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मार्च, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुन मेरे हमसफर 50

 50  अव्यांश ने जब उन मां बेटियों का इमोशनल मिलाप देखा तो नाराज होकर बोला "लाइक सीरियसली!! शायद आप दोनों मेरे लिए यहां आए हैं। कोई बात नहीं, सब का टाइम आता है। कर लो आप लोगों को जो करना है। जब मेरा टाइम आयेगा तो मैं भी बताऊंगा सबको।"       अंशु शिवि का कॉल ना लगने से वैसे ही परेशान था। इस सब से उसकी नाराजगी और बढ़ गई थी। कंचन जी अव्यांश के पास आई उसका कान पकड़कर कहा "तेरे लिए ही आई हूं। लेकिन तेरी नानी होने से पहले मैं उनकी मां हूं। अपनी ही मां से तुझे जलन हो रही है? तो जरा सोच, अगर वह नहीं होती तो तू कहां से आता?"      लेकिन अव्यांश अभी भी नाराज था। उसने अपनी नानी के पैर छूते हुए कहा "मुझे समझाने की जरूरत नहीं है। बहुत अच्छे से पता है आप लोग क्या कर रहे थे।"      अपने नाती की ऐसी नाराजगी भरी बातें सुनकर अखिल जी बोले "वैसे बात तो सही है। लेकिन मूल से ज्यादा सूद प्यारा होता है। इसीलिए हमें तो हमारे बच्चों के बच्चे ज्यादा प्यारे हैं और यही बात समधन जी पर भी लागू होती है। यकीन ना हो तो खुद उन्हीं से पूछ लो।"     अव्यांश को किसी से भी कुछ पूछना समझने

सुन मेरे हमसफर 49

 49 अगले दिन,  शाम का वक्त था और निशी अपने कमरे में तैयार हो रही थी। वहां कमरे में निशी के आगे पीछे स्टाइलिस्ट की लाइन लगी हुई थी। कोई उसके बाल बनाने में लगी थी तो कोई मेकअप में तो कोई उसे गहने पहनाने में लगी थी तो कोई उसके कपड़ों को ठीक कर रही थी। निशि को ऐसा लग रहा था जैसे वो कहीं की राजकुमारी........ नहीं! नहीं!! कहीं की महारानी हो। आज वाकई उसे बहुत ज्यादा स्पेशल फील हो रहा था। अगर उसके मां पापा उसे इस तरह देखते तो ना जाने किस तरह अपनी खुशी जाहिर करते। लेकिन कल.........!     कल जो कुछ भी हुआ, जो कुछ भी देखा, निशी अभी तक उसे भुला नहीं पाई थी। कल एक रात में ही उसने अव्यांश के एक नहीं कई रूप देखे थे। एक वह अव्यांश था जो डाइनिंग टेबल पर किसी बच्चे की तरह सबसे शिकायत कर रहा था और अपनी नाराजगी जाहिर कर रहा था। वही अव्यांश, एक पल में रोमांटिक होकर उसे बहाने से छेड़ रहा था तो कुछ देर बाद उसी अव्यांश के चेहरे पर जो सख़्त एक्सप्रेशन थे, उसकी आंखों में जो गुस्सा था, उसे देख निशी सहम गई थी। उसने मन ही मन सवाल किया 'आखिर तुम क्या हो? यह तीनों इंसान, एक साथ एक ही रूप में कैसे हो सकते हैं? क्य

सुन मेरे हमसफर 48

  48     अव्यांश निशी को डराना नहीं चाहता था, बस थोड़ा सा परेशान करना चाहता था और साथ ही उसे अपने होने का एहसास भी दिलाना चाहता था। इतनी आसानी से निशी उन दोनों के इस रिश्ते से इनकार नहीं कर सकती थी। अव्यांश चाहता था कि निशी अपने इस हक को समझें। वह चाहता था, निशी इस बात को एक्सेप्ट करें कि अव्यांश पर उसका हक है, वो सिर्फ उसका है।      निशी ने घबराहट में अपनी आंखें बंद कर ली थी। अंशु के पास ये एक बढ़िया मौका था कि वो अपने एहसासों को बिना कहे निशी को समझा दे। लेकिन इतनी जल्दी करने की ना उसकी हिम्मत थी और ना ही कोई इच्छा। यह एहसास निशी की तरफ से उसे चाहिए था। निशी ने अभी भी अपनी आंखें बंद कर रखी थी। उसके चेहरे पर डर और घबराहट साफ नजर आ रही थी।      अव्यांश ने धीरे से झुककर निशी के गाल को अपने होठों से छू लिया और मुस्कुरा कर कहा "इतना क्यों घबरा रही हो, जैसे मैं तुम्हारे साथ...........!"     निशी ने अपनी आंखें खोली तो देखा, अव्यांश उसे देखा मुस्कुराए जा रहा था। उसकी आंखों में शरारत और शैतानी साफ नजर आ रही थी। निशी ने खुद को अव्यांश की पकड़ से छुड़ाया और कहा "यह क्या बदतमीजी ह

