सुन मेरे हमसफर 220

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    निशी जैसे ही संगीत वेन्यू पर पहुंची, उसे वहां खड़ी सुहानी दिख गई। सुहानी ने भी जैसे ही निशी को आते हुए देखा वह भाग कर उसके पास गई और बोली "कहां रह गई थी तुम? कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी!"


     निशी थोड़ा झिझकते हुए बोली "वह मैं बस थोड़ा.........." लेकिन इससे पहले कि निशी अपनी बात पूरी कर पाती, सुहानी अपनी ही धुन में बोली "पता है यहां पर कितना कुछ करना बाकी है! वो अंशु आलसी! उसने सारा काम हमारे ऊपर डाल दिया है और जब मैंने उससे पूछा कि तुम कहां हो तो उसने सीधे-सीधे बोल दिया कि मैं खुद फोन करके तुम्हें बुला लूं, नकचढ़ा कहीं का!"

 

      अव्यांश का नाम सुनकर निशि को एक उम्मीद जगी। उसने पूछा "अ अव्यांश यहां है? कहां है वह?"


     सुहानी बड़े बेमन से बोली "होगा यहीं कहीं, कहां जाएगा। एक जगह दिखता थोड़ी है। यहां ढूंढो तो वहां मिलेगा और वहां ढूंढो तो यहां मिलेगा। वेट! कहीं तुम दोनों की लड़ाई तो नहीं हुई है?"


     निशि एकदम से हड़बड़ा गई। उससे कोई जवाब देते नहीं बना लेकिन सुहानी तो अपनी ही धुन में थी। वह निशि का हाथ पकड़ के अपने साथ ले जाते हुए बोली "कुहू दी तैयार हो चुकी है। कुणाल जीजू और उनकी फैमिली कभी भी आती ही होगी। उनके स्वागत के लिए कुछ स्पेशल करना था। क्या करूं समझ में नहीं आ रहा। तुम कुछ आईडिया लगाओ ना!"


     निशि ने राहत की सांस ली क्योंकि सुहानी ने अपने ही सवाल पर ध्यान नहीं दिया था। लेकिन उसका दूसरा सवाल सुनकर वह खुद भी सच में पड़ गई। निशी ने कुछ सोचते हुए कहा "स्वागत करना तो दुल्हे की सास का काम होता है, आई मीन लड़की की मां का। तो यह काम तो मासी जी को ही करना है। इसमें तुम या मैं क्या कर सकते हैं? और वैसे भी, स्वागत के लिए तिलक और आरती से बेहतर और कुछ नहीं होता। मुझे नहीं लगता तुम्हें इस सब मामले में ज्यादा टेंशन लेनी चाहिए।" निशि यह सब बोल तो रही थी लेकिन उसकी नजर चारों तरफ अव्यांश को तलाश रही थी जिस कारण वह कई बार सुहानी से टकराते हुए बची और एक दो बार तो उसने सुहानी के सैंडल पर पर रख दिया था जिस कारण सुहानी खुद भी लड़खड़ा कर गिरते गिरते बची।


    निशि को थोड़ा बुरा फील हुआ तो उसने सुहानी से कहा "सॉरी! वह मेरा ध्यान नहीं था। तुम ऐसे आगे चल रही हो तो मेरा पैर.........."


     लेकिन सुहानी ने उसकी कोई बात नहीं सुनी और निशि का हाथ छोड़कर बोली "मैं कुहू दी को देखने जा रही हूं। तुम्हें टाइम मिले तो आ जाना।"


     सुहानी वहां से जाने लगी तो निशि को हैरानी हुई। उसने जल्दी से सुहानी का हाथ पकड़ा और बोली "टाइम मिले तो, मतलब? मैं भी चलती हूं ना। अभी फिलहाल मुझे कुछ नहीं करना है।"


    सुहानी ने अपना हाथ छुड़ाया और अपने दोनों हाथ आपस में फोल्ड करके बोली "ऐसा मैंने इसलिए कहा कि तुम्हें इस वक्त किसी दवाई की बहुत ज्यादा जरूरत है। तुम बीमार लग रही हो।"


