सुन मेरे हमसफर 47

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   शिविका को सेमिनार के लिए गए 6 दिन से ज्यादा का वक्त हो गया था। अगले दिन उसे आना था और उसी दिन अव्यांश और निशी के रिसेप्शन पार्टी का इंतजाम किया गया था। खाना खाते हुए अव्यांश ने पूछा "बड़े पापा! शिवि दी कल कब तक पहुंचेगी?"


    सिद्धार्थ ने खाना खाते हुए कहा, "तू चिंता मत कर, वो कल आ जाएगी। उसने कहा है ना?"


     अव्यांश ने नाराज होकर कहा "उन्हें तो आज के दिन का टाइम दिया था ना? बोला था कि वो आज आयेंगी लेकिन वह आई? नहीं ना! अगर उनसे आपकी बात हुई तो कह देना उनसे, अगर वह कल नहीं आई तो कल की पार्टी कैंसिल।" फिर उसने अपने डैड की तरफ देखा और पूछा "आपकी चित्रा बुआ से बात हुई क्या? वह लोग कल आ रहे हैं ना?"


   सारांश के हाथ खाते खाते रुके और कहा "अभी अभी तो वो लोग गए है। निक्षय इतनी जल्दी वापस नहीं आ पाएगा और तेरी चित्रा बुआ, वह निक्षय को छोड़कर आएगी नही। शायद वो नेत्रा या निर्वाण को भेजे।"


    सुहानी ने पूछा "1 मिनट! मतलब कल कोई नहीं आ रहा? मेरा मतलब, कौन आ रहा है कौन नहीं, अभी तक कुछ फिक्स नहीं है?"


    अव्यांश ने अपना सर पकड़ लिया और कहा "मतलब ये कि कल कोई नहीं आने वाला? तो फिर कल की पार्टी कैंसिल क्यों नहीं कर देते? चित्रा बुआ नहीं आएंगी, निक्षय अंकल नहीं आएंगे, नेत्रा और निर्वाण कहां गायब है, कुछ नहीं पता। शिविका दी कल कब तक आएंगी? आएंगी भी या नहीं, नहीं पता। कुणाल कहां है, यह भी किसी को नहीं पता। अब अगर कुणाल मिसिंग है तो कुहू दी भी वहां होकर भी गायब होंगी। समझ नहीं आ रहा, मेरी खुशी में कोई खुश होगा भी या नहीं? या फिर जिंदगी भर मैं ही सबके लिए ढोल बजाता रहूंगा?"


     निशी ने अजीब नज़रों से अव्यांश को देखा। अव्यांश थोड़ा ठिठका और कहा "मेरा मतलब, जब सब की शादी होगी ना, तब बताऊंगा मैं। मेरे पास रिवेंज लेने का पूरा पूरा मौका होगा।"


     समर्थ ने कुछ कहना चाहा "अंशु.........! बेवजह तुम.…..."


      लेकिन अव्यांश ने उसकी बात बीच में ही काट कर समर्थ और सुहानी से कहा "आप दोनों महानुभावों का तो फिक्स है ना कि आप आ रहे हो? या फिर कुछ और काम है? है तो बोल दो, मुझे कोई उम्मीद नहीं होगी। जैसे शादी हो गई, रिसेप्शन भी हो जाएगी।"


     अव्यांश को इतना हाइपर होते देख सब चुप हो गए। अव्यांश ने बड़े बेमन से खाना खाया और अपने कमरे में चला गया। सब लोग अव्यांश के इस हरकत से परेशान थे। सिया ने निशि का हाथ पकड़ा और कहा "जाकर देखो उसे, बेवजह परेशान हो रहा है। ऐसे ही है वो। 6 महीने सब के बिना गुजारे हैं उसने, और जब घर आया है तो परिवार पूरा नहीं है। कोई भी फंक्शन हो, कोई भी पार्टी हो, उसे उसके अपने, अपने आसपास चाहिए होता है। खुशियों का मतलब ही है कि हम उसे अपनों के साथ बाटें, अपनों के आसपास रहे। वरना वह खुशियां किस काम की! तुम जाकर देखो उसे। समझाओ, संभालो। और अगर ज्यादा नखरे दिखाए तो सीधे-सीधे मेरा नाम कह देना, सारी अकल ठिकाने आ जाएगी।"


