सुन मेरे हमसफर 94

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   समर्थ और बाकी सब, मिस्टर मुखर्जी की बेटी को आंखें फाड़े हैरानी से देख रहे थे सिवाए सिद्धार्थ के। उनके होठों पर बड़ी ही चालाकी भरी मुस्कान थी। समर्थ ने हैरानी से सिद्धार्थ की तरफ देखा और झुंझलाते हुए पूछा "यह कौन है?"


     सिद्धार्थ ने सीधे से जवाब दिया "जाहिर सी बात है, मिस्टर मुखर्जी की बेटी है। अरे! अभी अभी इसने मिस्टर मुखर्जी को पापा कहा है। तुमने सुना नहीं?"


     समर्थ को अभी भी कुछ समझ नहीं आया। उसने पूछा "मिस्टर मुखर्जी की कोई और भी बेटी है क्या?"


     सिद्धार्थ सपाट लहजे में धीरे से बोले "शायद नहीं। जहां तक हमे पता है, उनकी एक ही बेटी है, दूसरी कोई औलाद नहीं है।"


      सिया अभी भी सब कुछ देख कर परेशान थी और समझने की कोशिश कर रही थी। उन्होंने पूछा "यह सब क्या है? सारांश ने इसे हमारे समर्थ के लिए चुना है? इतनी छोटी सी बच्ची! कर क्या रहे हो तुम दोनों भाई मिलकर? और चल क्या रहा है तुम्हारे दिमाग में?"


      सिद्धार्थ ने धीरे से कहा "मां! यह सब कुछ आपके लाडले के खुराफाती दिमाग प्लान है, मुझे कुछ मत कहिए।"


       श्यामा भी परेशान होकर बोली लेकिन "लड़की 10, 12 साल की लगती है। मिस्टर मुखर्जी इतनी कम उम्र में अपनी बेटी की शादी के लिए मान कैसे गए? हमारा समर्थ तो 30 साल से ऊपर का है। मतलब............."


    "...............मतलब यह कि अगर भाई की शादी सही टाइम में हो जाती तो इतनी बड़ी इनकी खुद की बेटी होती।" अंशु की यह बात सुनकर सबका मुंह खुला का खुला रह गया।


     समर्थ ने नाराजगी से सबको देखा, फिर अपने डैड से बोला, "ये सब क्या मजाक है?"


     सिद्धार्थ अपने दोनों कंधे उचका कर बोले "अपने चाचा से पूछ, मेरे से क्या पूछता है? जो भी किया उसने किया। मुझे इस बारे में कुछ पता भी नहीं था। मुझे तो तेरे बारे में भी नहीं पता था। जब मेरा अपना ही बेटा मुझसे इतनी बड़ी बात छुपा सकता है तो अपने भाई से मैं क्या ही उम्मीद करूं।" सिद्धार्थ की आवाज में निराशा साफ झलक रही थी, लेकिन ये बात सिर्फ समर्थ ही जानता था कि उसके पापा उसे ताना दे रहे हैं।


    सारांश ने सब को इस तरह खड़े देखा तो आवाज लगाई "अरे, भाई मॉम! आप लोग वहां क्या कर रहे हैं? मिस्टर मुखर्जी यहां हम सब से मिलने आए हैं, सिर्फ मुझसे नही।"


     सिद्धार्थ ने सिया का हाथ थामा और मिस्टर मुखर्जी के पास आकर बैठ गए। धीरे-धीरे बाकी सब ने भी उन दोनों को ज्वाइन किया। सबकी आंखों में सवाल थे, जिसे समझ कर सारांश ने कहा "मिस्टर मुखर्जी के बारे में तो हम सब जानते ही हैं। यह इनकी इकलौती बेटी है, इशानी। मैंने बताया था ना?"


