सुन मेरे हमसफर 84

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     सभी अपना खाना खत्म करने में लगे हुए थे। निर्वाण समर्थ और कार्तिक के साथ बैठने की बजाय सीधे जाकर कुहू के पास बैठ गया। सब ने उसकी इस हरकत को नोटिस कर लिया था लेकिन सिर्फ अंशु, शिवि और कुणाल जानते थे कि निर्वाण ने ऐसा क्यों किया। 


     अव्यांश ने उसे टोका भी तो निर्वाण ने कुहू से साफ साफ कह दिया "कुछ टाइम बाद आपकी शादी हो जाएगी और आप चले जाओगे तो फिर हमें यह मौका कैसे मिलेगा? आप यहां हो तो मुझे आपके साथ कुछ टाइम स्पेंड करना है। अभी अगर मैं यहां से चला जाऊंगा तो फिर अगली बार पता नहीं कब आना हो! और जब मैं आऊं तब आप यहां होंगी या नहीं, इस बात की क्या गारंटी है? मुझे आपके साथ खाना खाना है, मतलब है। अगर किसी को प्रॉब्लम है तो यहां से जा सकता है।"


    गुस्से में कुणाल ने निर्वाण को देखा लेकिन अपने चेहरे पर गुस्सा आने नहीं दिया। वहां सभी मौजूद थे, और बात बिगड़ सकती थी। निर्वाण तो मजे से खाना खाने में लगा हुआ था जैसे उसे कुणाल के होने या ना होने से कोई फर्क ना पड़ता हो। वैसे देखा जाए तो निर्वाण का कहा भी कुछ गलत नहीं था इसलिए किसी ने भी उसकी इस हरकत पर कुछ गलत नोटिस नहीं किया।


      खाना खाने के बाद अव्यांश ने जब उस लड़के को बिल लाने के लिए कहा तो वो लड़का जल्दी से ढाबे के मालिक के पास गया। इधर उसके जाने के बाद अव्यांश ने पूछा "हम लोग टोटल कितने लोग हैं?"


    सभी एक-दूसरे की तरफ देखने लगे और सब ने कहा "10 लोग।"


    अब अव्यांश ने फिर सवाल किया "और हम 10 लोग अगर फाइव स्टार होटल में जाते है तो हमारा बिल कितने का बनता?"


      सुहानी कुछ सोचते हुए बोली "यही कोई लगभग एक से डेढ़ लाख! जहां तक मैं जानती हूं और मेरा एक्सपीरियंस है, इससे कम तो पॉसिबल ही नहीं। इससे ऊपर हो सकता है। क्योंकि हम अच्छा खासा बिल फाड़ने वाले थे।"


     अव्यांश सोच में पड़ गया तो सुहानी बोली "कंजूस कहीं का! इतना पैसा बचाने के लिए तू हमें यहां लेकर आया? सस्ते में निपटा दिया तूने हमे।"


     अव्यांश ने पूछा "तुझे खाने का टेस्ट कैसा लगा?"


     सुहानी उस स्वाद को याद करते हुए बोली "खाने का टेस्ट तो वाकई बहुत अच्छा था। बस जगह और अरेंजमेंट थोड़ी अच्छी होती तो और मजा आता।"


    निशी धीरे से बोली "लेकिन अगर देखा जाए तो यह जगह और माहौल दोनों ही बहुत अच्छे हैं। हां बस ढाबे की हालत थोड़ी सी और सही होती तो। हमारे लिए ना सही लेकिन इन लोगों के लिए अच्छा होता।"


     सभी निशी की बात से सहमत थे। वह लड़का जल्दी से आया और एक पर्ची पर खाने की लिस्ट और उसकी कीमत लेकर वह हाथ से लिखा हुआ बिल अंशु के हाथ में पकड़ा दिया। अंशु ने बिल देखा, महज 3 हजार से भी कम! इतने कम में खाना, क्या यह पॉसिबल था? अंशु सोच में पड़ गया।


     काया ने अंशु के हाथ से वह बिल लिया और अमाउंट देख कर बोली "सस्ते में निपटा दिया भाई ने।"


     अंशु मुस्कुराया और बोला "जहां जरूरत ना हो, वहां दिखावे के लिए पैसे खर्च करना कहां की समझदारी है? खाने से ज्यादा खाने की प्रेजेंटेशन के पैसे लगते हैं। यहां प्रेजेंटेशन भले ही नहीं था, लेकिन खाना वहां से कहीं ज्यादा अच्छा था।" फिर उसने उस लड़के से पूछा "मेरे पास पैसे नहीं है। qr-code है क्या तुम्हारे पास?"


      उस लड़के ने जवाब दिया "हां है ना! मेरे एक बड़े भैया है जो शहर ।ए पढ़ते है, उन्होंने ही लगवा दिया था ताकि कोई दिक्कत ना हो।" वो लड़का भागते हुए गया और अपना qr-code उठा ले आया। अंशु ने फोन उठाकर उसे स्कैन किया और बिल पे कर दिया।


     सभी वहां से उठकर जाने के लिए तैयार हुए। इतने में एक अधेड़ उम्र का आदमी, जो ढाबे का मालिक था, दुकान से बाहर निकल कर आया और सब को रोकते हुए बोला "बिल किसने दिया है?"