     निशी को जानकर अच्छा लगा कि अव्यांश के लिए उसका अपना परिवार कितना मायने रखता है। वह उठी और प्लेट इकट्ठा करने लगी। अवनी ने निशि का हाथ पकड़ा और कहा, "तुम जाओ। ये सब हम लोग देख लेंगे।" निशी चुपचाप अपने कमरे की तरफ चल पड़ी। पीछे बैठे लोग बस अव्यांश के लिए थोड़ा परेशान थे।


    निशी जब अपने कमरे में पहुंची तो देखा अव्यांश अपने हाथ में फोन लिए उसे गोल गोल घुमा रहा था जैसे उसे किसी की कॉल का इंतजार हो। बालकनी के दरवाजे पर खड़े होकर वह बस बाहर देखे जा रहा था। निशी उसके पास गई और कंधे पर हाथ रखा।


    अव्यांश ने पलट कर देखा तो निशी ने मुस्कुराकर पूछा "इतना ज्यादा हाईपर होना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। यह बात किसी ने उससे कही थी मुझ से।"


    अव्यांश निशी से नजरें फेर कर बोला "मेरी लाइन मुझ पर मत मारो तुम।"


     निशि ने हंसकर कहा "मैं क्यों तुम पर लाइन मारूंगी? मेरा क्या फायदा तुम पर लाइन मारने से? तुम्हारी तो कई सारी गर्लफ्रेंड थी ना? यह काम उनका है, उनको ही करने दो। मैं अपनी दुनिया में खुश हूं।"


      अव्यांश ने तिरछी नजरों से निशी की तरफ देखा और पूछा "रियली? अगर कोई लड़की या मेरी एक्स गर्लफ्रेंड मुझ पर लाइन मारेगी तो तुम्हें बिल्कुल भी बुरा नहीं लगेगा?"


     निशी ने कुछ सोच कर कहा "तुम ही ने कहा था ना, कि हम दोनों दोस्त हैं! तो दोस्ती में जलन नहीं होती। क्यों? मुझे बुरा लगना चाहिए?"


     अव्यांश निशी के इस बात से अंदर ही अंदर थोड़ा घबरा गया। 'सिर्फ दोस्ती? नहीं! इस दोस्ती को प्यार में बदलना होगा वरना.........!'


     निशी ने उसकी आंखों के आगे चुटकी बजाई और कहा "कहां खो गए मिस्टर?"


     अव्यांश ने मुस्कुरा कर कहा "कहां खो सकता हूं, सिवाए तुम्हारी इन झील सी आंखों के?"


    ये लाइन सुनकर निशि का दिल धक से रह गया। वो अनकंफर्टेबल हो गई। यह लाइन उसने पहले भी सुनी थी, लेकिन किसी और से। निशी को ऐसे असहज होते देख अव्यांश ने नॉर्मल टोन में कहा "बिल्कुल यार! तुम्हें बुरा लगना चाहिए। आफ्टर ऑल आई एम योर हसबैंड। तुम ऐसे किसी को भी मुझ पर डोरे डालने नहीं दे सकती। मुझे प्रोटेक्ट करना तुम्हारा काम है।"


