सुन मेरे हमसफर 44

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     सुबह सवेरे समर्थ घर वापस आया और अपने कमरे में चला आया। उस वक्त घर में सभी सो रहे थे। समर्थ तन्वी से मिलने तो गया था लेकिन उससे मिलकर भी उसे कुछ कह नहीं पाया, बस उसे अपनी बांहों में समेटे कितनी देर तक खड़ा रहा। तन्वी इस बार भी उसके कुछ कहने का इंतजार करती रही लेकिन जैसे उसका इंतजार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।


     तन्वी ने समर्थ को खुद से दूर किया और कहा "अगर किसी ने मुझे ऐसे इस वक्त बाहर खड़े देख लिया तो लोग बहुत कुछ कहेंगे। आप जाइए यहां से। अगर आपको कुछ कहना है तो आप कह सकते है। अगर कुछ नहीं कहना तो फिर मैं चलती हूं।"


     तन्वी वहां से जाने के लिए मुड़ी तो समर्थ ने उसका हाथ पकड़ लिया। तन्वी को लगा शायद अब वह कुछ कहेगा लेकिन कुछ देर यूं ही खामोश रहने के बाद समर्थ ने उसका छोड़ दिया। तन्वी एक बार फिर निराश हो गई और बिना उसकी तरफ देखें अपने घर की तरफ चल पड़ी। अपनी नाराजगी जाहिर करने का बस एक यही तरीका उसे समझ आया।


     कुछ देर वहां खड़े रहने के बाद समर्थ वहां से घर जाने की बजाए दिल्ली की सड़कों पर भटकता रहा। जब सुबह के हल्के उजाले ने दस्तक दी तब जाकर समर्थ घर वापस आया। अपने कमरे में जाकर उसने दरवाजा बंद किया और एक गहरी सांस ली। अपनी जिंदगी को इतना उलझा हुआ कभी महसूस नहीं किया था उसने।


     अपने पीछे से समर्थ को सारांश की आवाज सुनाई दी "हो गया तेरा?"


    समर्थ ने चौकते हुए पलट कर देखा तो सारांश उसके कमरे में खड़ा था और खिड़की के बाहर देख रहा था। समर्थ को थोड़ा अजीब लगा क्योंकि इस वक्त जहां सभी सो रहे थे वहीं सारांश को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा था कि वह अभी-अभी जागा हो।


     समर्थ ने अपने चेहरे पर आए परेशानी के भाव को हटाया और सारांश के पास आते हुए कहा "चाचू! आप इस वक्त यहां? मेरे कमरे में? कैसे? वह भी इतनी सुबह! लगता है रास्ता भूल गए थे।"


      सारांश ने उसकी तरफ देखा लेकिन उसके चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं थे। उसने ऐसे ही ठंडे लहजे में कहा "मैं कभी अपना रास्ता नहीं भूलता। लेकिन लगता है, तू रास्ता जरूर भटक गया है।"


    समर्थ सारांश के इस एक लाइन से थोड़ा घबरा जरूर गया लेकिन हो सकता है, सारांश किसी और बारे में बात कर रहा हो, यह सोच कर उसने कहा "क्या चाचू आप भी! मजाक अच्छा कर लेते हो आप। वैसे इतनी सुबह आप मेरे कमरे में?"


     सारांश की नजर एकटक समर्थ पर टिकी थी और उसकी यह नजर समर्थ को असहज करने के लिए काफी थी। सारांश ने कहा "यह सवाल तो मुझे करना चाहिए कि तू इतनी सुबह कहां से आ रहा है? मैं तो यहां तेरे कमरे में पूरी रात तेरा इंतजार कर रहा था। घर से बाहर तू था। ये तू बता सकता है कि पूरी रात तू कहां था। या फिर मैं यह सवाल करू कि तू पूरी रात किसके साथ था?"


     सारांश के लहजे में जो था, उसे महसूस कर समर्थ के रोंगटे खड़े हो गए। उसने नजर चुराते हुए कहा "चाचू वो मैं....... मैं तो बस..... मेरा मन नहीं लग रहा था तो मैं.........."


     समर्थ की बात सारांश ने पूरी की "तेरा मन नहीं लग रहा था इसलिए तू तन्वी के पास चला गया?"


