सुन मेरे हमसफर 50

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 अव्यांश ने जब उन मां बेटियों का इमोशनल मिलाप देखा तो नाराज होकर बोला "लाइक सीरियसली!! शायद आप दोनों मेरे लिए यहां आए हैं। कोई बात नहीं, सब का टाइम आता है। कर लो आप लोगों को जो करना है। जब मेरा टाइम आयेगा तो मैं भी बताऊंगा सबको।"


      अंशु शिवि का कॉल ना लगने से वैसे ही परेशान था। इस सब से उसकी नाराजगी और बढ़ गई थी। कंचन जी अव्यांश के पास आई उसका कान पकड़कर कहा "तेरे लिए ही आई हूं। लेकिन तेरी नानी होने से पहले मैं उनकी मां हूं। अपनी ही मां से तुझे जलन हो रही है? तो जरा सोच, अगर वह नहीं होती तो तू कहां से आता?"


     लेकिन अव्यांश अभी भी नाराज था। उसने अपनी नानी के पैर छूते हुए कहा "मुझे समझाने की जरूरत नहीं है। बहुत अच्छे से पता है आप लोग क्या कर रहे थे।"


     अपने नाती की ऐसी नाराजगी भरी बातें सुनकर अखिल जी बोले "वैसे बात तो सही है। लेकिन मूल से ज्यादा सूद प्यारा होता है। इसीलिए हमें तो हमारे बच्चों के बच्चे ज्यादा प्यारे हैं और यही बात समधन जी पर भी लागू होती है। यकीन ना हो तो खुद उन्हीं से पूछ लो।"


    अव्यांश को किसी से भी कुछ पूछना समझने की जरूरत नहीं थी। वह बस अपना हक जता रहा था। उसने अपने नानू के पैर छुए और उनके गले लग कर कहा "आपको बहुत मिस किया मैंने। सोचा था, यहां आते ही आपसे मिलूंगा लेकिन आप और नानी यहां थे ही नहीं। शिविक दी भी घर से गायब है। उनका फोन नहीं लग रहा। समझ नहीं आ रहा वह कब तक आएंगी! कहीं ऐसा ना हो कि हम सब लोग घर से निकल जाए और उसके बाद वो घर पहुंचे!"


      सिया ने अव्यांश को रोकते हुए कहा "इतना परेशान मत हो, आ जाएगी वह। कहीं भागी नहीं जा रही। नानू नानी आए हैं, थोड़ा सा उन्हें चैन की सांस लेने दे, थोड़ा मिलने से सब से। आते ही अपनी शिकायत की पेटी खोल कर बैठ गया।"


    अव्यांश चेहरा लटक गया और वो चुपचाप मुंह फेर कर खड़ा हो गया। अव्यांश की ये बचकानी हरकत मिश्रा जी ने कोई पहली बार नहीं देखी थी। इससे पहले भी ऑफिस के काम में जब भी उन्होंने अव्यांश को डांट लगाई थी या तो वो अपनी गलती एक्सेप्ट कर लेता था या फिर ऐसे ही बच्चों सी शक्ल बना कर खड़ा हो जाता था।


    सिया ने अखिल और कंचन जी को मिश्रा जी से मिलवा ते हुए कहा "ये मिश्रा जी हैं। हमारे अंशु के ससुर जी और हमारी निशी के पापा।"


     काव्या ने एक लाइन और जोड़ दी "और आपकी लाडली बेटी के समधी भी।"


    सभी हंस पड़े। माहौल एकदम हल्का फुल्का सा हो गया। मिश्रा जी ने अपने दामाद के नाना नानी के सामने हाथ जोड़ें और उनके पैर छूने के लिए आगे बढ़े तो अखिल जी ने एकदम से उन्हें कंधे से पकड़ कर रोक दिया और कहा "आप लड़की वाले हैं, और लड़की वाले का स्थान कहां होता है यह हमारी समधन ने हमें बखूबी समझाया है। आप हमारे बेटे की तरह है। जैसे सारांश और कार्तिक, वैसे ही आप। आप भी अब हमारे परिवार का हिस्सा है, इसीलिए औपचारिकता पूर्ति करने की आवश्यकता नहीं।" अखिल जी ने मिश्रा जी के सर पर प्यार से हाथ फेरा।