     निशी ने भी खुद को नार्मल किया और हंसते हुए बोली "कुहू दी की सगाई में देखा था मैंने, किस तरह तुम मुझे ढाल बनाए हुए थे। उस वक्त थोड़ा अजीब लगा था मुझे लेकिन इन कुछ दिनों में ही मैं तुम्हें बहुत अच्छे से जान गई हूं। इनफैक्ट, सगाई से आने के बाद जब सुहानी ने कहा कि पहले तुम अपनी गर्लफ्रेंड पर लाखों खर्च करते थे, तभी मैं समझ गई थी कि तुमने पूरे टाइम मुझे अपने साथ क्यों रखा था।"


     अव्यांश ने अपने दोनों हाथ आपस में फोल्ड किए और पीछे दीवार पर टेक कर पूछा "अच्छा, क्यों? मैं भी तो जानू।"


    निशी अव्यांश को छेड़ने के लिए थोड़ा सा उसके करीब आई और कहा, "इसलिए ताकि कोई लड़की तुम्हारे गले ना पड़ जाए। बहुत सारी थी ना।"


    अव्यांश ने एक बार फिर सवाल किया "अगर कोई लड़की मेरे गले पड़ जाए तो क्या तुम्हें कुछ फील नहीं होगा?"


    निशी ने अपना सर दाएं से बाएं हिला दिया। अव्यांश अपनी जगह पर सीधा खड़ा हुआ और निशी की तरफ धीरे से छुककर उसकी कमर हाथ डाल दिया। निशी उसकी इस छुअन से कांप गई और अव्यांश से दूर जाने को हुई लेकिन अव्यांश ने उससे पहले ही निशी को अपने करीब खींच लिया और कहा, "अगर कोई लड़की मेरे इतने करीब आए तब भी तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा?"


     निशी के चेहरे पर घबराहट साफ नजर आ रही थी। फिर भी उसने इस बात से इनकार कर दिया। अव्यांश ने उसके चेहरे पर झूलती लटों को कान के पीछे किया और फिर पूछा "अगर कोई लड़की इस तरह मेरे बालों को हाथ लगाए तो क्या तब भी तुम्हें बुरा नहीं लगेगा?"


      अव्यांश के हर एक एक्शन के बाद निशी को अपने ऊपर अव्यांश की पकड़ और मजबूत होती साफ महसूस हो रही थी। अव्यांश ने एक बार फिर निशी को अपने थोड़ा और करीब खींचा और उसके चेहरे को छूते हुए अपनी उंगलियां उसकी गर्दन पर ले गया। "अगर कोई लड़की मुझे इस तरह छूएगी, तब भी तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा?"


   अव्यांश के हर एक छुअन से निशी के रोंगटे खड़े हो रहे थे। पहले तो वो उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश कर रही थी लेकिन यह कोशिश करना बेकार था। लेकिन उसने हथियार का कब डाले, ये उसे खुद पता नहीं चला। अपने होश को संभालने में नाकाम निशी ने बड़ी मुश्किल से एक बार फिर इंकार कर दिया।


     अव्यांश ने हाथ बढ़ाकर निशी के बालों से पिन निकाल दिया। निशी के बल पूरी तरह खुल गए और बालकनी से आती हवाओं ने उसके बालों को बिखेरना शुरू कर दिया। निशी अव्यांश की सांसों को अपने चेहरे पर महसूस कर रही थी और आंखें बस उसे देखे जा रही थी। कांपते होठों से अव्यांश का नाम लिया "अ....... अव्यांश!"


     अव्यांश ने एकदम से अपनी एक उंगली निशी के होठों पर रख दिए। ये साफ इशारा था कि इस वक्त वो बस सिर्फ उसकी बढ़ी हुई दिल की धड़कनों को सुनना चाहता था। और निशी के होंठ जिन पर अभी भी उसकी उंगली कायम थी। धीरे से अपने अंगूठे से उन होठों को छुआ। निशी के पैर लड़खड़ाने लगे। उसने कस कर अपनी आंखें बंद कर ली, यह सोच कर कि ना जाने अब अव्यांश आगे क्या करेगा और वो चाह कर भी उसे रोक नहीं पाएगी। 



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