सुन मेरे हमसफर 43

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समर्थ और तन्वी, कुणाल और कुहू, निशी और अव्यांश, सबकी किस्मत अपने अपने तरीके से करवट ले रही थी। एक तरफ जहां कुहू कुणाल के लिए परेशान थी कि उसकी बात नहीं हो पा रही थी तो दूसरी तरफ कुणाल था जो किसी और के लिए बेचैन था। सुहानी और कायरा, दोनों ने मिलकर कुहू को शॉपिंग के लिए खींच कर ले तो गए लेकिन कुहू के चेहरे पर खुशी नजर नहीं आई। अपनी बहनों को अपने लिए परेशान होते देख कुहू ने अपनी प्रॉब्लम को एक साइड रखना सही समझा और उन दोनों के साथ शॉपिंग ना सही लेकिन डे आउट इंजॉय करने में लग गई।


    इधर समर्थ, अपने और तन्वी के रिश्ते को लेकर बेचैन था तो वही तन्वी इस सब से बेखबर थी। समर्थ ने बहुत कोशिश की लेकिन उसकी बात इस बार कोई सुनने को तैयार नहीं था। पहले तो उसे लगा, शायद सारांश मजाक कर रहा है लेकिन खाने के टेबल पर तो उसने लड़की की तस्वीर तक दिखा दी।


     सारांश के दोस्त मिस्टर मुखर्जी और उनकी बेटी इशानी अगले हफ्ते इंडिया आने वाले थे। होली नजदीक थी तो ऐसे में साथ में होली सेलिब्रेट भी कर लेते और लगे हाथो समर्थ और इशानी का रिश्ता तय हो जाता। घर में सभी को ईशानी पसंद आ गई और समर्थ के पास इंकार करने की वजह नहीं थी, ना ही वह कोई वजह दे पाया।


    हार कर समर्थ ने तय किया कि वह तन्वी से अपने दिल की बात कह कर रहेगा। तन्वी अपने फैसले पर तटस्थ थी और अपने फैसले को लेकर उसे कोई शक नहीं था। वो समर्थ को अपने प्यार का एहसास बहुत पहले करवा चुकी थी लेकिन समर्थ की अभी तक हिम्मत नहीं हुई थी। पहले तो उसे खुद अपने ही एहसासों को समझने में वक्त लगा और जब समझ में आया तो अपने एहसास को वो तन्वी के सामने बयान नहीं पाया। समर्थ ने अपनी पूरी हिम्मत जुटाई और तन्वी का नंबर डायल कर दिया।


    तन्वी इस वक्त सोने ही जा रही थी जब उसका फोन बजा। उसने अपना फोन देखा तो स्क्रीन पर समर्थ का नाम देख कर चौक गई। इससे पहले कभी समर्थ ने उसे सामने से कॉल नहीं किया था तो आज कैसे?


    धड़कते दिल के साथ तन्वी ने फोन उठाया और धीरे से हैलो कहा। तन्वी की आवाज सुनकर जैसे समर्थ के दिल को सुकून मिला। लेकिन बेचैनी और ज्यादा महसूस होने लगी। वो बेचैनी से और ज्यादा इधर से उधर चक्कर लगाने लगा लेकिन कहा कुछ नहीं। तन्वी खामोशी से उसके ही बोलने का इंतजार कर रही थी। और समर्थ बस शब्दो को समेटने की कोशिश में लगा रहा। हार कर उसने कहा, "मुझे तुम से मिलना है, अभी।"


     तन्वी ने कोई जवाब नही दिया तो समर्थ ने फोन अपने कान से लगाया दूजे हाथ से गाड़ी की चाभी उठाई और बाहर निकल गया। सारांश अपनी बालकनी से समर्थ को बाहर जाते देखता रहा। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे जिसे देख उसके मन में क्या चल रहा है, ये अंदाजा भी लगाया जा सके। अवनी ने उसे ऐसे बालकनी में खड़े देखा तो पूछा, "क्या हुआ? आप ऐसे क्यों खड़े है? और ये अभी इस वक्त बाहर कौन गया है?"


    सारांश ने बाहर की तरफ देखते हुए कहा, "कोई है जो बेचैन है और अपने बेचैन दिल को साथ लिए सुकून की तलाश में निकला है। शायद उसका दिल जानता है कि उसे कहां जाना है। तुम जाकर सो जाओ, मुझे थोड़ा सा काम है।" अपनी बात रख कर सारांश वहां से अपने स्टडी रूम में चला गया और पीछे अवनी कन्फ्यूज्ड सी खड़ी रही। उसने सवाल क्या पूछा था और सारांश ने जी जवाब दिया, वो सब अवनी के सिर के ऊपर से निकल गया।


    अवनी को सारांश का बिहेवियर थोड़ा अजीब लग रहा था। उसने इससे पहले सारांश को इस तरह कभी नहीं देखा था। ऑफिस में चाहे कितना भी स्ट्रिक्ट सारांश मित्तल क्यों न हो लेकिन घर में वो सिर्फ सारांश होता था जिसमे आज भी बचपना कूट कूट कर भरा हुआ था। अवनी ने इस वक्त सारांश को डिस्टर्ब करना सही नहीं समझा और सोने चली गई।


    


