सुन मेरे हमसफर 49

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अगले दिन,


 शाम का वक्त था और निशी अपने कमरे में तैयार हो रही थी। वहां कमरे में निशी के आगे पीछे स्टाइलिस्ट की लाइन लगी हुई थी। कोई उसके बाल बनाने में लगी थी तो कोई मेकअप में तो कोई उसे गहने पहनाने में लगी थी तो कोई उसके कपड़ों को ठीक कर रही थी। निशि को ऐसा लग रहा था जैसे वो कहीं की राजकुमारी........ नहीं! नहीं!! कहीं की महारानी हो। आज वाकई उसे बहुत ज्यादा स्पेशल फील हो रहा था। अगर उसके मां पापा उसे इस तरह देखते तो ना जाने किस तरह अपनी खुशी जाहिर करते। लेकिन कल.........!


    कल जो कुछ भी हुआ, जो कुछ भी देखा, निशी अभी तक उसे भुला नहीं पाई थी। कल एक रात में ही उसने अव्यांश के एक नहीं कई रूप देखे थे। एक वह अव्यांश था जो डाइनिंग टेबल पर किसी बच्चे की तरह सबसे शिकायत कर रहा था और अपनी नाराजगी जाहिर कर रहा था। वही अव्यांश, एक पल में रोमांटिक होकर उसे बहाने से छेड़ रहा था तो कुछ देर बाद उसी अव्यांश के चेहरे पर जो सख़्त एक्सप्रेशन थे, उसकी आंखों में जो गुस्सा था, उसे देख निशी सहम गई थी। उसने मन ही मन सवाल किया 'आखिर तुम क्या हो? यह तीनों इंसान, एक साथ एक ही रूप में कैसे हो सकते हैं? क्या तुम वाकई वही हो जो तुम खुद को दिखाना चाहते हो? जैसा तुम सबके सामने हो, जैसा तुम मेरे सामने हो! या फिर तुम्हारा असली चेहरा वह है जो कल मैंने देखा? लेकिन इतनी नाराजगी किससे? ऐसा कौन सा शख्स है जिसके लिए तुम कुछ और ही बन गए थे?'


      निशी अपनी सोच में गुम थी जब उसके कानों में एक आवाज पड़ी "क्या सोच रही है मेरी गुड़िया?"


     निशी की तंद्रा टूटी। उसने सर उठाकर आईने में देखा तो अपने पीछे अपनी मां को खड़ा पाया। निशी खुशी से अपनी मां के गले लग गई और कहा "मुझे तो लगा था आप लोगों को आने में अभी वक्त है। आप लोग सीधे वेन्यू पर पहुंचेंगे।"


      रेनू जी ने निशी की नजर उतारते हुए कहा "किस्मत से तुझे ऐसा पति मिला है जो तेरे लिए बहुत सोचता है। इसलिए उसने साफ कह दिया था कि हम लोग आज सुबह ही पहुंच जाएं। फिर भी फ्लाइट थोड़ी देर हो गई और हम लोगों को आते आते शाम हो गई। लेकिन कोई बात नहीं, हम पहुंच गए।"


     निशी ने दरवाजे की तरफ देखा और अपनी मां से पूछा "पापा कहां है?"


    रेनू जी तो बस अपनी बेटी को ही देखे जा रही थी। उन्होंने कहा "तेरे पापा नीचे है, सबके साथ। वैसे मेरी गुड़िया आज बहुत प्यारी लग रही है। तू खुश तो है ना?"


