सुन मेरे हमसफर 91

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    सिया की कुछ सहेलियां पधारी थी और सभी अपने चाय नाश्ते में लगी हुई थी। अवनी और श्यामा तो आज एनजीओ के लिए निकल चुकी थी क्योंकि कुछ जरूरी काम वहां करने थे। यहां करने को कुछ नहीं था और जो करना था वह घर के बाकी हेल्पर कर लेते। इसलिए सिया ने भी अपनी दोनों बहू को घर से बाहर भेज दिया।


      मिसेज कामरा चारों तरफ नजरे घुमाते हुए बोली "अरे मिसेज मित्तल! आपकी दोनों बहूएं कहीं नजर नहीं आ रही! हमे आए इतना वक्त हो गया और उनके दर्शन नहीं हुए एक बार भी।"


      मिसेज कुंद्रा भी उनकी बातों को सपोर्ट करते हुए बोली "आप भी ना मिसेज कामरा! ये आजकल की बहुए भी ना, कभी सास की सुनती है भला! माना मिसेज मित्तल को दोनो बहूए काफी अच्छी और समझदार मिली है, लेकिन सच बात तो यह है कि बहू कभी भी अपने सास के कंट्रोल में नहीं रहती। अब यह मत कहना कि वह दोनों घर पर नहीं है, बाहर चली गई है। वह भी ऐसे छुट्टी वाले दिन।"


     सिया मित्तल सब कुछ सह सकती थी लेकिन कोई उनके बेटे बहू के बारे में कुछ भी कहे तो वो उनसे बर्दाश्त नहीं था। उन्होंने जवाब देते हुए कहा "वो क्या है ना, मेरी बहुओं ने मेरी लाइफ में बेटी की कमी पूरी की है, इसलिए मैं भी उनको अपनी बेटी की तरह ही रखती हूं। कभी उन पर कोई बंदिश नहीं लगाई। आप लोग शायद मेरी दोनों बहुओं से मिल चुकी है, उनकी मुंह दिखाई में भी और ऐसे आम दिनों में भी। और उन दोनों ने भी आपकी खातिरदारी में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी। मेरी बहूओ ने आज तक मेरी कोई बात नहीं टाली और ना कभी ऐसा करेंगी। यही हाल मेरे बेटों का भी है। मेरे परिवार में कौन कैसा है, मैं मैं बहुत अच्छे से जानती हूं। दूसरों के घर में झांकने से पहले अपने घर में देख लेना चाहिए कि आपके अपने बच्चे कितने आज्ञाकारी हैं। आपका अपना बेटा है आपकी बात नहीं सुनता, तो बहू के तो क्या ही कहने। आपको मेरे अंशु की पत्नी से मिलना था ना? बाकी सब से तो आप बहुत पहले मिल चुकी हैं। इसलिए मुझे भी उन्हें रोकना सही नहीं लगा। आप लोग जिस काम के लिए आई हैं, उस पर ध्यान दें तो ज्यादा बेहतर होगा।"


     मिसेज कुंद्रा और मिसेज कामरा एक दूसरे की तरफ देखा और हल्का सा मुंह टेढ़ा कर दिया ताकि सिया को पता ना चले। लेकिन मन ही मन तो उनके आग लग चुकी थी, फिर भी इतना अच्छा नाश्ता वो कैसे मिस करती!


    अवनी और श्यामा भी अपना काम फटाफट निपटा कर जल्दी ही एनजीओ से वापस चली आई। घर में आए मेहमानों को देखकर उन दोनों ने ही हाथ जोड़कर प्रणाम किया और सिया के कहने पर कपड़े चेंज करने चली गई। दोनों जब फ्रेश होकर बाहर आई तो सिया ने उन्हें कहा "अव्यांश और निशी को नीचे आने के लिए दो। यह लोग उन्हीं से मिलने आए हैं। नए जोड़े को आशीर्वाद जो देना है।" सिया ने आशीर्वाद पर कुछ ज्यादा ही जोर देकर कहा जिससे उन दोनों का मुंह बन गया।


    श्यामा जाने को हुई तो अवनी जल्दी से बोली, "भाभी! आप आराम करो, मैं उन्हें लेकर आती हूं।" अवनी वहां से चली गई और श्यामा वहां खड़ी रह गई।


    मिसेस कामरा को अपनी इंसल्ट का बदला लेने का बस एक मौका चाहिए था। श्यामा को खड़े देख उन्होंने मन ही मन कुछ सोचा और मुस्कुरा कर बोली "अरे श्यामा बेटा! सब ठीक है ना? मेरा मतलब, सारा काम काज कैसा चल रहा है?"


