सुन मेरे हमसफर 86

86




    अवनी गहरी नींद में सो रही थी लेकिन सारांश की आंखों में नींद नहीं थी। अंशु जैसे ही घर आया सारांश ने उसके बेल बजाने से पहले ही दरवाजा खोल दिया। निशी घबराई हुई सी अंशु के सीने से लगी हुई थी। सारांश ने उसके सर पर हाथ फेरा और अंशु से कहा "जाकर इसे कमरे में सुला दे और तू भी आराम कर। हम कल सुबह बात करते हैं।"


    अंशु भी निशी को पकड़े हुए अपने कमरे में लेकर चला आया और उसे सुलाने की कोशिश करने लगा। निशी पूरे टाइम तो काफी हिम्मत बनाए हुए थी लेकिन उसकी आंखों के सामने रहकर वह खून से लथपथ दो लोग नजर आ रहे थे और यही वजह थी कि वह बार-बार डर जा रही थी। अंशु ने बड़ी हिम्मत करके उसे अपनी बाहों में भर लिया और सुलाने की कोशिश करने लगा। ना उसने कपड़े बदले ना ही और ना ही निशी ने। इस वक्त दोनों की ही हालत ऐसी नहीं थी। बिस्तर पर गिरते ही अंशु को नींद आने लगी थी। निशी भी अंशु के बाहों की गर्माहट पाकर सो गई।


     सारांश को अपने पास ना पाकर अवनी की नींद खुल गई। वह घबराकर उठी और पूरे कमरे में सारांश को ढूंढने लगी। सारांश जब अपने कमरे में दाखिल हुए तो उन्होंने अवनी को घबराया हुआ देखा। अवनी ने सीधे जाकर सारांश को पकड़ा और पूछा "अंशु आया क्या? कहां है वह?"


     सारांश ने अवनी के चेहरे को प्यार से थामा और बोला "वह घर आ गया है। निशी भी घर आ गई है। दोनों बिल्कुल ठीक है, कुछ नहीं हुआ है उन्हे। मैंने कहा था ना, तुम बेवजह परेशान हो रही हो और कुछ नहीं। बच्चे हैं, उन्हें देर रात घूमने की आजादी चाहिए। हम ऐसे उन पर पहरा तो नहीं लगा सकते! अब देखो, शिवि कुहू और काया एक साथ है। एक सिर्फ तुम्हारी वजह से मैंने सोनू को घर बुला लिया था। चल कर सो जाओ, टेंशन लेने वाली कोई बात नहीं है। सारे बच्चे अपनी अपनी जगह पर है।"


    अवनी को फिर भी यकीन नहीं हुआ। वह कमरे से निकल गई। सारांश उसे आवाज देते रह गए। "अवनी! अवनी क्या कर रही हो? बच्चे सो रहे हैं, तुम उन्हें डिस्टर्ब कर दो दोगी।" सारांश जानते थे कि अवनी, अंशु को देखे बिना मानेगी नहीं इसलिए वह भी उसके पीछे-पीछे गए।


     अवनी ने अंशु के कमरे के दरवाजे पर नॉक किया, लेकिन अंशु और निशी, दोनों ही काफी ज्यादा थके होने के कारण तुरंत सो गए थे और गहरी नींद में होने के कारण उन्हें दरवाजे पर भी दस्तक सुनाई नहीं दी। जब किसी ने दरवाजा नहीं खोला तब अवनी ने धीरे से दरवाजे की हैंडल घुमाई और अंदर झांक कर देखा।


     सारांश में एकदम से अवनी के आंखों पर हाथ रखा और बोले, "क्या कर रही हो? इस तरह बच्चों के कमरे में ताका झांकी करना अच्छी बात नहीं होती।"


   अवनी ने सारांश का हाथ झटक कर दूर किया और बोली "आप बीच में मत पड़िए। मुझे जो करना है वह मैं करूंगी। बच्चो को देखे बिना मुझे चैन नहीं आएगा।" अवनी अंदर आई और देखा, दोनों एक दूसरे को थामे सो रहे है तो उसने कमरे की लाइट ऑफ कर डायर धीरे से दरवाजा बंद कर बाहर आ गई। 


