सुन मेरे हमसफर 237
237 ऋषभ को अपने सामने खड़ा देख काया थोड़ी सी हिचकिचाई और सब की नजरों से बचकर धीरे-धीरे पीछे सरकते हुए स्टेज से उतरकर दूसरी तरफ चली गई। उसे घबराहट हो रही थी। ऋषभ ने फोन पर जो कुछ भी कहा था उसे याद कर ही काया अंदर ही अंदर सिहर गई। "क्या वह सच बोल रहा था? लेकिन वह तो कहीं गया ही नहीं था तो फिर आने का सवाल ही पैदा नहीं होता। झूठा है वो, एक नंबर का झूठा। कहता कुछ है और करता कुछ। लेकिन उसके साथ कौन था? और वह इस तरह............. करना क्या चाहता है वो? कुछ तो चल रहा है उसके दिमाग में।" काया अकेले में एक तरफ खड़ी अपने आप से ही सवाल कर रही थी। इतने में ऋषभ की आवाज उसके कानों में पड़ी "मेरे बारे में सोच रही हो?" ऋषभ की आवाज को इतनी नजदीक से महसूस कर काया ने घबरा कर पीछे पलट कर देखा। उसकी हिल मुड़ी और वह लड़खड़ा कर गिरने को हुई लेकिन ऋषभ ने एकदम से थाम लिया। काया ने भी खुद को संभालने के लिए ऋषभ का सहारा लिया लेकिन फिर एकदम से ही उसे धक्का दिया। लेकिन ऋषभ क्या वाकई इतनी आसानी से उसे छोड़ने वाला था? दूर जाने...