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मई, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुन मेरे हमसफर 94

 94    समर्थ और बाकी सब, मिस्टर मुखर्जी की बेटी को आंखें फाड़े हैरानी से देख रहे थे सिवाए सिद्धार्थ के। उनके होठों पर बड़ी ही चालाकी भरी मुस्कान थी। समर्थ ने हैरानी से सिद्धार्थ की तरफ देखा और झुंझलाते हुए पूछा "यह कौन है?"      सिद्धार्थ ने सीधे से जवाब दिया "जाहिर सी बात है, मिस्टर मुखर्जी की बेटी है। अरे! अभी अभी इसने मिस्टर मुखर्जी को पापा कहा है। तुमने सुना नहीं?"      समर्थ को अभी भी कुछ समझ नहीं आया। उसने पूछा "मिस्टर मुखर्जी की कोई और भी बेटी है क्या?"      सिद्धार्थ सपाट लहजे में धीरे से बोले "शायद नहीं। जहां तक हमे पता है, उनकी एक ही बेटी है, दूसरी कोई औलाद नहीं है।"       सिया अभी भी सब कुछ देख कर परेशान थी और समझने की कोशिश कर रही थी। उन्होंने पूछा "यह सब क्या है? सारांश ने इसे हमारे समर्थ के लिए चुना है? इतनी छोटी सी बच्ची! कर क्या रहे हो तुम दोनों भाई मिलकर? और चल क्या रहा है तुम्हारे दिमाग में?"       सिद्धार्थ ने धीरे से कहा "मां! यह सब कुछ आपके लाडले के खुराफाती दिमाग प्लान है, मुझे कुछ मत कहिए।"        श्याम

सुन मेरे हमसफर 93

  93       एक तनाव भरे बोझिल दिन के गुजरने के बाद अगले दिन सुबह काफी शांति थी। समर्थ श्यामा के कारण अभी भी नाराज था अपने डैड से, और अपनी दादी से भी। इसलिए नाश्ता करने सबके साथ नहीं आया। श्यामा अपने बेटे को मनाने उसके कमरे में पहुंची तो देखा, समर्थ बालकनी के दरवाजे से टिक कर खड़ा हुआ था और कुछ सोच रहा था। श्यामा ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा "क्या हुआ? आज नाश्ता नहीं करना? चलो ना! फिर ऑफिस भी तो निकलना है।"      समर्थ ने बाहर देखते हुए कहा "मेरा मन नहीं कर रहा।"      श्यामा ने समर्थ को अपनी तरफ किया और बोली "किस बात की नाराजगी है तुम्हें? जो कुछ हुआ वह सब बीत गया। रात गई बात गई। अपने परिवार वालों से कोई ज्यादा देर तक नाराज नहीं रह सकता।"      "थोड़ी देर के लिए तो रह सकता है ना?" समर्थ ने जवाब दिया और वापस से बालकनी की तरफ पलट गया। श्यामा ने एक बार फिर उसे अपनी तरफ घुमाया और बोली "थोड़ी देर नाराज रहा जा सकता है, और वह टाइम खत्म हो गया। तुमने अपने पापा और अपनी दादी, दोनों को बहुत कुछ सुनाया है। घर में किसी को नहीं छोड़ा। और सब चुपचाप तुम्हारा

सुन मेरे हमसफर 92

  92     सन्नाटे को चीरती हुई समर्थ की आवाज गूंजी "हिम्मत कैसे हुई आप लोगों की, मेरी मां को रुलाने की?"      सब ने पलटकर देखा, तो दरवाजे पर समर्थ खड़ा था जो ना जाने कब से सब की बकवास सुन रहा था। उसे सबसे ज्यादा गुस्सा तब आया जब घरवाले सारे चुपचाप यह सारी बकवास सुन रहे थे, लेकिन क्यों? समर्थ आगे आया और अपनी मां के आंसुओं को पोछते हुए उन दोनों औरतों को डांट लगाई "आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरी मां को इतना कुछ सुनाने की! मुझे नहीं पता यहां बाकी सब लोग क्यों चुप है। शायद आप बड़ी हैं और यहां अभी हमारे घर मेहमान बनकर आईं है इसलिए, लेकिन मुझसे यह उम्मीद मत करिएगा कि आप लोग यहां बेशर्मी से मेरी मां की इंसल्ट करेंगे और मैं आप लोगों को इज्जत दूंगा। जिस मां ने मुझे मुस्कुराना सिखाया, उस मां की आंखों में आंसू मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा। आप लोग जिस काम के लिए आए थे, वह काम कीजिए और यहां से चलते बनिए। और आइंदा यहां आने की जरूरत नहीं है।"      मिसेज कामरा ने सिया से शिकायत की "देखो मिसेज मित्तल! आपका पूरा हमारे साथ बदतमीजी कर रहा है। पहले आपकी ये बहू और अब आपका ये पोता। अरे इसको क्य