सुन मेरे हमसफर 47

  47    शिविका को सेमिनार के लिए गए 6 दिन से ज्यादा का वक्त हो गया था। अगले दिन उसे आना था और उसी दिन अव्यांश और निशी के रिसेप्शन पार्टी का इंतजाम किया गया था। खाना खाते हुए अव्यांश ने पूछा "बड़े पापा! शिवि दी कल कब तक पहुंचेगी?"     सिद्धार्थ ने खाना खाते हुए कहा, "तू चिंता मत कर, वो कल आ जाएगी। उसने कहा है ना?"      अव्यांश ने नाराज होकर कहा "उन्हें तो आज के दिन का टाइम दिया था ना? बोला था कि वो आज आयेंगी लेकिन वह आई? नहीं ना! अगर उनसे आपकी बात हुई तो कह देना उनसे, अगर वह कल नहीं आई तो कल की पार्टी कैंसिल।" फिर उसने अपने डैड की तरफ देखा और पूछा "आपकी चित्रा बुआ से बात हुई क्या? वह लोग कल आ रहे हैं ना?"    सारांश के हाथ खाते खाते रुके और कहा "अभी अभी तो वो लोग गए है। निक्षय इतनी जल्दी वापस नहीं आ पाएगा और तेरी चित्रा बुआ, वह निक्षय को छोड़कर आएगी नही। शायद वो नेत्रा या निर्वाण को भेजे।"     सुहानी ने पूछा "1 मिनट! मतलब कल कोई नहीं आ रहा? मेरा मतलब, कौन आ रहा है कौन नहीं, अभी तक कुछ फिक्स नहीं है?"     अव्यांश ने अपना सर पकड़

सुन मेरे हमसफर 46

 46       सारांश के इस ऐलान से समर्थ बुरी तरह घबरा गया क्योंकि इस वक्त तन्वी भी वहीं मौजूद थी। उसने बिल्कुल नहीं सोचा था कि उसके चाचू इस मौके का फायदा उठाएंगे। तन्वी की तरफ नजर उठाकर देखने की उसकी हिम्मत नहीं थी तो उसने बेबसी और नाराजगी में सारांश की तरफ देखा। सारांश की आंखों में जो था उससे ये साफ जाहिर था कि उसने जो किया तो बिल्कुल सही किया और इस बात के लिए वो कोई एक्सप्लेनेशन नहीं देने वाला।       अव्यांश अपने सोमू भाई की शादी की बात सुनकर खुशी से उछल पड़ा और उसने खुशी में एक बार फिर समर्थ को गोद में उठा लिया "वाॅ भाई! मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि बेंगलुरु से वापस आते ही मुझे इतनी बड़ी गुड न्यूज़ सुनने को मिलेगी! फाइनली आपने शादी के लिए हां कर ही दिया।"       सिद्धार्थ उसे बताना चाहते थे कि समर्थ ने अभी तक इस रिश्ते के लिए हां नहीं कही है। लेकिन सारांश ने कहा "अरे बिल्कुल! अब लड़की है ही इतनी स्मार्ट और इंटेलिजेंट कि उसके जैसी दूसरी ढूंढने से भी नहीं मिलेगी। बिल्कुल वैसी, जैसी हमारे सोमू को पसंद है। इनकार करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।"     अव्यांश ने समर

सुन मेरे हमसफर 45

 45     अव्यांश और निशी दोनों ही 10:30 बजे तक घर पहुंच गए थे। घर आते ही सबसे पहले सिया ने अपनी पोता बहू की नजर उतारी और आरती से उसका स्वागत किया। घर के अंदर कदम रखते ही निशी को एक बार फिर थोड़ा सा एक अजीब एहसास हुआ। यह जगह उसके लिए नई थी और ये माहौल भी उसके लिए नया था।      अव्यांश ने उसकी यह घबराहट भांप ली और धीरे से उसका हाथ पकड़ कर कहा "इतना डरने की जरूरत नहीं है। ध्यान से देखो, किसी के भी सर पर सिंग नहीं निकलेगा। ना ही किसी के दांत बाहर आएंगे।"      निशी को हंसी आ गई लेकिन उसने अपनी हंसी कंट्रोल की। अव्यांश को कुछ ध्यान आया और उसने धीरे से निशी के कान में कहा, "वैसे, इस से रिलेटेड एक कहानी है मेरे पास। कभी फुर्सत में सुनाऊंगा।"      श्यामा ने अव्यांश और निशी को फ्रेश होने के लिए भेजा और जल्दी से डाइनिंग टेबल पर आने को कहा। सिद्धार्थ सारांश और समर्थ, तीनों ही ऑफिस के लिए निकल चुके थे लेकिन अवनी और श्यामा इस वक्त घर पर मौजूद थी। आखिर उन्हें अपने बच्चों का स्वागत जो करना था।     सिया ने बड़े प्यार से अव्यांश और निशी को अपने पास बैठाया और खुद से उनके लिए नाश्ता परोस

