सुन मेरे हमसफर 112

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  ऋषभ हंसते हुए बिस्तर पर जा गिरा और बोला "तुम तो ऐसे डर रही हो जैसे मैं पहली बार तुम्हारे सामने आया हूं।"


     काया दुपट्टे से अपनी पीठ को ढकते हुए बोली "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की, वो भी मेरे कमरे में? 1 मिनट! तुम्हें मेरे घर का पता कैसे मालूम हुआ? तुम यहां आए कैसे?"


    ऋषभ उठ कर बैठ गया और बोला "कितनी मासूम हो तुम, तुम्हें पता है? तुम जैसे लोगों को इस दुनिया में बेवकूफ कहा जाता है।"


     काया गुस्से में आगे बढ़ी और उसे उंगली दिखा कर बोली "मैं बेवकूफ नहीं हूं!!!"


    ऋषभ ने उसकी उंगली पकड़ ली और उसे अपने करीब खींच लिया। काया सीधे उसके ऊपर जा गिरी। ऋषभ ने मौके का फायदा उठाया और उसे बाहों में भर कर बिस्तर पर सुला दिया फिर बोला "तुम बेवकूफ नहीं हो। मैंने कभी नहीं कहा कि तुम बेवकूफ हो। यह दुनिया कहती है ऐसा। तुम्हारी यह मासूमियत ही तुम्हारी सबसे बड़ी खूबसूरती है और तुम्हारी यही मासूमियत मुझे बहुत अच्छी लगती है। तुम्हें पता है, तुम बिल्कुल मेरी मॉम की तरह हो।"


    ऋषभ उसके चेहरे पर आए बालों को एक तरफ करने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। काया, जो अभी तक उसकी आंखों में खोई हुई थी, एकदम से होश में आई और बोली "मुझे हाथ मत लगाना!"


   ऋषभ के हाथ वहीं के वहीं रुक गए। उसने नाराजगी से काया की तरफ देखा, फिर कुछ सोचकर उसके होठों पर शैतानी मुस्कान आ गई। उसने काया के ऊपर झुकते हुए कहा "सोच लो। तुम्हें हाथ नहीं लगाऊंगा तो भी मेरा काम मैं करके जाऊंगा। मुझे कोई रोक नहीं सकता। लेकिन हां! तुम शायद अपने दिल को संभाल ना पाओ। बोलो मंजूर है?"


    काया घबरा गई। उसने जल्दी से अपना सर ना में हिलाया और बोली "प्लीज! तुम ऐसा नहीं कर सकते। तुम तो बहुत शरीफ इंसान हो ना, तुम ही कहते हो ना ऐसा?"


   ऋषभ उसे परेशान करते हुए बोला "लेकिन तुम तो मुझे लफंगा कहती हो, और लफंगा कुछ भी कर सकता है।" ऋषभ काया के ऊपर और थोड़ा झुका। काया ने जल्दी से अपनी आंखें बंद कर ली। ऋषभ ये देख कर मुस्कुरा उठा। उसने अपने गालों पर लगे गुलाल को अपने हाथ में लिया और उसे काया के चेहरे पर लगाने को हुआ। लेकिन काया ने तो उसे हाथ लगाने से मना किया था! उसकी बात को कैसे टाल सकता था! फिर भी उसने अपने गालों का रंग काया के गालों पर लगा दिया, वह भी अपने तरीके से।


      काया ने बेडशीट को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया। ऋषभ मुस्कुरा कर बोला "पहली होली मुबारक हो। आज के लिए इतना काफी है, बाकी कल।" काया ने उसकी कुछ बात सुनी कुछ नहीं सुनी। घबराहट में वह वैसे ही बेडशीट को अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़े रही। ऋषभ कब गया उसे पता ही नहीं चला।


