सुन मेरे हमसफर 88

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     सभी अपने अपने कमरे में बैठे सारांश और समर्थ के बिहेवियर के बारे में सोच रहे थे। समर्थ क्यों शादी के नाम से भाग रहा था, ना यह बात किसी के पल्ले पड़ रही थी और ना ही सारांश के स्टेटस वाली बात किसी के दिमाग में घुस रही थी। दोनों ही बातें आउट ऑफ इमेजिनेशन थी और सभी इस को डिकोड करने में लगे हुए थे।


     श्यामा अपने बेटे के लिए बहुत परेशान थी। उन्होंने सिद्धार्थ से कहा "आपको क्या लगता है, क्या हो रहा है इस घर में? मुझे तो बहुत घबराहट हो रही है। समर्थ की शादी हो, यह मैं भी चाहती हूं। हम सब चाहते हैं कि एक अच्छी लड़की हमारे बेटे की जिंदगी में आए और उसकी जिंदगी खुशियों से भर दे। अकेलापन आज उसे महसूस नहीं हो रहा लेकिन बाद में जरूर महसूस होगा। हम सब उसे उस दर्द से बचाना चाहते हैं। सिद्धार्थ! आपने और मैंने इस अकेलेपन के दर्द को झेला है। हम हमारे बच्चे के साथ ऐसा कुछ होने नहीं दे सकते। लेकिन सारांश के बातें भी मेरी समझ से बिल्कुल परे है। मुझे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा कि उनकी सोच ऐसी हो सकती है! ईशानी अच्छी लड़की होगी, मैं मना नहीं कर रही। और ये भी जानती हूं कि सारांश कभी अपने भतीजे के लिए कुछ गलत फैसला तो नहीं लेंगे। लेकिन जो कुछ भी उन्होंने कहा, मेरे लिए तो क्या किसी के लिए भी इस बारे में सोचना किसी सदमे से कम नहीं है। क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है, क्या कोई समझाएगा मुझे?"


     सिद्धार्थ अपनी ही खयालों में खोए हुए थे। श्यामा उसे बहुत कुछ कह रही थी लेकिन क्या वह उसकी बातें सुन भी रहे थे? जब श्यामा ने सिद्धार्थ को अपने किसी भी बात पर रिएक्ट करते नहीं देखा तो उन्होंने सिद्धार्थ के दोनों कंधे पर हाथ रखा और उन्हें झकझोर कर बोली "आप सुन भी रहे हैं मेरी बात? या मैं ऐसे ही अकेले में खुद से बोले जा रही हूं? पागल नहीं हुई हूं मैं लेकिन हो जरूर जाऊंगी। अब समझाएंगे मुझे कि क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है?"


      सिद्धार्थ ने श्यामा की तरफ देखा और कुछ सोच कर पूछा "क्या चाहती हो? तुम किसकी तरफ हो, सारांश के या समर्थ के?"


      श्यामा बेबस होकर बोली "मैं दोनों में से किसी एक को नहीं चुन सकती। ये बात आप बहुत अच्छे से जानते हैं। लेकिन सबसे ऊपर मेरे लिए मेरे बच्चे की खुशी है, जिससे मैं कोई समझौता नहीं करूंगी। फिर चाहे इसके लिए मुझे किसी के भी खिलाफ जाना पड़े। चाहे सारांश के खिलाफ जाना पड़े या फिर चाहे समर्थ के खिलाफ ही क्यों न जाना पड़े।"


     सिद्धार्थ ने श्यामा का हाथ पकड़ा और मुस्कुरा कर बोले "तुम पहले मेरे पास बैठो, आराम से।"


     श्यामा जाकर सिद्धार्थ के बगल में बैठ गई। सिद्धार्थ श्यामा की गोद में सर रखकर लेट गए और बोले "अपने भाई को मैं उससे ज्यादा जानता हूं। अगर वह ऐसा कुछ कर रहा है तो जरूर कोई बहुत बड़ी बात होगी। वरना वह इस तरह रिएक्ट नहीं करता। इतने सालों में उसने कभी समर्थ से तो क्या, किसी से भी जबरदस्ती करने की कोशिश नहीं की। और आज अचानक वह समर्थ के रिश्ते के लिए जिद पर अड़ा हुआ है, मतलब कुछ तो खिचड़ी पक रही है उसके दिमाग में। और समर्थ जिस तरह शादी से भाग रहा है, बिना किसी वजह के, इससे यह बात तो पक्की है कि कोई ना कोई अंदरूनी बात है जिसके बारे में हम नहीं जानते और शायद सारांश जानता है। इसलिए वो शायद सिर्फ और सिर्फ समर्थ के मुंह से सच्चाई उगलवाने का एक तरीका है। अगर यह सच है तो मुझे कोई हैरानी नहीं होगी। वैसे तुमने एक बात नोटिस की?"


