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ये हम आ गए कहाँ!!! (79)

     एक दूसरे का हाथ थामें पूरा जोधपुर घूमने के बाद रूद्र शरण्या अगले दिन घर के लिए निकल गए। घर पहुंचते ही उसने सबसे पहले शरण्या को उसके घर छोड़ा फिर अपने घर चला आया। दादी पिछले एक महीने से ज्यादा वक्त से वहां रह रही थी ऐसे में उन्हें आश्रम की चिंता होने लगी थी लेकिन शादी के तुरंत बाद जाना किसी को सही नहीं लगा तो वह एक हफ्ता और रुक गई। लेकिन उन्हें तो जाना ही था, ऐसे में उन्होंने यह जिम्मेदारी हर बार की तरह रूद्र को ही सौंपी लेकिन इस बार उन्होंने शरण्या को भी इस सब में लपेट लिया।        शरण्या कभी उनके आश्रम नहीं गई थी इसीलिए उनका बहुत मन था कि शरण्या भी उनके साथ जाए। अब दादी की बात को टालना खुद उनके बेटे के बस की बात नहीं थी ऐसे में शरण्या को मना करने वाला कोई नहीं था। शरण्या ने जब सुना तो वह खुशी से उछल पड़ी। दादी उन दोनों की लव लाइफ की सबसे बड़ी हीरो थी जिसकी वजह से ही उन दोनों की प्यार की गाड़ी इतनी आगे बढ़ पाई वरना इतने सालों से वह दोनों ही अलग अलग रास्तों पर चल रहे थे। शरण्या ने जल्दी से अपना बैग पैक किया और अपना बाइक लेकर रूद्र के घर पहुंची।         रात का वक़्त था और उन्हें रात

ये हम आ गए कहाँ!!! (78)

      शादी की विधियां शुरू हो गई थी। साथ ही रूद्र और शरण्या ने पूरा माहौल काफी हल्का फुल्का बना दिया था। सभी मेहमान हंसी-खुशी शादी को इंजॉय कर रहे थे लेकिन शरण्या रेहान के जूतों के लिए परेशान थी। उसे कहीं भी जूते नजर नहीं आ रहे थे तो दादी ने रूद्र के बारे में बताया क्योंकि जूते उसी के पास थे और यह बात सिवाय दादी के और कोई नहीं जानता था। शरण्या ने बहला फुसलाकर रूद्र से जूतों का पता पूछ लिया और रूद्र ने भी उसकी बातों में आकर बता भी दिया इसलिए वो बिजली की रफ्तार में वहां से भागी तब जाकर रूद्र को एहसास हुआ।       इससे पहले कि वह उसे पकड़ पहुंचा शरण्या के हाथ में। फूलों की टोकरी थी जिसे लेकर बहुत ज्यादा खुश हो रही थी रूद्र ने उसके हाथ से फूलों की टोकरी छीनने की कोशिश की लेकिन शरण्या उसे लेकर भागी। साइड में जाकर उसने जैसे ही उस टोकरी के अंदर हाथ डाला तो उसमें सिवाय फूलों के और कुछ नहीं था। उसनें हैरानी से पलट कर रूद्र की तरफ देखा जो हाथों में एक जोड़ी जूते लिए खड़ा मुस्कुरा रहा था और उसे ही देख रहा था। शरण्या समझ गयी कि रूद्र ने उसको बेवकूफ बनाया है लेकिन वह कहां हार मानने वालों में से थी। उ

ये हम आ गए कहाँ!!! (77)