     सारांश के मुंह से तन्वी का नाम सुनकर समझ बुरी तरह चौक गया। उसने नजर उठाकर सारांश की तरफ देखा तो उसने उस पर से नजरें फेर ली और कहा "गलत रास्ते पर जा रहा है तू। अपना रास्ता भूल गया है। जब बच्चे जब अपना रास्ता भूल जाते हैं तो उन्हें सही रास्ता दिखाना हम बड़ों का काम है।"


    समर्थ ने हकलाते हुए कहा "लेकिन....... लेकिन चा....… चाचू.......... आपको कैसे पता........?"


      सारांश अभी भी बाहर की तरफ देख रहा था। उसने बिना समर्थ पर ध्यान दिए कहा "वह जरूरी नहीं है। जरूरी यह है कि जिस रास्ते चलकर हमें मंजिल नहीं मिल सकती हम उस रास्ते पर क्यों जाएं? वह लड़की ना सिर्फ तुम्हारी एक एंपलाई है बल्कि वह तुम्हारी स्टूडेंट भी है। एंप्लॉय तक तो ठीक था लेकिन स्टूडेंट? हमारे यहां गुरु शिष्य की परंपरा है और जहां गुरु को पिता से बढ़कर माना जाता है और शिष्य को पुत्र के समान। इस रिश्ते की मर्यादा को बनाए रखना तुम्हारा काम है। यह हमारे घर के संस्कार नहीं है। समर्थ, हम सब चाहते थे कि तेरी शादी हो जाए। तुझे अगर कोई लड़की पसंद है तो तू खुद आकर हमें बताएं। हमने कभी तुझ पर कोई रोक टोक नहीं लगाई। तुझे हर वो आजादी मिली जो बाकियों को नही मिली। क्योंकि हम जानते है कि तू कभी अपने या इस घर के संस्कारों को धूमिल नही होने डेट। लेकिन तुझे प्यार करने के लिए पूरी दुनिया में तुझे अपनी स्टूडेंट ही मिली?"


    समर्थ रोआसा हो गया। उसके दिल में जो एहसास दबे थे, वह उससे संभाले नहीं जा रहे थे। समर्थ ने कुछ कहना चाहा लेकिन सारांश ने उसे बीच में ही रोक कर कहा "उसी लड़की की वजह से तूने कॉलेज थोड़ी है ना? लेकिन एक बात तू हमेशा ध्यान रखना। चाहे तूने कॉलेज छोड़ दी हो लेकिन वंश अ टीचर ऑलवेज अ टीचर। तू हमेशा उसका प्रोफेसर रहेगा और वह हमेशा तेरी स्टूडेंट।"


     समर्थ से और बर्दाश्त नहीं हुआ और वह सारांश के गले लग कर फफक पड़ा। "मैंने कभी नहीं सोचा था ऐसा कुछ होगा मेरे साथ। जानता हूं और मैं सब समझ रहा हूं आप जो कुछ भी मुझे समझाने की कोशिश कर रहे हो। इसी वजह से मैं आज तक उसे कुछ कह नहीं पाया और वह पागल, मुझसे उम्मीद लगाए बैठी है। मैं क्या करूं चाचू? बहुत कोशिश की उससे दूर जाने की, उससे खुद को अलग करने की, और कर भी रहा हूं। लेकिन नहीं होता। मैं क्या करूं? प्लीज मेरी हेल्प कीजिए चाचू। ये तकलीफ, यह घुटन मुझसे और बर्दाश्त नहीं होती। अनजाने में ही सही लेकिन हो गया मुझे उससे प्यार। प्लीज चाचू, हेल्प मी!"