    श्यामा सिद्धार्थ के बालों में उंगलियां चलाते हुए बोली "कौन सी बात?"


     सिद्धार्थ मुस्कुरा दिए और बोले "आज जब तन्वी घर आई थी तब कैसे सोमू ने तन्वी को नाश्ता के लिए पूछा था!"


     श्यामा उस पल को याद करते हुए बोली "इसमें कौन सी बड़ी बात है! तन्वी हमारे सोमू की स्टूडेंट रही है, हमारे सोनू की सहेली है और हमारे अंशु की असिस्टेंट है। तो जाहिर सी बात है समर्थ ने उसे साथ में नाश्ता करने को पूछा।"


      सिद्धार्थ ने यही बात तो श्यामा को समझाना चाहा "बिल्कुल! वह हमारी सोनू की दोस्त है तो कायदे से सोनू को ही तन्वी से यह बात कहनी चाहिए थी। अगर उसने नहीं भी कहा तो तन्वी फाइल लेकर अंशु को देने आई थी, उस हिसाब से अंशु को उसे इनवाइट करना चाहिए था। लेकिन उसे पूछा किसने? समर्थ ने। और एक बात तुमने नोटिस की? उसने तन्वी को तनु कहकर पुकारा था।"


     श्यामा इस बात से चौक गई। उन्होंने हैरानी से सिद्धार्थ की तरफ देखा और बोली "आपके कहने का मतलब क्या है?"




*****




    सारांश अंशु के साथ अपने स्टडी रूम में थे। सारांश ने सबसे पहला सवाल किया "तुम कल के एक्सीडेंट के बारे में कुछ कह रहे थे।"


      अंशु ने भी सवाल के बदले सवाल कर दिया "पहले आप मुझे यह बताइए कि आप भाई के साथ जबरदस्ती क्यों कर रहे हैं?"


    सारांश नाराज होकर बोले "यह बड़ों की बात है। बड़ों के फैसले में तुम बच्चे अगर दखलअंदाजी ना करो तो ज्यादा बेहतर है। जितना हम समझते हैं, तुम लोग सोच भी नहीं सकते।"


     अंशु अपने पापा के इस गुस्से को देख कर थोड़ा सहम गया और हैरान भी हो गया। क्योंकि इससे पहले उसने कभी अपने पापा को इस तरह गुस्सा करते नहीं देखा था। उसने फिर भी हिम्मत करके सवाल करना चाहा "लेकिन पापा! आप इस तरह से भाई को............"


     सारांश आंखें दिखा कर बोले, "मेरे फैसले पर उंगली उठाने का हक नहीं है तुम लोगो को। भैया भाभी ने कोई एतराज नहीं किया और तुम लोग! मैं तुम्हारा बाप हूं, तुम मेरे बेटे हो। बेहतर होगा बेटे बनकर ही रहो।"


     अंशु को अपने पापा की यह बात बहुत बुरी लगी। उसने नाराजगी से अपनी नजर दूसरी तरफ फेर लिया।


     सारांश ने खुद को शांत किया और बोले, "तो कल के बारे में कुछ कह रहे थे तुम! तुम्हें वाकई लगता है कि जो कुछ हुआ उसमें निशी की जान को खतरा है?"


   अंशु कल रात की बात याद करते हुए बोला "पता नहीं। वह लोग मेरे ही पीछे हैं या फिर निशी के, मुझे नहीं पता। निशी के बारे में मैं स्योर नहीं हूं। हो सकता है यह सब मेरे लिए हो, लेकिन इस सब में मैं निशी को कोई नुकसान नहीं पहुंचने देना चाहता। मैं चाहता हूं आप कमिश्नर सर को फोन कीजिए और उनसे पर्सनली इस केस को इन्वेस्टिगेशन करने की बात कहिए।"


    सारांश भी अंशु की बात सुनकर सोच में पड़ गए। "तुम सही कह रहे हो। वो ड्राइवर पकड़ा जरूर गया है लेकिन वो सिर्फ एक मोहरा है। जो भी है, पर्दे के पीछे रहकर यह सारा काम कर रहा है। हो सकता है ऐसी हरकत वो फिर से करें। इसलिए थोड़ा जो करना है करो, लेकिन सावधान हो कर रहो। जहां हम लोग खड़े हैं, वहां हमारे बहुत से दुश्मन हैं। लेकिन क्या तुम्हें किसी पर शक है?"


