सुन मेरे हमसफर 119

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     सब के जाने के बाद अंशु अपने कमरे में गया। उसके हाथ में गर्म पानी का बैग था। इतनी देर में निशी सो चुकी थी लेकिन नींद में भी दर्द उसे परेशान कर रहा था। वह बार-बार हलचल कर रही थी। जब दर्द बर्दाश्त नहीं होता तो वह दूसरे करवट लेट जाती। कमर के नीचे उसने तकिया लगा रखा था फिर भी उसे राहत नहीं मिल रही थी।


     अंशु ने उसकी बेचैनी को समझा और निशी के कमर के नीचे से तकिया हटाकर गर्म पानी का बैग रख दिया। रंग और गुलाल के कारण निशी गहरी नींद में सोई हुई थी। जाहिर सी बात है, इन रंगों में थोड़ा नशा होता ही है। निशी को पता भी नहीं चला, कब अंशु उसके पास आया और उसको अपनी बाहों में भरकर सो गया।


    निशी को अपने कमर में काफी राहत महसूस हुई तो उसने भी हलचल करना बंद कर दिया, लेकिन पानी ठंडा होने के बाद सुबह के करीब उसे इस बार पेट में एक बार फिर दर्द शुरू हुआ। निशी की नींद खुली और वह अपना पेट पकड़े वहां से उठने को हुई। लेकिन अंशु ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और धीरे धीरे उसके पेट पर मसाज करने लगा।


    निशी ने अंशु के चेहरे की तरफ देखा। अंशु नींद में था लेकिन नींद में होने के बावजूद वो निशी की इतनी ज्यादा केयर कर रहा था। निशा को खुशी भी हुई और उस खुशी में उसकी आंखों से आंसू भी निकल आए। उसने जल्दी से अपने आंसुओं को बहने से रोका और आराम से सो गई। इतनी देर में उसे थोड़ी तो राहत मिल चुकी थी। यह टाइम उसके लिए हमेशा ही काफी मुश्किल भरा रहता था। लेकिन जो दवाइयां अंशु ने उसे दी थी, उसके कारण वो पहले से काफी राहत महसूस कर रही थी।


     अगली सुबह अंशु की जब नींद खुली तो उसने पाया, निशी आराम से सो रही थी। वो उठा और बिना कुछ सोचे समझे निशी के बालों में तेल रखकर उसे हल्के हाथों से मसाज देना शुरू कर दिया। यह सब करते हुए अंशु को बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन निशी तो गहरी नींद में सो रही थी। उसे क्या पता उसके साथ कौन क्या कर रहा है! कुछ देर बाद अंशु उठा और कपड़े बदल कर जॉगिंग के लिए निकल गया। सारांश उसका बाहर इंतजार कर रहे थे। दोनों बाप बेटे घर से निकल गए।


     सिद्धार्थ का आज बिल्कुल भी मन नहीं था और कुछ ऐसा ही हाल समर्थ का भी था। दोनों को आज उठने में थोड़ी देर हुई, तब तक सारांश और अंशु दोनों ही घर वापस आ चुके थे। सिद्धार्थ ने दोनों बाप बेटे को देखा और अपने बेटे को ताना दिया "हमें तो ऐसी कंपनी मिलती नहीं। तुम दोनों ही मेरी फिटनेस से जलते हो। इसीलिए दोनों बाप बेटे अकेले अकेले निकल गए। एक बार मुझसे तो पूछ लिया होता!"


     अंशु ने जवाब दिया "बड़े पापा! आप सो रहे थे इसलिए आप को जगाना हमने सही नहीं समझा। और वैसे भी, ये पापा का आइडिया था।" अंशु ने सारी बात सारांश पर डाल दी।


     सारांश ने अपने भैया की टांग खिंचाई करते हुए कहा "छोड़ ना उनको! वैसे भी उनकी उम्र हो चुकी है। इस उम्र में भागदौड़ करेंगे, कहीं पैर की हड्डियों ने जवाब दे दिया तो अलग किस्सा हो जाएगा।"


    सिद्धार्थ को अपनी उम्र के बारे में सुनना बिल्कुल पसंद नहीं था, यह बात तो आप लोग जानते ही हैं। उन्होंने अपने भाई को जवाब दिया "ओए! इस उम्र में भी तुम लोगों से ज्यादा फिट हूं मैं, वरना 30 32 की उम्र में लोगों की हड्डियां कमजोर हो जाती है।" सिद्धार्थ का सीधा सा ताना अपने बेटे को था।


     समर्थ भी कहां पीछे रहने वाला था! उसने भी जवाब दिया "ऊपर से देखने में इंसान जवान लगता है तो जरूरी नहीं कि उसकी हड्डियां भी मजबूत हो। यह तो मौके पर ही पता चलता है, किसकी हड्डियों में कितना दम है। सिर्फ कहने से कुछ नही होता।"


     अब सिद्धार्थ से यह बर्दाश्त होने वाला नहीं था। एक झटके में उन्होंने समर्थ की गर्दन पकड़ी और अपने पैर से उसके पैर में फंदा लगाकर एकदम से जमीन पर पटक दिया।


     समर्थ इस अटैक के लिए तैयार नहीं था। लेकिन सिद्धार्थ ने उसे बचने का एक भी मौका नहीं दिया। किसी रेसलर की तरह वह अपने बेटे को जमीन पर पटक कर उसे दबाए हुए थे।


     अंशु भी जल्दी से जाकर किसी रेफरी की तरह दोनों के बराबर लेट गया और बोला "टिकटिक वन! टिकटिक टू! टिक टिक थ्री!"