      सारांश से समर्थ की ऐसी हालत देखी नही का रही थी। उसने समर्थ का सर सहलाया और समझाते हुए कहा "मैं समझ रहा हूं। इसीलिए तो मैंने तेरे लिए बहुत अच्छा रिश्ता चुना है। इस रिश्ते के लिए हां कर दे। तु देखना, कुछ ही टाइम में तु सब कुछ भूल जाएगा। लेकिन इससे भी पहले तुम्हें उस लड़की को अपने रिश्ते के बारे में बताना होगा।। उसे बताना होगा कि तु किसी और से शादी कर रहा है ताकि वह लड़की तुम्हें भूल कर अपनी लाइफ में आगे बढ़ सके। उसका मिडिल क्लास होना हमारे लिए कोई प्रॉब्लम नहीं है। प्रॉब्लम बस इतनी है कि वह तुम्हारी स्टूडेंट है। इससे ज्यादा और कुछ नहीं। आई होप तुझे मेरी बात समझ में आई हो। तन्वी एक बहुत अच्छी लड़की है। मैं कभी नहीं चाहूंगा कि उसके साथ कुछ गलत हो। हम में से कोई भी नही चाहेगा। तन्वी के फ्यूचर का ध्यान रखना हमारी जिम्मेदारी है। अब जाकर सो जाओ। पूरी रात सोए नहीं हो। कुछ देर आराम कर लोगे तो तुम्हारे सर से परेशानियां कम हो जाएंगी। फ्रेश दिमाग से तुम कोई भी फैसला आसानी से ले सकते हो।"


     सारांश ने समर्थ के आंसू पोंछे, उसके कंधे पर धीरे से थपथपाया और वहां से निकल गया। 






बंगलुरू,


     सुबह सुबह अव्यांश और निशी की फ्लाइट थी। निशी ने अपने लिए कुछ कपड़े और जरूरी सामान पैक कर लिए तो अव्यांश ने पूछा "यह सब ले जाकर क्या करोगी?"


      निशि ने थोड़ा हिचकते हुए कहा "यह सब मेरी रोज की चीजें हैं। इन्हें लेकर जाऊंगी और यूज़ करूंगी। क्यों, अच्छा नहीं है क्या?"


     अव्यांश ने एक सरसरी नजर उन सारे सामानों पर डाली और उन सब की एक तस्वीर अपने फोन में खींच ली। फिर उन सारे सामानों का उठाकर उसके जगह पर रख दिया तो निशी ने पूछा "यह सब क्या कर रहे हो? मुझे इन्हें लेकर जाना है।"


     अव्यांश ने अपना बैकपैक करते हुए कहा, "तुम्हारा सामान है, कोई और यूज नहीं करेगा। घर में सिर्फ तुम्हारी मम्मी ही है। और जो भी तुम्हारी रेगुलर चीजे है, वो सब मैं आऊंगा। कुली बनकर मैं तुम्हारा सामान उठाने वाला नहीं हूं। अगली बार जब तुम आओगी तो फिर यही सारा सामान लेकर आओगी। कह दो अगर मैं गलत हूं तो!"


    निशी ने चुपचाप अपना सर झुका लिया। अव्यांश सामान लेकर बाहर निकला और रेनू जी और मिश्रा जी के पैर छूकर उनसे विदा ली। निशि को विदा करते हुए रेनू जी भावुक हो गई। अव्यांश ने उन्हें समझाया "मां! आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। आपका जब दिल करेगा आपको मैं बुला लिया करूंगा। रही बात आपकी इस नकचढ़ी बेटी की तो .......!"


     निशी ने घूर कर अव्यांश को देखा तो अव्यांश चुप हो गया और गाड़ी का दरवाजा खोल दिया ताकि निशी बैठ सके। निशी भी चुपचाप जाकर गाड़ी में बैठ गई तो अव्यांश भी उसके बगल में आ बैठा और ड्राइवर को चलने को कहा। अव्यांश की बातों से नाराज निशी ने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर रखा था और खिड़की से बाहर देख रही थी। गाड़ी जैसे ही सोसाइटी से बाहर निकली, निशी की नजर बाहर खड़े देवेश पर गई जो उसे ही देख रहा था।


    दोनो की आंखे मिली और निशी के दिल में एक हूंक सी उठी। दिल किया अभी उसके पास चली जाए लेकिन शादी के मंडप में जिस तरह वो निशी को छोड़कर गया था, वो याद आते ही निशी का मन खट्टा हो गया। उसने देवेश की तरफ से नजरे फेर ली और उसे दिखाते हुए निशी ने अव्यांश के कंधे पर अपना सर लगा दिया। 


     अव्यांश निशी के इस अचानक से किए हरकत से चौंक सा गया लेकिन फिर कुछ सोचकर मुस्कुरा दिया। इस वक्त दोनों ही एक दूसरे के लिए परफेक्ट नजर आ रहे थे। देवेश ने उन दोनो को देखा और गुस्से में अपनी गाड़ी के टायर पर किक मारी।





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