ये हम आ गए कहाँ!!! (70)

     जोधपुर पहुंचते पहुंचते रूद्र इतना ज्यादा थक गया था की होटल में जाते ही वह गहरी नींद सो गया। शरण्या उसे खाना खाने के लिए जगाने भी आई लेकिन उसे इतनी गहरी नींद सोता देख उठाया नहीं। वह जानती थी रूद्र को अपनी नींद कितनी ज्यादा प्यारी है। उसने प्यार से रूद्र का माथा सहलाया और उसे कंबल ओड़ा कर वापस अपने कमरे में चली आई जहां मानसी उसका इंतजार कर रही थी। 

     शरण्या को अकेले आया देख मानसी ने पूछा, "क्या हुआ शरण्या! रूद्र नहीं आया? मैं खाना लगाऊं?" शरण्या बोली, "भाभी मेरा मन नहीं कर रहा। वो रास्ते में मैंने बहुत ज्यादा खा लिया था ना तो इसीलिए मेरा मन नहीं हो रहा। अब अगर खाऊंगी तो डाइजेस्ट नहीं हो पाएगा और हो सकता है शायद मुझे फूड पॉइजनिंग भी हो जाए!"

     मानसी ने फिर पूछा, "और रुद्र कहां है?" शरण्या बोली, "वो सो रहा है। कल रात भी ठीक से सोया नहीं था शायद और आज पूरा दिन ड्राईव करके वह थक गया है इसलिए मैंने भी जगाया नहीं। रात में जब भी उठेगा मैं उसे खिला दूंगी। आप खा लीजिए और आराम कीजिए वरना अमित भैया हम दोनों की बैंड बजा देंगे।" कहकर शरण्या खिलखिला कर हंस दी, लेकिन मानसी के चेहरे पर बस हल्की सी मुस्कान आ कर रह गई। वो बहुत अच्छे से जानती थी कि अमित को उससे कोई मतलब नहीं है। 

     शरण्या ने बात बदलने के लिए अमित का जिक्र किया लेकिन मानसी कहां उसे छोड़ने वाली थी। उसने कहा, "रूद्र को बुलाने जाने से पहले यह सारा खाना तुम्ही ने आर्डर किया था और बुरी तरह से बेचैन थी कि तुम्हें बहुत ज्यादा भूख लगी है। तो यह अचानक से फूड पॉइजनिंग वाली बात कहां से आ गई? शरण्या ने कुछ जवाब देना चाहा लेकिन उसे समझ नहीं आया कि वह बहाना क्या दें।उसे सोचता देख मानसी ने मुस्कुरा कर कहा, "कोई बात नहीं। जब वह उठेगा तो उसे भी खिला देना और खुद भी खा लेना, ठीक है!" 

     शरण्या समझ गई कि उसकी चोरी पकड़ी गई है। वह कमरे से बाहर जाने को हुई मानसी ने उसे रोकते हुए कहा, "वैसे तुम दोनों एक साथ बहुत अच्छे लगते हो। जिस तरह तुम उसके सामने अपना बचपना दिखाती हो और जिस तरह वह तुम्हारे हर नखरे उठाता है.......... अच्छा लगता है।" शरण्या समझ गई की मानसी को सारी बातें समझ आ गई है फिर भी उसने कहा, "क्या भाभी आप भी....! हम बस दोस्त हैं और कुछ नहीं!" 

      मानसी चम्मच साइड में रखते हुए बोली, "प्यार और दोस्ती में ना, बहुत फर्क होता है। लेकिन ज्यादा फर्क भी नहीं होता। दोस्ती जब प्यार की हद में पहुंच जाए तो वह छुपाए नहीं छुपती। तुम दोनों के किस्से बहुत सुने हैं मैंने। नेहा तो आए दिन तुम दोनों के बारे में बात करती रहती है लेकिन जो मैं देख रही हूं वह वैसा कुछ भी नहीं है। शरण्या.......! खुशी और दर्द को छुपाना फिर भी आसान होता है लेकिन प्यार को छुपाना उससे भी ज्यादा मुश्किल। यह जो प्यार है ना, ये आंखों से झलकता है। हम किसी को किस तरह से देखते हैं इससे पता चलता है कि हमारे दिल में उस इंसान के लिए कितना प्यार है। ये आँखें हमारे दिल का आईना होती है। अगर तुम दोनों अपने रिलेशनशिप को छुपाना चाहते हो तो कोई बात नहीं, मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी। यह तुम दोनों की बातें हैं। वैसे मैं एक बात की जरूर कहना चाहूंगी, प्यार बहुत किस्मत वालों को मिलता है और सच्चा प्यार शायद ही किसी को।"