बंगलुरू,


    अव्यांश के एक झूठ की वजह से ही सही लेकिन निशी उसके साथ बात करने में थोड़ी कंफर्टेबल हो गई थी। अव्यांश को उम्मीद जगने लगी कि उन दोनों के बीच एक रोज सब ठीक हो जाएगा। ठीक जैसे उसके मां पापा के साथ हुआ था। वह दोनों भी उसी राह पर चल निकले हैं।


     निशी के सर से भी बहुत बड़ी टेंशन कम हुई, यह सोच कर कि उन दोनों की सिचुएशन एक जैसी है। लेकिन अब जबकि उन दोनों की शादी हो चुकी है, तो ऐसे में क्या अव्यांश का ऐसे अपनी गर्लफ्रेंड को याद करना सही है? और क्या होगा जब उसकी गर्लफ्रेंड वापस आ जाएगी? क्या हम दोनों का रिश्ता टूट जाएगा? एक अजीब सा डर निशी के मन में बैठ गया था। जहां इस रिश्ते से उसके मां पापा बहुत ज्यादा खुश थे। भले ही हालात जो भी रहे हो लेकिन शादी का रिश्ता कोई खेल नहीं होता है।


     निशी को अव्यांश के बड़े पापा और बड़ी मां का ध्यान आया। कितने कैजुअल तरीके से वो सभी उन दोनों की डेट प्लान कर रहे थे, वह भी तलाक के नाम पर। उन दोनों के बीच जो प्यार था, उसे याद करके ही निशी क्या होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई।


     खाना खाकर निशी अपने कमरे में जाने लगी तो अव्यांश भी उसके पीछे पीछे कमरे में चला आया। निशी को उसका कमरे में आना थोड़ा अजीब सा लगा तो उसने कहा "तुम आज रात मां पापा के रूम में सो जाओगे, प्लीज!"


    अव्यांश को यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। कहां तो उसने निशी के साथ अकेले टाइम स्पेंड करने का प्लान बनाया था और अब उसी बहाने से निशी उसे कमरे से बाहर कर रही थी। 'नहीं! बिल्कुल नहीं!! मैं मेरे प्लान पर पानी फिरने नहीं दूंगा।' 


    अव्यांश मन ही मन कोई उपाय ढूंढने में लगा हुआ था। उसे ऐसे चुप देख निशी को लगा शायद वो मां पापा के रूम में सोने में थोड़ा अनकंफर्टेबल फील कर रहा है तो उसने कहा "कोई बात नहीं। अगर तुम कंफर्टेबल नहीं हो तो तुम यही पर सो जाओ, मैं उनके कमरे में चली जाती हूं।"


     निशी कमरे से जाने को हुई तो अव्यांश ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया और कहा "तुम्हें जाना है तो तुम जा सकती हो लेकिन आगे जो होगा उसकी जिम्मेदार तुम होगी।"


    निशी को कुछ समझ नहीं आया तो उसने पूछा "ऐसा क्या होने वाला है जिसकी जिम्मेदार में मुझ पर आएगी?"


    अव्यांश ने उसका हाथ छोड़ा और आराम से जाकर बिस्तर पर फैल गया। निशी को अव्यांश की यह आदत बिल्कुल पसंद नहीं आई। वो अव्यांश के पास गई और कहा "सस्पेंस क्रिएट करके तुम करना क्या चाहते हो? साफ-साफ बताओगे कि तुम्हारे कहने का मतलब क्या था!"


     अव्यांश ने आंखें बंद की और आराम से अपने दोनों बांह अपने सर के नीचे रख लिया फिर कहा, "तुम्हें दूसरे कमरे में सोना है तो सो जाओ, लेकिन जब मां पापा आएंगे और तुम्हें इस तरह उनके कमरे में सोता देखेंगे, तब वह तुमसे कुछ सवाल करेंगे। अब उन सवालों का क्या जवाब देना है यह तुम पहले से सोच लो। उन्होंने मुझ से पूछा तो मैं तो कह दूंगा कि, मैं आराम से सो चुका था। निशी कमरे से कब गई क्यों गई मुझे नहीं पता।"


      अव्यांश पॉइंट तो था लेकिन उसकी ही बातों को याद करती हुई निशी ने कहा "लेकिन तुमने ही तो कहा था कि वह दोनों आज घर नहीं आएंगे!"


   अव्यांश को अपनी कही बात याद आ गई। वो मन ही मन अपना सर पीट लिया लेकिन चेहरे के एक्सप्रेशन को बिल्कुल शांत रखा और कहा, "मेरा प्लान तो यही था कि वह दोनों आज रात वहीं रुक जाए। उन्हें वहां किसी तरह कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। लेकिन मुझे मेरे ड्राइवर का मैसेज आया था कि पापा ने गाड़ी निकालने को कहा है। इसका मतलब यह है कि वो दोनो घर वापस आ रहे हैं। तुम खुद सोच लो, तुम्हे क्या करना है। मुझे बहुत नींद आ रही है, मैं तो चला सोने।" अव्यांश ने कंबल खोला और आराम से तान कर सो गया।


    निशी परेशान होकर बिस्तर पर बैठ गई। अव्यांश ने धीरे से आंखें खोलकर कनखियों से निशी की तरफ देखा और उसके चेहरे को देखकर अपनी हंसी कंट्रोल की। अव्यांश का प्लान काम कर गया था। निशी जाकर उसके बगल में लेट गए क्योंकि उसके रूम में सोफा नहीं था और जमीन पर सोने का मतलब बीमार पड़ना। ये रिस्क वो नहीं ले सकती थी।




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