सुन मेरे हमसफर 231

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    निशि की नजरें अव्यांश के बालों से हट ही नहीं रही थी। अव्यांश कुछ बोल रहा था और उसके होठों पर बड़ी प्यारी सी मुस्कुराहट थी लेकिन निशी थी कि उसके दिमाग में बस एक ही बात चल रही थी 'अव्यांश के बाल किसने सेट किए? ये बंगाली स्टाइल इसने आज से पहले कभी यह स्टाइल यूज नहीं किया और ना घर में कोई ऐसा है जो इसके बाल इतनी जल्दी सेट कर दे। और फिर इसे पसंद नहीं कि कोई इसके बालों को हाथ लगाए। तो फिर यह न्यू स्टाइल कहां से?' 


     अचानक ही निशि के कानों में रेनू जी की आवाज पड़ी, "निशी....!!! तू सुन भी रही है मेरी बात?"


    निशी की तंद्रा टूटी। उसने कहा, "क्या है मम्मी? सुन रही हूं आपकी बात, यहीं पर हूं मैं। बोलो क्या कहना है।"


     रेणु जी ने सामने देखकर कहा, "तूने और अव्यांश ने मिलकर कोई परफॉर्मेंस तैयार किया है ना? बता ना!!"


    निशी ने झुंझला कर सामने देखते हुए कहा "नहीं मां फिलहाल हमारा ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं है। मैं कोई डांस नहीं कर रही।"


      रेनू जी नाराज होकर बोली "तेरा दिमाग खराब है। जरूर तूने ही कुछ किया होगा। तूने ही मना किया होगा। तू ऐसी क्यों है? तेरा पति चुटकियों में किसी का भी दिल जीत सकता है और तू है की बस मुंह फुलाए बैठी रहती है। पता नहीं वह बेचारा कैसे झेलता है तुझे। हमने तो इतने साल झेल लिया।"


     निशि ने हैरानी से अपनी मां की तरफ देखा। अपने बारे में ऐसी बात उसने इससे पहले कभी नहीं सुनी थी। यह साथ बैठी उसकी अपनी मां ही थी ना? खुद को ऐसे घूरता पा कर निशि की मां ने उसे अजीब तरह से देखा और बोली "ऐसे क्यों देख रही है मुझे? क्या हो गया कोई भूत देख रही है क्या?"


    निशि अपनी ही मां को ताना देते हुए बोली "देख रही हूं और सोच रही हूं आप मेरी मॉम हो ना? कहीं मुझे गोद तो नहीं लिया था?"


     रेणु देवी कहां काम थी। वह भी अफसोस करते हुए बोली "काश कि ऐसा होता! काम से कम इतनी तसल्ली तो होती कि मेरी बेटी इतनी बेवकूफ नहीं हो सकती और इतनी आलसी तो बिल्कुल नहीं। तू बिल्कुल अपने पापा की कार्बन कॉपी है। वह तो खैर कहो कि दामाद ऐसा मिला जिसने उनकी चाल बदल दी। पता नहीं तू कब सुधरेगी।"


    निशी ने गुस्से में कहा "आप मेरी मां हो या उसकी?"


     रेनू जी ने भी तपाक से जवाब दिया "उसकी। तुम कौन हो? मैं तुम्हें नहीं जानती।"


    निशि का पारा गरम हो गया। "मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी।" बोलकर वह उठकर जाकर दूसरी तरफ बैठ गई।





     अव्यांश ने एक बड़ी ही प्यारी सी धुन बनाई और बस एक लाइन गाया "पहला नशा है यह एहसास भी है नया।"


     उसके एक लाइन पर वहां बैठी सारी लड़कियां उसके लिए हूटिंग करने लगी और अव्यांश का नाम लेकर चिल्लाने लगी जिससे अव्यांश की आवाज कहीं दबकर रह गई। इतनी सारी लड़कियों को देख अव्यांश ने थोड़ा शर्माने की एक्टिंग की और आगे की लाइन गाया "कोई बता दे मुझे क्या हुआ क्या पता।"


   सारांश हल्के से अवनी की तरफ झुके और कहा, "देख रही हो अपने बेटे को!"


    अवनी उन्हें ताना मारते हुए बोली "हां! अभी भी शर्माने की एक्टिंग करता है। बड़ा खराब एक्टर है। बिल्कुल अपने बाप पर गया है।"


   सारांश चिढ़कर बोले "एक्टिंग नही आती तो क्या, उसकी स्मार्टनेस मुझे मिली है।"


    अवनी ने भी तपाक से जवाब दिया "शक्ल मेरे पर गई है। कोई भी कहता है, अवनी का बेटा है, मिस्टर सारांश मित्तल!"