     शरण्या मुस्कुराकर जाकर मानसी के गले लग गई। मानसी ने उसे खाने के लिए कहा भी लेकिन रूद्र के बिना उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। अगले दिन से शादी के वेन्यू के लिए सारी जोड़-तोड़ शुरू हो गई। वैसे तो उम्मेद भवन में काफी लंबी बुकिंग होती है लेकिन रूद्र और विहान ने कहीं ना कहीं से जुगाड़ लगाकर वहां बुकिंग करवाई ही ली। 

     वह तीनों सबसे पहले मानसी के घर गए और उसके परिवार वालों से मिले। मानसी के परिवार वाले भी उन तीनों को देखकर काफी ज्यादा खुश थे। मानसी चाह कर भी उन्हें कुछ नहीं बता पाई लेकिन रूद्र ने उसे हिम्मत दी और दिलासा दिया कि विहान सब ठीक कर देगा। विहान और मानसी के रिश्ते के बारे में शरणया अभी भी कुछ नहीं जानती थी। उसे तो बस यही लगता था कि विहान और नेहा एक दूसरे में इंटरेस्टेड है। 

    वहां से लौटकर मानसी ने रूद्र और सानिया को जोधपुर के हर छोटे-बड़े मार्केट में घुमाया ताकि शादी की खरीदारी के लिए उन्हें ज्यादा मुश्किल ना हो और शादी की तैयारियों में कोई अड़चन ना आए। दिल्ली से इतने सारे सामान के साथ वहां आना थोड़ा मुश्किल होता ऐसे में यहां के लोकल मार्केट में आकर यहां से बाकी सारी जरूरत की चीजों की खरीदारी आसान हो जाती। उन तीनों को ही वहां बहुत मजा आ रहा था। मानसी इतने सालों से जोधपुर में रहीं लेकिन कभी भी इतना अच्छा वक्त नहीं गुजारा था जितना रूद्र और शरण्या के साथ मिला। 

     देखते ही देखते 10 दिन गुजर गए। रूद्र ने शरण्या के लिए एफएम स्टेशन से बात कर वही से अपना शो कंटिन्यू करने के लिए सारा सेटअप करवा दिया ताकि वह आराम से अपना काम भी देख सकें और बाकी सारी चीजें भी। रूद्र को तो बस शरण्या के साथ टाइम स्पेंड करना था। मानसी भी उन दोनों के बीच कबाब में हड्डी नहीं बनती और उन दोनों को ही पूरा वक्त मिल जाता एक दूसरे के साथ रहने का। 

    लोहरी आने वाली थी और उन तीनों को ही वापस आना था। शरण्या का मन उदास हो गया। वह जानती थी घर वापस जाकर उसे रूद्र से अलग होना होगा और एक बार फिर उन्हीं लोगों के बीच जिन्हें चाह कर भी अपना नहीं कह पाती थी। वह बस रूद्र के साथ जल्द से जल्द अपनी जिंदगी शुरु करना चाहती थी लेकिन रूद्र को थोड़ा वक्त और चाहिए था। वह नहीं चाहता था कि उन दोनों के रिश्ते को लेकर किसी की भी उंगली उठे। उसे खुद से ज्यादा शरण्या की खुशियों की परवाह थी और लोहड़ी के कारण उन दोनों को ही वापस घर लौटना था। सारे इंतजाम वगैरह हो चुके थे और वेडिंग प्लानर ने भी सारी चीजें समझ ली थी। अब बस घर वालों को आकर सारी रस्में देखनी थी। 