     निशी कुछ कहती उससे पहले ही रेनू जी ने अपने सर पर खुद ही चपत लगाई और कहा "मैं भी ना, कैसे कैसे सवाल कर रही हूं! मित्तल साहब के घर में कभी कोई तकलीफ तुझे छू भी नहीं सकती। तेरे पापा से जितना सुना था, उससे कहीं ज्यादा पाया मैंने इस घर में। तेरी सास ने जब तेरा हाथ मांगा था और जिस तरह से मांगा था, मैं समझ गई थी कि मेरी बच्ची किस्मत की बहुत धनी है। हम तो बस यही सोचते रहे कि पता नहीं हम उनकी उम्मीदों पर खरा उतर पाएंगे या नहीं। लेकिन मेरा बच्चा! तुझे अपने ससुराल वालों की उम्मीदों पर खरा उतरना होगा। इसके लिए मुझे पैसों की जरूरत नहीं पड़ेगी। सिर्फ और सिर्फ प्यार की जरूरत पड़ेगी। इस घर को घर के लोगों को कभी बिखरने मत देना।"


     निशा को अपनी मां की बातें अच्छे से समझ आ रही थी। इस घर में जितना प्यार उससे मिला वो वाकई बहुत ज्यादा था। निशी इमोशनल होकर अपनी मां के घर लग गई।


    नीचे मिश्रा जी पूरे परिवार के साथ बैठे हुए थे। सारांश अवनी, सिद्धार्थ श्यामा, सुहानी, अव्यांश, सभी तैयार थे और काया भी अपने पूरे परिवार के साथ वहां पहुंचने वाली थी। सारांश ने दरवाजे की तरफ देखा और अपना फोन लेकर एक साइड में हो गया। अव्यांश ने सुहानी से धीरे से कान में पूछा, "कुहू दी खुश तो है ना?"


     सुहानी उसकी बातो का मतलब समझते हुए बोली, "हां! बहुत खुश है। जबसे कुणाल वापस आया है तब से ही उनके चेहरे पर एक अलग ही ग्लो नजर आ रहा है और इसका सारा क्रेडिट तुझे जाता है। मुझे नहीं पता था तू इतना स्मार्ट है! आखिर मेरी कंपनी का असर है।"


  अव्यांश ने सड़ी हुई शक्ल बनाई और कहा, "तेरे साथ तो बचपन से रहा हूं। स्मार्ट बनने के लिए मुझे तेरे से दूर जाना पड़ा और देख! 6 महीने में मेरी स्मार्टनेस कहां से कहां पहुंच गई।" 


 इतना कहना था कि सुहानी ने गुस्से में अव्यांश पर हाथ उठाना चाहा लेकिन सबके होते हुए उसे कंट्रोल करना पड़ा। कार्तिक और काव्या स-परिवार मित्तल हाउस पहुंचे। कुहू के चेहरे को देख अव्यांश ने चैन की सांस ली। मिश्रा जी से औपचारिक मुलाकात करने के बाद कार्तिक ने कहा "आई थिंक हमे भी चलना चाहिए। शाम हो चुकी है और हमें सबसे पहले वहां पहुंचना होगा। वरना गेस्ट वहां और होस्ट गायब।"


     सिद्धार्थ ने कहा, "उसकी चिंता मत करो। गेस्ट का स्वागत करने के लिए समर्थ पहले ही वहां पहुंच चुका है और कुणाल भी उसके साथ ही है। आखिर वो भी तो अब हमारी फैमिली का हिस्सा है।"


     "ये बात भी सही है, लेकिन............!" कहते हुए सारांश की नजर सुहानी और कुहू और काया पर गई तो उन तीनों ने सारांश का इशारा बखूबी समझा और काया ने कहा "डोंट वरी चाचू! हम तीनों भी अभी निकल लेते हैं। भाई और जीजू,अकेले कितना संभालेंगे!" इतना कहकर तीनों बहन वहां से फौरन निकल गई।


     अंशु जो वहीं मौजूद था बेचैनी से बार-बार एक नंबर डायल किए जा रहा था और हर बार उसे बस एक ही जवाब मिल रहा था कि जिस नंबर को उसने डायल किया है वो अभी स्विच ऑफ है। उसे इतना बेचैन देख सारांश ने पूछा "किसके लिए इतना बेचैन हो रहा है? तेरी बीवी ऊपर है।"