     निशि थोड़ी अकचकाई। उसे सुहाने की बात समझ में नहीं आई। उसने अपना सर और गला छूकर कहा "मैं बिल्कुल ठीक हूं, मुझे कुछ नहीं हुआ।"


     सुहानी सीरियस होकर बोली "ऐसा तुम्हें लग रहा है। तुम्हें पता नहीं तुम्हें क्या हुआ है। मैं कह रही हूं ना, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है। इसलिए तुम जाओ। तुम्हारी सबसे जरूरी मेडिसिन तुम्हें वहां पीछे गार्डन तरफ मिल जाएगी।"


    सुहानी की ऐसी गोल गोल बातें सुनकर निशि ने एक बार फिर उसका हाथ पकड़ लिया और बोली "तुम्हारी सारी बातें मेरे सर के ऊपर से जा रही है। सुहानी! मैं पहले ही बता दे रही हूं मुझे पेड़ पत्तियों से इलाज करना बिल्कुल नहीं आता। अरे मैं तो धनिया पुदीना तक के बारे में ठीक से नहीं जानती तो फिर मैं कैसे उसे दवाई को पहचानूंगी जो मुझे लेना है?"


    सुहानी ने उसकी एक न सुनी उसने निशि को पीछे गार्डन की तरफ धक्का देते हुए कहा "तुम जाओ तो पहले, खुद पहचान जाओगी।" निशी के कुछ और रिएक्ट करने से पहले ही सुहानी वहां से हंसते हुए भाग गई। निशी कंफ्यूज होकर उस ओर चल पड़ी जिस तरफ सुहानी ने उसे भेजा था।



     पीछे गार्डन एरिया पूरी तरह लाइट से डेकोरेट किया गया था। जगह-जगह फूल लगे हुए थे। हॉल से ज्यादा खूबसूरत उसे पीछे का गार्डन एरिया लगा। निशी अपने आप में सोचते हुए बोली "सुहानी इसकी बात कर रही थी क्या? हां! यह बहुत खूबसूरत है। लेकिन सुहानी.........! पता नहीं। यह दोनों भाई बहन का मुझे कुछ समझ नहीं आता है, कब किस बारे में बात करते हैं कब क्या सोचते हैं। डैड बिल्कुल सही कहते हैं, दोनों एक से बढ़कर एक पागल है।"


      चारों तरफ नजर घूमते हुए निशी की नजरे एक कोने में जाकर ठहर गई। उस ओर देखते हुए अब जाकर निशी को एहसास हुआ कि सुहानी क्या बोल रही थी। वह बीमार नहीं थी, वह बेचैन थी और इस बेचैनी की दवा सिर्फ एक इंसान था और वो था अव्यांश। उसके दिल की बात सुहानी बहुत अच्छे से समझ गई थी इसलिए तो सुहानी ने निशी को इस तरफ भेजा था। निशी अपलक अव्यांश निहारती रही।


     सफेद कुर्ता गुलाबी धोती, अव्यांश पर बहुत खूबसूरत लग रहे थे। हालांकि आज का थीम ही व्हाइट और पिक था लेकिन इस कलर में वह अव्यांश को पहली बार देख रही थी। अव्यांश इस वक्त गार्डन के एक कोने में खड़ा फोन पर किसी से बात कर रहा था। कहने को तो वो तैयार हो चुका था लेकिन बाल उसके अभी भी बुरी तरह बिखरे हुए थे। उसके बिखरे बाल देखकर निशी मुस्कुरा उठी। फिर एकदम से खुद को डांट लगाई 'क्या पागलों की तरह मुस्कुरा रही है? दिमाग तो ठिकाने पर है तेरा? उसे देखकर गुस्सा करना है, मुस्कुराना नहीं है।'


    अव्यांश फोन पर बात करते हुए बार-बार अपने बालों में हाथ फिरा रहा था। उसके चेहरे से टेंशन साफ नजर आ रही थी और वह बात करते हुए इधर से उधर घूम रहा था। निशि को उसकी बेचैनी देखी नहीं गई और अनजाने ही उसके कदम अव्यांश की तरफ बढ़ चले।

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