सुन मेरे हमसफर 221

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    अव्यांश फोन पर किसी से बात कर रहा था और परेशानी में अपने बाल खराब कर रहा था, इस बात से बेखबर कि निशी ठीक उससे कुछ दूरी पर खड़ी उसे ही देख रही है। अव्यांश नाराज होकर बोला, "मिस्टर सहनी! मैंने जो डिजाइंस दिए थे, सब कुछ वैसे ही होगा। मुझे ऑर्किड के फूल चाहिए। गुलाब तो बिल्कुल मत लगाना वरना आपके पूरे बजट को काट दूंगा मैं। रही बात मंडप की तो मंडप में ऑर्किड और रजनीगंधा यह दोनों फूल लगेंगे...........…। नहीं मिलेंगे का क्या मतलब? मुझे रजनीगंधा चाहिए मतलब चाहिए! चाहे वह इस सीजन में मिले या नहीं.............। आप जैसे भी करिए, मुझे यही फूल चाहिए। और वैसे भी माना रजनीगंधा गर्मी में खिलते हैं लेकिन अभी तो बसंत का मौसम है। इस मौसम में तो हर फूल खिलते हैं फिर आपको क्या प्रॉब्लम है...............? मिस्टर सहनी मुझे कोई डिस्कशन नहीं चाहिए। कल के लिए आप जैसे भी हो वैसे इंतजाम करिए। और हो सके तो कैटरिंग वाले से मेरी बात करवाइए। कौन देख रहा है यह काम? देखिए मिस्टर सहनी मेनू वही होगा जो मैंने दिया था। आपको कोई भी चेंज करने होंगे आप सीधे मुझसे बात करेंगे या फिर समर्थ भाई से। और जो भी चेंज होंगे आप इस बारे में मुझे इन्फॉर्म जरुर करेंगे। इसके अलावा..............."


     बोलते बोलते अव्यांश एकदम से चुप हो गया। वह अपनी बात आगे रख ही नहीं पाया। उसके दिमाग में बस एक नाम गुंजा "निशि.....!"


     निशि उसके ठीक पीछे खड़ी थी। उसके होने का एहसास अव्यांश को अंदर तक सिहरा गया था। निशी उसके ठीक पीछे खड़ी थी इसका मतलब यह कि उसे अव्यांश से बात करनी थी। और क्या बात करनी थी ये अव्यांश बहुत अच्छे से जानता था। अपने धड़कते दिल को काबू में कर उसने बड़ी मुश्किल से अपने कदम आगे बढ़ाएं। इससे पहले की निशि हाथ उठाकर उसके कंधे पर रख पाती, अव्यांश उससे दूर निकल गया।


     फोन के दूसरी साइड से मिस्टर सहनी कुछ बोल रहे थे। अव्यांश होश में आया और एक बार फिर उन्हें कल के बारे में सब कुछ समझाने लगा। निशी हैरानी से वहां खड़ी रह गई। उसकी आंखों के सामने अव्यांश उससे दूर जा रहा था और वह कुछ नहीं कर पा रही थी। दिमाग में नफरत लेकिन दिल उसके लिए इतना बेचैन क्यों हो रहा है? क्या मैं गलत हूं? क्या मैं सही हूं? मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा। भगवान जी प्लीज! मेरी हेल्प कीजिए।' निशी ने अपनी आंखें बंद की और ऊपर आसमान की तरफ अपना सर उठा लिया।


      ऐन मौके पर निशी का फोन बजा। इस रिंग टोन को सुनकर ही निशी अंदर तक सहम गई। उसने अपने फोन का स्क्रीन देखा तो वाकई यह देवेश का ही कॉल था। निशी बौखला गई और अपना फोन देखकर बोली "इस इंसान को भी चैन नहीं है। मैंने कहा था कि मैं बाद में फोन करूंगी लेकिन नहीं पता नहीं ऐसी कौन सी बात करनी है इसको। इतना कुछ तो कर चुका है यह मेरे साथ, अब और क्या बाकी है? क्यों मुझे चैन से नहीं जीने नही दे रहा?' 


