सुन मेरे हमसफर 85

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    अवनी ना जाने क्यों लेकिन काफी घबराई हुई सी थी। रह रहकर उसका मन बेचैन हो रहा था। सारांश ने उसे ऐसे परेशान देखा तो उसे अपनी बाहों में भर कर बोला “क्या हो गया? इतनी घबरा क्यों रही हो?”

    अवनी ने भी उसकी बाहों में सिमट कर बोली “पता नहीं क्यों लेकिन मुझे बच्चों को लेकर बहुत डर लग रहा है। सारे अभी तक नहीं आए। देखिए ना, रात के 11:00 बजने को है और उन लोगो का कुछ पता नहीं है।“

      सारांश समझाते हुए कहा “समर्थ अपने किसी फ्रेंड के साथ है, आज रात वहीं पर रुकेगा। शिवि कुहू के साथ है और आज उनकी अलग ही पार्टी होनी है। फिर भी मैंने सुहानी को बोल दिया है घर आने को। अंशु ने कहा था मुझे कि उसे आने में देर हो जाएगी। वैसे भी कल संडे है और बच्चों का तो तुम जानती हो। यह सब जहां मिल जाए वहां पूरी रात पार्टी करने का मौका नहीं छोड़ते। सब साथ में होंगे और आते ही होंगे, अगर उन्हें आना होगा तो। वरना तो कल सुबह।“

     पता नहीं क्यों लेकिन अवनी का मन मानने को तैयार नहीं हो रहा था। कोई पहली बार नहीं था जब बच्चे इस तरह घर से बाहर थे। वैसे भी आज तो सभी एक साथ थे तो ऐसे में घबराने वाली कोई बात थी ही नहीं। फिर भी एक मां का मन बेचैन हुआ जा रहा था। सारांश ने अवनी को समझा तो दिया लेकिन उसके दिल में भी एक अजीब सी कशमकश चल रही थी। इस बार वाकई उसे भी थोड़ा डर लग रहा था।


     सारांश ने अव्यांश को फोन करने की कोशिश की थी लेकिन उसका फोन नहीं लग पाया था। 'ना जाने ये सब लोग कहां है? इतना भी नहीं होता कि घर पर एक बार फोन कर दे।' सोचते हुए, एक हाथ से अवनी को संभाले हुए सारांश ने दूसरे हाथ से अपना फोन लेकर सुहानी का नंबर डायल किया।


     रिंग जा रही थी जिसे सुनकर सारांश ने राहत की सांस ली। बस अब सुहानी के फोन उठाने का इंतजार था। सुहानी ने भी कुछ देर बाद कॉल रिसीव किया और बोली "बस 2 मिनट में घर पहुंच रही हूं।"


      सारांश ने पूछा "अंशु और निशी तेरे साथ है ना?"


     सुहानी बोली "हम सब लोग एक साथ ही निकले थे। उसकी गाड़ी मेरे पीछे ही थी।" सुहानी ने अपने रियर व्यू मिरर में देखा लेकिन अव्यांश की गाड़ी उसे कहीं नजर नहीं आई। सुहानी बोली "डैड! उसकी गाड़ी तो मुझे पीछे कहीं नजर नहीं आ रही। फिलहाल में अभी काया को घर छोड़ कर आ रही हूं। हो सकता है अंशु, निशी के साथ कहीं और घूमने निकल गया हो! आप चिंता मत कीजिए, डिनर के टाइम में ही मुझे लगा था कि उसका प्लान कुछ और है।"


     सुहानी ने हॉर्न बजाया और मेन गेट खुलते ही उसने गाड़ी अंदर ले ली। सुहानी की आवाज सुनकर अवनी को थोड़ी तसल्ली हो गई, लेकिन अव्यांश की कोई खबर ना मिलने पर वो और ज्यादा घबरा गई। सुहानी की गाड़ी की आवाज जैसे ही उसे अपने कंपाउंड में सुनाई पड़ी, अवनी भागते हुए अपने कमरे से निकली। सुहानी गाड़ी को पार्क करके बाहर निकली ही थी कि अवनी ने उसे पकड़कर पूछा "सोनू, आशु कहां है?"