सुन मेरे हमसफर 91

  91     सिया की कुछ सहेलियां पधारी थी और सभी अपने चाय नाश्ते में लगी हुई थी। अवनी और श्यामा तो आज एनजीओ के लिए निकल चुकी थी क्योंकि कुछ जरूरी काम वहां करने थे। यहां करने को कुछ नहीं था और जो करना था वह घर के बाकी हेल्पर कर लेते। इसलिए सिया ने भी अपनी दोनों बहू को घर से बाहर भेज दिया।       मिसेज कामरा चारों तरफ नजरे घुमाते हुए बोली "अरे मिसेज मित्तल! आपकी दोनों बहूएं कहीं नजर नहीं आ रही! हमे आए इतना वक्त हो गया और उनके दर्शन नहीं हुए एक बार भी।"       मिसेज कुंद्रा भी उनकी बातों को सपोर्ट करते हुए बोली "आप भी ना मिसेज कामरा! ये आजकल की बहुए भी ना, कभी सास की सुनती है भला! माना मिसेज मित्तल को दोनो बहूए काफी अच्छी और समझदार मिली है, लेकिन सच बात तो यह है कि बहू कभी भी अपने सास के कंट्रोल में नहीं रहती। अब यह मत कहना कि वह दोनों घर पर नहीं है, बाहर चली गई है। वह भी ऐसे छुट्टी वाले दिन।"      सिया मित्तल सब कुछ सह सकती थी लेकिन कोई उनके बेटे बहू के बारे में कुछ भी कहे तो वो उनसे बर्दाश्त नहीं था। उन्होंने जवाब देते हुए कहा "वो क्या है ना, मेरी बहुओं ने मेरी लाइफ

सुन मेरे हमसफर 90

  90      निशी के ऐसे हाथ पकड़ने से अव्यांश शॉक्ड हो गया। लेकिन उसका यू हाथ पकड़ना अव्यांश को अच्छा भी लगा। एक खूबसूरत एहसास से उसका मन गुदगुदा गया क्योंकि यह पहली बार था। वरना तो अव्यांश ने पहली मुलाकात में ही उसका हाथ पकड़ा था और फिर सीधे शादी के मंडप में।      निशी ने उसकी आंखों के सामने चुटकी बजाई और कहा, "क्या हुआ? कहां खो गए?"      अव्यांश होश में आया और बोला "नहीं, कुछ नही। मैं बस यह सोच रहा हूं कि कहीं इस वक्त तुम्हारा रोमांस करने का मूड तो नहीं बन रहा? देखो अगर तुम्हारे दिमाग में कुछ चल रहा है तो मैं तुम्हें पहले बता दे रहा हूं, अभी हमें नीचे जाना है। दादी ने हमें नीचे आने को कहा है। उनकी फ्रेंड्स अभी किसी भी वक्त आती ही होंगी। सो इसलिए ये प्रोग्राम हम बाद में कॉन्टिन्यू कर सकते हैं।"     निशी झटके में उसका हाथ छोड़ दिया और बोली "कुछ ज्यादा ही दिमाग नहीं चल रहा तुम्हारा! मेरे एक बार हाथ पकड़ने से तुम इतना कुछ कैसे इमेजिन कर सकते हो? मानना पड़ेगा तुम्हारे इस इमैजिनेशन पावर को। बहुत दूर चले जाते हो तुम।"        अव्यांश शरमाते हुए बोला "वह क्या

सुन मेरे हमसफर 89

89     अंशु के रूम के दरवाजे पर दस्तक हुई तो उसने उठकर दरवाजा खोला। बाहर सुहानी खड़ी थी जो किसी तूफान की तरह अंशु को धक्का देकर कमरे के अंदर दाखिल हुई और बोली "गधे! माना तेरी शादी हो गई है, इसका मतलब यह तो नहीं कि तू दरवाजा बंद करके रखेगा। ऐसा भी क्या स्पेशल कर रहा था, वो भी अकेले-अकेले? निशी कहां है, नजर नहीं आ रही? गई कहां है वो? और तुझे इतना टाइम क्यों लगाता है दरवाजा खोलने में? मुझे लगा कहीं तू बेहोश नहीं हो गया! डॉक्टर को फोन करने वाली थी मैं, वो भी जानवरों के।"      सुहानी के नॉनस्टॉप बकवास पर अंशु ने अपने कान बंद कर लिए। जब सुहानी चुप हुई तो अंशु ने कहा "कौन सी आफत आ गई जो तू यहां मरने चली आई?"       सुहानी अपने कमर पर हाथ रख कर बोली "लगता है तू फिर मेरे जूते खाएगा।"     अंशु मुंह बनाकर बिस्तर पर बैठ गया और बोला "जल्दी बता और निकल मेरे कमरे से। सुहानी भी उसके बगल में बैठ गई और बोली "तू घर पर नहीं था, मैं बहुत शांति से रही हूं यहां पर।"       अंशु ने भी मुस्कुरा कर कहा "मैं भी। वो 6 महीने अकेले बड़ी शांति से गुजरे है मेरे। काश...