     कार्तिक ने एक बार फिर सबको याद दिलाया "हमें निकलना होगा वरना बहुत देर हो जाएगी।"


    सबने कार्तिक की बातों से एग्री किया लेकिन मिश्रा जी की नजर निशी के कमरे की तरफ चली गई। रेनू जी अभी वही थी। मिश्रा जी सोच में पड़ गए कि वह रेनू जी को कैसे बुलाएं। इतने में अव्यांश ने कहा "अरे! लेकिन ऐसे कैसे जा सकते हैं? निशी अभी भी तैयार हो रही है। उसे तो आने दीजिए! नानू नानी तो मिले भी नहीं है उससे।"


     कंचन जी बड़े प्यार से बोली "कोई बात नहीं। हम अपनी प्यारी बहू से वहां भी मिल लेंगे। उसे अच्छे से तैयार हो लेने दो, कोई जल्दी नहीं है, ठीक है?"


    सारांश ने धीरे से झुक कर उसके कान में कहा, "जाने दे हम लोगों को। तुझे तेरी बीवी के साथ अलोन टाइम मिल जाएगा। पिछली बार का याद नहीं है क्या? और वैसे भी, लोग तुम दोनों से ही मिलने आ रहे हैं। आज का सेंटर ऑफ अट्रैक्शन हो तुम दोनों। इतनी जल्दी सबके साथ पार्टी चला जाएगा तो फिर मजा नहीं आएगा। लास्ट मिनट पर एंट्री मारना, बिल्कुल शो स्टॉपर की तरह।"


     अव्यांश को अपने डैड की यह बात सही लगी। पिछली बार की तरह इस बार भी सब कुछ फुलप्रूफ था, यह सोच कर अव्यांश मुस्कुरा दिया और कहा "चाचू ठीक बोल रहे है। आप लोगों को अभी निकलना चाहिए वरना वाकई बहुत देर हो जाएगी। भाई और कुणाल कब तक सबको संभालेंगे! मैं रुकता हूं यहा। हो सकता है शिविक दी तब तक यहां पहुंच जाए। वैसे भी, निशी को अभी तैयार होने में टाइम लग रहा है। आप लोगों को निकल जाना चाहिए।"


     सिद्धार्थ ने अव्यांश को अजीब तरह से देखा बड़ी ही अजीब तरीके की स्माइल दे कर कहा "बिल्कुल अपने बाप पर गया है।"


     इस बार श्यामा ने सिद्धार्थ को ताना मारा "कम से कम आप की तरह तो नहीं है! मेरे एक बच्चे को आप अपनी तरह बना चुके हो। शुक्र है कि मेरा दूसरा बच्चा आपकी तरह नहीं है।"


     सिद्धार्थ झुंझला गया "तुम लोगों को ताना देने के लिए और कोई नहीं मिलता क्या? एक अकेला मैं ही नजर आता हूं?"


    सिया ने दोनों के बीच पड़ते हुए कहा "सीड! तेरी हरकत ही ऐसी है तो कोई क्या कर सकता है!"


     इससे पहले की बात बड़े और निशी तैयार होकर नीचे आ जाए, अव्यांश ने जल्दी से बीच बचाव करते हुए कहा "आप लोगों को लड़ने का मन है तो यह प्रोग्राम हम कल के लिए पोस्टपोन कर देते हैं। चलिए आप लोग!" अव्यांश ने जैसे तैसे सबको घर से बाहर भेजा। रेनू जी भी तब तक निशी को छोड़कर नीचे आ चुकी थी। वह भी मिश्रा जी के साथ पार्टी वेन्यू के लिए निकल गई।


     सब के जाने के बाद अव्यांश से रुका नहीं गया और भागते हुए अपने कमरे के बाहर पहुंचा। लेकिन उसका दिल इतना जोर से धड़क रहा था कि उसके दिल की धड़कन कोई भी आसानी से सुन सकता था। उसने धीरे से अंदर की तरफ झांका। निशी आईने के सामने बैठी हुई थी और अभी भी तैयार हो रही थी।


    वैसे तो सुहानी चाहती थी कि निशी को वो अपने साथ पार्लर लेकर जाए और वहीं से तैयार करके लेकर आए लेकिन अंशु जिद पर अड़ा था और सारे अरेंजमेंट बेचारी सुहानी को घर पर करवाने पड़े।