     सिया ने एक चुभती नजर मिसेज कामरा पर डाली। लेकिन उन्होंने इसे इग्नोर कर दिया। श्यामा जिसे इस सब का कोई आईडिया नहीं था, वह भी मुस्कुरा कर बोली "सब कुछ बहुत अच्छा है आंटी! मैं और अवनी अभी एनजीओ से आ रहे हैं। बच्चों के लिए कुछ स्पेशल अरेंजमेंट करने थे, बस वही देख कर आ रहे हैं।"


      मिसेस कुंद्रा मुस्कुराकर बोली "तुम दोनों देवरानी जेठानी ने मिलकर कितने अच्छे से संभाल लिया है उसे एनजीओ को। वरना बेचारी मिसेज मित्तल अकेले परेशान हो जाती थी। लेकिन तुम्हें नहीं लगता कि जब इतना जरूरी काम था तो अपनी सास को भी वहां लेकर जाना चाहिए था? वो क्या है ना, इतने सालों तक तो उसी ने संभाला है। वहां क्या हो रहा है, क्या नहीं, इस बारे में उसका देखना भी तो जरूरी है।"


     श्यामा को उनकी बातें कुछ समझ नहीं आई लेकिन सिया बहुत अच्छे से समझ गई। उन्होंने इसका जवाब दिया "मैंने अपनी सारी जिम्मेदारी अपने बच्चों में बांट दिया है। जब बिजनेस की जिम्मेदारी अपने बेटों को देखकर मैं निश्चिंत हो गई हूं और उनसे कभी कोई सवाल नहीं करती तो अपनी बहू से मैं कैसे सवाल करूं? जबकि मैं अच्छे से जानती हूं कि मेरे बेटे मुझसे बेहतर बिजनेस जानते हैं और मेरी दोनों बहूए मुझसे ज्यादा अच्छे से उस एनजीओ को संभाल सकती हैं।"


    श्यामा को थोड़ा अजीब लग रहा था। उसने फिर भी अपनी सास के बगल में बैठते हुए मुस्कुरा कर कहा "आंटी! मैं तो पूरे हफ्ते ऑफिस के काम में बिजी रहती हूं। एनजीओ तो सारा अब अवनी के ही भरोसे है। सच मानिए तो बहुत अच्छे से संभाला है उसने। जब भी कोई प्रॉब्लम होती है या फिर कुछ ऐसी बात होती है तो हम दोनों साथ मिलकर करते हैं। एनजीओ का सारा क्रेडिट मैं सिर्फ और सिर्फ अवनी को ही दूंगी।"


     मिसेज कामरा ने अपना अगला दांव खेला। "श्यामा! तुमसे एक बात पूछूं? तुम्हारा बेटा........ मेरा मतलब सिद्धार्थ का बेटा शादी कब कर रहा है? सारांश के बेटे ने तो शादी कर ली लेकिन घर का बड़ा बेटा अब तक कुंवारा क्यों है?"


    सिया अच्छे से जानती थी कि मिसेज कामरा के दिमाग में क्या चल रहा है। उन्होंने झुक कर श्यामा से पूछा, "इन लोगों को यहां इनविटेशन किसने दिया है?"


    श्यामा ने भी इंकार कर दिया। इसका साफ मतलब था कि उसे भी नहीं पता। वह मिसेज कामरा से बोली "वो क्या है ना आंटी! बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो कहां बड़ों की सुनते हैं। उसका भी यही हाल है। पता नहीं क्यों लेकिन शादी के नाम से वह बहुत बुरी तरह घबराता है। अंशु की शादी अचानक हो गई, हम बहुत खुश हैं। बस अगर समर्थ की भी शादी हो जाए तो इस घर में दो बहू का राज हो। आपकी नजर में है कोई अच्छी सी लड़की तो बताइए मेरे बेटे के लिए।"


     मिसेज कुंद्रा उसे ताना देते हुए बोली "रिश्ते तो कई सारे है लेकिन क्या पता किसके दिल में क्या छुपा है। हो सकता है वह अपने बाप पर गया हो। मेरे कहने का मतलब, अब बेचारा बिन मां का बच्चा है, सौतेली मां से अपनी बात शेयर करना उसे थोड़ा अच्छा नहीं लगता हो और घर से बाहर उसका कोई अफेयर हो जिसके बारे में किसी को जानकारी नहीं हो।"


    श्यामा को यह बात चुभ गई। सौतेली मां!!! जिस बच्चे को अपने सभी औलाद से ज्यादा प्यार किया यह समाज कैसे उसके रिश्ते को सोतेला कह सकता था? लेकिन श्यामा बोलने वाले जुबान कैसे बंद करती! मिसेज कामरा ने बात बढ़ाते हुए कहा "ऐसा हो भी सकता है। वाकई, कहीं ऐसा ना हो कि जैसे सिद्धार्थ बिन बियाहे एक बच्चे का बाप बन गया वैसे ही उसका बेटा भी इसी नक्शे कदम पर चल पड़ा हो। उसका अपना एक परिवार हो जिसके बारे में किसी को खबर ही नहीं!"