    कुछ देर बाद जब उसने आंखें खोली तो खुद को कमरे में अकेला पाया। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि ऋषभ इस कमरे में आया भी था। उसे सब कुछ अपने मन का वहम लग रहा था। काया ने खुद को समझाया "तु कुछ ज्यादा ही उसके बारे में सोच रही है, इसलिए वह तुझे परेशान करने तेरे ख्यालों में भी चला आया है। ठीक है वह स्मार्ट है, दिखने में अच्छा लगता है और तू उसे पहली नजर में पसंद भी करने लगी थी लेकिन है तो वो लफंगा ही ना! जाने कितनी लड़कियों को डेट कर चुका है और कितनों को करेगा। तू उसकी लाइफ में कोई मायने नहीं रखती। उसके लिए तू भी बाकी उन्हीं लड़कियों की तरह है जो उसके पीछे लाइन लगाकर खड़ी है। तुझे उस लाइन में खड़ा नहीं होना है। तुझे उस लफंगे की तरफ नहीं देखना है, बिल्कुल नहीं। होश में आ और सच्चाई को एक्सेप्ट कर ले। कोई नहीं था यहां पर, बिल्कुल भी नहीं था। लेकिन यह ड्रेस? यह ड्रेस उसी ने भेजी है। मतलब वाकई उसे मेरे घर का पता मालूम है। होगा भी क्यों नहीं?"


     खुद को समझाते हुए काया उठी और बाल बांधने लगी। उसके बालों का क्लिप आईने के पास रखा हुआ था, जिसे उठाने के लिए वो आईने के पास गई तो प्रतिबिंब में अपना ही चेहरा देखकर उसे समझ आ गया कि जिस बात को वह नकार रही थी वह सच था। 'यानी सच में ऋषभ यहां आया था? इस कमरे में!' काया ने गुस्से में अपने चेहरे पर से गुलाल को मिटाया और कपड़े बदल कर सो गई।



*****




     अगली सुबह सभी होली के लिए तैयार थे। किचन में सारी तैयारियां हो चुकी थी और पूरा परिवार एक जगह इकट्ठा होकर पूजा करने में लगे हुए थे। सिया ने सारे बच्चों को आरती और प्रसाद दिया, साथ में अपने हाथों से गुलाल का तिलक लगाकर होली किया शुभारंभ किया।


     पिछले दिनों को याद करते हुए सिया ने कहा "हमारा परिवार इतना बड़ा हो गया है लेकिन फिर भी एक अधूरापन सा है। धानी अपने परिवार के साथ व्यस्त हो गई है। अब तो उनका आना-जाना भी कम हो गया है। और जानकी! वो तो जैसे इस घर का रास्ता ही भूल गई है।"


    जानकी मासी का नाम सुनकर सारांश ले सिया को कंधे से पकड़ा और कहा "मॉम! आप क्यों परेशान हो रहे हैं? सब अपने अपने परिवार में खुश हैं और कोई इस घर का रास्ता नहीं भूला है। छोटी मां और कार्तिक, सब को लेकर बस पहुंचते ही होंगे। जानकी मासी और शुभ दोनों अपनी जगह पर बहुत खुश हैं। ऐसा कौन सा दिन है जब जानकी मासी आप से बात नहीं करती? आपसे बात किए बिना उनका दिन में पूरा नहीं होता और ना आपका दिन पूरा होता है।"


     शुभ का नाम आते ही अवनी वहां से चली गई। उसे जाते देख सारांश ने कहा "देखा मॉम! हम सब ने शुभ को माफ कर दिया है लेकिन अवनी अभी तक इस सब से बाहर नहीं आ पाई है। यही वजह है कि शुभ यहां आना नहीं चाहता और जानकी मासी उसे छोड़कर जाना नहीं चाहती। और आप ही तो कहते हैं ना, चाहे पास रहे या दूर, दिलों की दूरियां नहीं होनी चाहिए। हम सब अब भी एक परिवार है और यह सच कोई नहीं झुठला सकता।"


     शुभ और जानकी मासी का नाम सुनकर निशी ने धीरे से पूछा "ये जानकी मासी और शुभ कौन है?"


     अव्यांश ने निशी को उन दोनों के बारे में बताया और कहा "पता नहीं बात क्या हुई थी, लेकिन शुभ चाचू यहां नहीं आते। या फिर अब आना ही नहीं चाहते। पूरी बात क्या है वह हममें से किसी को नहीं पता। बस घर के बड़े यह बात जानते हैं।"


    निशी ने हैरान होकर पूछा "तुम लोगों ने कभी जानने की कोशिश नहीं की? वैसे तो दादी और बाकी सब सारी बातें शेयर करते हैं, फिर यह बात क्या है जो किसी के साथ शेयर नहीं की गई?"


