सुन मेरे हमसफर 45

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    अव्यांश और निशी दोनों ही 10:30 बजे तक घर पहुंच गए थे। घर आते ही सबसे पहले सिया ने अपनी पोता बहू की नजर उतारी और आरती से उसका स्वागत किया। घर के अंदर कदम रखते ही निशी को एक बार फिर थोड़ा सा एक अजीब एहसास हुआ। यह जगह उसके लिए नई थी और ये माहौल भी उसके लिए नया था।


     अव्यांश ने उसकी यह घबराहट भांप ली और धीरे से उसका हाथ पकड़ कर कहा "इतना डरने की जरूरत नहीं है। ध्यान से देखो, किसी के भी सर पर सिंग नहीं निकलेगा। ना ही किसी के दांत बाहर आएंगे।"


     निशी को हंसी आ गई लेकिन उसने अपनी हंसी कंट्रोल की। अव्यांश को कुछ ध्यान आया और उसने धीरे से निशी के कान में कहा, "वैसे, इस से रिलेटेड एक कहानी है मेरे पास। कभी फुर्सत में सुनाऊंगा।"


     श्यामा ने अव्यांश और निशी को फ्रेश होने के लिए भेजा और जल्दी से डाइनिंग टेबल पर आने को कहा। सिद्धार्थ सारांश और समर्थ, तीनों ही ऑफिस के लिए निकल चुके थे लेकिन अवनी और श्यामा इस वक्त घर पर मौजूद थी। आखिर उन्हें अपने बच्चों का स्वागत जो करना था।


    सिया ने बड़े प्यार से अव्यांश और निशी को अपने पास बैठाया और खुद से उनके लिए नाश्ता परोसा। अव्यांश ज्यादा कुछ खा नहीं पाया क्योंकि उसने एयरपोर्ट पर ही अच्छे से नाश्ता कर लिया था। निशी को पता नहीं क्यों लेकिन बाहर का खाना उसे रास नहीं आया था इसलिए उसे जो भी मिला वह सब खा गई।


    नाश्ता खत्म होते ही अवनी ने अव्यांश को याद दिलाया "अंशु! बेटा तुम्हारे डैड, ऑफिस में तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि तुम्हें जल्द से जल्द ऑफिस भेज दिया जाए।"


    श्यामा ने भी प्लेट समेटते हुए कहा "हां! तुम बस 5 मिनट इंतजार करो, मैं तैयार होकर आती हूं। फिर हम दोनों साथ में चलते हैं।" अचानक कुछ सोचकर श्यामा ने एक बार फिर कहा "तुम मेरे साथ चल सकते हो ना?"


     अव्यांश ने अजीब सी शक्ल बनाई और कहा "मुझे आपकी कंपनी से क्या प्रॉब्लम हो सकती है बड़ी मां? और फिर मैं शान से कह सकूंगा की मैं अपनी गर्लफ्रेंड के साथ ऑफिस जा रहा हूं।"


      श्यामा ने अव्यांश के गाल पर हल्की सी चपत लगाई और कहा, "बदमाश! बस 5 मिनट रुको, मैं अभी आती हूं।"


     श्यामा जल्दी से कमरे में गई और हल्का सा टच अप करके अपने कपड़े को सही किया और बाहर निकली। अव्यांश इस वक्त हॉल में अवनी निशी और सिया के साथ बैठा हुआ था। श्यामा के दिल में एक अजीब सी खुशी हुई। इतना खुशहाल परिवार और इतने आज्ञाकारी बच्चे। हे भगवान! इस घर को हमेशा ऐसे ही रखना। बहुत दर्द देखा है इस घर ने, तब जाकर ये खुशियां नसीब हुई है। इन खुशियों को किसी की नजर ना लगने पाए।' श्यामा ने हाथ जोड़कर भगवान को प्रणाम किया और सबके बीच चली आई।


     अव्यांश ने भी बड़े अदब से श्यामा की तरफ अपना हाथ बढ़ाया तो श्यामा ने भी बड़ी नजाकत से अव्यांश की बाह में बाह डाल दी और दोनों एक साथ ऑफिस के लिए निकल पड़े। अवनी ने भी अपना बैग लिया और एनजीओ की तरफ निकल गई। उन सब के जाते ही सिया और निशी अकेले घर में रह गए। सिया ने निशी को अपने पास बैठने के लिए कहा और प्यार से उससे बातें करने लगी। एक दूसरे को जानने समझने के लिए एक दूसरे के साथ वक्त गुजारना और बातें करना बेहद जरूरी था।