    रूद्र ने अपने भाई को घोड़ी पर बिठाया और बड़ी ही धूमधाम से बारात निकली। बारात जब द्वार पर पहुंची उस वक्त लावण्या पूरी तरह दुल्हन के रूप में तैयार बैठी थी। शरण्या ने भी वही ड्रेस पहना था जो उसने रुद्र के साथ जाकर डिजाइन करवाया था। वाकई में रुद्र की पसंद काफी अच्छी थी। जैसे ही बारात के आने की खबर सुनी वह दोनों बहने भागते हुए बालकनी में जा पहुंची। लावण्या तो रिहान को देखकर शरमा गई लेकिन शरण्या की भौहें टेढ़ी हो गई। रूद्र इस वक्त किसी लड़की के साथ डांस कर रहा था जिसे वह जानती तक नहीं थी। वह शायद रेहान के किसी दोस्त की बहन थी। शरण्या गुस्से में लाल पीली हो गई। उसने रूद्र को उसी वक्त कॉल लगा दिया लेकिन बारात के शोर में रूद्र को फोन की घंटी कहां सुनाई देने वाली थी।      शरण्या ने धीरे से कहा, "अभी तुझे अपनी फोन की घंटी सुनाई नहीं दे रही ना बच्चु! तू रुक जा, तेरे घंटी तो मैं बजाती हूं।" रेहान की नजर जैसे ही लावण्या पर गई, वह बस उसे देखता रह गया। सिल्वर और पिंक लहंगे में लावण्या बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। द्वार पूजन के वक्त विहान ने रेहान को घोड़ी से उतारा और गोद में ही लेकर दर

ये हम आ गए कहाँ!!! (76)

    शादी की तैयारी जोरों पर थी। रूद्र सुबह से ही मंडप बनवाने मे लगा हुआ था। सारी डिजाइनिंग वो खुद ही करवा रहा था। शरण्या भी उसके साथ ही लगी थी। बीच बीच में उं दोनों की नोकझोक भी देखने को मिल जाती। किसी किसी डिजाइन पर दोनों ही लड़ पड़ते तो दादी बीच मे पड़ती और झगड़े सूलझाती। ज्यादातर वो शरण्या का ही साइड लेती जिससे शरण्या खुश हो जाती और दादी के गले लग जाती। दादी ने जब उन दोनों को देखा तो शरण्या से धीरे से बोली, "जितना अपनी मर्ज़ी चलाना है चला लो, बाद मे तो तुम्हें ही उसे संभालना है। बस एक बार ये शादी संपन्न हो जाए उसके बाद तेरे उस खडूस बाप से मैं बात करती हु। तुम दोनो ने मिलकर मेरा सबसे बड़ा सपना पूरा कर दिया। अब बस जल्दी से मेरे बच्चे की गृहस्थी संभाल लो वरना इस नालायक का कोई भरोसा नही है मुझे। तुम दोनों को शादी के बंधन मे बंधते देखना चाहती हु।        शरण्या दादी का हाथ पकड़ते हुए बोली, "दादी मैं भी तो यही चाहती हु। लेकिन आपका पोता ही है जो खुदको सबकी नजर मे साबित करना चाहता है। जिम्मेदार बनना चाहता है। वो अगर तैयार हो तो मै खड़े खड़े शादी कर लु। रही बात इस नालायक की तो म

ये हम आ गए कहाँ!!! (75)

   शाम तक शरण्या की मेहंदी का रंग पहले से काफी खूबसूरत हो चुका था लेकिन लावण्या की मेहंदी का रंग अभी भी थोड़ा फीका ही रह गया था। लावण्या को समझ नहीं आया आखिर उसकी हथेली पर शरण्या जितना रंग क्यों नहीं चढ़ा।  शरण्या को भी वही मेहंदी लगी थी जो लावण्या को लगी थी तो फिर दोनों की रंगत में फर्क कैसे! और कहते हैं ना मेहंदी का रंग पति का प्यार दिखाता है तो क्या रेहान मुझसे प्यार नहीं करता? लावण्या सोच में पड़ गई। उसे सोचता देख रेहान बोला, "तुम क्यों इतना परेशान हो रही हो? सिर्फ एक मेहंदी का रंग ही तो है कुछ और तो नहीं है! सिर्फ एक रस्म ही तो है इससे ज्यादा कुछ नहीं। ऐसा थोड़ी है कि अगर मेहंदी का रंग नहीं चढ़ा तो मैं तुमसे प्यार नहीं करता! दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करता हूं मैं तुम्हें। बहुत मुश्किल से पाया है, तुम्हें खोने से डरता हूं। वरना किसी चीज से नहीं डरता। मेहंदी का रंग चाहे आए या ना आए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैं तुमसे प्यार करता हूं और बहुत ज्यादा करता हूं। मेरे लिए बस इतना मायने रखता है कि तुम मेरे पास रहो, मेरे साथ जिंदगी भर के लिए। इससे ज्यादा मुझे और कुछ नहीं चाहि

ये हम आ गए कहाँ!!! (74)