     अव्यांश ने कंधे उचका दिए और कहा "दादी कहती है, हर परिवार में कुछ ना कुछ राज होते हैं। कुछ राज को राज रहने दे, वही अच्छा होता है। कुछ को दफन कर दिया जाए या भूल जाए, उसमें ही सबकी भलाई होती है। और कुछ बातें ऐसी होती है जो पूरे परिवार को पता होनी चाहिए लेकिन बाहर वालों को भनक भी नहीं लगनी चाहिए। हमें कभी भी कुछ पूछने की जरूरत नहीं पड़ी। घर में कुछ भी होता है, हम सबको पता होता है। लेकिन अगर कुछ नहीं पता तो जाहिर सी बात है, वह बातें हमारे जाने के लिए नहीं होगी। इसीलिए हम ने कभी कुछ जानने की जिद नहीं की।"


     इतने में कार्तिक काव्या और धानी पूरे परिवार के साथ चले आए। कार्तिक ने पूछा "क्या बातें हो रही है भई?"


   उन्हें देख सिया ने बाहें फैला कर कार्तिक को अपने पास आने को इशारा किया। कार्तिक ने थोड़े से गुलाल लिए और उनके पैरों पर रखकर गले लग गए। "हैप्पी होली बड़ी मां!"


    सिया ने अपने दोनों हाथों से कार्तिक के चेहरे पर गुलाल लगाकर कहा "तुमको भी होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं। खूब तरक्की करो और हमारा नाम रोशन करो।"


     कार्तिक ने हंसते हुए कहा "बड़ी मां! ये आशीर्वाद तो आप हमेशा देती हैं। थोड़ा इन बच्चों को भी यही आशीर्वाद दे दीजिए। यह दोनों तो हमारी सुनते ही नहीं है।"


    सिया ने काया और कुहू को कुछ कहने की बजाय कार्तिक को ही डांट लगा कर बोली "खबरदार जो मेरी बच्चियों को कुछ कहा तो! बहुत समझदार है वह और सबसे अच्छी भी।" कुहू और काया, एक सिया के गले लग गई।


   सुहानी और शिवि ने पीछे से आकर अपनी दादी को पकड़ लिया और बोली "और हम?"


     अपनी चारों बच्चियों को दुलार करते हुए सिया बोली "मेरे बच्चे दुनिया में सबसे अच्छे हैं, अपने पापा से भी अच्छे।"


     सारांश चिढ़ गए। कार्तिक की वजह से इतना कुछ सुनने को मिला था, वह भी आज के दिन। ऐसे में वो कार्तिक को कैसे छोड़ देते? उन्होंने कहा "हमें सिर्फ गुलाल का तिलक लगाया और यह क्या स्पेशल है जो इसको इतने अच्छे से लगाया आपने? उसे इतने अच्छे से होली विश की और हमे.....?"


     सिद्धार्थ ने झगड़े को खत्म करने के इरादे से अपने दोनों हाथ में गुलाल उठाया और सारांश के पूरे चेहरे पर लगाकर बोले "अब ठीक है?"


      सारांश ने और नाराज होकर कहा "भैया! यह गलत बात है।"


    सिद्धार्थ कहां पीछे रहने वाले थे! उन्होंने गुलाल की थाली सारांश के हाथ में पकड़ाई और बोले "चल जल्दी से आशीर्वाद ले मेरा।"


     "आशीर्वाद? वो भी आपका? किस खुशी में?"


 "अरे बड़ा भाई हूं तेरा। मेरा आशीर्वाद नहीं लेगा?"


    सारांश ने पूरे परिवार की तरफ देखा जो टकटकी लगाए उसी की तरफ देख रहा था। उन्होंने वाकई में गुलाल लिया और सिद्धार्थ के पैर छू लिया। सिद्धार्थ ने भी बड़े प्यार से अपने छोटे भाई को आशीर्वाद दिया। लेकिन छोटा भाई भी कहां कम था! उन्होंने बाकी के सारा गुलाल सिद्धार्थ के सर पर डाल दिया और "हैप्पी होली" कहकर बाहर की तरफ भाग गए।


   घर के सभी, सारांश की इस हरकत पर हंसे बिना ना रह पाए। 

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