सुन मेरे हमसफर 92

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    सन्नाटे को चीरती हुई समर्थ की आवाज गूंजी "हिम्मत कैसे हुई आप लोगों की, मेरी मां को रुलाने की?"


     सब ने पलटकर देखा, तो दरवाजे पर समर्थ खड़ा था जो ना जाने कब से सब की बकवास सुन रहा था। उसे सबसे ज्यादा गुस्सा तब आया जब घरवाले सारे चुपचाप यह सारी बकवास सुन रहे थे, लेकिन क्यों? समर्थ आगे आया और अपनी मां के आंसुओं को पोछते हुए उन दोनों औरतों को डांट लगाई "आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरी मां को इतना कुछ सुनाने की! मुझे नहीं पता यहां बाकी सब लोग क्यों चुप है। शायद आप बड़ी हैं और यहां अभी हमारे घर मेहमान बनकर आईं है इसलिए, लेकिन मुझसे यह उम्मीद मत करिएगा कि आप लोग यहां बेशर्मी से मेरी मां की इंसल्ट करेंगे और मैं आप लोगों को इज्जत दूंगा। जिस मां ने मुझे मुस्कुराना सिखाया, उस मां की आंखों में आंसू मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा। आप लोग जिस काम के लिए आए थे, वह काम कीजिए और यहां से चलते बनिए। और आइंदा यहां आने की जरूरत नहीं है।"


     मिसेज कामरा ने सिया से शिकायत की "देखो मिसेज मित्तल! आपका पूरा हमारे साथ बदतमीजी कर रहा है। पहले आपकी ये बहू और अब आपका ये पोता। अरे इसको क्यों मिर्ची लग रही है? कौन सी सगी मां ही इसकी!"


     सिया ने भी पलट कर जवाब दिया "वह कहां बत्तमीजी कर रहा है! वह तो बस आप लोगों की बातों का जवाब दे रहा है। आपने कहा ना कि श्यामा उसकी सगी मां नहीं है। तो खुद सोचो, सगी मां नहीं है तब ये हाल है, अगर सगी होती तो वह कितना ज्यादा प्यार करता! इतना सा प्यार तो आप से बर्दाश्त नहीं हो रहा।"


     श्यामा के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। वो चुपचाप वहां से अपने कमरे की तरफ चली गई। सिद्धार्थ ने घूरकर अपने भाई सारांश को देखा। सारांश ने धीरे से अपने कान पकड़ लिए और आंखों ही आंखों में सॉरी बोल दिया। लेकिन सिद्धार्थ को यह मंजूर नहीं था। उन्होंने नजर फेरी और वहां से श्यामा के पीछे अपने कमरे में चले गए।


    समर्थ ने एक बार फिर कहा "आप लोगों का काम हुआ नहीं अभी तक? आप लोग यहां क्या कर रही हैं? मैंने कहा निकल जाईए यहां से, इससे पहले कि मैं अपने सारे संस्कार भूल कर आप दोनों को खींचकर यहां से लेकर जाऊं। अपनी इज्जत बनाए रखिए आप लोग।"


    मिसेज कामरा और मिसेज कुंद्रा दोनों ही सिया से नाराज होकर वहां से निकल गई। जाते-जाते उन्होंने पलटकर पूरे फैमिली को देखा और बोली "हम यहां अपनी मर्जी से नहीं आए थे मिसेज मित्तल! आपके बेटे ने फोन करके बुलाया था हमें। उसे ही अपनी बहू से मिलवाना था। हमें भी कोई शौक नहीं लगाता यहां आने का।" कहकर वहां से निकल गई।


     समर्थ वैसे ही गुस्से में था। यह सब सुनकर और ज्यादा गुस्सा हो गया। "किसने फोन किया था उन्हें आने के लिए? जब आप लोग अच्छे से जानते हैं कि यह लोग कैसी हैं, फिर किसने बुलाया था इन्हें यहां पर? यह लोग यहां आए, कोई बात नहीं। बकवास की कोई बात नहीं। लेकिन आप लोगों को क्या हो गया था? क्यों आप लोगों की जुबान नहीं खुले उनके सामने? दो औरतें मिलकर मेरी मां को इतना कुछ सुना गई लेकिन आप लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा? छोटी मां आप! आप क्यों चुप रही? आपने तो हमेशा से मां को सपोर्ट किया है फिर आज कैसे आपकी जुबान नहीं खुली? अंशु तू! तुझे बुरा नहीं लगा? मैं आप लोगों से क्या शिकायत करूं जब मेरी दादी और मेरे डैड, दोनों चुप थे। इतना कुछ सुनने के बाद सबसे पहले आवाज मेरी दादी की निकलनी चाहिए थी। ठीक है वह दोनों उनकी सहेलियां थी, वो वह उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही थी तो कम से कम डैड को तो इस बारे में बोलना चाहिए था! वैसे तो हर बार मॉम के सपोर्ट में खड़े हो जाते हैं लेकिन आज उनको क्या हो गया था? आज सबको क्या हो गया था? अगर मैं यहां नहीं आता तो मेरी मॉम ऐसे ही रो रही होती और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। डैड कहां पर है?"


