सुन मेरे हमसफर 115

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   अव्यांश एक बार फिर निशी के करीब आना चाहता था। निशी ने भी जैसे कोई विरोध करना ही छोड़ दिया। अव्यांश का यू करीब आना उसे अच्छा लगने लगा था और वह किसी सम्मोहन में बंधी अव्यांश की तरफ खींची जा रही थी। उसने बस अपनी आंखें बंद कर ली। लेकिन अचानक ही उसे कुछ महसूस हुआ और उसने घबरा कर अपनी आंखें खोली।


     निशी की आंखों में घबराहट देखकर अव्यांश रुक गया और पूछा "क्या हुआ?"


   निशी ने घबराते हुए अव्यांश को अपने दोनों हाथों से धक्का मारा और बोली "तुम...... तुम अभी जाओ यहां से।"


     अव्यांश ने निशी के दोनों हाथ पकड़ लिए और कहा "बिल्कुल नहीं। आज मैं यहां से नहीं जाने वाला। तुम्हें यहां छोड़कर तो बिल्कुल नहीं, जब तक तुम मुझे अपनी प्रॉब्लम नहीं बताती।"


    निशी घबराते हुए बोली "अव्यांश प्लीज! तुम्हें मुझे जितना परेशान करना है, तुम बाद में कर लेना लेकिन इस वक्त यहां से जाओ।"


     अव्यांश कुछ और समझ पाता उससे पहले ही निशी ने उसे पूरा जोर लगा कर धक्का दिया और बोली "अव्यांश प्लीज! प्लीज कह रही हूं, जाओ यहां से।"


   अब निशी से इतना रिक्वेस्ट कर रही थी तो अव्यांश कैसे वहां रुकता। वह नाराज होकर बाहर चला गया। निशी ने भी जल्दी से दरवाजा बंद किया और शावर अपने ऊपर चालू कर लिया। घबराहट में वह अपने आप में ही बड़बड़ा रही थी "हे भगवान! कैसे भूल गई मैं? मेरे से मिस्टेक हो गई। मेरे पास कोई ऑप्शन भी नहीं है, मैं किसको बुलाऊं?"


    निशी जो कुछ भी कह रही थी वो सब बाथरूम के बाहर खड़े अव्यांश को सुनाई दे रही थी। हालांकि सब कुछ क्लियर नहीं था लेकिन अव्यांश समझ गया कि निशी को कुछ ना कुछ परेशानी जरूर है, लेकिन क्या? उसने दरवाजे पर दस्तक दी और आवाज लगाकर पूछा "निशी क्या हुआ है? कुछ प्रॉब्लम है क्या? देखो, उसे छुपाने की जरूरत नहीं है। तुम मुझे बता सकती हो।"


     निशी अंदर ही चहल कदमी कर रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। अव्यांश की आवाज सुनकर जल्दी से दरवाजे के पास गई और थोड़ा सा दरवाजा को खोल कर बाहर झांकते हुए बोली "अव्यांश क्या तुम........! क्या तुम किस को बुला सकते हो?"


     अव्यांश समझ गया कि उसे किसी की हेल्प की जरूरत है। उसने निशी के सामने खड़े होकर कहा, "मैं हूं यहां। मेरे होते हुए तुम्हें किसी और की क्या जरूरत? जब मैं सामने खड़ा हूं तो फिर तुम किसी और को क्यों बुलाना चाहती हो?"


     निशी मासूमियत से बोली "अव्यांश प्लीज! बुला दो ना किसी को भी। काया, सुहानी, शिवि दी, कुहू दी, कोई भी। या फिर मां को ही बुला दो।"


     अव्यांश ने सारी कड़ियों को एक साथ जोड़ा और कुछ सोचते हुए पूछा "तुम्हारे पीरियड्स आए हैं?"


    निशी घबरा गई और उसने अपना सर नीचे कर लिया।। कुछ और पूछने की बजाए अव्यांश ने सीधे-सीधे पूछा "तुम्हारे सैनिटरी पैड्स कहां रखे है?"


    निशी और ज्यादा शर्मिंदा महसूस कर रही थी। उसने जल्दी से इनकार में सर हिलाते हुए कहा, "नहीं, मेरे पास नहीं है। तुम प्लीज सुहानी को बुला दो, या फिर शिवि दी को ही............."