    सिद्धार्थ ने उस पर गुस्सा होते हुए कहा "अबे यह कोई अंताक्षरी चल रही है जो टिक टिक कर रहा है!"


      सारांश ने जवाब दिया "तो यह भी कोई रेसलिंग नहीं है। अगर रेसलिंग करनी है तो चलते है रिंग में। अंशु बेटा! तू टिक टिक करता रह।" अंशु लग गया अपने काम में। "टिक टिक फोर! टिक टिक फाइव!"


   निशी, जो ऊपर से देख रही थी, उसकी हंसी छूट गई। घर में जो आए दिन नौटंकी होती थी, उससे घर का माहौल काफी हल्का-फुल्का रहता था। निशी खुद भी इस माहौल की आदि हो चुकी थी। घर परिवार में इतने सारे लोग और उनके बीच की ये नोक झोंक। उसको यह सब देख बहुत मजा आता था।


    इस सब से अचानक उसे याद आया कि कल होली के दिन वह तो अपने मम्मी पापा को फोन करना ही भूल गई थी! निशी ने अपने सर पर हाथ मारा और कमरे में जाकर अपना फोन ढूंढने लगी। निशी को हैरानी हुई कि उसके मम्मी पापा ने भी उसे फोन नहीं किया था, या शायद किया था लेकिन उसे पता नहीं चला।


    निशि का फोन बेड साइड के ड्रॉअर में रखा हुआ था। उसने अपना फोन निकाला और उसमें मिस्ड कॉल चेक करने लगी। लेकिन उसमें उसके मम्मी पापा का नंबर नहीं था। और जो कॉल हुआ था वह भी 2 दिन पुराना था। निशी को अब और ज्यादा हैरानी हुई। 'ऐसा कैसे हो सकता है? होली वाले दिन मम्मी पापा मुझे भूल कैसे सकते हैं? माना मैं इतने लोगों के बीच उन्हें भूल गई और ऊपर से मेरे पीरियड्स।, लेकिन........... कहीं कुछ प्रॉब्लम तो नहीं है? उनकी तबीयत तो ठीक है?'


   निशी को घबराहट होने लगी। उसने जल्दी से मिश्रा जी का नंबर डायल किया। पहले तो मिश्रा जी ने फोन नहीं उठाया लेकिन निशी ने दोबारा कॉल लगाया। इस बार फोन उसकी मां ने उठाया था। कॉल रिसीव होते ही निशी घबराहट में बोल पड़ी "मां! सब ठीक है ना? आप और पापा ठीक हो ना?"


     रेनू जी की आवाज में थोड़ी घबराहट थी। फिर भी जबरदस्ती उन्होंने नॉर्मल होकर कहा "सब ठीक है बेटा, कुछ नहीं हुआ है। और तू ऐसे क्यों पूछ रही है? तू तो ठीक है ना?"


     अपनी मां की आवाज सुनकर निशी ने थोड़ी राहत की सांस तो ली लेकिन उसने उतना ध्यान नहीं दिया। मां का जवाब सुनकर वह बोली "हां मां मुझे क्या होगा, मैं ठीक हूं। कल आपने मुझे फोन नहीं किया था, इसलिए मुझे चिंता हो रही थी। मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, और कल इतने सारे लोगों के बीच में फंसी थी कि मुझे फोन करने का याद ही नहीं रहा। लेकिन आप लोग तो मुझे कॉल कर सकते थे ना?"


     निशी की मां ने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला लेकिन अपने शब्दों को वापस निगल गई। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "सब ठीक है बेटा! कल फोन किया तो था, लेकिन तेरा नंबर नहीं लग पाया तो दामाद जी का नंबर पर कॉल किया था। उनसे बात हुई मेरी और तेरे पूरे परिवार से भी बात हुई। दामाद जी ने कहा था कि तू सो रही है, इसलिए हमने तुझे परेशान नहीं किया और न उनको करने दिया। अब कैसी तबीयत है तेरी?"


    निशी मुंह बना कर बोली "आपको तो पता ही है ना इन दिनों में मेरी क्या हालत होती है। अभी सोकर उठी हूं। उठने का बिल्कुल मन नहीं कर रहा था लेकिन क्या करती। पापा ठीक है ना?"


     रेनू जी ने हंसते हुए कहा "तेरे पापा बिल्कुल ठीक है। कल थोड़ी भांग पी ली थी उन्होंने, गलती से। इसलिए अभी भी थोड़े नशे में है और सो रहे हैं।"


      निशी को राहत महसूस हुई उसने नाराज होकर कहा "ये क्या बात हुई? जब पापा को पता है कि उनको भांग नही पचता तो फिर पिया ही क्यों? खैर, जैसे तो मैं सवाल करूंगी। बस पापा उठ जाएंगे तो मेरी उनसे बात करवा देना। ठीक है?"


   रेनू जी ने भी हामी भरी और फोन रख दिया। उनके फोन रखते हैं मिश्रा जी ने पीछे से कहा "उसे कुछ पता तो नहीं चला?"


    रेनू जी ने इनकार में सर हिला दिया।

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