     समर्थ ने चारों तरफ नजर दौड़ाई लेकिन सिद्धार्थ उसे कहीं नजर नहीं आए वो गुस्से में अपनी मां के पीछे चल दिया। इतना हंगामा देखकर निशी बहुत ज्यादा डर गई थी। उसने अंशु का हाथ कस कर पकड़ लिया। समर्थ के जाने के बाद अंशु ने निशी को संभालते हुए अपने कमरे में पहुंचाया।


    दूसरी तरफ सिद्धार्थ श्यामा के पीछे कमरे में पहुंचे तो उन्होंने देखा, श्यामा बिस्तर का एक कोना पकड़ कर बैठी हुई थी। उनकी आंखें बंद थी और आंखों से आंसू की धारा अविरल बह रही थी। सिद्धार्थ कैसे बर्दाश्त करते ये सब! उन्होंने जाकर श्यामा का चेहरा थाम लिया और उनके सर से अपना सर लगाकर बोले, "माफ कर दो! मुझे माफ कर दो मैं तुम्हारा सपोर्ट नहीं कर पाया! मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाया, मुझे माफ कर दो।"


   श्यामा बिना किसी भाव के बोली, "मुझे आप से कोई शिकायत नहीं है। इतने सालों में शायद मेरे प्यार में कोई कमी रह गई जो मैं अपने बच्चे को सगी मां का प्यार नहीं दे पाई। मैं आज भी उसकी सौतेली मा बन कर रह गई। ये बात तो आप भी मानते है ना?"


    सिद्धार्थ ने उन्हें चुप कराने की कोशिश की "ऐसा कुछ नहीं है श्यामा! ऐसा कुछ नहीं है। तुम समर्थ की मां हो और सिर्फ तुम उसकी मां हो।"


     श्यामा मुस्कुरा कर बोली "अगर ऐसा होता तो आप मेरे साथ खड़े होते। मेरे लिए पूरी दुनिया से लड़ जाते जैसा कि आप हमेशा करते आए थे। लेकिन आज ऐसा कुछ नहीं हुआ, इसका मतलब यही ना कि मुझसे गलती हो गई। आपको भी लगता है कि मैं समर्थ की मां नही बन पाई।"


    सिद्धार्थ ने उन्हें समझाने की कोशिश की और बोले, "ऐसा नहीं है जान! जानता हूं मैने चुप रहकर गलती की, बहुत बड़ी गलती की लेकिन मैं मजबूर था। मुझे नहीं पता नीचे क्या हो रहा था लेकिन जो भी हो रहा था वो सब तुम्हारे देवर की वजह से हो रहा था। मेरा तो दिल कर रहा है मैं उसे..........."


    इतने में सारांश दरवाजे पर से बोले "इसमें आपकी कोई गलती नहीं है भाभी। आप से अच्छी मां समर्थ को मिल ही नहीं सकती थी। और जितना प्यार आप उससे करती है, उतना कोई नहीं कर सकता था।"


   श्यामा ने उनकी बाते नही सुनी। लेकिन सिद्धार्थ ने सुनी। और जब सारांश की आवाज सुनी तो उन्होंने श्यामा की चप्पल उनके पैरों से निकाली और सारांश के ऊपर जोर से फेंक कर मारा। सारांश ने अपनी भाभी के चप्पल को जल्दी कैच किया और आकर उनके पैरों में पहनाते हुए बोला "आप मुझे जैसे चाहो मार लो भाभी। लेकिन सच वो नही है जो आप समझ रही है। नीचे भैया के चुप रहने का एक कारण था और वो था मैं।"


     श्यामा ने आंखें खोल कर दोनों भाइयों को देखा जो किसी मुजरिम की तरह उसके सामने खड़े थे। श्यामा ने सवालिया नजरों से सारांश को देखा, फिर सिद्धार्थ को। तो सिद्धार्थ ने कहा "मेरी तरफ ऐसे मत देखो। मेरा बस चलता तो उसी टाइम उन दो बुड्ढीयो को घर से उठाकर बाहर फेंक देता। तुम्हारे बेटे ने जिस तरह इज्जत से उन्हें विदा किया है, ऐसे तो कभी नहीं करता। लेकिन यह सब कुछ हुआ है तुम्हारे इस लाडले देवर की वजह से। एक काम करो, अपनी सैंडल निकाल कर इसको जितना मन है उतना पीटो। इस वक्त जितना गुस्सा तुम्हें मुझ पर आ रहा है, वह सब इस पर निकाल दो। तब जाकर समझेगा ये।"