   अव्यांश नाराज होकर बोला "तुम्हें लगता है, इस वक्त जिस तरह सब होली खेल रही है, कोई तुम्हारे लिए आएगी? तुम रुको मैं लेकर आता हूं।"


     निशी कुछ बोल पाती, तब तक अव्यांश वहां से जा चुका था। उसे बहुत अजीब लग रहा था कि कोई लड़का उसके लिए यह सब कुछ कर रहा था। 


    अव्यांश ने बाहर निकलकर सभी कमरों की तरफ देखा लेकिन घर में कोई होता तो उसे नजर आता ना! सुहानी के कमरे में उसे कुछ हलचल महसूस हुई तो वो सीधे सुहानी के कमरे में घुस गया। सुहानी कपड़े बदल कर बालकनी में खड़ी अपने गीले बाल सुखा रही थी। अव्यांश को अपने कमरे में देखकर सुहानी बोली "क्या बात है! तू इस वक्त यहां क्या कर रहा है? मुझे तो लगा था, तू निशी साथ होगा।"


     अव्यांश ने बिना किसी लाग लपेट के पूछा "तेरे पास सैनिटरी पैड्स है क्या?"


     सुहानी ने उसे अजीब तरह से देखा, फिर ठहाके मारकर हंसने लगी। अव्यांश को गुस्सा आ गया। उसने एक बार फिर कहा "मैंने कुछ पूछा तुझसे? तेरे पास सैनिटरी पैड्स है?"


      सुहानी ने अपनी अलमारी से एक छोटा सा बैग निकाल कर उसके हाथ में रख दिया और बोली "तेरी किस्मत खराब है।"


    सुहानी के कहने का मतलब जानते हुए भी अव्यांश उससे लड़ने के मूड में बिल्कुल नहीं था। वो चुपचाप वहां से निकल गया। सुहानी ने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी कंट्रोल की और वापस से अपने बाल सुखाने लगी।


      खिड़की पर खड़े हुए अचानक उसकी नजर ऋषभ पर गई जो कंपाउंड में था। सुहानी को लगा शायद कार्तिक आया है। उसने आवाज लगाई "कार्तिक.....!"


      पहले तो ऋषभ ने सुनी नहीं। लेकिन जब दुबारा सुहानी ने आवाज़ लगाई तब जाकर उसे महसूस हुआ कि कोई उसे कार्तिक करके पुकार रहा है। ऋषभ के कदम वही रुक गए। उसने पलट कर देखा तो सुहानी उसे रुकने का इशारा कर रही थी।


     सुहानी तो आज की पार्टी में कार्तिक के साथ थोड़ा सा होली इंजॉय करना चाहती थी। लेकिन चलो कोई बात नहीं, थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन कार्तिक आया तो! शायद कुणाल ने उसे बुलाया हो! या फिर सिर्फ उसी से मिलने आया हो!'यह सोचकर सुहानी खुश होते हुए जल्दी से अपने कमरे से भागी।


    ऋषभ के माथे पर बल पड़ गए। उसने कहा "ये लड़की मुझे कार्तिक समझ रही है। इसका मतलब ये मुझे जानती नही। यानी इसके हाथ लग गया तो यह मुझे छोड़ेगी नहीं, और अगर काया को पता चल गया तो वह मुझे नहीं छोड़ेगी। इससे पहले कि कोई गड़बड़ हो, निकल ले यहां से।' 


    सुहानी भागते हुए गार्डन एरिया में पहुंची लेकिन ये देखकर हैरान रह गई कि वहां कार्तिक नहीं था। उसके आने से पहले ही ऋषभ जा चुका था। वो एयर काया के लिए वहां आया था और उसे वापस अपने घर के लिए भी लौटना था। वो गलती से भी सुहानी के हाथों नही लग सकता था।


     सुहानी मायूस हो गई। फिर अपने ही सर पर हाथ मार कर बोली "बेवकूफ! तुझे कैसे पता कि वह कार्तिक था? उसके चेहरे पर इतने रंग लगे थे, उसको ऐसे कैसे पहचान सकती है तू? हो सकता है, वो कोई और हो जिसे मैंने कार्तिक समझ लिया हो!"




     डीजे पर गाना बजाते हुए शिवि अपनी धुन में थिरक रही थी। उसका एक कारण यह भी था कि उसे कुणाल को अवॉइड करना था। कुणाल की नजरे लगातार उसे अपना पीछा करता हुआ महसूस हो रहा था। उसकी नजरों में उसे कुछ ऐसा दिखता था जिससे शिवि को कुछ अलग ही महसूस होता था। पता नहीं क्या, लेकिन कुछ ऐसा था जिसे शिवि अवॉइड करना चाहती थी।


     लेकिन कुणाल की नजरें तो फिलहाल किसी और पर ही ठहरी थी। वह हैरानी से बोला, "निक तुम? तुम यहां क्या कर रही हो?"


