सुन मेरे हमसफर 113

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    सभी होली के रंग में रंगे हुए थे और जी भर कर हुड़दंग कर रहे थे। अंशु हाथ में रंगों वाला बलून लेकर सुहानी के पीछे पड़ा हुआ था और सुहानी इधर से उधर भागे जा रही थी, जिसके कारण बलून हर किसी को लग रहा था सिवाय सुहानी के।


    अवनी ने अंशु को डांट लगाई "अंशु! क्या कर रहा है? तुम लोग ठीक से होली नहीं कर सकते क्या?"


   सुहानी भी उसकी शिकायत करते हुए बोली "मॉम समझाओ ना इसको! देखो मुझे कितना परेशान कर रहा है!"


      अंशु हंसते हुए बोला "क्या मॉम आप भी! होली भी कहीं सही तरीके से खेली जाती है! सही तरीके से खेलने का मतलब हुड़दंग करना ही होता है, और हम वही कर रहे हैं।"


     सुहानी नाराज होकर बोली "तो फिर मेरे पीछे क्यों पड़ा है? तेरी बीवी वहां खड़ी है, उसके पीछे जा ना!"


    अंशु ने निशी की तरफ देखा और बोला "उसके पीछे तो जाऊंगा ही। मैंने सोचा, इस साल तेरे साथ अच्छे से होली खेल लूं। क्या पता अगले साल तू अपने ससुराल में किचन में खाना बना रही हो और तुझे होली खेलने का मौका ना मिले?"


    ये सुनकर सुहानी को गुस्सा आ गया। उसने इधर-उधर देखा तो एक पार्टी में उसे रंग घुला पानी मिल गया। सुहानी ने रंगों से भरी बाल्टी उठाई और अंशु की तरफ दौड़ी। अंशु जो अब तक सुहानी के पीछे पड़ा था, सुहानी के हाथ में इतना बड़ा बकेट देखकर उल्टे पैर भागा।


   निशी एक तरफ खड़ी होकर सब को होली खेलते देख रही थी। जो भी आ रहा था, उसे थोड़ा सा गुलाल लगाकर चला जा रहा था। रंगों से तो दूरी बना रखी थी उसने। किसी ने कोई जिद भी नहीं की और ना ही किसी की जिद चलने दी। अचानक से उसकी नजर पड़ी अंशु पर जो भागते हुए पूरे गार्डन के चक्कर लगा रहा था और उसके पीछे सुहानी भाग रही थी। 


    उन दोनों को देखकर निशी की हंसी छूट गई। उसने हंसते हुए सुहानी को कहा "सुहानी.....! छोड़ना मत!!"


    निशि को सुहानी के लिए चीयर करते देख अंशु ने भी उसे मजा चखाने का सोचा। गार्डन में सुहानी को कुछ देर अपने पीछे इधर से उधर भगाने के बाद अंशु सीधे जाकर निशी के सामने खड़ा हो गया और इस तरह लड़खड़ाया कि निशी उसे संभाल ले। और हुआ भी ऐसा ही। निशी ने जैसे ही अंशु को संभाला, अंशु के कदम वहीं रुक गए और सुहानी ने ऐन मौके पर रंगों की भरी बाल्टी अंशु के ऊपर पलट दी, जिसका नतीजा यह हुआ कि ना सिर्फ अंशु, बल्कि अब तक रंगों से बचती आई निशी भी सर से पैर तक रंगीन हो गई। 


   यह देख कर समर्थ ने सिटी बजाई और कहा, "इसे कहते है असली होली। रंग चढ़ गया दोनों पर। वेल डन सोनू!"


     निशी ने अपने प्योर व्हाइट लहंगे को देखा। उसके सारे कपड़े अब रंगीन हो चुके थे। अब तक के सारे कपड़ों में यह उसका सबसे फेवरेट था और इसे वह संभाल कर रखना चाहती थी। लेकिन अंशु ने जबरदस्ती उसे यह कपड़े पहनाए थे। निशी ने भी यह लहंगा इसी शर्त पर पहना था कि कोई भी उसे रंग नहीं लगाएगा, वह बस गुलाल से होली खेलेगी।


     उसने नाराजगी से अंशु की तरफ देखा तो अंशु अपने कंधे उचका कर बोला "मुझे ऐसे क्यों देख रही हो? मैं नहीं डाला तुम पर रंग! और तुम्हें किसने कहा था मुझे संभालने को? तुम मेरे पास आई तो गेहूं के साथ घुन भी पिस गया। आई मीन, पता था ना कि सुहानी मेरे पीछे हैं! तुम्हें ये नहीं करना चाहिए था।"


    निशी ने नाराजगी से अंशु की तरफ देखा और बोली "मैं कपड़े बदल कर आती हूं।"


     सिया उसे समझाते हुए बोली "बेटा! अभी कपड़े बदल कर क्या करोगी? फिर कोई आएगा और रंग डाल कर चला जाएगा।"


    लेकिन निशी बोली "हां दादी! लेकिन गीले कपड़ों में मुझे बहुत अजीब सा फील होता है। मैं चेंज करके आती हूं।"


     निशी से जाने को हुए तो अंशु ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा "ध्यान से चलना। फिसल कर गिर जाओगी, अंदर संभल कर जाना।" निशी ने अपना सर हिलाया और वहां से अंदर घर में चली आई। वाकई उसका पैर जमीन पर फिसल रहा था। बाहर की हल्की सी मिट्टी उसके पैरों में लगी थी जिस कारण वह बहुत संभल कर आगे बढ़ रही थी।