*****



     कुहू के मूड को सही करने के लिए सुहानी वही उसके साथ रुक गई थी। वैसे भी, घर में अव्यांश तो था नहीं जिससे वह लड़ाई करती और थोड़ा सा उसका इंटरटेनमेंट होता। तो बेटर था कि वह अपने ग्रुप में ही रहे। कुहू भी कुणाल की परेशानी से थोड़ा सा बाहर निकली और तीनों एक दूसरे को परेशान करते और बातें करते कब सो गई, उन्हें पता ही नहीं चला। बस यह ख्याल रखा कि गलती से भी कुणाल का जिक्र ना हो।


     सुहानी ने कोशिश तो बहुत की थी कि कुणाल को वह शॉपिंग के लिए बुला ले। समर्थ से उसे कुणाल का नंबर भी मिल गया था लेकिन कुणाल ने कॉल रिसीव ही नहीं किया। इस बात से सुहानी को भी थोड़ी हैरानी हुई कि आखिर कुणाल है कहां जो वो किसी का भी कॉल रिसीव नहीं कर रहा!


     दोपहर हो गई जब सुहानी ने मित्तल हाउस में कदम रखा और दोनों दादी पोती को इस तरह एक दूसरे पर प्यार लुटाते देख नाराज होकर बोली "हां! हां!! मुझे तो भूल ही गए ना आप लोग! आपको आपकी नई बहू मिल गई तो अब मेरी क्या जरूरत? एक बार भी आपने मुझे कॉल किया?"


     कहां तो सुहानी ने सोचा था कि सिया उसे मनाएगी लेकिन सिया ठहरी उसकी दादी, जो सुहानी से भी दो कदम आगे थी। उसने भी निशी को प्यार से गले लगा कर कहा "मैं तुझे क्यों याद करूं भला? अरे तुझ जैसी मेरी कितनी ही पोतिया है लेकिन बहु तो एक ही है ना! अब इसे प्यार नहीं करूंगी तो फिर किसे करूंगी? तुम लोग तो चली जाओगी अपने ससुराल, मेरे पास तो यही होगी ना बस एक। नही! एक्चुअली नहीं दो। तुझे पता है कल क्या हुआ है?"


    सुहानी भागते हुए आई और अपनी दादी के बगल में बैठ कर जल्दी से पूछा "क्या हुआ है दादी? कुछ खास हुआ है क्या?"


    सिया ने अकड़ कर कहा, "हुआ है, बहुत खास हुआ है। इस घर में एक और किसी की बैंड बजने वाली है। किसी की शादी तय होने जा रही है।"


     निशी सोचने लगी कि अगला नंबर किसका हो सकता है। वहीं सुहानी एकदम से खुश हो गई और कहा "वाह! मतलब हमारे घर में एक और शादी? मेरा मतलब, पहली ही तो शादी होगी। क्योंकि अंशु की शादी तो अचानक से हो गई। हमें तो इंजॉय करने का मौका ही नहीं मिला और ना ही अटेंड करने का। लेकिन इस बार हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। एक काम करते हैं, हम निशी और अंशु की शादी भी लगे हाथों करवा देते हैं, क्या ख्याल है?


    निशी ने एकदम से पूछा "लेकिन शादी किसकी होने वाली है?" सोनू चौक गई। इस बारे में तो किसी ने कुछ बताया ही नहीं। उसने भी पूछा "किसकी शादी है दादी? कौन है वह?"


     सिया ने शरारत से सुहानी की तरफ देखा तो सुहानी घबरा कर बोली "नहीं! बिल्कुल नही दादी। आप मेरी तरफ मत ऐसे मत देखिए। इस घर में मुझसे बड़े अभी दो लोग और हैं, जिनकी शादी होनी है। मुझे मत देखो आप, मुझे नहीं करनी कोई शादी।"


    सुहानी वहां से उठ कर भागने को हुई तो सिया ने उसका हाथ पकड़ लिया और अपने पास बैठा कर कहा "तेरे बाप ने समर्थ के लिए कोई रिश्ता देखा है। वो लोग कुछ दिनों में इंडिया आ रहे हैं। बस भगवान की कृपा से हमारे समर्थ की शादी तय हो जाए और बिना किसी विघ्न के उसका घर बस जाए।"