सुन मेरे हमसफर 44

  44      सुबह सवेरे समर्थ घर वापस आया और अपने कमरे में चला आया। उस वक्त घर में सभी सो रहे थे। समर्थ तन्वी से मिलने तो गया था लेकिन उससे मिलकर भी उसे कुछ कह नहीं पाया, बस उसे अपनी बांहों में समेटे कितनी देर तक खड़ा रहा। तन्वी इस बार भी उसके कुछ कहने का इंतजार करती रही लेकिन जैसे उसका इंतजार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।      तन्वी ने समर्थ को खुद से दूर किया और कहा "अगर किसी ने मुझे ऐसे इस वक्त बाहर खड़े देख लिया तो लोग बहुत कुछ कहेंगे। आप जाइए यहां से। अगर आपको कुछ कहना है तो आप कह सकते है। अगर कुछ नहीं कहना तो फिर मैं चलती हूं।"      तन्वी वहां से जाने के लिए मुड़ी तो समर्थ ने उसका हाथ पकड़ लिया। तन्वी को लगा शायद अब वह कुछ कहेगा लेकिन कुछ देर यूं ही खामोश रहने के बाद समर्थ ने उसका छोड़ दिया। तन्वी एक बार फिर निराश हो गई और बिना उसकी तरफ देखें अपने घर की तरफ चल पड़ी। अपनी नाराजगी जाहिर करने का बस एक यही तरीका उसे समझ आया।      कुछ देर वहां खड़े रहने के बाद समर्थ वहां से घर जाने की बजाए दिल्ली की सड़कों पर भटकता रहा। जब सुबह के हल्के उजाले ने दस्तक दी तब जाकर समर्थ घर

सुन मेरे हमसफर 43

 43 समर्थ और तन्वी, कुणाल और कुहू, निशी और अव्यांश, सबकी किस्मत अपने अपने तरीके से करवट ले रही थी। एक तरफ जहां कुहू कुणाल के लिए परेशान थी कि उसकी बात नहीं हो पा रही थी तो दूसरी तरफ कुणाल था जो किसी और के लिए बेचैन था। सुहानी और कायरा, दोनों ने मिलकर कुहू को शॉपिंग के लिए खींच कर ले तो गए लेकिन कुहू के चेहरे पर खुशी नजर नहीं आई। अपनी बहनों को अपने लिए परेशान होते देख कुहू ने अपनी प्रॉब्लम को एक साइड रखना सही समझा और उन दोनों के साथ शॉपिंग ना सही लेकिन डे आउट इंजॉय करने में लग गई।     इधर समर्थ, अपने और तन्वी के रिश्ते को लेकर बेचैन था तो वही तन्वी इस सब से बेखबर थी। समर्थ ने बहुत कोशिश की लेकिन उसकी बात इस बार कोई सुनने को तैयार नहीं था। पहले तो उसे लगा, शायद सारांश मजाक कर रहा है लेकिन खाने के टेबल पर तो उसने लड़की की तस्वीर तक दिखा दी।      सारांश के दोस्त मिस्टर मुखर्जी और उनकी बेटी इशानी अगले हफ्ते इंडिया आने वाले थे। होली नजदीक थी तो ऐसे में साथ में होली सेलिब्रेट भी कर लेते और लगे हाथो समर्थ और इशानी का रिश्ता तय हो जाता। घर में सभी को ईशानी पसंद आ गई और समर्थ के पास इंकार करने क

सुन मेरे हमसफर 42

 42     निशी परेशान हो गई। घर में तो कोई नहीं था और ना ही उसने बाहर से किसी के आने की आवाज सुनी तो फिर उसका दरवाजा बंद किसने किया? दरवाजा कभी जाम भी नहीं होता था। निशी ने आवाज लगाई "कोई है? मां! पापा!! कोई है घर में? कोई दरवाजा खोलो!"      निशी को जब कोई जवाब नहीं मिला तो वह घबरा गई। कहीं कोई चोर तो नहीं घुस आया है घर में? निशी ने दरवाजे पर कान लगाकर बाहर के हलचल को महसूस करने की कोशिश की। वैसे तो बड़ी शांति थी लेकिन कुछ तो हो रहा था बाहर। हल्की हल्की आवाजे उसे सुनाई दे तो रही थी लेकिन उसे कंफर्म नहीं हो रहा था कि यह आवाज़ें उसके घर की ही है या कहीं बाहर से आ रही है!      निशी और थोड़ा डर गई। उसे यकीन हो गया कि उसके घर में चोर घुस आया है। इस तरह उसकी मां उसे घर में बंद नहीं करेगी और उसकी मां तो अपने प्यारे लाडले दामाद के साथ बाहर शॉपिंग पर गई है, फिर तो कोई चोर ही हो सकता है। अब क्या करें? उसका फोन! निशी ने जल्दी से अपना फोन ढूंढना शुरू किया। उसका फोन उसे बेड के किसी कोने में पड़ा हुआ मिला। उसे लेकर वह कोई नंबर डायल कर पाती उससे पहले ही लगा जैसे किसे ने दरवाजे पर हल्की सी दस्