    सुहानी ने अपनी मां को वही जवाब दिया जो अभी कुछ देर पहले आपने डैड को दिया था। "मॉम प्लीज! आप परेशान होना बंद कीजिए। आ जाएगा वह। छोटा बच्चा नहीं है, अपनी बीवी के साथ है वो। जैसे आप और डैड, वैसे ही वह दोनों।"


     अवनी ने सुहानी के सर पर चपत लगाई। सुहानी अपनी मां को लेकर अंदर आई और उन्हें उनके कमरे में बिस्तर पर बैठाते हुए बोली "आप चिंता मत कीजिए। वह आ जाएगा। अब, आज रात को आएगा या कल सुबह, नहीं कह सकती।"


    सारांश उसकी साइड लेते हुए कहा "सुन लिया अपनी बेटी की बात! ठीक है वो, कुछ नहीं हुआ है, आ जाएगा। अब सारी टेंशन दिमाग से निकालो और चल कर सो जाओ।"


      सुहानी ने दोनों को गुड नाईट कहा और वहां से निकल गई। सारांश ने अवनी को सुलाया और उसका सर सहलाते हुए बोला "मेरी बात हुई थी उससे। उसने कहा था, उसे देर हो जाएगी आने में। तुम चिंता मत करो, हमारा बेटा समझदार है। इस तरह तो तुम तब भी परेशान नहीं हुई जब वह 6 महीने के लिए बेंगलुरु गया था।"


     सारांश केसर सहलाने से अवनी को नींद आ गई। उसके सोने के बाद सारांश उठा और एक बार फिर अव्यांश नंबर डायल किया। काफी देर से उसका नंबर स्विच ऑफ जा रहा था। इस बार कॉल लगने से सारांश के दिल की धड़कन बढ़ गई।



*****



    अव्यांश का फोन निशी के हाथ में था और निशी कुर्सी पर बैठे किसी और की दुनिया में खोई हुई थी। जब उसके हाथ में रखा फोन बजा तो काफी देर के बाद उसे एहसास हुआ। फोन स्क्रीन पर डैड का नाम देखकर उसने कांपते हाथों से कॉल रिसीव किया और बोली "हेलो, पापा! पापा वह.......!" और निशी की रुलाई छूट गई। इतनी देर से अपने घबराहट को अपने मन में छुपाए हुए थी और खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन किसी बड़े के होने का एहसास था जो उसके मन का डर बाहर निकल पड़ा।


    निशी को ऐसे रोते हुए सुन सारांश का दिल धक से रह गया। अपने जिस बच्चे को जान से ज्यादा प्यार करता है, कहीं उसके साथ कुछ गलत ना हो गया हो, ये सोचकर ही उसका कलेजा कांप गया। उन्होंने पूछा "क्या हुआ निशी? सब ठीक है? कहां हो तुम लोग?"


    निशी ने रोते हुए जवाब दिया "पापा! हम लोग हॉस्पिटल मैं है।"


     हॉस्पिटल का नाम सुनकर ही सारांश को काटो तो खून नहीं। उन्होंने बिस्तर पर सो रही अवनी तरफ देखा। अवनी की घबराहट और अपनी बेचैनी अब जाकर समझ आ रही थी। "निशी! मेरे बच्चे!! क्या हुआ है? तुम बताओ, कहां पर हो तुम लोग? मैं अभी आता हूं।" सारांश ने घबराते हुए कहा।


     इतने में फोन अव्यांश ने ले लिया और बोला "हेलो डैड!"


     अपने बेटे की आवाज सुनकर सारांश ने चैन की सांस ली और पूछा "अंशु! क्या हुआ है बच्चा? तुम लोग हॉस्पिटल में क्या कर रहे हो? तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ है? किस हॉस्पिटल में है, बताओ मुझे मैं अभी आ रहा हूं?"


