सुन मेरे हमसफर 222
222 कुहू अपनी हल्दी के लिए पूरी तरह तैयार थी। उसके चेहरे को देखकर कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि उसके दिमाग में कुछ चल रहा हो। वह बहुत ज्यादा खुश थी। चित्रा ने उसके कंधे पर चुनर डाली और धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा। आईने में कुहू ने अपनी चित्रा मॉम को दिखा और मुस्करा उठी। चित्रा ने भी अपने होठों पर मुस्कान सजा ली लेकिन उस मुस्कान में वह बात नहीं थी जो कुहू के मुस्कान में थी। चित्रा से वहां ज्यादा देर रुका नही गया और काम का बहाना बनाकर वहां से निकल गई। इस सबसे बेखबर काया का ध्यान बार-बार अपने फोन की तरफ जा रहा था जिसके कारण वह चाह कर भी कुहू को पायल नहीं पहना पा रही थी। कुछ देर तक तो कुहू ने यह सब इग्नोर किया लेकिन फिर झुंझला कर बोली "कायु! क्या कर रही है तू? एक पायल तक पहनाना नहीं हो रहा है तेरे से! ध्यान कहां है तेरा, सोच क्या रही है तू?" काया हड़बड़ाई और जल्दी से कुहू के पायल की पेच कसने लगी। "कुछ नहीं दी बस इसके पेच मुझे कुछ समझ में नहीं आ रही थी। हो गया, बस हो गया।" काया ने जल्दी से अपना काम खत्म किया और वहां से उठकर बिना कुहू की तरफ देखें दू