     उसके सामने और कोई नहीं बल्कि नेत्रा खड़ी थी। कुणाल बहुत ज्यादा घबरा गया। अगर नेत्रा यहां है, उसने उसके बारे में कुछ भी उल्टा सीधा कह दिया तो घरवाले कुहू के साथ उसका रिश्ता तोड़ेंगे सो अलग, शिवि से कभी रिश्ता जुड़ने नहीं देंगे। वैसे उसे शिवि को पाने की उम्मीद ही नहीं थी लेकिन फिर भी, वो एक कोशिश जरूर करना चाहता था।


     नेत्रा ने मुस्कुराते हुए कहा "मुझे यहां देख कर हैरान हो गए ना? मुझे पता था, इसलिए तो मैं यहां आई, सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए।"


    कुणाल ने मुड़कर शिवि की तरफ देखा जो अपनी धुन में थी। वो समझ गया था कि नेत्रा को उसके यहां होने की खबर देने वाली सिर्फ और सिर्फ शिवि ही हो सकती है, दूसरा और कोई नहीं। उसके और नेत्रा के बारे में शिवि और निर्वाण के अलावा और कोई जानता भी नहीं था। निर्वाण कभी नहीं जाएगा कि नेत्रा उसके सामने आए। वो तो अपनी बहन को कुणाल से बहुत दूर रखना चाहता था। तो बची सिर्फ शिवि।


    कुणाल ने फिर भी अनजान बनकर नेत्रा से पूछा "निक! तुम्हें कैसे पता कि मैं यहां हूं? और तुम यहां क्या कर रही हो"


    नेत्रा ने प्राउड होकर जवाब दिया एरा यहां आना तो बनता है। यह घर भी मेरा भी है। अब तुम यह सोचोगे कि मुझे कैसे पता कि तुम यहां हो?"


    कुणाल बस हल्का सा मुस्कुरा दिया तो नेत्रा बोली "शिवि दी ने बताया। अब तुम्हें तो पता ही होगा उनके बारे में। मैं भी ना, कैसी बेवकूफों वाली बातें कर रही हूं! ओबिसली! तुम नहीं जानोगे तो और कौन जानेगा?"


    कुणाल थोड़ा डरते हुए बोला, "मतलब?"


    नेत्रा कुणाल के थोड़ा और करीब आई और उसके कंधे पर कोहनी रखकर बोली "तुम और शिवि दी एक साथ बहुत अच्छे लगोगे। मैं तुम्हारे पसंद को बहुत अप्रेशिएट करती हूं।"


    कुणाल की आंखें हैरानी से फैल गई। उसे समझ नहीं आया कि नेत्रा को उसके और शिवि के बारे में कैसे पता चला? इस बारे में तो अभी तक शिवि को भनक भी नहीं लगी तो फिर ऐसा कौन था जिसने नेत्रा को इस बारे में बताया? कुणाल अभी सोच ही रहा था कि नेत्रा ने आगे कहा "वैसे मेरा नाम नेत्रा है। और तुम्हारा नाम तो मुझे पता जी है, कुणाल रायचंद!"


  शिवि मस्ती में झूम रही थी जब किसी ने अपने दोनों हाथों से उसका चेहरा पकड़ लिया। शिवि ने आंखें खोलकर देखा तो सामने खड़े इंसान को देखकर हैरान रह गई। वो चिल्लाते हुए बोली "नेत्रा....!"


   शिवि की आवाज माइक के जरिए सारे स्पीकर पर गूंज उठी। नेत्रा को अपने सामने खड़ा देख शिवि को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। नेत्रा ने शिवि के चेहरे पर गुलाल लगाते हुए कहा, "हैप्पी होली!!"


    शिवि जाकर नेत्रा के गले लग गई। दोनों बहने स्टेज पर ही एक दूसरे से लिपट कर उछलने लगे। डीजे का सिस्टम शिवि ने नेत्रा के हवाले कर दिया तो नेत्रा भी कहां कम थी। उसने भी शिवि को टक्कर देते हुए उसी की तरह ही गाना प्ले करना शुरू कर दिया।

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