     अंशु समझ रहा था उनकी हालत। वो अपने डैड को समझाते हुए बोला "परेशानी वाली कोई बात नहीं है डैड! एक्सिडेंट हमारा नहीं, किसी और का हुआ है। हम लोग उन लोगों को यहां हॉस्पिटल में लेकर आए हैं। बस कुछ फॉर्मेलिटी वगैरह है, उसे पूरा करने के बाद हम लोग घर आ जाएंगे, आप चिंता मत कीजिए। और आपको यहां आने की जरूरत नहीं है। अगर कुछ प्रॉब्लम होगी तो मैं आपको कॉल कर दूंगा।"


     सारांश को फिर भी चैन नहीं था। उन्होंने जिद्द पकड़ ली "लेकिन मुझे अब तुझे देखना है। तू सच बोल रहा है ना? झूठ मत बोलना मुझसे। तू नहीं जानता तेरी मां तेरे लिए कितना परेशान थी! कितना घबराई हुई थी वो! बड़ी मुश्किल से मैंने उसे सुलाया है। मैं अभी आ रहा हूं तेरे पास।"


     अंशु ने फोन काट दिया। सारांश एक बार फिर कॉल लगाना चाहा लेकिन इतने में अव्यांश ने वीडियो कॉल कर दिया। अपने बेटे को सही सलामत देख सारांश की परेशानी थोड़ी कम हुई। अव्यांश बोला "डैड! मैने आपसे कभी कुछ छुपाया है क्या? देख लो हमें, हम बिल्कुल ठीक है। कुछ नहीं हुआ है। मैंने कहा ना, हमारा एक्सीडेंट नहीं हुआ। आप कहो तो मैं अपनी गाड़ी दिखा दूं आपको? एक्सीडेंट किसी और का हुआ है और वहां उन लोगों को ऐसे छोड़ कर आना मुझे सही नहीं लगा। इसलिए उन्हें ट्रीटमेंट के लिए हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया है और पुलिस को भी फोन कर दिया था। ट्रक ड्राइवर को रेस्ट कर लिया गया है।"


      सारांश ने फिर सवाल किया "अगर ऐसा है तो फिर निशी रो क्यों रही है?"


    अव्यांश ने निशी की तरफ देखा और बोला "एक्सिडेंट देखकर बहुत ज्यादा घबरा गई है वह। मैं समझता हूं, मुझे उसे घर पहुंचा देना चाहिए था। लेकिन ऐसे में देर हो जाती है और उन लोगों की जान नहीं बचा पाता। बस थोड़ी ही देर बाद मैं निशी को लेकर घर आ रहा हूं।"


   सारांश के मन में एक सवाल आया, "तू जानता है उन्हे जिनका एक्सीडेंट हुआ है?"


    अव्यांश निशी से कुछ दूर जाकर खड़ा हुआ और बोला "पापा मुझे आपसे बहुत जरूरी बात करनी है, इसी एक्सीडेंट को लेकर।"


    सारांश की आंखें छोटी हो गई। उन्होंने एकदम से सवाल किया "तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि यह एक्सीडेंट कोई नार्मल एक्सीडेंट नहीं है?"


    अंशु ने धीरे से जवाब दिया "जिन लोगो का एक्सीडेंट हुआ है, मैं उन्हें नहीं जानता हूं। लेकिन इतना तय है कि उनका एक्सीडेंट हमारी वजह से हुआ है। यह सब कुछ प्लान किया हुआ था।"


      सारांश ने फिर पूछा "तुम्हें पूरा यकीन है? तुम्हे ऐसा क्यों लगा?"


    अव्यांश पूरे यकीन से बोला "हां डैड। क्योंकि उस ट्रक को मैंने पहले भी अपने पीछे देखा था। लेकिन उस वक्त हम लोग कई लोग थे और एक साथ कई गाड़ियां चल रही थी हमारे साथ। इसलिए वह कुछ नहीं कर पाया। वापसी में भी वही ट्रक हमारे पीछे था लेकिन हमारी किस्मत और किसी की प्रार्थना थी जो हम बच गए, वरना इस वक्त मैं और निशी दोनों हॉस्पिटल में होते।"


     यह सुनकर ही सारांश को गुस्सा आ गया। उन्होंने कहा "आखिर किसकी इतनी हिम्मत हो गई कि उन लोगो ने मित्तल को चोट पहुंचाने की कोशिश की है? तुम लोग जल्दी से घर पहुंचो। बाकी का सारा काम कोई और देख लेगा। मैं भेजता हूं किसी को। वहां रुकने की जरूरत नहीं है।"


   अव्यांश ने भी अपने पापा की बातों का विरोध नहीं किया और बोला "आप ठीक कर रहे हैं। निशी काफी ज्यादा घबरा गई है। मैं उसे यहां ज्यादा देर नहीं रख सकता। मैं आ रहा हूं।"




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