     अंशु सोच में पड़ गया। हाल फिलहाल तो उसके साथ जो हादसा हुआ था, उसमें से उसे कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। क्योंकि अंश ढोलकिया, वह तो इस वक्त जेल में था और उसके पापा भी। इसके अलावा उसका किसी से कोई लेना देना नहीं था। कॉलेज लाइफ में कई लफड़े हुए थे उसके। कई सारे दुश्मन रहे होंगे लेकिन वो सब वही सेटल हो गए थे। इसमें इतना सोचने वाली या दुश्मनी को आगे बढ़ाने वाली कोई बात ही नहीं।


    अंशु ने एकदम से इनकार किया और बोला "मुझे नहीं लगता मेरा ऐसा कोई दुश्मन है जो मेरी जान लेना चाहेगा। इतने टाइम से मैं यही रहा हूं। लेकिन कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसे बेंगलुरु से आने के 1 महीने के अंदर ही मेरे साथ ऐसा हादसा होना बहुत अजीब बात है। हो सकता है यह मेरा कोई वहम हो और जो भी हुआ वह एक्सीडेंट हो!"


     इस बार सारांश में इंकार कर दिया "नहीं! अगर ऐसा नहीं भी है तब भी हमें अपनी तरफ से स्योर होना जरूरी है।"


     अंशु को निशी का ख्याल आया जो अभी तक सो रही थी। उसने उठते हुए कहा "मैं चलता हूं। इस बारे में अगर कोई भी लीड हाथ लगती है या कोई भी इंफॉर्मेशन मिले तो मैं शेयर करता हूं आपसे।"


      सारांश ने भी उसे रोका नहीं। अंशु स्टडी रूम से निकलकर सीधे किचन में चला आया और एक प्लेट में नाश्ता एक में चाय और एक गिलास जूस लेकर अपने कमरे की तरफ बढ़ चला। जाते हुए उसने देखा, समर्थ गाड़ी की चाभी हाथ में पकड़े घर से बाहर जा रहा था। उसकी चाल को देखकर ही अंशु समझ गया कि इस वक्त वो कितना परेशान है। अंशु मन मसोसकर रह गया 'काश मैं आपके लिए कुछ कर पाता भाई! फिलहाल तो मुझे भी चुप रहना पड़ रहा है.। डैड से मुझे इस तरह की उम्मीद नहीं थी।'


    अंशु समर्थ को तब तक जाते देखता रहा जब तक वो उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गया। फिर वो कमरे की तरफ बढ़ गया।


 निशी अभी भी सो रही थी। दिन के 11:00 बजने को आए थे। निशी को ऐसे आराम से सोते देख अंशु के होठों पर एक प्यारी सी मुस्कान थी। उसने नाश्ता टेबल पर रखा और जाकर निशी के बगल में बैठ गया। निशी ने नींद में ही करवट बदली। अंशु चुपचाप उसे सोते हुए देख रहा था। उसने हाथ बढ़ाकर निशी के चेहरे पर आए बालों की लट को धीरे से साइड कर दिया।


    उसके इस छुअन से निशी की आंख खुल गई और वह हड़बड़ा कर उठ कर बैठ गई। सुबह की जो रंगत थी, खिड़की से जो धूप छनकर अंदर आ रही थी, उससे निशी को यह समझते देर नहीं लगी कि आज उसे उठने में काफी देर हो गई है। उसने एक नजर घड़ी की तरफ डाली और टाइम देखकर घबरा गई। "इतना टाइम हो गया और तुमने मुझे जगाया भी नहीं? मैं इतनी देर तक कैसे सोती रह गई? पता नहीं सब मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे!"


     निशी वहां से उठकर जाने को हुई लेकिन अंशु ने उसका हाथ पकड़ कर वापस से बिस्तर पर बैठा दिया और बोला "कुछ नहीं हुआ है। सब यही सोच रहे हैं कि मैंने पूरी रात तुम्हें इतना ज्यादा परेशान किया है कि तुम बहुत ज्यादा थक गई हो और तुम्हें नींद की जरूरत है। इसीलिए तुम्हें किसीने नहीं उठाया।" 


    अंशु एक सांस में सारी बात बोल गया। उसे समझने में निशी को थोड़ा सा टाइम लगा और वह आंखें बड़ी बड़ी कर बोली "तुम्हें पता भी क्या हुआ है? तुम्हारा दिमाग तो सही है? क्या बोला तुमने सबको? मैं अभी सबको बताती हूं। तुम जैसा बेशर्म इंसान मैंने आज तक नहीं देखा।"


    निशी वहां से उठकर जाने को हुई तो अंशु ने भी हंसकर कहा "हां जाओ। और बता देना कि हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हुआ था। और मैंने कुछ नहीं किया, बिल्कुल नहीं।"


    निशी दरवाजे पर पहुंची ही थी कि उसे अंशु के कहने का मतलब समझ में आया। वह वापस पलटी और पैर पटकते हुए बाथरूम में चली गई। 



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