     सारांश की सारी स्मार्टनेस हवा हो गई। उन्होंने सामने की तरफ देखा। अवनी अपनी जीत पर मुस्कुराते हुए वहां से उठ कर चली गई। सारांश ने आवाज लगाई "अरे यार, कहां जा रही हो? नाराज मैं हूं, मुझे जाना चाहिए था।" लेकिन अवनी ने उनकी कोई बात नहीं सुनी और उन्हें इग्नोर कर वहां से चलती गई।


    सारांश अपने आप पर ही नाराज होकर बोले "सब मेरी गलती है। एटीट्यूड आ गया है इसमें।"


     सिद्धार्थ भी वहीं पास में ही बैठे थे। अवनी को जाते देख पास आए और उन्होंने सारांश को ताना देते हुए कहा "तेरा सारा रॉब खत्म हो गया। बुड्ढा हो गया है तू, इसलिए अब तेरी नहीं चलती। देख, अवनी भी तुझे इग्नोर करके चली गई। थोड़ा तो एटीट्यूड रख कर। तेरा बेटा भी तुझे भाव नहीं देता, अब तो बीवी भाव नहीं देगी।"


     सारांश इतनी बड़ी बात कैसे बर्दाश्त कर जाते! वह बोले "यह आप कैसे कह सकते हो? मेरा बेटा मेरी जान है और मेरी हर बात मानता है। खबरदार अगर उसने मेरे साथ कोई उल्टी सीधी हरकत करने की कोशिश की तो। बाप हूं उसका, बता दूंगा की बाप क्या होता है।"


   सिद्धार्थ उल्टा ताना देते हुए बोले "रहने दे। वह थोड़ा सा मक्खन लगाएगा और तू पिघल जाएगा। नहीं सॉरी! फिसल जाएगा। आज तक यही तो होता आया है।"


     पहले अपनी पत्नी और अब अपने भाई, दोनों से मुंह की खाने के बाद सारांश को गुस्सा आ गया। उन्होंने भी सवाल किया "माना मेरी नहीं चलती लेकिन आपका क्या? क्या भाभी पर आपकी चलती है? मुझे तो नही लगता।"


   सिद्धार्थ हंस कर बोले, "ये तेरी सब से बड़ी गलतफहमी है। ऐसा वहम तुझे हो कैसे जाता है?


   सारांश ने भी अपने भाई के मजे लेने के मूड में कहा, "अच्छा! तो भाभी कहां है बताओ जरा!"


     सिद्धार्थ के कान खड़े हो गए। उन्होंने भी चारों तरफ नजर दौड़ाई। वाकई श्यामा वहां अपनी जगह पर नहीं थी। अपनी बातों के जाल में वह खुद फंस गए थे। अपने भाई के सामने अपनी इंसल्ट होने से बचने के लिए सिद्धार्थ बड़े बेफिक्र होकर बोले "वह किसी काम से गई है, अभी थोड़ी देर में आ जाएगी। वैसे भी हम एक दूसरे को बताए बिना कोई काम नहीं करते और जो भी करते हैं एक दूसरे को उसकी जानकारी होती है। यहां से जाने से पहले उसने बताया था मुझे। तेरी तरह नहीं। अवनी चली गई और यह भी नहीं बताया कि वह क्या करने जा रही है।"


     सारांश ने फिर सवाल किया "अच्छा बताओ भाभी इस वक्त कहां है और क्या कर रही है?"


     सिद्धार्थ को कोई जवाब नहीं सुझा। वह बस आंखों को गोल-गोल घूमाते हुए बोले "वह..............! वो अभी थोड़ी देर पहले कुछ कहा था उसने मुझे..........। क्या कहा था, क्या कहा था............ हां! क्या कहा था याद नहीं आ रहा मुझे, मैं भूल गया हूं।"


      सारांश ने ताना मारा "उम्र हो गई है आपकी। वैसे उम्र तो बहुत पहले हो गई थी लेकिन एहसास अब हो रहा है आपको।"


    सिद्धार्थ ने टेबल पर हाथ मारा और बोले "उसकी किसी फ्रेंड का फोन आया था, बस उसे अटेंड करने गई है। बुलाया था उसने अपनी किसी फ्रेंड को लेकिन शायद वह नहीं आ रही इसलिए उसी से बात करने गई है, या हो सकता है उसको रिसीव करने गई हो।" सिद्धार्थ ने बोल तो दिया था लेकिन अपने झूठ पर वह खुद घबरा रहे थे।


      दोनों भाई बातों के चक्कर में भूल ही गए थे कि सामने क्या हो रहा है। एहसास में तब हुआ जब एक बार फिर वहां पर अंधेरा हो गया। इस बार स्टेज के पीछे की लाइट जली और अंधेरे में एक परछाई नजर आई जिसने नृत्य की मुद्रा ले रखी थी। उसके साथ ही दो परछाई और नजर आई। इन तीनों परछाई की बनावट देखकर सारांश और सिद्धार्थ दोनों की आंखें हैरानी से फैल गई।





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