    रूद्र नें विहान को जो आईडिया दिया था वह काम कर गया। पहले दिन ही उसने उन सारी लड़कियों की लिस्ट निकलवा ली जो अमित के ऑफिस ज्वाइन करने के बाद से ऑफिस छोड़ कर गई थी। उनमें से एक लड़की अमित के खिलाफ गवाही देने को तैयार हो गयी और वही सब कुछ बताया जो मानसी के साथ हुआ था। शरण्या की तबीयत अब पहले से काफी बेहतर थी और उसे हॉस्पिटल से छुट्टी भी मिल गई। रूद्र शरण्या को लेकर अपने घर गया और अगली सुबह उसके साथ जोधपुर जाने के लिए रवाना हो गया।       शरण्या बहुत ज्यादा खुश थी। एक तो उसकी बहन की शादी उस पर से रूद्र का साथ लॉन्ग ड्राइव। यह जैसे किसी सपने से कम नहीं था उसके लिए। जब से वह दोनों साथ आए थे उन दोनों को अकेले एक साथ वक्त बिताने का इतना ज्यादा मौका नहीं मिला था जितना कि पिछले कुछ दिनों में मिला। अगले दिन हल्दी थी जिसके लिए उन दोनों को आज ही पहुंचना था। शरण्या रात को ही निकलना चाहती थी ताकि उसे रूद्र के साथ कुछ वक्त और मिल सके लेकिन रूद्र ने ऐसी हालत में उसके साथ रात को ड्राईव करना सेफ नहीं समझा। शरण्या ने भी उसकी बात मानते हुए ज्यादा जिद नहीं की।       तकरीबन 100 किलोमीटर पहले अचानक से शरण्

ये हम आ गए कहाँ!!! (73)

 खिड़की के पर्दे से छन कर आती हूइ धूप जब शरण्या के चेहरे पर पड़ी तो उसकी आँखें खुली। जब उसे थोड़ा होश संभाला तब उसने खुद को एक अनजान जगह पर पाया। उसने अपने चारों ओर नजर दौड़ाई तब जाकर उसे एहसास हुआ कि वो होस्पिटल में हैं। कल रात की कुछ कुछ बातें अब उसके जेहन मे उभरने लगी थी। उसे याद आया जब वो रूद्र से बात कर रही थी और अचानक से बेहोश हो गई। उसके बाद का उसे कुछ याद नहीं था।        अपने चेहरे पर पड़ने वाली उस धूप को रोकने के लिए उसने अपना हाथ उठाना चाहा लेकिन एक हाथ में सुई लगी थी और दूसरे हाथ में उसे कुछ भारी जैसा महसूस हुआ। शरण्या ने सर घुमा कर देखा तो पाया रूद्र उसका हाथ थामे वही साइड में सो रहा था। रूद्र के चेहरे पर थकान साफ नजर आ रही थी। शरण्या उसे देख कर ही समझ गई की पूरी रात वह उसके लिए परेशान रहा है। उसे सोता देख शरण्या का मन ही नहीं हुआ उसे जगाए। वह प्यार से अपने दूसरे हाथ से उसका बाल सहलाने लगी लेकिन तभी अचानक से रुद्र की आंख खुली और वह नींद से जागा। शरण्या को अपने सामने जागता पाकर रूद्र की जान में जान आई। वह जल्दी से उठकर उसके सामने बैठते हुए पहले तो उसके चेहरे को अच्छे से निहा

ये हम आ गए कहाँ!!! (72)