     मिस्टर मुखर्जी मुस्कुरा कर बोले "सारांश से मैंने बहुत कुछ सुना है आप लोगों के बारे में। इशू की जिद थी कि इस बार वो होली यहां इंडिया में मनाना चाहती है। मेरी वाइफ तो यहां आ नहीं सकी इसलिए मुझे ही आना पड़ा।"


     सारांश बोले "और मैंने कहा था, यह दोनों हमारे साथ रहेंगे। हमारा घर है, अपने लोग हैं, और कोई भी त्यौहार मनाने में अकेले में मजा नहीं आता है।"


     मिस्टर मुखर्जी थोड़ा सा हिचकिचाते हुए बोले "लेकिन मिस्टर मित्तल! हम यहां....….."


     सिद्धार्थ उन्हें बीच में टोकते हुए बोले "अरे मिस्टर मुखर्जी! कैसी बात कर रहे हैं आप? हमें तो खुशी होगी आप हमारी मेहमान नवाजी को एक्सेप्ट करें तो। होली का त्यौहार है और इस त्यौहार में जितने ज्यादा लोग, उतना ज्यादा मजा। क्यों बच्चों, सही कह रहा हूं ना मैं?" सिद्धार्थ ने अपने बच्चों की तरफ देखा।


 समर्थ तो चुपचाप खड़ा था लेकिन अंशु शिवि और सुहानी यह तीनों खुश होकर बोले "बिल्कुल! और वैसे भी अगर ईशानी हमारे साथ रहेगी तो यहां का फेस्टिवल भी देख। आई थिंक इशानी कभी इंडिया नहीं आई है, है ना?"


     इशानी चहकते हुए बोली "बिल्कुल सही। पापा हमेशा कहते हैं कि इंडियन फेस्टिवल इंडिया में ज्यादा अच्छी तरीके से सेलिब्रेट कर पाते हैं, खासकर होली। पापा तो अपने इतने सारे एक्सपीरियंस शेयर करते हैं ना कि मेरे से कंट्रोल नहीं हुआ और मैंने इस बार जिद पकड़ ली कि मुझे होली इंडिया में माननी है और पापा मेरे इस डिमांड को इंकार नहीं कर पाए।" फिर इशानी अपने पापा से बोली "पापा! हम लोग यही रहेंगे। देखिए ना, इतने सारे लोग हैं, इतनी बड़ी फैमिली है। मुझे होटल में नहीं रहना।"


   अवनी उसकी बात का मान रखते हुए बोली "बिल्कुल बेटा! हम सब तो चाहते ही हैं कि आप लोग यहां रहिए। लेकिन बस आप दोनों ही आए हैं? मतलब आपकी कोई सिस्टर, ब्रदर! वो सब नहीं आए?" अवनी खुद भी कंफ्यूज थी कि आखिर सारांश का प्लान क्या था।


     ईशानी थोड़ी मायूस हो गई तो मिस्टर मुखर्जी हँसते हुए बोले "भाभी जी! अभी 14 साल पहले ही मेरी शादी हुई है। ईशानी हमारी इकलौती बेटी है। दूसरे बच्चे के बारे में हमने सोचा था लेकिन डॉक्टर ने ही मना कर दिया। वैसे अगर आप सब की यही इच्छा है तो हम लोग यहीं रह जाते हैं। आखिर अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका कभी-कभी ही मिल पाता है। अगर मेरी बेटी अपने मूल को जरा सा भी महसूस कर पाए तो इससे बड़ी बात हमारे लिए और क्या हो सकती है। लेकिन हमारा सामान तो मैंने होटल भिजवा दिया है।"


      सारांश इनकार करते हुए बोले "मैंने आपका सामान यहीं पर मंगवा लिया है। एयरपोर्ट से जो गाड़ी आपने होटल की तरफ भेजी थी मैंने उसे यही आने को कहा था। आप चिंता मत कीजिए, आप लोगों का सामान बाहर रखा हुआ है।" इतने में ड्राइवर अपने दोनों हाथ में बैग लेकर घर के अंदर दाखिल हुआ।


