सुन मेरे हमसफर 123
123 दोपहर के 2:00 बजे के करीब अव्यांश ने निशी को उसके मम्मी पापा के घर छोड़ा और खुद अंदर जाने की बजाय वहीं से वापस मुड़ गया। निशी ने उसे आवाज भी लगाई लेकिन वो रुका नहीं अव्यांश ने उसे बस इतना ही कहा था कि उसे कुछ जरूरी काम है और वह निपटा कर जल्दी घर आ जाएगा। निशी ने जाकर दरवाज़े की घंटी बजाई लेकिन अंदर से किसी ने जवाब नहीं दिया। उसने दो 3 बार और घंटी बजाई लेकिन इस बार भी कोई रिस्पांस नहीं आया। निशी घबरा गई कि ना जाने क्या हुआ है। घबराहट में उसने कितनी घंटी बजा डाली, उसे खुद पता नहीं चला। और ना ही यह पता चला कि दरवाजा खुल चुका था और उसकी मां घबराई सी उसे देख रही थी। निशी ने अपनी मां की तरफ देखा और जाकर एकदम से उनसे लिपट कर बोली "कहां थी आप? कब से घंटी बजा रही थी मैं! पता मैं कितना डर गई थी! इतनी देर में न जाने कौन-कौन से ख्याल मेरे मन में आकर गुजरे यह सिर्फ मैं जानती हूं।" रेनू जी ने अपनी बेटी के सर पर हाथ फेरा और बोली "सब ठीक है बेटा, सब कुछ ठीक है। लेकिन तुम यहां क्या कर रही हो? और वह भी इस वक्त, ऐसे अकेले! द...