     इतनी देर में बाकी लगभग सारे घर वाले भी वहां इकट्ठा हो चुके थे। लड़कियां अपने कमरे में बंद थी। अवनी अंशु और निशि को लेकर वहां आ चुकी थी। सिद्धार्थ और सारांश वही पीछे थोड़ी दूरी पर खड़े उन सब की बातें सुन रहे थे।


     अवनी को यह सब सुनकर बहुत ज्यादा गुस्सा आया। उसने आगे बढ़कर उन सब को जवाब देना चाहा लेकिन सारांश ने उसका हाथ पकड़ लिया। अवनी ने हैरानी से सारांश की तरफ देखा तो सारांश ने उसे इशारे से चुप रहने के लिए कह दिया। अव्यांश को भी यह बात समझ नहीं आई कि आखिर उसके पापा ऐसे क्यों कर रहे हैं! सिद्धार्थ तो बस श्यामा के चेहरे को ही देखे जा रहा था।


      श्यामा को अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा "आप मेरे बेटे के बारे में ऐसा कैसे कह सकती हैं? आपने अपने बच्चों को देखा है? हमारे घर के बच्चे बहुत संस्कारी हैं और ऐसी वैसी कोई हरकत नहीं करते। अपने बेटे को मैं उससे ज्यादा बेहतर जानती हूं। वह मुझसे कभी कुछ नहीं छुपाता। और क्या सौतेला सौतेला लगा रखा है आप सब ने!! वो मेरा बेटा है, कोई सगा या सौतेला नहीं। आप ऐसे मेरे बच्चे को सौतेला नहीं कह सकते।"


     श्यामा की आंखों में आंसू आ गए लेकिन मिसेज कुंद्रा को तो आज अपनी इंसल्ट का पूरा बदला ले लेना था। उन्होंने कहा "चाहे कुछ भी कर लो, रहोगी तो तुम सौतेली ही। अब तुम मानो या ना मानो, लेकिन समर्थ चाह कर भी तुम्हारे साथ अपने दिल की बात शेयर नहीं कर पाता होगा। सगी मां की बात ही कुछ और होती है।"


     श्यामा ने बड़ी हिम्मत बटोर कर सबसे कहा "समर्थ मेरा बच्चा है। वो मुझसे कभी कुछ नहीं छुपाता। आप लोग क्या बातें कर रही है? आप लोग यहां हमारी बहु की मुंह दिखाई की रस्म के लिए आई है ना? तो फिर ये सारी बातें कहां से आ गई?"


     मिसेज कामरा ने भी ताना देते हुए कहा "हमे भी शौक नहीं है किसी की लाइफ में इंटरफेयर करने का। हम तो बस ऐसे ही पूछ रहे थे लेकिन तुम तो बुरा मान गई। देखो मिसेज मित्तल! आप की बहू किस तरह हमारे से बात कर रही है! सच्चाई और भलाई का तो जमाना जी नही रहा।"


    मिसेज कुंद्रा ने भी आग में घी डाल "ये जो तुम कह रही हो कि तुम समर्थ की सगी मां से भी बढ़कर हो, वह तुम्हारा अपना बेटा है तो एक बात बताओ, अगर वह तुम्हें इतना ही मानता है इतना ही अपना समझता है इतना ही प्यार करता है तो फिर वो शादी क्यों नहीं कर रहा? कुछ तो वजह बताई होगी ना उसने जो किसी को नहीं पता! अरे कौन सा इंसान इस उम्र तक कुंवारा रहता है? या तो बाल ब्रह्मचारी बनने चला है या फिर कोई लड़की का चक्कर है। तुम ही बता दो, इन दोनों में से कौन सी वजह है? क्योंकि तीसरा कोई वजह तो हो ही नहीं सकता। इस घर में ऐसी कौन सी शादी नाकाम रही है जिसे देखकर वो शादी से दूर भागता है?"


     सारे चुप थे। एक पल को जैसे वहां घोर सन्नाटा पसर गया। श्यामा ने अपने पूरे परिवार की तरफ देखा। उनकी आंखों में बस एक ही सवाल था "क्या मैं वाकई एक सौतेली मां हूं?"


      अवनी से रहा नहीं जा रहा था लेकिन सारांश ने उसका हाथ मजबूती से पकड़ रखा था। श्यामा ने सिद्धार्थ की तरफ सवालिया नजरों से देखा। सिद्धार्थ कुछ कहना चाहते थे लेकिन उनकी जुबान बंद थी। क्योंकि सारांश उसे कुछ भी बोलने से मना किया हुआ था। यही हाल सिया का भी था।





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