   सारांश ने अपनी को ताना देते हुए पूछा हुए तसल्ली मेरी बात पर तो भरोसा है नहीं तुम्हें अपनी भी मुस्कुरा कर बोली हां मिल गई तसल्ली और आपकी बातों पर भरोसा करके ही मैं सोई थी ज्यादा नाटक करने की जरूरत नहीं है और वहां से सीधे अपने कमरे में चली गई और अपने कमरे की तरफ चल दिए। घर में सभी इस सब से बेखबर आराम से सो रहे थे।



    सुबह का माहौल काफी खुशनुमा था, जैसा कि हमेशा होता था। सुहानी जो रात को वापस अपनी गैंग के पास लौट गई थी, वो भी सुबह घर लौट आई थी। शिवि और समर्थ भी करा चुके थे लेकिन अंशु और निशी अभी तक सो रहे थे और नाश्ते का टाइम हो रहा था।


    अवनी ने कहा "मैं उन्हें जगह कर आती हूं। शायद कल रात को कुछ ज्यादा ही थक गए थे।"


     सुहानी ने मजाक उड़ाते हुए कहा "लगता है कुछ ज्यादा ही लॉन्ग ड्राइव पर निकल गया था, बहुत दूर।"


     शिवि, सोनू की बात सुनकर हँस पड़ी और बाकी सब भी मुंह दबाकर हंसने लगे। लेकिन सारांश को हंसी नहीं आई। कल रात जो कुछ भी हुआ था वह बात सिर्फ सारांश को पता थी। उन्होंने अवनी को रोकते हुए कहा "अवनी! तुम रुको मैं उन्हें जगा कर आता हूं।"


   इस बार सिया ने सारांश का हाथ पकड़ा और बोली "बेटा शादीशुदा हो चुका है, ऐसे उसके कमरे में जाना अच्छी बात नहीं।"


    सारांश ने भी अवनी की तरफ इशारा करके कहा, "यह बात तो आप किसी और को समझाइए मॉम।"


    अवनी ने नाराजगी से सारांश की तरफ देखा तो सिया बोली "उसे फोन करो और नाश्ते के लिए आने को कहो।"


     सारांश ने अपना फोन उठाया और अंशु को कॉल लगा दिया। लेकिन अंशु के फोन की रिंग हॉल में मौजूद सभी को सुनाई दे रही थी। सब ने देखा, अंशु तैयार होकर नीचे ही चला रहा था। अवनी ने पूछा "निशी कहां है?"


    अंशु आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया और प्लेट सीधे करते हुए बोला "वह सो रही है मॉम! उसे कुछ देर नींद की जरूरत है।"


    समर्थ ने उसका मजाक उड़ाया और कहा "लगता है कल रात को कुछ ज्यादा ही थक गई है बेचारी।"


     आपने प्यारे पोते का मजाक उड़ते देख सिया ने डांट कर समर्थ को चुप करवाया ताकि कोई हंसे नहीं और खुद अंशु से पूछी "वैसे, कल रात सोए कब थे तुम लोग?"


     अपनी दादी से ऐसी बात सुनकर अंशु को समझ नहीं आया कि वह क्या जवाब दें। उसने मन ही मन कहा 'अच्छा हुआ जो निशी इस वक्त यहां नहीं है वरना वो शर्म से मर जाती।' उसने अपना गला खराशा और प्लेट में पराठे लेकर बोला "दादी! ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। अब हमारी किस्मत मॉम डैड की तरह तो है नहीं। फिलहाल मैं आपकी बहू को टाइम दे रहा हूं। शायद हम दोनों एक दूसरे को टाइम दे रहे है। फिलहाल तो कोई उम्मीद मत करिए और समर्थ भाई की शादी पर फोकस कीजिए, वह ज्यादा जरूरी है। वैसे डैड! लड़की वाले कब तक आ रहे हैं? आई मीन मैं अपनी होने वाली भाभी को कब तक देख पाऊंगा?"


    अपनी शादी का जिक्र सुनते ही समर्थ असहज हो गया। कोई कुछ कहता उससे पहले ही दरवाजे की घंटी बजी। घर के एक हेल्पर ने जाकर दरवाजा खोला। समर्थ की नजर आने वाले मेहमान पर ठहर सी गई। अब हमारे समर्थ की नजर यो सिर्फ हमारी तन्वी पर ही रहती है, तो बिल्कुल दरवाजे पर तन्वी ही खड़ी थी। उसके हाथ में एक फाइल था जिसे लेकर वह घर के अंदर दाखिल हुई। 


   अंशु उठ कर उसके पास आया और उंगलियां चाटते हुए बोला "तुम यहां क्या कर रही हो? आज तो छुट्टी है ना फिर इतनी सुबह, यहां, क्यों?"


