सुन मेरे हमसफर 228

 228  





     तन्वी ने समर्थ को संभाला और पूछा "आप ठीक हो?"


     समर्थ सीधा खड़ा हुआ और अपना सर झटकते हुए बोला "हां मैं ठीक हूं।" तब जाकर समर्थ की नजर उस तूफान पर पड़ी जिससे वह टकराया था। उसके मुंह से निकला "तुम यहां? तुम कब आई?"


    ये तूफान और कोई नहीं बल्कि वही लड़की थी जिसे अंशु रिसीव करने गया था। वह मुस्कुरा कर बोली "हां भाई! मैं यहां। अब कोई मुझे बुलाएगा नहीं इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं यहां आऊंगी नहीं और क्या लगा आप लोगों को, चुपचाप कुहू दी की शादी हो जाएगी और मुझे पता भी नहीं चलेगा? मुझे इनविटेशन भी नहीं मिलेगा? मतलब हद है! मुझे भूल गए? मुझे भूल गए?? आपको पता है मैं कितनी इंपॉर्टेंट हूं!" 


   समर्थ ने जल्दी से उस बकबक मशीन के मुंह पर हाथ रखा और बोला "जानता हूं तू बहुत इंपॉर्टेंट है। इसलिए तो तुझे इनवाइट करने के लिए पार्थ को कहा था।"


      उस लड़की ने अपने मुंह से समर्थ का हाथ हटा कर बोला "उसको तो मैं अच्छे से सबक सिखाऊंगी और अच्छे से खबर लूंगी। पिछले 1 महीने से बात नहीं की है उसने मुझसे, इनविटेशन देना तो दूर की बात है मुझे तो पता ही नहीं चलता अगर अंशु मुझे फोन ना करता। एक वही तो है जो मुझसे प्यार करता है, दूसरा इस दुनिया में कोई नहीं।" कहते हुए वह रोने लगी।


     समर्थ उसके आंसू देखकर पिघलने वाला नहीं था। वो बोला "ज्यादा मगरमच्छ बनने की जरूरी नहीं है। तुझसे ज्यादा असली आंसू उसके होते हैं। और हमने इनवाइट किया या अंशु ने, क्या फर्क पड़ता है? तू आई ना!"


     उस लड़की ने शिकायत भारी लहजे में कहा "आई! हां आई! लेकिन क्या मुझे सगाई में बुलाया गया? क्या मुझे बताया गया? किसी ने मुझे खबर भी थी? नहीं ना, तो फिर किस हक से आप मुझे यह सब कह रहे हैं? मैं अब आप में से किसी की नहीं सुनूंगी।"


      वह लड़की नाक फुलाकर वहां से जाने लगी लेकिन चार कदम आगे बढ़ते ही एकदम से वह उल्टे पैर आई और चमकती आंखों से तन्वी की तरफ देखकर बोली "यह कौन है?"


     समर्थ थोड़ा सा हकलाया। अब इससे पहले उसने कभी इस तरह का इंट्रोडक्शन दिया नहीं था। उसने हिचकिचाते हुए कहा "यह तेरी भाभी............."


      भाभी का नाम सुनकर वह लड़की जोर से चिल्लाई। तन्वी ने अपने कान बंद कर लिए। लेकिन वह लड़की तन्वी को दोनों कंधे से पड़कर उसे गोल-गोल घूमाते हुए बोली "फाइनली! फाइनली!! फाइनली!!! समर्थ भाई आपने अपने लिए कोई ढूंढ ली वरना मुझे तो लगा था कि आप ऐसे ही देवदास रह जाओगे।"


      समर्थ ने तन्वी को उस लड़की के पकड़ से छुड़ाया और कहा "क्या कर रही है? तुम दोनों गिरोगे।"


      वह लड़की थोड़ी सी शांत हुई और अपनी एक्साइटमेंट को धीरे-धीरे कंट्रोल करने लगी। तन्वी ने घबराई नजरों से समर्थ की तरफ देखा तो समर्थ बोला "यह प्रेरणा है, शिवि की दोस्त। बचपन से ही हमारे घर आती जाती रही तो यह भी हमारी फैमिली का हिस्सा हो गई है। बस कुहू की शादी हो जाए, फिर जल्दी ही पार्थ और प्रेरणा भी शादी कर लेंगे। है ना प्रेरणा?"


     समर्थ की आखिरी लाइन सुनकर सामने खड़ी वह लड़की यानी प्रेरणा के माथे पर हल्की शीकन उभरी लेकिन फिर जल्दी ही उसने खुद को नॉर्मल कर लिया। समर्थ प्रेरणा से बोला, "ये तन्वी है, तेरी होने वाली भाभी। अगर तेरा हो गया तो क्या हम लोग जाए?"


    प्रेरणा ने भी उन दोनों को आशीर्वाद देते हुए कहा "तथास्तु!"