     शरण्या की तबीयत अचानक से खराब हो गई जिसके वजह से सभी लोग घबराए हुए थे और सबसे ज्यादा रूद्र! शरण्या को लेकर वो इतना ज्यादा बेचैन हो उठा कि लावण्या के गले लग कर रो पड़ा। लावण्या ने भी उसे संभालते हुए उसे दिलासा दिया और दोनों ही वापस हॉस्पिटल के अंदर चले आए। सारे घर वाले वहां मौजूद थे। डॉक्टर ने जब मिस्टर रॉय से उनकी फैमिली हिस्ट्री के बारे में पूछा तो मिस्टर रॉय के मुंह से सिर्फ शरण्या की मां के बारे में ही जानने को मिला। क्योंकि उनकी पूरी फैमिली में किसी को भी किसी भी तरह की एलर्जी नहीं थी, सिवाय शरण्या की मां के।       बरसों बाद श्रृजिता का जिक्र सुन अनन्या का मन मलीन हो गया। उसे तकलीफ सिर्फ इस बात की थी कि ललित को शरण्या की मां के बारे में अभी भी सब कुछ याद था। ललित ने घबराते हुए अनन्या की तरफ देखा तो उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया। ललित समझ गया एक बार फिर उन्होंने अपनी पत्नी को चोट पहुंचाई है।  कुछ देर बाद डॉक्टर बाहर आए और उन्होंने कहा, "शरण्या फिलहाल ठीक है। उसकी कंडीशन स्टेबल है। होश आने में सुबह तक का वक्त लग सकता है तब तक कोई घबराने वाली बात नहीं है।" शरण्या क

ये हम आ गए कहाँ!!! (71)

    जनवरी के आखिर मे शादी होनी थी और सभी को एक हफ्ते पहले ही जोधपुर रवाना होना था। सबकी अपनी अपनी पैकिंग हो चुकी थी। शरण्या कुछ ज्यादा ही एक्साइटेड थी अपनी बहन की शादी को लेकर। आखिर इसी बहाने उसे रूद्र के साथ कुछ और वक्त बिताने को मिल जाता। अगले दिन सबको निकलना था। अनन्या ने सबके लिए अपने हाथों से खीर बनाई थी ताकि निकलने से पहले सबका मुंह मीठा किया जा सके। खाना खाने के बाद सब लोग अपने अपने कमरे में चले गए क्योंकि सुबह सबको एक साथ निकलना था।       अपने कमरे में आकर शरण्या अपनी जरूरत की कुछ चीजें बैग में डाल रही थी। तभी रुद्र का फोन आ गया। उसका नंबर देखते ही शरण्या खुशी से फोन उठाते हुए बोली, "मैं अभी तुझे ही कॉल करने वाली थी। अच्छा सुन..... कल क्या हम दोनों एक साथ जा सकते हैं? मतलब सभी लोग गाड़ी से जा रहे हैं ना, तो क्या मैं तेरे साथ तेरी गाड़ी में जा सकती हूं?" रूद्र बोला, "चाहता तो मैं भी यहीं हूं लेकिन पता नहीं बहाना क्या बनाऊं समझ नहीं आ रहा!"      शरण्या बोली, "कुछ तो कर! कोई जुगाड़ लगा जिससे कि मैं तेरे साथ चल सकू। वैसे तो तेरा दिमाग हर जगह चलता है लेकिन ज

ये हम आ गए कहाँ!!! (70)

     जोधपुर पहुंचते पहुंचते रूद्र इतना ज्यादा थक गया था की होटल में जाते ही वह गहरी नींद सो गया। शरण्या उसे खाना खाने के लिए जगाने भी आई लेकिन उसे इतनी गहरी नींद सोता देख उठाया नहीं। वह जानती थी रूद्र को अपनी नींद कितनी ज्यादा प्यारी है। उसने प्यार से रूद्र का माथा सहलाया और उसे कंबल ओड़ा कर वापस अपने कमरे में चली आई जहां मानसी उसका इंतजार कर रही थी।       शरण्या को अकेले आया देख मानसी ने पूछा, "क्या हुआ शरण्या! रूद्र नहीं आया? मैं खाना लगाऊं?" शरण्या बोली, "भाभी मेरा मन नहीं कर रहा। वो रास्ते में मैंने बहुत ज्यादा खा लिया था ना तो इसीलिए मेरा मन नहीं हो रहा। अब अगर खाऊंगी तो डाइजेस्ट नहीं हो पाएगा और हो सकता है शायद मुझे फूड पॉइजनिंग भी हो जाए!"      मानसी ने फिर पूछा, "और रुद्र कहां है?" शरण्या बोली, "वो सो रहा है। कल रात भी ठीक से सोया नहीं था शायद और आज पूरा दिन ड्राईव करके वह थक गया है इसलिए मैंने भी जगाया नहीं। रात में जब भी उठेगा मैं उसे खिला दूंगी। आप खा लीजिए और आराम कीजिए वरना अमित भैया हम दोनों की बैंड बजा देंगे।" कहकर शरण्या खिलखिला क