    अव्यांश ने नाराजगी से सारांश की तरफ देखा तो सारांश ने हंसते हुए कहा "जिनको आना होगा वो आएंगे ही। तेरे फोन करने या ना करने से कुछ बदल नहीं जाएगा।"


     अव्यांश ऐसे ही थोड़ा भन्नाया सा था। उसने अपने फोन की तरफ देखते हुए कहा "पिछले 2 घंटे से शिविका दी को कॉल कर रहा हूं लेकिन उनका फोन ऑफ आ रहा है। पता नहीं कहां है!"


     सारांश ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा "क्यों परेशान हो रहा है? मैंने ड्राइवर को भेजा है उसे लाने के लिए। फ्लाइट जैसे ही लैंड होगी, वह चली आएगी। वैसे भी थोड़ी डिले थी और फ्लाइट में कहां से उसका कॉल लगेगा?"


     अव्यांश को फिर भी तसल्ली नहीं थी। उसने कहा "नानू नानी भी नहीं आए।"


     सारांश उसकी उदासी समझ रहा था। उसने कहा "मां पापा बस आते ही होंगे। तू फिकर मत कर, हम सब तेरे इस रिसेप्शन को ग्रैंड बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।"


    अंशु खुश होने की पूरी कोशिश कर रहा था लेकिन ये उसके लिए मुश्किल हो रहा था। फिर भी उसने कहा "मेरे लिए डैड, निशी के लिए। मेरे लिए तो जहां आप सब हो, वही मेरे लिए ग्रैंड पार्टी है।"


     सारांश ने प्यार से अपने बेटे के बाल बिगाड़ दिया। अव्यांश चिढ़ गया "क्या डैड आप भी! अब मुझे फिर से अपने बाल सेट करने होंगे। पता है, कितनी मेहनत लगी थी इन्हें ठीक करने में!"


    इतने में अवनी जोर से चिल्लाई "मां पापा आ गए।"


     सबका ध्यान दरवाजे की तरफ गया। अवनी के साथ काव्या भी भागते हुए जाकर अपने मां पापा के गले लग गई तो अव्यांश ने धीरे से कहा "हम चाहे कितने भी बड़े हो जाए, मां पापा के सामने हमारा बचपन ही नजर आ ही जाता है।"


     सिद्धार्थ जोकि वही खड़ा दोनों बाप बेटे की सारी बातें सुन रहा था, उसने कहा "मां बाप के लिए बच्चे कभी बड़े नहीं होते हैं। और उनके सामने हमें भी नहीं लगता कि हम वाकई बड़े हो चुके हैं।"


     सिद्धार्थ ने एक नजर अवनी और काव्या पर डाला फिर अचानक ही उसका ध्यान श्यामा की तरफ चला गया जो चुपचाप सोफे पर बैठी हुई थी। उसे ऐसे देख सिद्धार्थ को बहुत बुरा लगा। लेकिन इस वक्त वह उसे कंसोल नहीं कर सकता था। लेकिन शायद इस सब की कोई जरूरत नहीं पड़ती। कंचन जी ने आवाज लगाई "श्यामा! इधर आओ। तुम्हे क्या अलग से बुलाना पड़ेगा?"


     श्यामा ने नजर उठाकर कंचन जी की तरफ देखा तो पाया वो बाहें फैला कर उसे ही बुला रही थी और अवनी और काव्या उम्मीद भरी नजरों से उसे देख रही थी। श्यामा धीमी कदमों से चलकर उन तक पहुंची तो कंचन जी ने श्यामा को गले से लगा लिया। अवनी और काव्या क्यों पीछे छूटती! उन दोनों ने भी उन्हें कस कर पकड़ लिया। श्यामा के लिए इमोशनल घड़ी थी और सिद्धार्थ के लिए एक खुशी का लम्हा।





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