     समर्थ की शादी के बारे में सुनकर ही सुहानी खुशी से उछल पड़ी। उसने सिया को जोर से हग किया और कहा "सोमू भाई की शादी!!! मतलब सच में!!!" फिर वो निशी से बोली "निशी! तुम वाकई बहुत लकी हो हमारे घर के लिए। कार्तिक चाचू ने भी यही कहा था। जैसे मॉम के इस घर में कदम पड़ने से बड़े पापा की शादी हो गई, बिल्कुल वैसे ही तुम्हारे इस घर में आने के साथ ही समर्थ भाई के लिए भी........! मतलब मैं बता नहीं सकती, मैं कितनी खुश हूं।"


    सुहानी की आंखों में नमी उतर आई जिसे देख निशी को एहसास हुआ कि इन भाई-बहनों में कितना सारा प्यार है। निशी ने पूछा "दादी! नाम क्या है उसका?"


     सुहानी को अब जाकर याद आया कि उसने तो होने वाली भाभी का नाम तक नहीं पूछा है तो सिया ने कहा, "ईशानी, ईशानी नाम है उसका।"





*****




  ऑफिस में,


    अंशु अपने केबिन को देखकर खुशी से उछल पड़ा। ये बिलकुल वैसा ही था जैसा जैसा उसे चाहिए था। वो जाकर सारांश के गले लग गया और खुशी से कहा, "थैंक यू डैड! थैंक यू सो मच। मुझे पता था, आप मेरे लिए हमेशा बेस्ट ही करोगे।"


     सिद्धार्थ वहीं खड़ा था। उसने मुंह बनाकर कहा "हां! सारी मेहनत तो तेरे बाप ने की है। हम तो बस यूं ही खाली बैठे हुए थे।"


     सारांश ने सिद्धार्थ की तरफ देखा और अव्यांश से कहा, "ये वाला केबिन खास तौर पर भैया ने तेरे लिए पसंद किया था। यहां से बाहर की खूबसूरती काफी करीब से नजर आती है।"


    समर्थ ने ताना देते हुए कहा "हां! और तुझे खुबसूरती कुछ ज्यादा ही अच्छी लगती है। बस इसीलिए।"


    अव्यांश थोड़ा शरमा गया और सिद्धार्थ को जबरदस्ती अपनी कुर्सी पर बैठा कर कहा, "मुझे पता है, इस केबिन पर पहली नजर सोमू भाई की थी। और मुझे ये भी पता है कि आपने इस केबिन को मेरे लिए रिजर्व करके रखा था। डैड मेरे फ्रेंड है तो आप मेरे मेंटॉर। आपके साथ काम सीखने में मुझे बहुत अच्छा लगेगा। आप मुझे अपना असिस्टेंट बना लो, प्लीज!"


    सिद्धार्थ ने हंसते हुए कहा, "मेरा असिस्टेंट बाद में बनते रहना, फिलहाल तो तुझे एक असिस्टेंट की जरूरत है यहां का काम समझने के लिए। बंगलौर के ऑफिस का काम तूने बहुत से समझ लिया है। यहां पर कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। तेरी असिस्टेंट तुझे सब समझा देगी।"


    अव्यांश सिद्धार्थ की तरफ झुका और धीरे से कान में कहा, "खूबसूरत तो है ना?"


     सारांश ने अव्यांश के कान पकड़ लिए और कहा, "शर्म कर नालायक! शादी हो गई है तेरी।"


     अव्यांश अपना कान छुड़ाने की कोशिश करने लगा। तभी तन्वी की प्यारी सी आवाज़ आई "गुड मॉर्निंग सर!" ये आवाज अव्यांश के लिए अनसुनी नही थी। उसने चौंक कर तन्वी को देखा और सारांश से कहा, "डैड! ये होगी मेरी असिस्टेंट?"


    सारांश ने हां कहा और समर्थ की तरफ देखा जो खुद को नॉर्मल दिखाने की कोशिश कर रहा था। सारांश को यही सही समय लगा और उसने कहा, "वैसे, एक और गुड़ न्यूज है। तेरे सोमू भाई की शादी तय हो गई है।" 


  तन्वी का दिल टुकड़ों में बिखर गया फिर भी उसने अपने होंठों पर मुस्कान बनाए रखा। शायद उसे इस बात का अंदाजा पहले से था।




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