     सारा इंतजाम वेडिंग प्लानर पर छोड़ कर वह तीनों वापस लौट आए। मानसी भी घर वापस लौटने से खुश नहीं थी लेकिन फिर भी उसे खुद को खुश दिखाना था जैसा कि वह अब तक करती आई थी। लोहड़ी वाली रात जब सभी रॉय हाउस में इकट्ठे थे। रुद्र की नजर सिर्फ शरण्या को ढूंढ रही थी। उसे अच्छे से पता था कि शरण्या को आग से डर लगता है और वह नहीं आएगी। इसके बावजूद वह चाहता था कि शरण्या वहां आए और पूजा में सबके साथ शामिल हो क्योंकि ये उन दोनों की साथ में पहली लोहड़ी थी जिसे वह यूं ही जाने नहीं देना चाहता था। रूद्र उसे ढूंढते ढूंढते उसके कमरे में पहुंचा तो देखा शरण्या तैयार तो हो चुकी थी लेकिन अपने कमरे से निकलने को तैयार नहीं थी। 

     रूद्र ने बिना कुछ कहे उसका हाथ पकड़ा और लेकर बाहर जाने को हुआ तो शरण्या अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, "रूद्र प्लीज.......! मुझसे यह नहीं होगा। मैं नहीं जा पाऊंगी। तुझे पता है ना मुझे आग से कितना डर लगता है!" रुद्र उसका हाथ मजबूती से पकड़ते हुए बोला, "मैं हूं तेरे साथ फिर भी तुझे डर लग रहा है? आज अगर तू अपने डर पर काबू नहीं रख पाई तो फिर सोचो हमारी शादी कैसे होगी? एक बात मैंने तुझे पहले भी कही है आज फिर कहता हूं, मुझे मंदिर में शादी नहीं करनी और ना ही कोर्ट में! मुझे एक ग्रैंड वेडिंग चाहिए और तू मेरे साथ मंडप पर बैठेगी जहां सामने हवन कुंड जल रहा होगा। उसके लिए तुझे खुद को मजबूत करना होगा। अपने डर को अपने मन से बाहर निकाल, मैं तेरे साथ हूं। तुझे जरा सा भी डर लगे मेरा हाथ कस कर पकड़ लेना, मैं कहीं नहीं जा रहा तुझे छोड़कर। साए की तरह तेरे पास रहूंगा तु समझ रही है? तुझे आंखे खोलकर वह सब देखना होगा। मेरी शरण्या दुनिया में किसी से नहीं डरती। मुझे बस वही शरण्या चाहिए।"

    रूद्र शरण्या को खींचते हुए बाहर तक लेकर आया। शरण्या आंखें मूंदे उसके पीछे पीछे चल पड़ी। उन दोनों को एक साथ भी शिखा जी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई। दादी तो हमेशा से ही जानती थी लेकिन अनन्या को थोड़ा अजीब लगा। उन दोनों का जो हाथ पकड़े वहां आना सबका ध्यान अपनी ओर खींच गया। सामने जलती हुई आग को देख रुद्र ने धीरे से कहा, "शरण्या आंखें खोल.......! शरण्या मैंने कहा आंखें खोल.....!"

     रूद्र की आवाज सुन शरण्या ने धीरे से अपनी आंखें खोली लेकिन अपने सामने जलते हुए उस आग को देखकर उसने कसकर आंखें मूंद ली और रूद्र के बाजू को पकड़ अपना चेहरा उस में छुपा लिया। आग की तपिश को वह साफ साफ अपने चेहरे पर महसूस कर रही थी। रुद्र उसे लेकर आग के और नजदीक गया और बोला, "शरण्या आंखें खोल! मैं तेरे साथ हूं डरने की कोई बात नहीं है। आज अगर तूने अपने मन से इस डर नहीं निकाला तो शायद हमारा साथ छूट जाए।"