     श्यामा ने घर के एक हेल्पर को सारा सामान गेस्ट रूम में रखवाने के लिए कह दिया। ड्राइवर सारा सामान लेकर चला गया। सिया बोली, "बाकी सारे काम होते रहेंगे। फिलहाल आप लोग फ्रेश हो जाइए और जल्दी से डाइनिंग टेबल पर आ जाइए, हम सब साथ में नाश्ता करेंगे।"


     इतने सारे लोगों के साथ ब्रेकफास्ट की बात सुनकर ईशानी बहुत खुश हुई और वह उस तरफ भागी जिस तरह ड्राइवर उसका सामान लेकर गया था। मिस्टर मुखर्जी दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए अपनी बेटी के पीछे पीछे चले गए। उनके जाते ही जैसे सभी सारांश पर टूट पड़े और अपने अपने सवालों की बौछार कर दी।


    "क्या है यह सब? करना क्या चाहते हो तुम?"


 "ईशानी इतनी छोटी है, उसके बारे में ऐसा कैसे सोच सकते हैं आप?"


    "यह इशानी हमारी भाभी बनने के लिए कुछ ज्यादा ही छोटी नहीं है?"


    "अगर भाई की शादी टाइम पर हो जाती तो वाकई उनके बच्चे इसके क्लासमेट होते।"


    लेकिन सबसे अलग सवाल था अवनी का। उसने पूछा "आपको नहीं लगता कि अगर ईशानी और समर्थ की शादी हो गई तो हमे समर्थ के बच्चों को देखने के लिए अभी और दस, 15 साल इंतजार करना पड़ेगा!"


    सारांश ने अपना सिर पीट लिया और बोले "मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नही थी।"


      समर्थ ने सीधे सपाट लहजे में पूछा "यह सब आप ने जानबूझकर किया ना?"


      सारांश में कुछ पल उसको देखा फिर बोले ऐ"सा नहीं करता तो तू इतना बेचैन नहीं होता।"


     घर के बच्चे तो एक तरफ खड़े उनकी बातें समझने की कोशिश कर रहे थे लेकिन सिया और अवनी पूछा "क्या किया मतलब?"


     समर्थ ने जवाब दिया "मेरी शादी की बात चलाई जिस पर यह पूरी तरह अड़ गए। इससे इनका काम नहीं बना तो कल उन दो खूसट औरतों को फोन करके यह बुला लिया ताकि ऐसा हंगामा करें जो उन्होंने किया। चाचू अच्छे से जानते हैं मैं मॉम को लेकर कितना पजेसिव हूं।"


    सारांश ने जवाब देने की बजाए सवाल किया "अगर मैं ऐसा नहीं करता तो क्या तू अपने दिल की बात अपनी मां को बताता? इतने टाइम से अपने अंदर जो तूने दबा कर रखा था, क्या वह बाहर आता?"


     समर्थ ने अपना सर झुका लिया। सारांश अपने पेट पर हाथ रख कर बोले, "आप लोगों का तो पता नही लेकिन मुझे बहुत भूख लग रही है। जब तक यह दोनों बाप बेटे फ्रेश होकर आते हैं तब तक अवनी, तुम मुझे थोड़ी चाय ही पिला दो। देखो कहीं भूख से मेरी जान ना निकल जाए।"


    सारांश की नौटंकी देख अवनी उठकर डाइनिंग टेबल के पास चली गई और वहां से चाय लेकर सारांश को पकड़ा दिया। "लेकिन अभी भी अभी पूरी बात नहीं पता। अब आप लोग हो डिसाइड कीजिए कि कौन बताएगा सबको!"


  सबको ध्यान आया कि समर्थ ने उस लड़की का नाम बताया ही नहीं। सारांश, सिद्धार्थ और श्यामा तीनों मुस्कुरा उठे। इतने में उन्हें कुछ लोग घर के अंदर दाखिल होते हुए नजर आए। समर्थ हैरान रह गया जब उसने देखा, आने वाले लोग और कोई नहीं बल्कि तन्वी और उसकी फैमिली थी।

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