      सारांश घुटने के बल बैठ गए और अपनी भाभी का हाथ अपने हाथ में लेकर बोले "भाभी! मुझ पर भरोसा कीजिए। मैंने जो कुछ भी किया बहुत सोच समझ कर किया। क्योंकि मैं जानता हूं, समर्थ आपसे बहुत प्यार करता है और ये सभी को पता है। वो दो औरतें किस तरह की है, वह भी मैं बहुत अच्छे से जानता हूं। इसलिए मैंने उन्हें यहां आज के दिन घर बुलाया। आप दोनों तो अभी एनजीओ में ही होती। मैने ही वहां पर सारे अरेंजमेंट पहले से शुरू करवाए ताकि काम खत्म हो जाए और आप लोग टाइम पर घर वापस आ सके। और फिर मैंने समर्थ को फोन करके घर आने को बोला था, यह कहकर कि आप की तबीयत ठीक नहीं है और वो भागता हुआ चला भी आया। इस वक्त उसे याद भी नहीं होगा कि वह घर क्यों आया था। भाभी! जो कुछ भी मैंने सोच रखा है, उसके लिए यह जरूरी था।"


      सिद्धार्थ ने सवाल किया "ऐसी क्या बात थी जिसके लिए तूने इस तरह की हरकत की?"


     सारांश कोई जवाब दे पाते, उससे पहले ही उन्हें समर्थ के कदमों की आहट सुनाई थी। सारांश ने जल्दी से श्यामा के कान में कुछ कहा और जल्दी से सिद्धार्थ का हाथ पकड़कर भागे।


    उन दोनो के बाथरूम में बंद होते ही समर्थ ने कमरे का दरवाजा खोला और अंदर दाखिल हुआ। अंदर आते ही सबसे पहली नजर उसकी अपनी मां के आंसुओं से भीगे चेहरे पर गई। वो जल्दी से श्यामा के पास गया और उसके दोनों हाथों को पकड़कर बोला "क्या सोच रही हो आप? ऐसे किसी के कुछ भी बकवास करते देने से आप खुद को इतना तकलीफ देंगी? अरे वो लोग क्या जानते हैं हमारे रिश्ते के बारे में? मैंने मां के रूप में सबसे पहले आपको देखा है, आपका चेहरा मुझे नजर आया है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप मेरी मां नहीं हो। लड़ जाऊंगा पूरी दुनिया से अगर किसी ने हमारे रिश्ते के खिलाफ कुछ भी कहा तो। आपका बेटा हमेशा आपके साथ खड़ा है चाहे कोई आपका साथ दे या न दे।" समर्थ ने कमरे में चारो तरफ नजर दौड़ाई लेकिन उसे उसके डैड कहीं नजर नहीं आए। वो आया तो था अपने डैड की क्लास लगाने लेकिन सबसे पहले उसे अपनी मॉम को संभालना था।


     श्यामा ने समर्थ के चेहरे पर प्यार से हाथ मेरा और बोली "किसकी बातों पर यकीन करूं मैं? अब तक तो मैं भी यही मानती रही कि मेरा बेटा मुझसे कभी कुछ नहीं छुपाता है। हमारा रिश्ता सगे रिश्ते से भी बढ़कर मजबूत है। हमारे बीच कभी कोई राज नहीं रहा। मैं मेरे बेटे के दिल की हर बात जानती हूं। लेकिन जब कोई मुझसे सवाल करता है कि मेरा बेटा शादी क्यों नहीं कर रहा तो मैं कोई जवाब नहीं दे पाती हूं। तू बता, है कोई जवाब इसका?"


    समर्थ के चेहरे पर हवाइयां उड़ गई। यह बात तो वाकई उसने कभी किसी से नहीं कही थी, सिवाए सारांश के। इतना कुछ होने के बाद, उसकी मां इस तरह से उसकी शादी के बारे में बात करेगी, यह उसने सोचा नहीं था।


     सारांश और सिद्धार्थ बाथरूम में खड़े होकर दोनों मां बेटे की बातें सुन रहे थे। सारांश को बस इसी बात का इंतजार था कि समर्थ आप अपनी मां को अपने दिल की बात बताएं। सिद्धार्थ ने सारांश को सवालिया नजरों से देखा तो सारांश ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया।




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