवाज सुनकर कुणाल चौंक गया।

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