     अंशु आगे आकर बोला "मैंने दिया है।"


     वह अधेड़ आदमी ने कहा "साहब जी! आपने पैसे ज्यादा दे दिए हैं और हमें नहीं पता यह पैसे वापस कैसे करने हैं। क्योंकि हमारे पास इतनी रकम नहीं है लौटने को। बिल तो सिर्फ 3 हजार से भी कम का बना था जी।"


      अंशु ने उनके कंधे पर हाथ रखा और बोला "मैंने कुछ भी ज्यादा नहीं दिया है। जो दिया है बिल्कुल सही है। ये बात इन लोगो ने हो कही है, अगर मैं इन्हें कहीं और लेकर जाता तो मेरा इतना खर्चा होना तय था। मेरी मॉम कहती है, ऐसी जगह पैसे लगाओ जहां जरूरत हो।"


     ढाबे का मालिक हाथ जोड़कर बोला "लेकिन साहब! इतने से बिल के लिए एक लाख कौन देता है? यह तो कई गुना हो गया जी!"


    उनकी बात सुनकर वहां खड़े सभी हैरान रह गए। अंशु ने उन्हें समझाया और ढाबे का मालिक उसके आगे हाथ जोड़कर वापस चला गया।


    कुहू को लगा, अंशु से जरूर कुछ गड़बड़ हुई है। उसने पूछा "अंशु! ये क्या कह रहे थे? एक लाख? वो भी खाने के लिए! वह भी ऐसी जगह! पर कौन देता है?"


    अंशु ने जवाब देने की बजाए उल्टा सवाल किया "अगर यही एक लाख के बदले ढाई लाख मैं फाइव स्टार होटल में देता तो क्या आप सवाल करती? नहीं ना! तो फिर यहां क्यों?"


     कुहू ने नजरें नीची कर ली। कुणाल मुस्कुरा कर बोला "तुम्हारा भाई बहुत समझदार है। उसने सोच समझकर ऐसी जगह को चुना जहां हम खाना भी खा ले और इनकी हेल्प भी हो जाए। आई एम प्राउड ऑफ यू।"


     सुहानी उसके पास आई और अजीब तरह से उसे घूरते हुए आंखें छोटी कर बोली "किस को इंप्रेस करने की कोशिश कर रहा है? मॉम को क्या अपनी बीवी को?"


      अंशु को समझ नहीं आया कि वो इस सवाल पर वह हंसे या चुप रहे! निशी के सामने कैसे कहे कि वह उसे इंप्रेस करने की कोशिश कर रहा है या फिर मोम के लिए वह यह सब कर रहा है। उसने अपने दोनों हाथों से सर दबाया और गहरी सांस लेकर बोला "बीवी को इंप्रेस करने की कोई जरूरत नहीं है मुझे। वो ऑलरेडी मेरी वाइफ है! मॉम को मैं पहले ही साबित कर चुका हूं। मुझे उन्हें इंप्रेस करने की कोई जरूरत है भी नहीं। मैंने बस वही किया जो सीखने के लिए उन्होंने मुझे बेंगलुरु भेजा था। अब अगर सारी इंटेरोगेशन हो गई हो तो घर चले?"


     सभी चुपचाप अपनी अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ने लगे तो कुहू ने निर्वाण को आवाज लगाई और कहा "नीरू! तू बाइक से आया है ना? एक काम कर, तू हमारी गाड़ी ले जा, मैं और कुणाल बाइक पर आएंगे।"


     निर्वाण, कुणाल को अपनी कोई चीज देता? इंपॉसिबल। उसने कहा "मैं मेरी बाइक किसी को नहीं देने वाला। खासकर आपको तो बिल्कुल नहीं। हां अगर समर्थ भाई चलाएंगे तो कोई बात नहीं वरना मुझे किसी पर भरोसा नहीं। गर्लफ्रेंड है मेरी। इतने प्यार से मैं चलाता हूं, कोई और उसे इतना प्यार नहीं करेगा।"


     कुकू चिढ़कर बोली "अच्छा! हम लोग तेरी गर्लफ्रेंड को नुकसान पहुंचा देंगे और समर्थ भाई उसे प्यार से चलाएंगे?"