     समर्थ ने प्रेरणा के बाल खींचने के लिए हाथ आगे बढ़ाया लेकिन प्रेरणा बचकर भागते हुए बोली "इतनी आसानी से नहीं भाई! आप जाओ, मैं आती हूं। और मेरे बारे में किसी और कुछ मत बताना, मैंने और अंशु ने सरप्राइस प्लान कर रखा है।" 


     समर्थ के मुंह से निकला "पागल है यह लड़की, पूरी पागल।"




*****





      निशि अव्यांश को ढूंढ रही थी लेकिन अव्यांश तो गधे केसिर से सींग की तरह गायब था। "जरा सी नजर हटी नहीं गायब हो गया। कहाँ ढूंढू मैं इसको? कहीं दिखाई भी नहीं दे रहा। किससे पूछूं?" फिर वह अपने आप को समझाते हुए बोली "किससे सवाल करेगी तू? जबकि तू खुद अपनी कंडीशन नहीं समझ पा रही है। पहले तो यह तो तय कर ले तुझे अव्यांश के साथ रहना है या नहीं रहना है। देवेश सही था या गलत इस बात का फैसला तुझे नहीं करना है क्योंकि एक बात तुझे बहुत अच्छे से समझ आ गई है कि देवेश अब तेरे लिए कोई मायने नहीं रखता, लेकिन अव्यांश का क्या? क्या वह भी मायने नहीं रखता है? लेकिन अगर ऐसा होता तो उसकी नाराजगी से तुझे इतना फर्क क्यों पड़ता है? पिछले दो दिनों से उससे बात करने उसे देखने के लिए तू तरस गई है। उसने कभी तुझ पर हक जताने की कोशिश नहीं की। हां तुझे परेशान करना उसे अच्छा लगता है लेकिन सच बात तो यह भी है कि उसका तुझे परेशान करना तुझे भी तो अच्छा लगता है। साथ ही एक बहुत अच्छे दोस्त की तरह उसने तेरा ख्याल रखा है। तू खुद कंफ्यूज हो रही है कि तुझे करना क्या है। और ऊपर से वह अव्यांश तुझ पर हक जताने की बजाए तेरा साथ देने की बात कह कर चला गया। ऐसे गया की पलट कर देखा भी नहीं।"


     निशी अपनी धुन में चली जा रही थी। तभी सामने उसे अपने मम्मी पापा नजर आए। मिश्रा जी अपनी श्रीमती जी के बालों में लगे फूल को ठीक करने में लगे हुए थे। दोनों के चेहरे पर जो खुशी थी जो रौनक थी वह देखते बन रही थी। शादी के इतने सालों में निशि ने कभी उन दोनों को इतना रोमांटिक होते नहीं देखा था। यह सब अचानक से कैसे बदल गया?


    निशी ने हल्के से अपने गले को खराशा तो मिश्रा जी घबरा कर अपनी श्रीमती जी से एक कदम दूर हो गए। निशि हंसते हुए बोली "मुझे आप दोनों को डिस्टर्ब करने का कोई शौक नहीं है। मैं तो बस यह कह रही थी कि आप दोनों ऐसे बहुत अच्छे लगते हो।"


     रेनू जी शरमा गई। उनके गाल एकदम से लाल पड़ गए। मिश्रा जी ने इस मौके का फायदा उठाया और अपनी श्रीमती जी की बलाए ले ली। निशी ने उन्हें टोका "आपको नहीं लगता पापा कि मेरे जाने के बाद आप थोड़े रोमांटिक हो गए हो?"


    रेनू जी मिश्रा जी की शिकायत करते हुए बोली "तेरी शादी के बाद नहीं, अपने दामाद के संगत में बिगड़ गए हैं।"


     मिश्रा जी ने भी इस बात से इनकार नहीं किया और बोले "दामाद नही बेटा कहिए श्रीमती जी। और यह बात तो बिल्कुल सही कही आपने। अब जब बेटा ऐसा हो तो हमे भी तो हक है थोड़ा सा स्वयं को बदलने का। अब रिटायरमेंट करीब है तो ये उसी की प्लानिंग समझ लो। घर बैठे मेरे पास करने को कुछ होंगा नही तो ऐसे ही बिजी रखेंगे खुद को। वैसे आप यहां क्या कर रही है बेटा जी? अव्यांश कहां है?"


     अब निशि क्या ही बताती जब से खुद पता नहीं था कि अव्यांश कहां है। वो तो खुद ही ढूंढ रही थी। मिश्रा जी ने अपनी बेटी से प्यार से कहा "मैंने समझाया था ना तुझे! अपने पति की परछाई बन कर रहना। इस वक्त उसे तेरी सबसे ज्यादा जरूरत है। जितना भागदौड़ वो कर रहा है इस सब के बाद अगर तुम प्यार से उसका माथा छू लोगी तो उसकी सारी थकान उतर जाएगी।" निशी ये सुनकर और भी ज्यादा खुद को शर्मिंदा महसूस करने लगी।



   ( कुछ ठीक नहीं है। लेकिन क्या कुछ सही हो पाएगा? प्रेरणा आई तो है पार्थ की गर्लफ्रेंड बनाकर लेकिन क्या वाकई सब कुछ वैसा ही है जैसा दिख रहा है? इस सवाल का जवाब तो ढूंढना पड़ेगा।)

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274