    निशी आईने के सामने बैठी बेहद खूबसूरत लग रही थी। अव्यांश का दिल जैसे धड़कना भूल गया। निशी किसी जादू की तरह काम कर रही थी, जिसमें अव्यांश बेसुध होकर उसे देखे जा रहा था। जैसे ही निशी ने नजर उठाई, अव्यांश एकदम से हड़बड़ा गया और दरवाजे के पीछे छुप गया। "अपनी बीवी को इस तरह छुप-छुपकर कौन देखता है? गधा कहीं का!!" अव्यांश ने अपने सर पर मारा और इस ओकवर्ड सिचुएशन से बचने के लिए वह कमरे में घुस गया।


     निशी ने तो उसे देख ही लिया था। अगर वो वहां से नीचे जाता तो निशी सवाल करती, इसीलिए उसे यही बेहतर तरीका लगा। अंदर कमरे में जाते ही अव्यांश ने बिना निशी को एक नजर देखें कहा "कितना टाइम लगेगा?"


     जितनी भी स्टाइलिस्ट खड़ी थी, उनमें से एक ने कहा "बस 2 मिनट। हल्का सा टच अप बाकी रह गया है, और यह बिल्कुल तैयार है।"


   स्टाइलिस्ट की मुस्कुराहट इतनी प्यारी थी कि अव्यांश भी मुस्कुराए बिना ना रह सका और गलती से तारीफ कर दी। जब उसे एहसास हुआ तो उसने तिरछी नजर से निशी की तरफ देखा। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, जिससे उसके मन की बात अव्यांश जान सके। सुना तो उसने भी बहुत अच्छे से था, लेकिन वो जाहिर कैसे करेगी, अव्यांश बस यही समझ नहीं पा रहा था।





    पार्टी वेन्यू पर,

     समर्थ किसी से फोन पर बात कर रहा था। "तुम चिंता मत करो। सब कुछ तुम्हारे हिसाब से ही होगा। ना अंशु और ना ही बाकी किसी घर वालों को इस बारे में कुछ भी पता चलेगा। इस मामले में तुम्हे कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। तुम बस अपना प्लान बताओ।"


      दूसरी तरफ से किसी ने कुछ कहा और समर्थ बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रहा था। जब उसकी नजर कुणाल पर गई तो उसने कॉल खत्म किया और कुणाल से बोला "कुणाल! इधर का सारा हिसाब मैं देख रहा हूं, तुम एक बार कैटरिंग वाले को देख लो, सारे अरेंजमेंट हुए हैं या नहीं।"


      कुणाल को एक काम मिल चुका था तो वह अपने उस काम को पूरा करने के लिए चल पड़ा। लेकिन रास्ते में कुहू ने उसका हाथ पकड़ा और खींचकर अपने साथ ले जाने लगी। कुणाल परेशान होकर बोला "यह क्या कर रही हो तुम कुहू? छोड़ो मुझे, काम है। अभी गेस्ट सारे पहुंचना शुरू हो चुके हैं।"


     लेकिन कुहू कहां सुनने वाली थी! वो कुणाल को लेकर एक साइड में गई और कहा "यह सारे इंतजाम तुम्हें नहीं करना। तुम्हें बस यह देखना है कि वह सारे अरेंजमेंट सही है या नहीं। वैसे सच कहूं तो तुम्हें इस तरह काम करते देख मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, क्योंकि तुम भी अब खुद को इस परिवार का हिस्सा मानने लगे हो।"


      कुणाल बस हल्के से मुस्कुरा दिया तो कुहू ने आगे कहा "यकीन नहीं होता कि आज अंशु की रिसेप्शन पार्टी है। मेरा छोटा भाई........। मुझे कभी नहीं लगा था कि उसकी शादी सबसे पहले होगी। लेकिन सच कहूं तो, (कुणाल के शर्ट का कॉलर ठीक करते हुए) इस रिसेप्शन का जैसा अरेंजमेंट है, मुझे हमारी रिसेप्शन पर भी ऐसा ही अरेंजमेंट चाहिए। अगर तुम्हारे पास इससे भी बेहतर आइडिया हो तो चलेगा लेकिन इससे कम नहीं होना चाहिए।"


      कुकू के मुख से रिसेप्शन की बात सुन कुणाल के दिल में एक हूक सी उठी।




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