    थोड़ी देर लग गई उसे लेकिन फाइनली वह अपने कमरे में पहुंच गई और दुपट्टा साइड में रखो सीधे बाथरूम में घुस गई। फिर उसे याद आया कि टॉवेल तो उसने लिया ही नहीं! लेकिन कुछ सोच कर उसने कहा "कोई बात नहीं। वैसे भी सब गार्डन में है। यहां कोई आएगा ही नहीं।" निशी ने शॉवर ऑन कर दिया और अपने गीले कपड़े उतारने को हुई लेकिन अचानक से किसी के होने का एहसास से वह बुरी तरह घबरा गई। उसने पलट कर देखा तो और भी ज्यादा डर गई।



*****



    अंशु और निशि को अपना शिकार बनाने के बाद सुहानी तन्वी के साथ बिजी हो गई। समर्थ कब से तन्वी के साथ थोड़ा टाइम स्पेंड करना चाहता था लेकिन सुहानी थी कि उसे मौका ही नहीं दे रही थी। और समर्थ इसी बात से उस पर नाराज था। 


   सुहानी ने साथ से बात बदलते हुए पूछा "भाई! यह कुणाल जीजू कब तक आ रहे हैं?"


     अब समर्थ को क्या पता! उसने कहा "मुझे इस बारे में कोई आईडिया नहीं है। उन्हें इनवाइट किया गया था लेकिन उनका अपना भी कुछ प्रोग्राम है। वह सब निपटा कर ही वह लोग आएंगे। हमें भी उनके यहां जाना होगा। इस सबके बीच कुणाल की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है। उसने न हां कहां है और न ना। शायद कुहू को इस बारे में पता होगा। तू उसी से पूछ।"


    शिवि वहां खड़ी सब सुन रही थी। उसकी नजर कुहू पर गई जो अपने दोनों हाथों की मुट्ठी में गुलाल लिए खड़ी थी। समर्थ को लगा, शायद अब सुहानी तन्वी को छोड़ देगी लेकिन सुहानी ने तब भी तन्वी का हाथ नही छोड़ा और अपने साथ लेकर दौड़ लगा दी। उसने भागते जाकर कुहू को पकड़ा और उससे कुणाल के बारे में पूछा। 


    कुहू भी इस बारे में नही जानती थी, तो वह क्या ही बताती! शिवि को कुणाल पर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था। वो मन ही मन बोली, 'दिल तो कर रहा है तुम्हारी सारी पोल पट्टी खोलकर रख दूं, मिस्टर कुणाल रायचंद! तुम जो मेरी बहन को इतनी तकलीफ दे रहे हो..........'



     सुहानी जोर से चिल्लाई "लो? आ गए जीजू!"


     शिवि ने देखा, सफेद कुर्ते जींस में कुणाल सामने से चला रहा था। कुहू के होठों पर मुस्कान आ गई। लेकिन कुहू के सामने होने के बावजूद कुणाल ने उसे नहीं देखा। उसकी नजरें तो सिर्फ शिवि को ही ढूंढ रही थी।


    कुणाल को अपनी तरफ देखता ना पाकर कुहू खुद आगे गई और कुणाल के चेहरे पर गुलाल लगाकर बोली "हैप्पी होली कुणाल!"


   कुणाल जैसे होश में आया। उसने कुहू को देखकर जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हें भी हैप्पी होली।"


     सुहानी भी भागते हुए आई और कुणाल को गुलाल लगाकर बोली "हैप्पी होली जीजू! आज अकेले आए हो? अपना बॉडीगार्ड नहीं लाए?"


     कुणाल हंस दिया। वह जानता था कि सुहानी उसके दोस्त कार्तिक सिंघानिया की बात कर रही है। उसने हंसते हुए कहा "वही तो यार! मुझे अकेले यहां आने में डर लगता है। लेकिन क्या है ना, मेरे बॉडीगार्ड का भी अपना एक परिवार है जो यही दिल्ली में ही रहता है। तो इस वक्त वह अपनी फैमिली के साथ है।"


      कुहू ने उसकी बांह पकड़ी और अपने साथ ले जाते हुए कहा "वो सब छोड़ो। मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी! लेकिन तुम हो कि, ना मेरा फोन उठाते हो और ना ही हमारे बीच ठीक से बात होती है। पता नहीं, कहां बिजी रहते हो तुम?"


     कुणाल ने एक नजर शिवि की तरफ देखा जो कहीं और बिजी थी। उसने कुहू से कहा "सॉरी! आज कल ऑफिस के काम में इतना ज्यादा बिजी रहने लगा हूं कि टाइम ही नहीं मिलता किसी से बात करने का।"


    कुहू नाराज होकर बोली "मैं कोई और नहीं हूं कुणाल, तुम्हारी होने वाली बीवी हूं! अगर तुम अभी मेरे लिए टाइम नहीं निकाल पा रहे हो तो शादी के बाद कैसे करोगे?"


    कुणाल के पास इसका कोई जवाब नहीं था।



     काया, सबको खुश होता देख मुस्कुरा तो रही थी लेकिन उसका मन नहीं लग रहा था। ऋषभ ने कहा था कि वह आज आएगा लेकिन अब तक उसका कोई पता नहीं था। काया खुद भी नहीं जानती थी कि वह ऋषभ का इंतजार क्यों कर रही है। जबकि वह चाहती ही नहीं कि ऋषभ से उसका सामना हो। फिर भी हर गुजरते पल के साथ उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। हर बार उसे ऐसा लग रहा था जैसे अब वो नजर आएगा। 


   ना चाहते हुए भी काया खुद को ऋषभ से दूर करने में नाकाम हो रही थी। ऋषभ खुद भी तो उसे अपने करीब लाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा था। काया को किसी की गर्म सांसे अपने कंधे पर महसूस हुई। वह कुछ सोच पाती उससे पहले ही किसी ने उसकी कमर में हाथ डाल कर खींचा और घर के अंदर ले गया।

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