    शरण्या के लिए रूद्र को खोना किसी भी डर से कहीं ज्यादा बढ़कर था। उसने धीरे से आंखें खोली और रूद्र की तरफ अविश्वास भरी नजरों से देखा तो रूद्र ने सामने की तरफ इशारा कर दिया। शरण्या बड़ी मुश्किल से आग की तरफ देख रही थी। बार-बार उसकी आंखें बंद हो जाती लेकिन रुद्र की बातें याद करते हुए एक बार फिर अपनी आंखें खोल लेती। लाख कोशिशों के बावजूद वह अपने डर पर काबू नहीं रख पाई लेकिन अपनी आंखें भी बंद नहीं की उसने। 

     रुद्र के लिए इतना काफी था। कम से कम जरा सा ही सही लेकिन उसके मन के डर को बाहर निकालने में वह कामयाब रहा था। आग के इर्द गिर्द घूमते हुए जहां सभी एक दूसरे के पीछे चल रहे थे वही शरण्या रुद्र की बाँह को पकड़े घूम रही थी। किसी को भी यह बात अजीब नहीं लगी लेकिन रूद्र का शरण्या का इतना ख्याल रखना हर किसी को खटका। अगर यह पुरानी वाली शरण्या होती तो अब तक रुद्र का क्या हाल कर चुकी होती यह तो वह खुद भी नहीं जानती थी लेकिन इस वक्त वह चुपचाप रूद्र की बात मानते हुए उसके साथ चल रही थी। रूद्र ने भी उसे ज्यादा फोर्स नहीं किया और कुछ देर के बाद ही उसे लेकर घर के अंदर चला गया। 

    धनराज शिखा के पास आए और बोले, "यह रूद्र अपनी शरण्या का कुछ ज्यादा ही ख्याल नहीं रख रहा? अब तक तो दोनों के झगड़े सुलझाते सुलझाते हम थक गए लेकिन आज तो कुछ और ही देखने को मिल रहा है।" शिखा जी बोली, "वो दोनों बचपन से ही ऐसे हैं। जितना एक दूसरे से लड़ते हैं उतना ही एक दूसरे की परवाह भी करते हैं। इसलिए आपको इतना सोचने की जरूरत नहीं और अगर उन दोनों के बीच कुछ है भी तो इससे मुझे कोई एतराज नहीं और ना ही आपको होना चाहिए।" शिखा की बात समझ धनराज मुस्कुरा दिए।अब तो उन्हें भी रूद्र और शरण्या के रिश्ते को लेकर उम्मीद बंधने लगी थी। 

       कमरे में आकर रूद्र ने शरण्या का चेहरा धुलवाया और उसे बिस्तर पर बिठाकर पंखा करते हुए उसे नार्मल करने की कोशिश करने लगा। वो अच्छे से जानता था कि मन में बसे बचपन के डर को निकालना इतना आसान नहीं होगा इसके बावजूद कोशिश तो करनी ही होगी। "तु ठीक है? तेरे लिए पानी लाऊ?" रूद्र ने पूछा तो शरण्या उसका हाथ पकड़ अपने बगल में बैठाते हुए उसके कंधे पर अपना सर रख कर बोली, "तु बस मेरे पास है मुझे और कुछ नहीं चाहिए। तु मेरे पास है तो मैं बिल्कुल ठीक हूं। मुझे कुछ नहीं हो सकता। बस मुझे थोड़ा सा वक्त और लगेगा, उसके बाद मैं बिल्कुल वैसे ही होंउंगी जैसे तू चाहता है" रूद्र ने प्यार से उसका माथा चूमा और सामने रखा पानी का ग्लास उठाकर उसकी तरफ बढ़ा दिया। 



टिप्पणियाँ

  1. Amazing nd Wonderful Fabulous Mind Blowing Part 💗💗💗💗💗💗💗💖💖💖💖💖👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌

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  2. बहुत ही बेहतरीन भाग था मैम!! 👌👌 मानसी आखिरकार अमित से दूर असल मे खुश है!! और उसने जो कहा...!! सच मे, आंखे दिल का आईना होती है! 💙💙 और रुद्र कितना केयरिंग है!! पर सबको उसका शरण्या के लिए केअर करना खटक रहा है!! नजाने क्या होगा? अगले भाग का इंतेज़ार रहेगा!! 😊😊

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  3. Khubsurat superb fantastic mazedaar mind blowing next ka besabri se intjaar rehega

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