सुन मेरे हमसफर 88

  88      सभी अपने अपने कमरे में बैठे सारांश और समर्थ के बिहेवियर के बारे में सोच रहे थे। समर्थ क्यों शादी के नाम से भाग रहा था, ना यह बात किसी के पल्ले पड़ रही थी और ना ही सारांश के स्टेटस वाली बात किसी के दिमाग में घुस रही थी। दोनों ही बातें आउट ऑफ इमेजिनेशन थी और सभी इस को डिकोड करने में लगे हुए थे।      श्यामा अपने बेटे के लिए बहुत परेशान थी। उन्होंने सिद्धार्थ से कहा "आपको क्या लगता है, क्या हो रहा है इस घर में? मुझे तो बहुत घबराहट हो रही है। समर्थ की शादी हो, यह मैं भी चाहती हूं। हम सब चाहते हैं कि एक अच्छी लड़की हमारे बेटे की जिंदगी में आए और उसकी जिंदगी खुशियों से भर दे। अकेलापन आज उसे महसूस नहीं हो रहा लेकिन बाद में जरूर महसूस होगा। हम सब उसे उस दर्द से बचाना चाहते हैं। सिद्धार्थ! आपने और मैंने इस अकेलेपन के दर्द को झेला है। हम हमारे बच्चे के साथ ऐसा कुछ होने नहीं दे सकते। लेकिन सारांश के बातें भी मेरी समझ से बिल्कुल परे है। मुझे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा कि उनकी सोच ऐसी हो सकती है! ईशानी अच्छी लड़की होगी, मैं मना नहीं कर रही। और ये भी जानती हूं कि सारांश कभी अपने भतीजे

सुन मेरे हमसफर 87

  87      समर्थ के ऐसे हाथ पकड़ने से तन्वी बुरी तरह घबरा गई। उसके चेहरे का रंग उड़ गया। उसने अपना हाथ छुड़ाने की भरपूर कोशिश की लेकिन समर्थ के आगे उसकी एक न चली। शिवि, जो उसके ठीक सामने बैठी हुई थी, उसने तन्वी के चेहरे पर उड़ती हवाइयां देखी तो बोली "क्या हुआ तन्वी? तुम ठीक तो हो? तुम्हारे चेहरे का रंग क्यों उड़ा हुआ है?"      तन्वी ने जल्दी से खुद को नार्मल किया और जबरदस्ती मुस्कुराते हुए बोली "मैं? नहीं तो। वह क्या है ना, पहली बार यहां आना हुआ है और यहां सब मेरे बॉस है। तो मुझे काफी अजीब सा लग रहा है।"     अवनी बड़े प्यार से बोली "बेटा! तुम यहां भले ही अपने बॉस के साथ हो, लेकिन यह भी मत भूलो कि यह घर तुम्हारी सहेली का भी है। ये सब तुम्हारे बॉस होंगे ऑफिस में, यायह घर पर नहीं। अपनी फ्रेंड के यहां जिस तरह तुम कंफर्टेबल होती हो, यहां भी हो सकती हो। मैं तुम्हारे लिए प्लेट लगाती हूं।"     अवनी एक प्लेट उठाकर तनु के लिए नाश्ता लगाने लगी लेकिन तन्वी खाती कैसे? उसका दाहिना हाथ तो समर्थ ने पकड़ रखा था और वह बड़े ही नॉर्मल होकर नाश्ता कर रहा था, जैसे उसे किसी बात क

सुन मेरे हमसफर 86

86     अवनी गहरी नींद में सो रही थी लेकिन सारांश की आंखों में नींद नहीं थी। अंशु जैसे ही घर आया सारांश ने उसके बेल बजाने से पहले ही दरवाजा खोल दिया। निशी घबराई हुई सी अंशु के सीने से लगी हुई थी। सारांश ने उसके सर पर हाथ फेरा और अंशु से कहा "जाकर इसे कमरे में सुला दे और तू भी आराम कर। हम कल सुबह बात करते हैं।"     अंशु भी निशी को पकड़े हुए अपने कमरे में लेकर चला आया और उसे सुलाने की कोशिश करने लगा। निशी पूरे टाइम तो काफी हिम्मत बनाए हुए थी लेकिन उसकी आंखों के सामने रहकर वह खून से लथपथ दो लोग नजर आ रहे थे और यही वजह थी कि वह बार-बार डर जा रही थी। अंशु ने बड़ी हिम्मत करके उसे अपनी बाहों में भर लिया और सुलाने की कोशिश करने लगा। ना उसने कपड़े बदले ना ही और ना ही निशी ने। इस वक्त दोनों की ही हालत ऐसी नहीं थी। बिस्तर पर गिरते ही अंशु को नींद आने लगी थी। निशी भी अंशु के बाहों की गर्माहट पाकर सो गई।      सारांश को अपने पास ना पाकर अवनी की नींद खुल गई। वह घबराकर उठी और पूरे कमरे में सारांश को ढूंढने लगी। सारांश जब अपने कमरे में दाखिल हुए तो उन्होंने अवनी को घबराया हुआ देखा। अवनी ने सीध