    समर्थ को अंशु का यह सवाल पसंद नहीं आया। लेकिन वह तन्वी के डिफेंड में क्या कहता! बहुत सोच समझकर उसने कहा "अंशु! वह बेचारी इतनी सुबह यहां आई है और तुम इससे ऐसे सवाल कर रहे हो!"


      अंशु भी अपने सवाल को जस्टिफाई करते हुए बोला "यही तो मैं भी कह रहा हूं भाई कि आज संडे के दिन घर में आराम करने की बजाए ये सुबह सुबह उठकर यहां आई है। आप खुद सोचो ना! यहां आने के लिए इसे कितनी सुबह उठना पड़ा होगा। तभी तो पूछ रहा हूं।"


     समर्थ ने फिर भी कहा "समझता हूं लेकिन वो आई है तो इतने सवाल कर रहा है। हो सकता है सुहानी से मिलने आई हो।" फिर वह तन्वी से बोला "अरे तनु! तुम भी आकर हमें ज्वाइन करो।" सारांश ने घुरकर समर्थ को देखा लेकिन समर्थ ने अपने चाचू को इग्नोर कर दिया। सुहानी को समर्थ का ऐसे तन्वी को तनु बुलाना थोड़ा सा खटका।


    तन्वी अपना एक कदम बढ़ाने में भी काफी हिचक महसूस कर रही थी। उसने अपने हाथ में पकड़ा फाइल अंशु की तरफ बढ़ाते हुए कहा "इस फाइल पर कल आपने मुझे काम करने को कहा था, तो मैं ले आई इसे। शायद आज आपको इस पर काम करना था।"


    अंशु ने तन्वी के हाथ से वो फाइल लिया और उसे पलट कर देखते हुए बोला "तो इसे कल ऑफिस में ले आती। इतना अर्जेंट भी नहीं था ये। या फिर मुझे फोन ही कर देती, मैं खुद आ जाता। तुम्हें इतनी दूर परेशान होने की जरूरत नहीं थी। अब जब इतनी सुबह आ ही गई हो तो आओ, तुम भी हमारे साथ नाश्ता कर लो।"


     सुहानी ने भी तन्वी को अपने पास आने का इशारा किया लेकिन तन्वी बोली "नहीं सर! मुझे अभी घर जाना होगा। घर में बहुत काम है। पहले 2 दिन की छुट्टी मिलती थी, अब तो बस 1 दिन ही रह गए हैं। फैमिली भी तो जरूरी है।"


     सारांश ने जल्दी से कहा "बिल्कुल! आई थिंक तन्वी को अपनी फैमिली के पास जाना चाहिए। एक संडे ही तो मिलता है जब हम फैमिली के साथ कुछ प्लानिंग कर सकते हैं।"


     सुहानी बीच में ही बोल पड़ी, "लेकिन अगर आई है तो हमारे साथ नाश्ता करने में क्या जाता है?"


  अब तो सारांश को भी अपनी बेटी के आगे झुकना ही था । सिया ने तन्वी को ध्यान से देखा। आज वह पहली बार उसे देख रही थी। मासूम सी शक्ल, हाइट कम और आंखों पर चश्मा। ना जाने क्यों लेकिन तन्वी के चश्मे को देखकर सिया को पुरानी अवनी की याद आ गई।


     सिया ने तन्वी से कहा "तन्वी! आकर बैठा हमारे साथ।"


    सिया के बुलाने पर तन्वी उनका अपमान नहीं कर सकती थी। उसे जाकर सबके साथ बैठना पड़ा। लेकिन उसकी जो सीट उसे मिली, वह समर्थ के बगल वाली थी। क्योंकि अंशु आज निशी की कुर्सी पर बैठा हुआ था। तन्वी बहुत ही असहज महसूस कर रही थी। वहां बैठते ही समर्थ ने मौका पाकर तन्वी का हाथ पकड़ लिया।

     

Read more

Link:

सुन मेरे हमसफर 87



सुन मेरे हमसफर 85








टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274