     निर्वाण ने मजाक में कहा "बिल्कुल! समर्थ भाई अपनी छोटी बहन के जैसे उसका ख्याल रखेंगे। इतना तो मैं भी नहीं रख पाऊंगा। तुम लोग का क्या भरोसा, बाइक को हेलीकॉप्टर समझ कर उड़ा दिया तो मैं क्या करूंगा? पापा तो मेरी टांगे तोड़ देंगे। पता है, कितनी मुश्किल से ये बाइक ली है मैंने! आप नहीं समझोगे मेरा दर्द।"


    निर्वाण की इस नौटंकी को देखकर कुहू नाराज हो गई। उसने कुणाल का हाथ पकड़ा और उसे लेकर चली गई। एक एक कर सभी उसे अवॉइड करके निकल गए। निर्वाण भी सबके पीछे भागा। पीछे रह गए बस निशी और अंशु। इतने में ढाबे के अंदर से एक अधेड़ उम्र की महिला अपने हाथ में एक छोटा सा डब्बा लेते हुए आई और निशी के हाथ में देकर बोली "मेरा बेटा बाहर रहता है ना, तो उसे भेजने के लिए बनाया था मैंने। थोड़ा सा आपके लिए पैक कर दिया है। आप लेकर जाएंगे क्या?"


     अंशु ने इनकार करना चाहा लेकिन निशी बोली "बिल्कुल! आपने इतने प्यार से बनाया है तो हम जरूर ले जाएंगे।"


    उस औरत ने प्यार से निशा के सर पर हाथ फेरा और बोली "सदा सुहागन रहो। भगवान दुनिया की सारी खुशियां तुम सबको दें।" निशी मुस्कुरा दी और अंशु के साथ वहां से चली आई।


     गाड़ी में बैठते हुए निशी बोली "सच में! ऐसे लोग दिल से बहुत अच्छे होते हैं। इनकी थोड़ी सी हेल्प कर दो और बदले में यह लोग इतना कुछ दे देते हैं ना कि पूछो मत!"


      निशी वो डब्बा दिखाते हुए बोली "इसमें क्या है, नहीं पता। हो सकता है हमारी नजरों में इसकी कीमत उतनी ना हो लेकिन देने वाले ने कितनी मेहनत से और एक एक पैसा जोड़कर बनाया होगा! आज मैं बहुत बहुत खुश हूं। मुझे बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि तुम इस टाइप के इंसान निकलोगे।"


     अंशु ने शिकायत करते हुए पूछा "अच्छा! तो तुम्हारी नजरों में मैं अब तक किस टाइप का इंसान था?"


     निशी जबरदस्ती मुस्कुरा कर बोली "मेरे कहने का मतलब वो नही था। वो क्या है ना, हर इंसान के लाइफ के और उसकी पर्सनालिटी के अलग-अलग शेड्स होते हैं जो टाइम टू टाइम हमें दिखते रहते हैं। मुझे नहीं पता था कि तुम्हारा यह साइड भी मुझे देखने को मिलेगा। वैसे, पहले कब आए थे यहां? अपनी गर्लफ्रेंड के साथ?"


    अंशु ने गाड़ी स्टार्ट की और आगे बढ़ाते हुए मुस्कुराकर बोला, "तुम्हें लगता है कि ऐसी जगह पर मेरी कोई गर्लफ्रेंड आना पसंद करेगी? अब हर कोई तुम्हारी तरह तो नहीं होता। देखा नहीं, कैसे सोनू और काया अजीब सी शक्ल बना रही थी। मैं यहां अपने फ्रेंड्स के साथ आया था। बेंगलुरु जाने से पहले मेरे कुछ फ्रेंड्स थे, जिन्होंने यह जगह चुना था पार्टी करने के लिए। यहां का खाना मुझे बहुत अच्छा लगा था और मैंने तय किया था कि जब मैं वापस आऊंगा तो एक बार फिर यहां का खाना जरूर खाऊंगा। इस बार वाकई मौका मिल गया और मैं सबको लेकर चला आया।"


      अंशु बातें करते हुए गाड़ी चला रहा था जिस कारण उसकी गाड़ी की स्पीड कम थी। बाकी सब की गाड़ियां आगे बहुत दूर निकल चुकी थी। अंशु तो बस इस ड्राइव को लॉन्ग ड्राइव बनाना चाहता था। इसलिए जानबूझकर उसने स्पीड कम रखी थी। निशी ने डब्बा खोला तो उसमें बेसन के लड्डू निकले। निशी उन्हें सूँघते हुए बोली "देसी घी के हैं।" कहते हुए निशी ने जल्दी से एक लड्डू लिया और खाने लगी।


     अंशु नाराज होकर बोला "यह गलत है। मुझे भी तो खिलाओ!"


      लेकिन निशी तो खाने में मगन थी। उसने कहा "तुम गाड़ी ड्राइव करो, घर पहुंच कर खा लेना, अगर बच गया तो।"


     अंशु को गुस्सा आया। उसने एक झटके में गाड़ी रोड के साइड में रोक दी और निशी यहां से पूरा डब्बा छीन लिया। जैसे ही उसने एक लड्डू अपने मुंह में डाला, एक जोरदार आवाज उसके कानों में पड़ी। उसने देखा, उसके ठीक सामने जो गाड़ी जा रही थी, पीछे से आती ट्रक ने उसे टक्कर मार दी थी।



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