    निशी को पता ही नहीं चला कि गुस्से में उसने कब कॉल रिसीव कर लिया। दूसरी तरफ से देवेश की आवाज आई "कौन तुम्हें चैन से जीने नहीं दे रहा? क्या मैं? नही निशी! इतना बड़ा झूठ तो मत बोलो। मैंने तुम्हारे साथ कोई धोखा नहीं किया और ना ही तुम्हारी लाइफ स्पॉइल करने की कोशिश की है। जो कुछ हुआ उस सब के पीछे कोई और था जो हमें कठपुतली की तरह नचाता गया। लेकिन हमें अब और इस जाल में नहीं फसना है।"


    निशी यह सब सुन सुन कर अब पक चुकी थी। उसने बात को टालने के लहजे में कहा "देखो देवेश! मैं इस वक्त बहुत बिजी हूं तुमसे बात नहीं कर सकती। मैं...... मैंने तुम्हें मैसेज भेजा था ना कि मैं फ्री होकर बात करूंगी तो फिर तुम इतने बेचैन क्यों हो रहे हो?"


     देवेश उसे समझाते हुए बोला "बात हम दोनों की लाइफ की है निशी! तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारे ना होने से क्या मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता क्या? कभी तुमने मुझे ऐसे बेचैन होते देखा है? तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी जिंदगी नहीं है, और मैं जानता हूं तुम भी वहां खुश नहीं हो। मैं तुम्हें जल्द से जल्द उसे नर्क से बाहर निकलना चाहता हूं। उस इंसान से छुटकारा दिलाना चाहता हूं।"


      निशी की नजरे अव्यांश की तरफ घूम गई जो अभी भी बात करते हुए उससे दूर जा रहा था। निशि का दिल दर्द से भर उठा। देवेश बोला "निशी! मैंने हमारे लॉयर से बात कर ली है। वह 1 से 2 दिन में तुम्हारा तलाक के पेपर्स तैयार कर देगा। तुम्हें बस उस इंसान से, जो खुद को तुम्हारा पति कहता है उससे साइन करवाना है। उसके बाद तुम और मैं, हम दोनों यहां से बहुत दूर चले जाएंगे।"


     निशी को तकलीफ हुई। उसने इस बार देवेश पर भड़कते हुए कहा, "मुझसे बिना पूछे तुम मेरे तलाक के पेपर तैयार करवा रहे हो, किस हक से?"


      देवेश निशी के इस अंदाज पर थोड़ा हड़बड़ा गया। आज से पहले कभी निशी ने उससे ऊंची आवाज में बात नहीं की थी। शादी के वक्त भी जो कुछ हुआ, तब भी निशी ने देवेश से एक शब्द नहीं कहा लेकिन आज..........


     देवेश खुद को संभालते हुए बोला "क्या बात कर रही हो तुम निशी? मैं हूं, तुम्हारा देवेश! हमारी शादी होने वाली थी।"


     निशी उसकी बात पूरी होने से पहले ही गुस्से में बोली "हमारी शादी होने वाली थी देवेश, हुई तो नहीं थी! और ना कभी होगी। अगर होनी होती तो उस दिन हो चुकी होती। अब मैं अव्यांश की पत्नी हूं। मेरी शादी अव्यांश से हुई है। मैं निशी अव्यांश मित्तल हूं। समझ गए तुम? और रही बात तलाक की तो मैं अपने पति को तलाक नहीं दूंगी। यह मेरी जिंदगी का फैसला है, और ये फैसला मैं लूंगी।"


    देवेश को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि निशी उससे इस तरह बात करेगी। उसे अपनी सारी प्लानिंग फेल होती हुई नजर आने लगी। उसने फिर से निशी को समझने की कोशिश की "देखो निशी! जज्बात में तुम कोई गलत फैसला............" लेकिन उससे पहले ही देवेश को अपने फोन से बीप की आवाज सुनाई दी, यानी निशी ने कॉल काट दिया था। देवेश ने गुस्से में फोन सामने दीवार पर फेंक कर मारा।

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